बहराइच में गाजी मियां की दरगाह पर इस साल जेठ मेला नहीं लग रहा। 500 साल में ऐसा दूसरी बार हो रहा है। मेला 15 मई से 15 जून तक चलता है। अलग-अलग जिलों में विवाद और पहलगाम हमले के चलते प्रशासन ने यह फैसला लिया। इसके खिलाफ दरगाह कमेटी हाईकोर्ट तक गई, लेकिन परमिशन नहीं मिली। अब 19 मई को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच फिर से मामले की सुनवाई करेगी। मेला लगने की स्थिति में यहां के दुकानदारों की अच्छी कमाई होती है, लेकिन इस साल वो लोग निराश हैं। उन्हें उम्मीद थी कि मेला लगता तो अच्छा पैसा बन जाता। इससे पहले संभल में भी प्रशासन ने नेजा मेला की इजाजत नहीं दी थी। दैनिक भास्कर की टीम बहराइच के दरगाह शरीफ पहुंची। यहां की मौजूदा स्थिति देखी। दुकानदारों से बात की। यहां आने वाले लोगों से बात की। सुरक्षा व्यवस्था को देखा। समझने की कोशिश की कि मेला लगने की स्थिति में यहां क्या कुछ बदल जाता है? आइए सब कुछ एक तरफ से जानते हैं… इनपुट मिला कि मेले में हंगामा हो सकता है
15 अप्रैल, 2025 को सैयद सालार गाजी दरगाह की प्रबंध कमेटी ने जिला प्रशासन को पत्र भेजकर जेठ मेला की इजाजत मांगी। पत्र पुलिस विभाग, नगर पालिका और एसडीएम तक पहुंचा। 3 मई, 2025 को नगर मजिस्ट्रेट शालिनी प्रभाकर ने 45 सेकेंड का एक वीडियो जारी किया। इसमें उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था को देखते हुए और विभिन्न परिस्थितियां उत्पन्न होने के चलते इस वक्त मेला लगाने की इजाजत देना उचित नहीं है। दरगाह प्रबंधन कमेटी इसके बाद हाईकोर्ट भी गया, लेकिन वहां से भी परमिशन नहीं मिली। इससे पहले साल- 2020 में जिस वक्त देश में कोरोना महामारी फैली थी, उस वक्त दरगाह कमेटी ने ही मेला नहीं लगाया था। इसके अलावा हमेशा मेला लगता रहा है। पिछले साल इस मेले में करीब 15 लाख लोग शामिल हुए थे। जेठ के महीने में शनिवार, रविवार और सोमवार को सबसे ज्यादा भीड़ होती थी। बाकी दिनों में कम लोग आते थे। ‘हम डॉक्टर समझकर यहां आते हैं’
हमारी मुलाकात दरगाह के बाहर बहराइच जिले के ही व्यवसायी अमरीश कुमार वर्मा से हुई। हमने पूछा कि आप यहां क्या देखकर आते हैं? अमरीश कहते हैं- हम लोग यहां कुछ देखने नहीं आते। हम लोगों को जैसे ही कोई परेशानी होती है, हम यहां चले आते हैं। वह परेशानी दूर हो जाती है। जो परेशानियां होती हैं, उन्हें हम यहां न किसी को दिखा सकते हैं और न बता सकते हैं। हम लोग यहां डॉक्टर के हिसाब से आते हैं। जैसे डॉक्टर के पास गए और उन्होंने दवा दी तो ठीक हो गए। उसी तरह से यहां भी है। मैं बहुत बीमार था, यहीं से ठीक हुआ। अब आराम है देखिए अच्छे से चल रहा हूं। हमने अमरीश से पूछा कि इस बार मेला नहीं लग रहा, आपका क्या कहना है? वह कहते हैं- देखिए ये सब इतिहास की बातें हैं। यहां जो लोग आते हैं, उनका उस इतिहास से कोई मतलब ही नहीं होता। जैसे क्षेत्रीय देवता होते हैं, ठीक वैसे ही यहां भी है। यहीं हमें गोंडा के तुफैल मिले। तुफैल किसान हैं। वह कहते हैं- हम साल में 5-6 बार यहां आते हैं। यहीं फातिया पढ़ते हैं और फिर घर चले जाते हैं। इस साल मेला नहीं लग रहा, अगर लगता तो बहुत भीड़ होती। मेले से किसी को परेशानी भी नहीं होती। मेले में बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश तक के लोग आते थे। इसमें हिंदू-मुस्लिम सब होते थे। अब आप खुद समझिए अगर उन्हें फायदा नहीं होता तो यहां क्यों आते? लोग अपनी मान-मर्यादा लेकर आते हैं, वह पूरी भी होती है। ‘मेला होता तो 30-40 हजार कमाता’
हमने यहां के स्थानीय दुकानदारों से बात की। शहबान ठेले पर चूड़ी बेचते हैं। वह कहते हैं- हम पिछले 15 साल से यह धंधा कर रहे हैं। मेला लगता तो बहुत रुपए कमाते। हनीफ यहां पराठा-हलवा बेचते हैं। वह कहते हैं- मेरी जानकारी में पहली बार है, जब मेला नहीं लग रहा। मेला लगता तो यहां के जितने भी दुकानदार हैं, उनका अच्छा बिजनेस होता। पब्लिक बहुत आती है। इसमें हिंदू ज्यादा होते हैं। अब मेला नहीं लग रहा है, तो सबका ही नुकसान है। 65 साल के किसान अब्दुल्ला दरगाह के ही पास के एक गांव में रहते हैं। वह कहते हैं- पिछले 50 साल से यहां के मेले को देख रहा हूं। मेला नहीं होने से 90% लोगों का रोजगार चला गया। मेले में कितने सारे लोगों को रोजगार मिलता था। न सिर्फ मुस्लिम, यहां बहुत सारे हिंदुओं की भी दुकानें हैं। सभी मेले में आराम से आते थे। यहीं मिले चप्पल-जूता दुकानदार अब्दुल वाहिद कहते हैं- मेला नहीं लगने से गरीबों का बहुत नुकसान हुआ। कुल्चे का ठेला लगाने वाले दुकानदारों को उम्मीद होती है कि यहां से कमाई करके घर बनवाएंगे। बेटा-बेटी की शादी करेंगे। ऐसे करीब 50 हजार छोटे-बड़े दुकानदार और उनकी दुकानों पर काम करने वाले लोग हैं। मेला लगता है तो यहां 60% हिंदू दुकानदार ही होते हैं। 50 हजार लोगों को मिलता है रोजगार
दरगाह मेला कमेटी का कहना है कि मेला लगने की स्थिति में दरगाह के चारों तरफ 1-1 किलोमीटर तक दुकानें सजती हैं। जेठ महीना शुरू होने पर जो पहला रविवार आता है, उस दिन करीब 3 लाख लोग यहां पहुंचते हैं। तमाम लोग शनिवार को ही बारात के साथ पहुंच जाते हैं। पिछले साल 250-300 बारातें शनिवार को पहुंचीं और रविवार को गाजी मियां की पूजा के बाद लौटीं। यह क्रम हर रविवार को चलता रहा। गुरुवार को भी बड़ी संख्या में लोग जुटते थे। कुल मिलाकर एक महीना चलने वाले इस मेले में करीब 15 लाख लोग शामिल होते थे। दरगाह के आसपास इस वक्त स्थायी रूप से करीब 200 दुकानें हैं। जो लोग यहां आते हैं, इन दुकानों पर खाते-पीते और खरीददारी करते हैं। मेला लगने की स्थिति में यहां करीब 1 हजार दुकानें हो जाती हैं। दरगाह कमेटी इसके लिए जमीनें अलॉट करती है। प्रशासन अग्निशमन की एनओसी जारी करता है। इसके अलावा पूरी व्यवस्था को देखने का काम नगर मजिस्ट्रेट का होता है। चूंकि मेला शहर में लगता है, इसलिए डीएम भी लगातार निगरानी करते हैं। पूर्व मंत्री बोले- 400-500 करोड़ का बिजनेस होता है
हमने सपा सरकार में मंत्री रहे बहराइच के ही यासर शाह से दरगाह के आसपास के बिजनेस के बारे में पूछा। वह कहते हैं- 5 लाख लोग अगर एक दिन में आ रहे, तो आप समझ लीजिए कि बाजार कितना बड़ा होगा। मेले को आप एक महीने का ही न जोड़िए, इसकी तैयारियां तो सालभर होती रहती हैं। अलग-अलग जिलों में कार्यक्रम चलता है। देवी पाटन का मेला उठकर बहराइच में आ जाता है। यासर शाह कहते हैं- भारत में मेलों से लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी है। तमाम लोगों को रोजगार मिलता है। प्रदेश की इकोनॉमी में मेले का बड़ा योगदान होता है। 1 हजार से ज्यादा दुकानें लगती हैं
दरगाह के पास ही फिरोज आलम की बड़ी किराने की दुकान है। वह कहते हैं- मेला लगने की स्थिति में दुकान की बिक्री 5 गुना तक बढ़ जाती है। पूरे क्षेत्र में 1 हजार से ज्यादा अस्थायी दुकानें लगती हैं। बड़े-छोटे झूले लगते हैं। टैक्सी, ई-रिक्शा वालों समेत ट्रैवल्स को बड़ा मुनाफा होता है। शहर में 100 से ज्यादा होटल हैं, जो पूरे महीने भरे रहते हैं। कौन था सैयद सालार मसूद गाजी, बहराइच से क्या कनेक्शन? सैयद सालार मसूद गाजी मोहम्मद गजनवी का भांजा और सेनापति था। इतिहासकारों के मुताबिक, भारत पर शुरुआती आक्रमणों में सैयद सालार मसूद गाजी ने मोहम्मद गजनवी के सैन्य अभियान का नेतृत्व किया था। बहराइच के रहने वाले इतिहासकार मौलाना मोहम्मद अली मसऊदी ने सैयद सालार मसूद गाजी पर अनवार-ए-मसऊदी नाम से किताब लिखी है। इसके मुताबिक, 1026 ईस्वी में गुजरात के सोमनाथ और आसपास के हिस्सों पर हमला और कब्जा करने के बाद सैयद सालार आगे बढ़े। ऐतिहासिक उल्लेखों के मुताबिक, करीब 1030 ईस्वी में सैयद सालार यूपी के आज के बहराइच पहुंचा। उसका सामना यहां के राजा सुहेलदेव से हुआ। आस-पास के रियासत के राजाओं को भी उसने चुनौती दी। राजा सुहेलदेव ने सैयद सालार के सामने समर्पण करने से इनकार कर दिया। तब सुहेलदेव श्रावस्ती राज्य के राजा थे। उन्होंने अपने पड़ोस के 21 राजाओं के साथ मिलकर एक संयुक्त सेना तैयार की। बहराइच में सैयद सालार मसूद गाजी और इन राजाओं की संगठित सेना के बीच जंग हुई। इसमें महाराजा सुहेलदेव ने सैयद सालार को हरा दिया। युद्ध में सैयद सालार मारा भी गया। सैयद सालार को उसकी सेना ने वहीं बहराइच में ही दफना दिया। यहां आज भी उसकी कब्र है। ———————— ये खबर भी पढ़ें… नोएडा से किडनैप कर कार से फेंका, कुचलकर मार डाला, शरीर पर 18 चोटें, 110 KM दूर लाकर सहेली से गैंगरेप नोएडा से 2 सहेलियों को किडनैप किया। मेरठ में चलती कार से फेंककर एक की हत्या कर दी। वहां से 110KM दूर बुलंदशहर लाकर दूसरी लड़की से गैंगरेप किया। लड़की की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात पता चली है। उसके शरीर पर कुल 18 चोट के निशान हैं। ऐसा कोई अंग नहीं बचा, जहां गंभीर चोट न हो। पढ़ें पूरी खबर बहराइच में गाजी मियां की दरगाह पर इस साल जेठ मेला नहीं लग रहा। 500 साल में ऐसा दूसरी बार हो रहा है। मेला 15 मई से 15 जून तक चलता है। अलग-अलग जिलों में विवाद और पहलगाम हमले के चलते प्रशासन ने यह फैसला लिया। इसके खिलाफ दरगाह कमेटी हाईकोर्ट तक गई, लेकिन परमिशन नहीं मिली। अब 19 मई को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच फिर से मामले की सुनवाई करेगी। मेला लगने की स्थिति में यहां के दुकानदारों की अच्छी कमाई होती है, लेकिन इस साल वो लोग निराश हैं। उन्हें उम्मीद थी कि मेला लगता तो अच्छा पैसा बन जाता। इससे पहले संभल में भी प्रशासन ने नेजा मेला की इजाजत नहीं दी थी। दैनिक भास्कर की टीम बहराइच के दरगाह शरीफ पहुंची। यहां की मौजूदा स्थिति देखी। दुकानदारों से बात की। यहां आने वाले लोगों से बात की। सुरक्षा व्यवस्था को देखा। समझने की कोशिश की कि मेला लगने की स्थिति में यहां क्या कुछ बदल जाता है? आइए सब कुछ एक तरफ से जानते हैं… इनपुट मिला कि मेले में हंगामा हो सकता है
15 अप्रैल, 2025 को सैयद सालार गाजी दरगाह की प्रबंध कमेटी ने जिला प्रशासन को पत्र भेजकर जेठ मेला की इजाजत मांगी। पत्र पुलिस विभाग, नगर पालिका और एसडीएम तक पहुंचा। 3 मई, 2025 को नगर मजिस्ट्रेट शालिनी प्रभाकर ने 45 सेकेंड का एक वीडियो जारी किया। इसमें उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था को देखते हुए और विभिन्न परिस्थितियां उत्पन्न होने के चलते इस वक्त मेला लगाने की इजाजत देना उचित नहीं है। दरगाह प्रबंधन कमेटी इसके बाद हाईकोर्ट भी गया, लेकिन वहां से भी परमिशन नहीं मिली। इससे पहले साल- 2020 में जिस वक्त देश में कोरोना महामारी फैली थी, उस वक्त दरगाह कमेटी ने ही मेला नहीं लगाया था। इसके अलावा हमेशा मेला लगता रहा है। पिछले साल इस मेले में करीब 15 लाख लोग शामिल हुए थे। जेठ के महीने में शनिवार, रविवार और सोमवार को सबसे ज्यादा भीड़ होती थी। बाकी दिनों में कम लोग आते थे। ‘हम डॉक्टर समझकर यहां आते हैं’
हमारी मुलाकात दरगाह के बाहर बहराइच जिले के ही व्यवसायी अमरीश कुमार वर्मा से हुई। हमने पूछा कि आप यहां क्या देखकर आते हैं? अमरीश कहते हैं- हम लोग यहां कुछ देखने नहीं आते। हम लोगों को जैसे ही कोई परेशानी होती है, हम यहां चले आते हैं। वह परेशानी दूर हो जाती है। जो परेशानियां होती हैं, उन्हें हम यहां न किसी को दिखा सकते हैं और न बता सकते हैं। हम लोग यहां डॉक्टर के हिसाब से आते हैं। जैसे डॉक्टर के पास गए और उन्होंने दवा दी तो ठीक हो गए। उसी तरह से यहां भी है। मैं बहुत बीमार था, यहीं से ठीक हुआ। अब आराम है देखिए अच्छे से चल रहा हूं। हमने अमरीश से पूछा कि इस बार मेला नहीं लग रहा, आपका क्या कहना है? वह कहते हैं- देखिए ये सब इतिहास की बातें हैं। यहां जो लोग आते हैं, उनका उस इतिहास से कोई मतलब ही नहीं होता। जैसे क्षेत्रीय देवता होते हैं, ठीक वैसे ही यहां भी है। यहीं हमें गोंडा के तुफैल मिले। तुफैल किसान हैं। वह कहते हैं- हम साल में 5-6 बार यहां आते हैं। यहीं फातिया पढ़ते हैं और फिर घर चले जाते हैं। इस साल मेला नहीं लग रहा, अगर लगता तो बहुत भीड़ होती। मेले से किसी को परेशानी भी नहीं होती। मेले में बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश तक के लोग आते थे। इसमें हिंदू-मुस्लिम सब होते थे। अब आप खुद समझिए अगर उन्हें फायदा नहीं होता तो यहां क्यों आते? लोग अपनी मान-मर्यादा लेकर आते हैं, वह पूरी भी होती है। ‘मेला होता तो 30-40 हजार कमाता’
हमने यहां के स्थानीय दुकानदारों से बात की। शहबान ठेले पर चूड़ी बेचते हैं। वह कहते हैं- हम पिछले 15 साल से यह धंधा कर रहे हैं। मेला लगता तो बहुत रुपए कमाते। हनीफ यहां पराठा-हलवा बेचते हैं। वह कहते हैं- मेरी जानकारी में पहली बार है, जब मेला नहीं लग रहा। मेला लगता तो यहां के जितने भी दुकानदार हैं, उनका अच्छा बिजनेस होता। पब्लिक बहुत आती है। इसमें हिंदू ज्यादा होते हैं। अब मेला नहीं लग रहा है, तो सबका ही नुकसान है। 65 साल के किसान अब्दुल्ला दरगाह के ही पास के एक गांव में रहते हैं। वह कहते हैं- पिछले 50 साल से यहां के मेले को देख रहा हूं। मेला नहीं होने से 90% लोगों का रोजगार चला गया। मेले में कितने सारे लोगों को रोजगार मिलता था। न सिर्फ मुस्लिम, यहां बहुत सारे हिंदुओं की भी दुकानें हैं। सभी मेले में आराम से आते थे। यहीं मिले चप्पल-जूता दुकानदार अब्दुल वाहिद कहते हैं- मेला नहीं लगने से गरीबों का बहुत नुकसान हुआ। कुल्चे का ठेला लगाने वाले दुकानदारों को उम्मीद होती है कि यहां से कमाई करके घर बनवाएंगे। बेटा-बेटी की शादी करेंगे। ऐसे करीब 50 हजार छोटे-बड़े दुकानदार और उनकी दुकानों पर काम करने वाले लोग हैं। मेला लगता है तो यहां 60% हिंदू दुकानदार ही होते हैं। 50 हजार लोगों को मिलता है रोजगार
दरगाह मेला कमेटी का कहना है कि मेला लगने की स्थिति में दरगाह के चारों तरफ 1-1 किलोमीटर तक दुकानें सजती हैं। जेठ महीना शुरू होने पर जो पहला रविवार आता है, उस दिन करीब 3 लाख लोग यहां पहुंचते हैं। तमाम लोग शनिवार को ही बारात के साथ पहुंच जाते हैं। पिछले साल 250-300 बारातें शनिवार को पहुंचीं और रविवार को गाजी मियां की पूजा के बाद लौटीं। यह क्रम हर रविवार को चलता रहा। गुरुवार को भी बड़ी संख्या में लोग जुटते थे। कुल मिलाकर एक महीना चलने वाले इस मेले में करीब 15 लाख लोग शामिल होते थे। दरगाह के आसपास इस वक्त स्थायी रूप से करीब 200 दुकानें हैं। जो लोग यहां आते हैं, इन दुकानों पर खाते-पीते और खरीददारी करते हैं। मेला लगने की स्थिति में यहां करीब 1 हजार दुकानें हो जाती हैं। दरगाह कमेटी इसके लिए जमीनें अलॉट करती है। प्रशासन अग्निशमन की एनओसी जारी करता है। इसके अलावा पूरी व्यवस्था को देखने का काम नगर मजिस्ट्रेट का होता है। चूंकि मेला शहर में लगता है, इसलिए डीएम भी लगातार निगरानी करते हैं। पूर्व मंत्री बोले- 400-500 करोड़ का बिजनेस होता है
हमने सपा सरकार में मंत्री रहे बहराइच के ही यासर शाह से दरगाह के आसपास के बिजनेस के बारे में पूछा। वह कहते हैं- 5 लाख लोग अगर एक दिन में आ रहे, तो आप समझ लीजिए कि बाजार कितना बड़ा होगा। मेले को आप एक महीने का ही न जोड़िए, इसकी तैयारियां तो सालभर होती रहती हैं। अलग-अलग जिलों में कार्यक्रम चलता है। देवी पाटन का मेला उठकर बहराइच में आ जाता है। यासर शाह कहते हैं- भारत में मेलों से लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी है। तमाम लोगों को रोजगार मिलता है। प्रदेश की इकोनॉमी में मेले का बड़ा योगदान होता है। 1 हजार से ज्यादा दुकानें लगती हैं
दरगाह के पास ही फिरोज आलम की बड़ी किराने की दुकान है। वह कहते हैं- मेला लगने की स्थिति में दुकान की बिक्री 5 गुना तक बढ़ जाती है। पूरे क्षेत्र में 1 हजार से ज्यादा अस्थायी दुकानें लगती हैं। बड़े-छोटे झूले लगते हैं। टैक्सी, ई-रिक्शा वालों समेत ट्रैवल्स को बड़ा मुनाफा होता है। शहर में 100 से ज्यादा होटल हैं, जो पूरे महीने भरे रहते हैं। कौन था सैयद सालार मसूद गाजी, बहराइच से क्या कनेक्शन? सैयद सालार मसूद गाजी मोहम्मद गजनवी का भांजा और सेनापति था। इतिहासकारों के मुताबिक, भारत पर शुरुआती आक्रमणों में सैयद सालार मसूद गाजी ने मोहम्मद गजनवी के सैन्य अभियान का नेतृत्व किया था। बहराइच के रहने वाले इतिहासकार मौलाना मोहम्मद अली मसऊदी ने सैयद सालार मसूद गाजी पर अनवार-ए-मसऊदी नाम से किताब लिखी है। इसके मुताबिक, 1026 ईस्वी में गुजरात के सोमनाथ और आसपास के हिस्सों पर हमला और कब्जा करने के बाद सैयद सालार आगे बढ़े। ऐतिहासिक उल्लेखों के मुताबिक, करीब 1030 ईस्वी में सैयद सालार यूपी के आज के बहराइच पहुंचा। उसका सामना यहां के राजा सुहेलदेव से हुआ। आस-पास के रियासत के राजाओं को भी उसने चुनौती दी। राजा सुहेलदेव ने सैयद सालार के सामने समर्पण करने से इनकार कर दिया। तब सुहेलदेव श्रावस्ती राज्य के राजा थे। उन्होंने अपने पड़ोस के 21 राजाओं के साथ मिलकर एक संयुक्त सेना तैयार की। बहराइच में सैयद सालार मसूद गाजी और इन राजाओं की संगठित सेना के बीच जंग हुई। इसमें महाराजा सुहेलदेव ने सैयद सालार को हरा दिया। युद्ध में सैयद सालार मारा भी गया। सैयद सालार को उसकी सेना ने वहीं बहराइच में ही दफना दिया। यहां आज भी उसकी कब्र है। ———————— ये खबर भी पढ़ें… नोएडा से किडनैप कर कार से फेंका, कुचलकर मार डाला, शरीर पर 18 चोटें, 110 KM दूर लाकर सहेली से गैंगरेप नोएडा से 2 सहेलियों को किडनैप किया। मेरठ में चलती कार से फेंककर एक की हत्या कर दी। वहां से 110KM दूर बुलंदशहर लाकर दूसरी लड़की से गैंगरेप किया। लड़की की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात पता चली है। उसके शरीर पर कुल 18 चोट के निशान हैं। ऐसा कोई अंग नहीं बचा, जहां गंभीर चोट न हो। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
500 साल में दूसरी बार बहराइच में जेठ मेला नहीं:15 लाख लोग आते हैं गाजी मियां दरगाह पर, 400-500 करोड़ का होता है कारोबार
