जेठ ने बहू की हत्या से पहले लिखी स्क्रिप्ट:9 पन्नों में 3 साल का दर्द, कानपुर में भाई बोला- हां मैं भी परेशान था, बहुत लड़ती थी मीनू कानपुर में बड़े भाई ने छोटे भाई की पत्नी की गला दबाकर हत्या कर दी। इसके बाद फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया। बहू की हत्या से पहले बड़े भाई ने पूरी 8 पन्नों की स्क्रिप्ट लिख रखी थी। इसमें उसने तीन साल का दर्द साझा किया। साथ ही बताया कि कैसे उसने हत्या करने की ठाना। जेठ ने 6 महीने पहले ही बहू की हत्या की साजिश रची थी। इतना ही नहीं नींद की दवा, सुसाइड के लिए रस्सी समेत पूरा इंतजाम किया था, लेकिन भाई का ऑटो खराब होने के चलते रोज की तरह काम पर नहीं गया तो मर्डर प्लान को टाल दिया। आखिर 8 पन्ने के सुसाइड नोट में बहू के हत्या आरोपी जेठ ने क्या लिखा…? यह जानने के लिए दैनिक भास्कर ने कुलदीप के छोटे भाई और मीनू के पति अशोक से बात की। उसने 8 पन्नों का सुसाइड नोट दिखाया और कहा- हां मेरी पत्नी बहुत परेशान करती थी। बात-बात पर झगड़ती थी। मैं भी उससे परेशान था। चलिए पहले जानते हैं, सुसाइड नोट में क्या कुछ लिखा गया… सबसे पहले एक नजर पूरे केस पर कानपुर के 23-ए/पी-ब्लॉक यशोदा नगर में रहने वाले कुलदीप गुप्ता ने बुधवार को बहू मीनू का मर्डर करने के बाद खुद फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया था। पुलिस और फोरेंसिक टीम ने मौके पर जांच की तो एक 9 पन्ने का सुसाइड नोट मिला था। मर्डर और सुसाइड से पहले कुलदीप ने 8 पन्ने का सुसाइड नोट लिखने के साथ ही उसकी एक सेट फोटो कॉपी भी कराकर गद्दे के नीचे रख दी थी। उसने ऐसा इसलिए किया ताकि अगर किसी से एक सेट मिस हो जाए तो दूसरा मिल जाए। उसने मर्डर क्यों किया? इसकी सच्चाई सभी के सामने आ सके। सुसाइड नोट के पहले पन्ने में कुलदीप ने एक वीडियो भी बनाया। 6 मिनट के वीडियो में उसने बताया कि मीनू की वजह से घर में क्लेश बना रहता था। 8 पन्ने के सुसाइड नोट में 3 साल का दर्द समेटा… सुसाइड नोट का पहला पन्ना जब मैं कंचौसी गया था। दूसरे दिन मीनू ने खूब लड़ाई की थी। तभी मैंने सोचा था कि वहां से आने के बाद मैं इसे मार दूंगा। दूसरे दिन मेरे ससुर जी का श्रद्ध था, मम्मी और मेरी बीवी मेरे ससुराल गई थीं, मैं घर आ गया था। मैं और मीनू घर पर अकेली थी, लेकिन उस दिन अशोक की गाड़ी (ऑटो) दिक्कत कर रही थी। तो उसका कुछ पता नहीं था कि कभी भी घर आ सकता था। इसलिए उस दिन मैंने कुछ नहीं किया। इसके बाद मुझे पता चला कि मेरे चाचा की लड़की की शादी तय हो गई है। तो मैंने कुछ दिन के लिए अपना प्लान ही टाल दिया। मैं नहीं चाहता था कि किसी भी वजह से शादी में किसी तरह की दिक्कत आए। शादी निपट गई तो उसके बाद मैंने एक शनिवार को मारने का प्लान बनाया, सुबह मैंने चाय बनाई अपने हाथ से और उसमें नींद की गोलियां मिली दी। फिर मम्मी और बीवी को पिलाया, लेकिन वो काम नहीं की। उसी दिन मैं फांसी लगाने के लिए रस्सी भी खरीद कर लाया, उस दिन शाम को सभी लोग बाजार गए लेकिन विश्वास बहुत रो रहा था। उस दिन तो फिर कुछ हो नहीं पाया, फिर बाबा-दादी आ गए रहने लिए फिर मुझे समय नहीं मिला। अब सब चले गए हैं। अब मुझे शायद समय मिल जाए। दूसरा पन्ना : रिश्ते के चाचा ने झूठ बोलकर करा दी शादी रिश्ते में चाचा लगने वाले रामकुमार ने अपने साले की लड़की को अच्छा बताकर शादी करा दी। बताया कि उसका भाई कॉलेज में पढ़ाता है और कल्याणपुर में कोचिंग भी चलाता है। 70-80 हजार रुपए महीना कमाता है, और बहन रेनू भी बहुत पढ़ी है, मम्मी भी इंटर किए हैं। मीनू को भी पढ़ा-लिखा बताया था। हम लोग भी बाहरी लड़की से रिश्ता करने की बजाए रिश्तेदारी में संबंध करना चाहते थे। इसी का फायदा उठाकर चाचा ने हम लोगों को गुमराह किया। मीनू वास्तव में बिल्कुल अनपढ़ थी। उसे 100 तक गिनती तक नहीं आती और घड़ी तक देखनी नहीं आती थी। उसे खाना तक बनाना नहीं आता। सिलाई-कढ़ाई, ढोलक और ब्यूटी पार्लर तो बहुत दूर की बात है। मीनू इतनी दुबली थी कि उसका महज 30 किलो वजन था। तीसरे पन्ना : तीन-चार दिन कमरे से नहीं निकलती और न ही मंजन करती अभी शादी का एक महीना ही हुआ था कि मीनू ने अपना रंग दिखाना चालू कर दिया था। बात-बात पर झगड़ा करती थी, गुस्सा हो जाती थी। तीन चार दिन कमरे से नहीं निकलती थी, न ही मंजन करती और न ही नहाती थी। उसके घर वालों से बात किया तो वो लोग मम्मी-पापा और हम लोगों को फोन पर गाली देते थे कि तुम कंजड़ों से हमें रिश्ता नहीं रखना है। हमें तो बस अपनी बिटिया से रिश्ता चलाना है। अशोक को भी बहुत गंदी गाली दी, मीनू हम लोगों के साथ नहीं रहना चाहती थी। वह चाहती थी कि हम लोग अलग हो जाएं और खाना-पीना अलग बनाएं। फिर हम लोगों ने उसे मायके भेज दिया। जब मीनू के भाई से हम लोगों ने इस बारे में बात की तो उसने कहा कि मुझे कोई लेना-देना नहीं है। मेरे घर कल्याणपुर लेकर नहीं आना, वहीं लहरापुर छोड़ना और हमको बार-बार फोन भी मत करना। जब अशोक उसे मायके छोड़ने गया तो वह पेट से थी, हम लोगों को लगा कि अब वह सुधर जाएगी। चौथे पन्ना : मायके वालों को परवाह नहीं, हम लोगों ने बचाई थी जान मायके जाने के बाद मीनू को महीनों बुखार आता रहा, लेकिन उसे किसी अस्पताल में नहीं दिखाया। उसे सिर्फ मेडिकल स्टोर से दवा दिलाते रहे। हम लोग डर रहे थे कि बुखार की वजह से गर्भ में पल रहे बच्चे को कुछ न हो जाए। वो लोग न इलाज करा रहे थे, न ही ससुराल भेज रहे थे। फिर हम लोग उनसे हाथ-पैर जोड़कर उसे लेकर आए और उसे निजी अस्पताल में एडमिट कराया था। वहां जाकर पता चला कि इसके फेफड़े में इंफेक्शन है, मुंह से बार-बार खून आता है। डॉक्टर ने कहा कि अगर एक सप्ताह लेट हो जाते तो मां और बच्चों में से किसी एक को ही बचाया जा सकता था। जब वो ठीक होकर घर आ गई तो तब से डिलीवरी तक ज्यादा लड़ाई नहीं हुई। क्यों कि वो जानती थी कि ज्यादा लड़ाई करोगे तो मेरा काम कौर करेगा। जब बच्चा हुआ तो उसने रोज लड़ना चालू कर दिया। हम लोग फिर उसे मायके छोड़ आए और घर में फर्स्ट फ्लोर का काम शुरू करा दिया। इससे कि उसे अब ससुराल लाएंगे तो अलग ही रखेंगे, लेकिन इसके बाद भी वह नहीं सुधरी। पांचवां पन्ना : पति भूखा काम पर निकल जाता, मां को छज्जे पर खड़े होकर गाली देती अलग होने के बाद भी मीनू में कोई सुधार नहीं हुआ। अशोक सुबह ऑटो चलाने के लिए बगैर खाना खाए निकलता था। वो सोती रहती थी और दिन भर मायके वालों से फोन पर चुगली करती थी। 15 दिन में एक बार खाना बन पाता था। इतना ही नहीं छज्जे पर खड़े होकर जोर-जोर से चिल्लाती, गाली-गलौज करती। मम्मी से कहती थी कि तुम मेरी सौतन हो। मेरा मंगलसूत्र पहन लो। मायके वालों से जब शिकायत करते तो उसके पापा गाली देते और कहते कि पूरे परिवार पर दहेज प्रथा लगवा देंगे और जेल भिजवा देंगे। सारा घर जेल में नजर आएगा। हां मेरी मम्मी ने उसे थप्पड़ जरूर मारा था, लेकिन कोई बहू गलत करेगी तो बहू को तो थप्पड़ मार दिया तो क्या गलत किया। पूरे मोहल्ला गाली-गलौज सुन रहा था। हमारी शादी को 10 साल हो गए लेकिन आज तक कोई लड़ाई नहीं हुई। लेकिन इसने दो-तीन सालों में इतना परेशान कर दिया कि पूरे मोहल्ला जान गया। छठवां पन्ना : हमेशा बीमारी का बहानी बनाती रहती छठवे पन्ने के सुसाइड नोट में लिखा कि एक दिन तो मायके में शिकायत की तो भाई घर आकर पूर परिवार को जेल भेजने की धमकी दी और हंगामा किया था। जब मीनू से पूरी तरह मतलब रखना छोड़ दिया तो पति से ही रोज झगड़ा करती थी। जब वह शाम को घर आए तो कभी पेट दर्द तो कभी सीने में दर्द का बहाना बनाकर बीमार हो जाती थी। शर्म की वजह से अशोक नीचे अपनी मां या भाभी के पास भी खाना खाने नहीं आता और भूखा ही सो जाता था। सितंबर में अशोक के जन्मदिन पर उसके मायके वाले आए तो मैंने छत पर अकेले में आकर इसके भाई से मुकेश उर्फ विपिन से मीनू की सारी हकरतें बताई और कहा कि ऐसे कैसे जिंदगी पार होगी। सातवां पन्ना : साला भड़का तो ठान लिया कि अब परिवार की जिंदगी नरक नहीं होने दूंगा सातवें पन्ने में कुलदीप ने लिखा- मैंने उसके भाई मुकेश उर्फ विपिन को बताया बच्चा पेशाब किए खेलता रहता है, लेकिन पैजामी तक ये नहीं बदलती है। अपने बच्चे तक का ख्याल नहीं रखती है। अगर आप लोग इसे समझाएं तो हम लोगों का घर बच सकता है। बढ़ावा देने से कोई फायदा नहीं है। इससे अच्छा है कि समझौता करके अलग हो जाए। इस पर मीनू का भाई मुकेश भड़क गया और गाली-गलौज करने लगा। बोला दहेज प्रथा लगाकर तुम सबको जेल भिजवा दूंगा। महीने का एक लाख न सही अपनी बूढ़ी मां को इस उम्र में जेल में देखना चाहते हो। अभी तुम लोगों ने मेरी सिधाई देखी है गुस्सा नहीं देखा है। ये बात मैंने किसी को नहीं बताई लेकिन उसी दिन मैंने ठान लिया कि परिवार की जिंदगी अब नरक नहीं होने दूंगा। आठवां पन्ना: मीनू के घरवालों को सजा जरूर दिलाना हम लोगों की जिंदगी पूरी तरह से नरक हो चुकी थी, सिर ढका रहता था पूरी पीठ खुली रहती थी। मोहल्ले भर में ऐसे ही बाहर खड़े होकर सबसे बातें करती थी। तीन साल शादी के हो चुके थे। इतने में तो किसी जानवर को भी कुछ सिखाओ तो सीख जाता है। पर ये तो जानवर से भी बदतर थी, और इसी को बढ़ावा देने वाले भाई, बहन, मम्मी-पापा हैं। इसलिए मजबूरी में मुझे इसे मारना पड़ रहा है। क्यों कि अगर ये जिंदा रही तो यह क्रम आगे भी चलता रहेगा। आने वाले समय में बच्चों की भी जिंदगी खराब हो जाएगी। मुझे माफ कर देना, इसे मारकर मैं खुद मर जाऊंगा। क्यों कि इसे मारने के बाद मुझे जेल हो जाएगी तो मेरे बीवी बच्चों की जिंदगी खराब हो जाएगी। मैंने आज तक चीटी भी मारने से पहले दस बार सोचता हूं, लेकिन मीनू के भाई मुकेश ने मेरे लिए कोई और रास्ता नहीं छोड़ा सिवाए मीनू को मरने के। मीनू के पापा-मम्मी, उसकी बहन रेनू और उसके भाई मुकेश उर्फ विपिन को सजा जरूर दिलाना। आइए अब आपको अशोक की जुबानी सुनाते हैं… मीनू के पति अशोक ने कहा- मां के लिए कभी फल लाना या सौ-दो सौ रुपए देना भी पत्नी को इतना नागवार गुजरता था कि लड़ने लगती थी। कहती थी कि मां को पैसे क्यों दिया, मेरे लिए तो नहीं हैं…? उनके लिए फल क्यों लेकर आए…? बीमार भतीजे को अगर अस्पताल ले गए तो भी झगड़ गई। इसी तरह हर छोटी-छोटी बात पर झगड़ा करके पत्नी ने जीवन को नरक बना दिया था। अशोक ने कहा- मैं भी इतना टूट गया था कि मैंने भाई से एक दिन कह दिया कि मेरी शादी कहां करा दी। मुझे फंसा दिया। मुझे क्या पता था कि यह बात भाई को इतनी चुभ जाएगी कि रोजाना घर की कलह मर्डर और सुसाइड केस तक पहुंच जाएगी। इतना बताते-बताते अशोक फफक कर रोने लगा। उसने आगे कहा – पत्नी मीनू किसी न किसी बात को लेकर बस झगड़ा करने लगती थी। भइया के घर में ये चीज है, मेरे पास क्यों नहीं है। भइया घर में ये सामान लेकर आए हैं, तुम क्यों नहीं लेकर आ पाते हो…? उसी में लड़ने लगती थी। चार साल शादी के हो गए, सप्ताह में एक ही दो दिन बचता था, नहीं तो चार दिन लड़ाई होती थी। जमीन मकान को लेकर कोई झगड़ा नहीं था। भइयो ने परिवारिक कलह को देखते हुए ऊपर (फर्स्ट) फ्लोर बनवा दिया। लेकिन फिर भी पत्नी नीचे के पोर्सन या किसी न किसी बात को लेकर लड़ाई-झगड़ा करती रहती थी। हमको भी कहने लगती थी, भइया घर में सुनता रहता था, लेकिन हमें नहीं पता था कि भइया के दिमाग में ये आ गया था। क्यों कि शादी उसी ने कराई थी। एक बार हमने भइया से कहा था कि भाई तुमने हमको जिंदगी भर के लिए फंसा दिया, यह कहते हुए अशोक फफक कर रोने लगे। मुझे नहीं पता था कि भाई को इतना सदमा लग जाएगा। झगड़े के पीछे कोई ठोस वजह…? इस सवाल पर अशोक ने कहा कि मीनू जबरिया हमसे झगड़ा करती थी, हम समझाते थे कि मीनू रोज-रोज झगड़ा ठीक नहीं होता है, लेकिन मीनू को नहीं। कहीं मायके लेकर चलो, तो कभी ये लेकर तुम नहीं आए…? तो कभी कहती थी कि आज खाना नहीं बनाएंगे। शादी के दूसरे दिन ही शुरू किया झगड़ा अशोक ने बताया- शादी के दूसरे-तीसरे दिन से ही झगड़ा शुरू कर दिया था। चौथी पर जाने से पहले ही कहने लगी थी कि मायके जाएंगे तो ये सामान देना। हमें अपनी सहेलियों को देना है। हमने पूछा कि किसलिए सामान देना है तो उन्होंने कहा था कि हमारी शादी हुई तो सहेलियों ने हमें दिया था, अब हमको देना है। हमने कहा था ठीक है जब जाना तो ले जाना। इतने टिफिन चाहिए, तो हमने 20 टिफिन लाकर दिए थे। तो वह बोली कि हमें 50 टिफिन चाहिए। हमने कहा कि इतने टिफिन की क्या जरूरत है तो उसी में लड़ने लगी थी। तो उसी दिन हम समझ गए थे कि किस तरह की औरत है। फिर धीरे-धीरे पता चला कि इसको कुछ आता भी नहीं है। घड़ी देखना तक नहीं आता था। एक दिन टाइम पूछा तो बोली हमें मोबाइल में देखना आता है, जब कहा कि मोबाइल में देखो तो मोबाइल में भी नहीं देख सकी।