<p style=”text-align: justify;”><strong>Char Dham Yatra 2024:</strong> गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में दीपावली के पावन अवसर पर दीपोत्सव के साथ शीतकालीन कपाटबंदी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. उत्तराखंड के चारधामों में से गंगोत्री और यमुनोत्री में सबसे पहले कपाटबंदी होती है. गंगोत्री धाम में दो नवंबर को अन्नकूट पर्व के अवसर पर कपाट बंद किए जाएंगे, जबकि इस प्रक्रिया की शुरुआत एक नवंबर से दीपोत्सव के आयोजन के साथ हो रही है. गंगोत्री मंदिर को सजाने के लिए आठ क्विंटल फूलों का इस्तेमाल किया जाएगा.</p>
<p style=”text-align: justify;”>गंगोत्री धाम के प्रमुख सचिव सुरेश सेमवाल ने बताया कि दीपोत्सव के दौरान गंगा घाट और मां गंगा के मंदिर को दीपों से सजाया जाएगा. इस दौरान पटाखों का उपयोग नहीं किया जाएगा, जिससे यहां के शांतिपूर्ण वातावरण को बनाए रखा जा सके. कपाटबंदी की प्रक्रिया सुबह चार बजे विशेष पूजा-अर्चना के साथ शुरू होगी. सुबह मां गंगा के स्वर्ण विग्रह को डोली में विराजमान किया जाएगा और चांदी के अखंड दीपक में छह महीने के लिए घी-तेल डाला जाएगा. ठीक 12:14 बजे गंगोत्री के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>30 अक्टूबर से शुरू ही कपाट बंदी की प्रक्रिया</strong><br />यमुनोत्री धाम में भी दीपोत्सव की शुरुआत बुधवार से ही हो चुकी है. पुरोहित महासभा के अध्यक्ष पुरुषोत्तम उनियाल ने बताया कि यमुना नदी के किनारे और मां यमुना के मंदिर को दीपों से सजाया गया है. यमुनोत्री के कपाट भी शीतकाल के लिए आगामी दिनों में बंद कर दिए जाएंगे. इसके साथ ही, मां यमुना के मायके, खरशाली गांव में भाई दूज के अवसर पर भजन-कीर्तन संध्या का आयोजन किया जाएगा.</p>
<p style=”text-align: justify;”>गंगोत्री और यमुनोत्री में इस विशेष पर्व पर श्रद्धालुओं का आना-जाना भी बढ़ जाता है. कपाटबंदी की इस प्रक्रिया का विशेष महत्व है, क्योंकि ये संकेत करती है कि शीतकाल के दौरान अब ये धाम बंद रहेंगे और माता की पूजा-विधि यथासंभव उनके मायके स्थान पर की जाएगी. ऐसे अवसर पर यहां पहुंचने वाले भक्तों के लिए यह एक भावनात्मक अवसर होता है, जिसमें आस्था और परंपराओं का अनूठा संगम देखने को मिलता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>गंगोत्री और यमुनोत्री की शीतकालीन कपाटबंदी के बाद श्रद्धालु शीतकाल में बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम में दर्शन करने का अवसर प्राप्त कर सकेंगे. चारधाम यात्रा के इस अंतिम चरण में यह परंपरा हिमालय की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहां की धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक भी.</p>
<p style=”text-align: justify;”>ये भी पढे़ें: <a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/jaunpur-a-young-man-throat-with-a-sword-in-a-land-dispute-accused-father-arrested-and-search-son-2814133″><strong>जमीनी विवाद में तलवार से गला काटकर युवक की हत्या, आरोपी का पिता गिरफ्तार और बेटे की तलाश जारी</strong></a></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Char Dham Yatra 2024:</strong> गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में दीपावली के पावन अवसर पर दीपोत्सव के साथ शीतकालीन कपाटबंदी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. उत्तराखंड के चारधामों में से गंगोत्री और यमुनोत्री में सबसे पहले कपाटबंदी होती है. गंगोत्री धाम में दो नवंबर को अन्नकूट पर्व के अवसर पर कपाट बंद किए जाएंगे, जबकि इस प्रक्रिया की शुरुआत एक नवंबर से दीपोत्सव के आयोजन के साथ हो रही है. गंगोत्री मंदिर को सजाने के लिए आठ क्विंटल फूलों का इस्तेमाल किया जाएगा.</p>
<p style=”text-align: justify;”>गंगोत्री धाम के प्रमुख सचिव सुरेश सेमवाल ने बताया कि दीपोत्सव के दौरान गंगा घाट और मां गंगा के मंदिर को दीपों से सजाया जाएगा. इस दौरान पटाखों का उपयोग नहीं किया जाएगा, जिससे यहां के शांतिपूर्ण वातावरण को बनाए रखा जा सके. कपाटबंदी की प्रक्रिया सुबह चार बजे विशेष पूजा-अर्चना के साथ शुरू होगी. सुबह मां गंगा के स्वर्ण विग्रह को डोली में विराजमान किया जाएगा और चांदी के अखंड दीपक में छह महीने के लिए घी-तेल डाला जाएगा. ठीक 12:14 बजे गंगोत्री के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>30 अक्टूबर से शुरू ही कपाट बंदी की प्रक्रिया</strong><br />यमुनोत्री धाम में भी दीपोत्सव की शुरुआत बुधवार से ही हो चुकी है. पुरोहित महासभा के अध्यक्ष पुरुषोत्तम उनियाल ने बताया कि यमुना नदी के किनारे और मां यमुना के मंदिर को दीपों से सजाया गया है. यमुनोत्री के कपाट भी शीतकाल के लिए आगामी दिनों में बंद कर दिए जाएंगे. इसके साथ ही, मां यमुना के मायके, खरशाली गांव में भाई दूज के अवसर पर भजन-कीर्तन संध्या का आयोजन किया जाएगा.</p>
<p style=”text-align: justify;”>गंगोत्री और यमुनोत्री में इस विशेष पर्व पर श्रद्धालुओं का आना-जाना भी बढ़ जाता है. कपाटबंदी की इस प्रक्रिया का विशेष महत्व है, क्योंकि ये संकेत करती है कि शीतकाल के दौरान अब ये धाम बंद रहेंगे और माता की पूजा-विधि यथासंभव उनके मायके स्थान पर की जाएगी. ऐसे अवसर पर यहां पहुंचने वाले भक्तों के लिए यह एक भावनात्मक अवसर होता है, जिसमें आस्था और परंपराओं का अनूठा संगम देखने को मिलता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>गंगोत्री और यमुनोत्री की शीतकालीन कपाटबंदी के बाद श्रद्धालु शीतकाल में बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम में दर्शन करने का अवसर प्राप्त कर सकेंगे. चारधाम यात्रा के इस अंतिम चरण में यह परंपरा हिमालय की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहां की धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक भी.</p>
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