12 लाख भक्तों ने किया मां विंध्यवासिनी को नमन:नवरात्रि पर प्रतिदिन उमड़ रहा भक्तों का सैलाब, जानें क्या हैं मान्यताएं

12 लाख भक्तों ने किया मां विंध्यवासिनी को नमन:नवरात्रि पर प्रतिदिन उमड़ रहा भक्तों का सैलाब, जानें क्या हैं मान्यताएं

मिर्जापुर के विंध्य पर्वत के ऐशान्य कोण पर विराजमान आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी जगत का कल्याण कर रही हैं। मां इस पर्वत पर अपने तीनों स्वरूप महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती के रूप में विराजमान हैं। माता के धाम में नवरात्रि के दौरान प्रति दिन लाखों की संख्या का भक्त दर्शन पूजन कर रहे है। अबतक 12 लाख से अधिक भक्तों ने माँ को नमन कर चुके है। कहा जाता है कि त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और महेश मां के धाम में आज भी तपस्या कर रहे है। विंध्याचल धाम आदि अनादि काल से भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हैं। सकरी गलिया अब पुरानी बात हो गई है। मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल विंध्याचल धाम भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हैं। सिद्धपीठ है विंध्याचल धाम देश के विभिन्न हिस्सों में शक्तिपीठ हैं तो विंध्याचल धाम सिद्धपीठ हैं। शक्तिपीठों में देवी का एक-एक अंग गिरा था, जबकि सिद्धपीठ विंध्याचल में आदि शक्ति अपने पूरे शरीर के साथ विराजमान है। प्रतिदिन मां के दरबार में देश के कोने कोने से भक्त आते हैं। नवरात्रि में इनकी संख्या लाखों में पहुंच जाती हैं। हजारों मील का सफर करने वाली पतित पावनी गंगा धरती पर आकर विंध्य क्षेत्र में आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी का पांव पखार कर त्रैलोक्य न्यारी शिव धाम काशी में प्रवेश करती है। भक्त गंगा स्नान कर देवी के धाम में हाजिरी लगाने के लिए प्रस्थान करते है । मध्य में सदाशिव महादेव हैं विराजमान विंध्य क्षेत्र में आदिशक्ति अपने तीनों रूप महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली के रूप में विराजमान होकर त्रिकोण बनाती हैं। इनके मध्य में सदाशिव महादेव विराजमान है। शिवलिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने किया था । शिव शक्ति के अद्भुत संगम से बने त्रिकोण परिक्रमा करने से दुर्गासप्तशती के पाठ का फल प्राप्त होता हैं। माता विंध्यवासिनी लक्ष्मी के रूप में विराजमान है । माता विंध्यवासिनी अपने भक्तो को लक्ष्मी के रूप में दर्शन देती है। रक्तासुर का वध करने के बाद माता काली एवं कंस के हाथ से छूटकर महामाया अष्टभुजा सरस्वती के रूप में त्रिकोण पथ पर विंध्याचल में विराजमान है | रक्तासुर का वध करने के बाद इसी पर्वत पर ली थी शरण रक्तासुर का वध करने के बाद महाकाली इस पर्वत पर आसीन हुई। उनका मुख आज भी आसमान की ओर खुला हुआ है । इस रूप का दर्शन विंध्य क्षेत्र में ही प्राप्त होता है । तीन रूपों के साथ विराजमान माता विंध्यवासिनी के धाम में त्रिकोण करने से भक्तों को सब कुछ मिल जाता है, जो उसकी कामना होती है। भक्त नंगे पांव और लेट-लेटकर दंडवत करते हुए 14 किलोमीटर की परिक्रमा कर धाम में हाजिरी लगाते है। जगत जननी माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों का कष्ट हरण करने के लिए विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण में लक्ष्मी के रूप में विराजमान है। सरस्वती माता अष्टभुजा के रूप में विद्यमान दक्षिण में माता काली और पश्चिम दिशा में ज्ञान की देवी सरस्वती माता अष्टभुजा के रूप में विद्यमान है । जब भक्त करुणामयी माता विंध्यवासिनी का दर्शन करके निकलते है तो मंदिर से कुछ दूर काली खोह में विराजमान माता काली का दर्शन मिलता है। माता काली का मुख आकाश की ओर खुला हुआ है । माता के इस दिव्य स्वरूप का दर्शन रक्तासुर संग्राम के दौरान देवताओं को मिला था। माता उसी रूप में आज भी अपने भक्तों को दर्शन देकर अभय प्रदान करती है, माता के दर्शन पाकर अपने आप को धन्य मानते है। शक्ति पीठ विन्ध्याचल धाम में नवरात्र के दौरान माता के दर पर हाजिरी लगाने वालो की तादात प्रतिदिन लाखों में पहुंच जाती है। भक्तों का कष्ट हरती हैं मां औसनस उप पुराण के विन्ध्य खंड में विन्ध्य क्षेत्र के त्रिकोण का वर्णन किया गया है। विन्ध्य धाम के त्रिकोण का अनंत महात्म्य बताया गया है। भक्तों पर दया बरसाने वाली माता के दरबार में पहुचने वाले भक्तों के सारे कष्ट मिट जाते है । विद्वान पुरोहित पं० कृपाशंकर चतुर्वेदी के अनुसार भारतीय धर्म शास्त्र में ऐशान्य कोण को देवताओ का स्थान माना गया है । विन्ध्य पर्वत के इसी कोण पर शिव के साथ शक्ति अपने तीनो रूप में विराजमान होकर भक्तो का कल्याण कर रही है । विन्ध्य क्षेत्र में दर्शन पूजन व त्रिकोण करने से अनंत गुना फल की प्राप्ति होती है । हिमालय पर्वत से निकली पतित पावनी मां गंगा 2525 किमी का सफर कर बंगाल की खाड़ी जाती हैं। विंध्य पर्वत भी गुजरात के पूर्व से लेकर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले तक करीब 2500 किलोमीटर तक फैला है। गुरु भक्त विंध्य पर्वत और गंगा का संगम विंध्याचल में ही होता है। जहा आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी के रुप में विराजमान है। पंडोहा मे आज भी त्रिदेव की मूर्ति विराजमान आदि शक्ति की स्तुति देवता भी करते हैं। मन्दिर के पूर्वी भाग में स्थित पंडोहा मे आज भी त्रिदेव की मूर्ति विराजमान है। मान्यता है कि आज भी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तपस्या कर रहे है। मां के स्नान के बाद जल इसी कुंड से होकर गंगा नदी में जाता हैं। मां के स्नान और पूजन अर्चन के लिए गंगा जल का ही प्रयोग किया जाता है। हजारों मील का सफर करने वाली पतित पावनी गंगा धरती पर आकर विंध्य क्षेत्र में आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी का पांव पखार कर त्रैलोक्य न्यारी शिव नगरी काशी में प्रवेश करती है। हजारों मील लम्बे विंध्य पर्वत एवं गंगा नदी मिलन माता के धाम विंध्याचल में ही होता है। आगे जाकर गंगा उत्तरवाहिनी हो जाती है, जबकि विंध्य पर्वत दक्षिण दिशा की ओर मुड जाता है। भक्तों को लक्ष्मी के रूप में देती हैं दर्शन धाम में पूर्व वाहिनी गंगा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण में विराजमान आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी का दर्शन व त्रिकोण करने से भक्तों की सारी मनोकामनायें पूरी होती है । विंध्य क्षेत्र की महिमा अपरम्पार है। आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों को लक्ष्मी के रूप में दर्शन देती है । अनादिकाल से सिद्धपीठ विन्ध्याचल धाम ऋषि मुनियों की तप स्थली रहा है । माता के धाम में त्रिकोण पथ पर संत देवरहा बाबा, नीम करौरी बाबा, गीता स्वामी , माता आनंदमयी, बाबा नरसिंह, अवधूत भगवान राम , पगला बाबा , बंगाली माता आदि अनेक सिद्ध साधकों की तपस्थली है । इनके आश्रम में आज भी भक्तों का ताँता लगा रहता है । 200 सीढ़िया चढ़ने के बाद होता है अष्टभुजा का दर्शन तीन रूपों के साथ विराजमान माता विंध्यवासिनी के धाम में त्रिकोण करने से भक्तों को सब कुछ मिल जाता है जो उसकी कामना होती है। मंदिर से निकलकर विन्ध्य पर्वत की उचाई चढने के लिए भक्त सीढ़ियों के रास्ते आगे बढ़ते है। पर्वत पर निवास करने वाली माता अष्टभुजा का दर्शन करने के लिए भक्तों को करीब 200 सीढ़िया चढ़नी पड़ती है। जो भक्त रोप वे से जाना चाहे उनके लिए यह सुविधा भी उपलब्ध है। ज्ञान की देवी सरस्वती के रूप में भक्तों को दर्शन देती है | माता का भव्य श्रृंगार उनके रूप को ओर मनोहारी बना देता है | माता के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुचे भक्त माला -फूल, नारियल व चुनरी के साथ ही प्रसाद अर्पण कर मत्था टेकते है | औसनस पुराण के विन्ध्य खंड में विन्ध्य क्षेत्र के त्रिकोण का वर्णन किया गया है| विन्ध्य धाम के त्रिकोण का अनंत महात्म्य बताया गया है। भक्तों पर दया बरसाने वाली माता के दरबार में पहुंचने वाले भक्तों के सारे कष्ट मिट जाते है। ऋषि मुनियों की रही है तपस्थली त्रिकोण पथ पर निकले भक्तो को माता के दरबार में आदिशक्ति के तीनो रूपों का दर्शन एक ही परिक्रमा में मिल जाता है। त्रिकोण परिक्रमा के आखिरी पड़ाव में बटुक भैरव का दर्शन कर भक्त तृप्त हो जाते हैं । पं० शिवलाल अवस्थी अनुसार विन्ध्य क्षेत्र आदि काल से ऋषि मुनियों की तपस्थली रहा हैं । सिद्धपीठ साधक जिस कामना के साथ माता को नमन कर साधना करता हैं उसकी मनोकामना पूरी होती हैं। भारतीय धर्म शास्त्र में ऐशान्य कोण को देवताओ का स्थान माना गया है | विन्ध्य पर्वत के इसी कोण पर शिव के साथ शक्ति अपने तीनो रूप में विराजमान होकर भक्तों का कल्याण कर रही है | माता के दर पर हाजिरी लगाने व हाथ फैलाने वाले को कभी निराश नहीं होना पड़ता। माता तो अपने भक्त की पुकार सुनकर ही उसके दर्द को जान जाती है और फिर ममतामई मां की कृपा बरस पड़ती है । पूरे ब्रह्मांड में दूसरा स्थान नहीं डॉ राजेश मिश्रा ने बताया कि माता विंध्यवासिनी के धाम में भोर में होने वाली मंगला आरती और रात्रि में बड़ी आरती के दौरान सभी कृत्रिम प्रकाश बिंदु बंद कर दिए जाते हैं। मां की आरती दीपक की अलौकिक रोशनी में की जाती है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। कहां कि बिंदु क्षेत्र का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता पुराणों में वर्णन पुराणों में कहा गया है कि विंध्य क्षेत्रमं परम दिव्यम, नास्ति ब्रह्मांड गोलके अर्थात विंध्य क्षेत्र परम दिव्य स्थल है, इसके समान पूरे ब्रह्मांड में दूसरा स्थान नहीं है। मिर्जापुर के विंध्य पर्वत के ऐशान्य कोण पर विराजमान आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी जगत का कल्याण कर रही हैं। मां इस पर्वत पर अपने तीनों स्वरूप महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती के रूप में विराजमान हैं। माता के धाम में नवरात्रि के दौरान प्रति दिन लाखों की संख्या का भक्त दर्शन पूजन कर रहे है। अबतक 12 लाख से अधिक भक्तों ने माँ को नमन कर चुके है। कहा जाता है कि त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और महेश मां के धाम में आज भी तपस्या कर रहे है। विंध्याचल धाम आदि अनादि काल से भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हैं। सकरी गलिया अब पुरानी बात हो गई है। मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल विंध्याचल धाम भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हैं। सिद्धपीठ है विंध्याचल धाम देश के विभिन्न हिस्सों में शक्तिपीठ हैं तो विंध्याचल धाम सिद्धपीठ हैं। शक्तिपीठों में देवी का एक-एक अंग गिरा था, जबकि सिद्धपीठ विंध्याचल में आदि शक्ति अपने पूरे शरीर के साथ विराजमान है। प्रतिदिन मां के दरबार में देश के कोने कोने से भक्त आते हैं। नवरात्रि में इनकी संख्या लाखों में पहुंच जाती हैं। हजारों मील का सफर करने वाली पतित पावनी गंगा धरती पर आकर विंध्य क्षेत्र में आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी का पांव पखार कर त्रैलोक्य न्यारी शिव धाम काशी में प्रवेश करती है। भक्त गंगा स्नान कर देवी के धाम में हाजिरी लगाने के लिए प्रस्थान करते है । मध्य में सदाशिव महादेव हैं विराजमान विंध्य क्षेत्र में आदिशक्ति अपने तीनों रूप महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली के रूप में विराजमान होकर त्रिकोण बनाती हैं। इनके मध्य में सदाशिव महादेव विराजमान है। शिवलिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने किया था । शिव शक्ति के अद्भुत संगम से बने त्रिकोण परिक्रमा करने से दुर्गासप्तशती के पाठ का फल प्राप्त होता हैं। माता विंध्यवासिनी लक्ष्मी के रूप में विराजमान है । माता विंध्यवासिनी अपने भक्तो को लक्ष्मी के रूप में दर्शन देती है। रक्तासुर का वध करने के बाद माता काली एवं कंस के हाथ से छूटकर महामाया अष्टभुजा सरस्वती के रूप में त्रिकोण पथ पर विंध्याचल में विराजमान है | रक्तासुर का वध करने के बाद इसी पर्वत पर ली थी शरण रक्तासुर का वध करने के बाद महाकाली इस पर्वत पर आसीन हुई। उनका मुख आज भी आसमान की ओर खुला हुआ है । इस रूप का दर्शन विंध्य क्षेत्र में ही प्राप्त होता है । तीन रूपों के साथ विराजमान माता विंध्यवासिनी के धाम में त्रिकोण करने से भक्तों को सब कुछ मिल जाता है, जो उसकी कामना होती है। भक्त नंगे पांव और लेट-लेटकर दंडवत करते हुए 14 किलोमीटर की परिक्रमा कर धाम में हाजिरी लगाते है। जगत जननी माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों का कष्ट हरण करने के लिए विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण में लक्ष्मी के रूप में विराजमान है। सरस्वती माता अष्टभुजा के रूप में विद्यमान दक्षिण में माता काली और पश्चिम दिशा में ज्ञान की देवी सरस्वती माता अष्टभुजा के रूप में विद्यमान है । जब भक्त करुणामयी माता विंध्यवासिनी का दर्शन करके निकलते है तो मंदिर से कुछ दूर काली खोह में विराजमान माता काली का दर्शन मिलता है। माता काली का मुख आकाश की ओर खुला हुआ है । माता के इस दिव्य स्वरूप का दर्शन रक्तासुर संग्राम के दौरान देवताओं को मिला था। माता उसी रूप में आज भी अपने भक्तों को दर्शन देकर अभय प्रदान करती है, माता के दर्शन पाकर अपने आप को धन्य मानते है। शक्ति पीठ विन्ध्याचल धाम में नवरात्र के दौरान माता के दर पर हाजिरी लगाने वालो की तादात प्रतिदिन लाखों में पहुंच जाती है। भक्तों का कष्ट हरती हैं मां औसनस उप पुराण के विन्ध्य खंड में विन्ध्य क्षेत्र के त्रिकोण का वर्णन किया गया है। विन्ध्य धाम के त्रिकोण का अनंत महात्म्य बताया गया है। भक्तों पर दया बरसाने वाली माता के दरबार में पहुचने वाले भक्तों के सारे कष्ट मिट जाते है । विद्वान पुरोहित पं० कृपाशंकर चतुर्वेदी के अनुसार भारतीय धर्म शास्त्र में ऐशान्य कोण को देवताओ का स्थान माना गया है । विन्ध्य पर्वत के इसी कोण पर शिव के साथ शक्ति अपने तीनो रूप में विराजमान होकर भक्तो का कल्याण कर रही है । विन्ध्य क्षेत्र में दर्शन पूजन व त्रिकोण करने से अनंत गुना फल की प्राप्ति होती है । हिमालय पर्वत से निकली पतित पावनी मां गंगा 2525 किमी का सफर कर बंगाल की खाड़ी जाती हैं। विंध्य पर्वत भी गुजरात के पूर्व से लेकर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले तक करीब 2500 किलोमीटर तक फैला है। गुरु भक्त विंध्य पर्वत और गंगा का संगम विंध्याचल में ही होता है। जहा आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी के रुप में विराजमान है। पंडोहा मे आज भी त्रिदेव की मूर्ति विराजमान आदि शक्ति की स्तुति देवता भी करते हैं। मन्दिर के पूर्वी भाग में स्थित पंडोहा मे आज भी त्रिदेव की मूर्ति विराजमान है। मान्यता है कि आज भी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तपस्या कर रहे है। मां के स्नान के बाद जल इसी कुंड से होकर गंगा नदी में जाता हैं। मां के स्नान और पूजन अर्चन के लिए गंगा जल का ही प्रयोग किया जाता है। हजारों मील का सफर करने वाली पतित पावनी गंगा धरती पर आकर विंध्य क्षेत्र में आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी का पांव पखार कर त्रैलोक्य न्यारी शिव नगरी काशी में प्रवेश करती है। हजारों मील लम्बे विंध्य पर्वत एवं गंगा नदी मिलन माता के धाम विंध्याचल में ही होता है। आगे जाकर गंगा उत्तरवाहिनी हो जाती है, जबकि विंध्य पर्वत दक्षिण दिशा की ओर मुड जाता है। भक्तों को लक्ष्मी के रूप में देती हैं दर्शन धाम में पूर्व वाहिनी गंगा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण में विराजमान आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी का दर्शन व त्रिकोण करने से भक्तों की सारी मनोकामनायें पूरी होती है । विंध्य क्षेत्र की महिमा अपरम्पार है। आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों को लक्ष्मी के रूप में दर्शन देती है । अनादिकाल से सिद्धपीठ विन्ध्याचल धाम ऋषि मुनियों की तप स्थली रहा है । माता के धाम में त्रिकोण पथ पर संत देवरहा बाबा, नीम करौरी बाबा, गीता स्वामी , माता आनंदमयी, बाबा नरसिंह, अवधूत भगवान राम , पगला बाबा , बंगाली माता आदि अनेक सिद्ध साधकों की तपस्थली है । इनके आश्रम में आज भी भक्तों का ताँता लगा रहता है । 200 सीढ़िया चढ़ने के बाद होता है अष्टभुजा का दर्शन तीन रूपों के साथ विराजमान माता विंध्यवासिनी के धाम में त्रिकोण करने से भक्तों को सब कुछ मिल जाता है जो उसकी कामना होती है। मंदिर से निकलकर विन्ध्य पर्वत की उचाई चढने के लिए भक्त सीढ़ियों के रास्ते आगे बढ़ते है। पर्वत पर निवास करने वाली माता अष्टभुजा का दर्शन करने के लिए भक्तों को करीब 200 सीढ़िया चढ़नी पड़ती है। जो भक्त रोप वे से जाना चाहे उनके लिए यह सुविधा भी उपलब्ध है। ज्ञान की देवी सरस्वती के रूप में भक्तों को दर्शन देती है | माता का भव्य श्रृंगार उनके रूप को ओर मनोहारी बना देता है | माता के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुचे भक्त माला -फूल, नारियल व चुनरी के साथ ही प्रसाद अर्पण कर मत्था टेकते है | औसनस पुराण के विन्ध्य खंड में विन्ध्य क्षेत्र के त्रिकोण का वर्णन किया गया है| विन्ध्य धाम के त्रिकोण का अनंत महात्म्य बताया गया है। भक्तों पर दया बरसाने वाली माता के दरबार में पहुंचने वाले भक्तों के सारे कष्ट मिट जाते है। ऋषि मुनियों की रही है तपस्थली त्रिकोण पथ पर निकले भक्तो को माता के दरबार में आदिशक्ति के तीनो रूपों का दर्शन एक ही परिक्रमा में मिल जाता है। त्रिकोण परिक्रमा के आखिरी पड़ाव में बटुक भैरव का दर्शन कर भक्त तृप्त हो जाते हैं । पं० शिवलाल अवस्थी अनुसार विन्ध्य क्षेत्र आदि काल से ऋषि मुनियों की तपस्थली रहा हैं । सिद्धपीठ साधक जिस कामना के साथ माता को नमन कर साधना करता हैं उसकी मनोकामना पूरी होती हैं। भारतीय धर्म शास्त्र में ऐशान्य कोण को देवताओ का स्थान माना गया है | विन्ध्य पर्वत के इसी कोण पर शिव के साथ शक्ति अपने तीनो रूप में विराजमान होकर भक्तों का कल्याण कर रही है | माता के दर पर हाजिरी लगाने व हाथ फैलाने वाले को कभी निराश नहीं होना पड़ता। माता तो अपने भक्त की पुकार सुनकर ही उसके दर्द को जान जाती है और फिर ममतामई मां की कृपा बरस पड़ती है । पूरे ब्रह्मांड में दूसरा स्थान नहीं डॉ राजेश मिश्रा ने बताया कि माता विंध्यवासिनी के धाम में भोर में होने वाली मंगला आरती और रात्रि में बड़ी आरती के दौरान सभी कृत्रिम प्रकाश बिंदु बंद कर दिए जाते हैं। मां की आरती दीपक की अलौकिक रोशनी में की जाती है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। कहां कि बिंदु क्षेत्र का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता पुराणों में वर्णन पुराणों में कहा गया है कि विंध्य क्षेत्रमं परम दिव्यम, नास्ति ब्रह्मांड गोलके अर्थात विंध्य क्षेत्र परम दिव्य स्थल है, इसके समान पूरे ब्रह्मांड में दूसरा स्थान नहीं है।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर