हरियाणा के हिसार में नगर निगम ने लोगों की धार्मिक भावनाओं के साथ खेलना शुरू कर दिया है। नगर निगम रेड स्क्वेयर मार्केट में ईलाइट सिनेमा के पास रामपुरा मोहल्ला की ओर जानी वाली मुख्य सड़क पर देवी-देवताओं के पोस्टर चस्पा दिए। इन पोस्टरों में हिंदुओं के साथ सिखों के गुरुओं के भी चित्र हैं। देवी देवताओं के फोटो लगाकर नगर निगम की ओर से पोस्टर पर ही संदेश लिखा गया है कि कृपया यहां कचरा ना डालें, कचरा डालने पर जुर्माना लगाया जाएगा। नगर निगम की इस हरकत से हिसार के लोगों में गुस्सा है। लोगों ने कहा कि यह हिंदू और सिख धर्म दोनों का अपमान है। वहीं नगर निगम ने इस पूरे वाकया से पल्ला झाड़ लिया है। नगर निगम हिसार के सैनिटरी इंस्पेक्टर राजकुमार का कहना है कि यह पोस्टर नगर निगम की ओर से नहीं लगाए गए हैं। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर निगम ने यह पोस्टर नहीं उखाड़े तो वह खुद यहां से यह पोस्टर उखाड़ देंगे। लोगों ने कहा कि निगम को कचरा डालने से रोकना है तो जुर्माना लगाए मगर देवी देवताओं के चित्र लगाकर उनका अनादर ना करे। निगम का जवाब-किसी शरारती तत्व ने लगाए नगर निगम के सैनिटरी इंस्पेक्टर राजकुमार ने कहा कि हिसार की दीवार पर देवी देवताओं के पोस्टर नगर निगम कभी नहीं लगाता है। यह किसी आसपास के ही लोगों के काम है। नगर निगम लोहे के बोर्ड लगाता है, और सिर्फ जुर्माना लगाने का मैसेज लिखता है। देवताओं के चित्र कभी नहीं लगाता। यह किसी शरारती तत्व के काम लगते हैं। निगम लगाता है जुर्माना, फिर भी नहीं मानते लोग हिसार नगर निगम सार्वजनिक स्थान पर कूड़ा फेंकने पर 200 रुपए, थूकने पर 100 रुपए, नहाने या पेशाब करने पर 100 रुपए और खुले में शौच करने पर 200 रुपए का जुर्माना लगाता है। इसके अलावा किसी भी व्यक्ति को अनिर्दिष्ट स्थान पर पशुओं के लिए भोजन या चारा डालते हुए पाए जाने पर 200 रुपए, सार्वजनिक स्थान पर कचरा डालने पर 1,500 रुपए, कचरा जलाने या वाहन द्वारा कूड़ा डालने पर 5,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। इसके अलावा यदि डस्टबीन का रखरखाव नहीं किया जाता तो दुकानदार पर 150 रुपए और रेहड़ी-पटरी वाले पर 100 रुपए का जुर्माना लगाया जाता है। वहीं विवाह, पार्टी, त्योहार हॉल, मॉल, सामुदायिक हॉल, पार्टी लॉन, प्रदर्शनी एवं मेला आदि पर गीला एवं सूखा कचरा अलग-अलग न करने और खतरनाक कचरा, बागवानी एवं अन्य कचरा खुले सार्वजनिक स्थानों पर डालने पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाता है। हरियाणा के हिसार में नगर निगम ने लोगों की धार्मिक भावनाओं के साथ खेलना शुरू कर दिया है। नगर निगम रेड स्क्वेयर मार्केट में ईलाइट सिनेमा के पास रामपुरा मोहल्ला की ओर जानी वाली मुख्य सड़क पर देवी-देवताओं के पोस्टर चस्पा दिए। इन पोस्टरों में हिंदुओं के साथ सिखों के गुरुओं के भी चित्र हैं। देवी देवताओं के फोटो लगाकर नगर निगम की ओर से पोस्टर पर ही संदेश लिखा गया है कि कृपया यहां कचरा ना डालें, कचरा डालने पर जुर्माना लगाया जाएगा। नगर निगम की इस हरकत से हिसार के लोगों में गुस्सा है। लोगों ने कहा कि यह हिंदू और सिख धर्म दोनों का अपमान है। वहीं नगर निगम ने इस पूरे वाकया से पल्ला झाड़ लिया है। नगर निगम हिसार के सैनिटरी इंस्पेक्टर राजकुमार का कहना है कि यह पोस्टर नगर निगम की ओर से नहीं लगाए गए हैं। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर निगम ने यह पोस्टर नहीं उखाड़े तो वह खुद यहां से यह पोस्टर उखाड़ देंगे। लोगों ने कहा कि निगम को कचरा डालने से रोकना है तो जुर्माना लगाए मगर देवी देवताओं के चित्र लगाकर उनका अनादर ना करे। निगम का जवाब-किसी शरारती तत्व ने लगाए नगर निगम के सैनिटरी इंस्पेक्टर राजकुमार ने कहा कि हिसार की दीवार पर देवी देवताओं के पोस्टर नगर निगम कभी नहीं लगाता है। यह किसी आसपास के ही लोगों के काम है। नगर निगम लोहे के बोर्ड लगाता है, और सिर्फ जुर्माना लगाने का मैसेज लिखता है। देवताओं के चित्र कभी नहीं लगाता। यह किसी शरारती तत्व के काम लगते हैं। निगम लगाता है जुर्माना, फिर भी नहीं मानते लोग हिसार नगर निगम सार्वजनिक स्थान पर कूड़ा फेंकने पर 200 रुपए, थूकने पर 100 रुपए, नहाने या पेशाब करने पर 100 रुपए और खुले में शौच करने पर 200 रुपए का जुर्माना लगाता है। इसके अलावा किसी भी व्यक्ति को अनिर्दिष्ट स्थान पर पशुओं के लिए भोजन या चारा डालते हुए पाए जाने पर 200 रुपए, सार्वजनिक स्थान पर कचरा डालने पर 1,500 रुपए, कचरा जलाने या वाहन द्वारा कूड़ा डालने पर 5,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। इसके अलावा यदि डस्टबीन का रखरखाव नहीं किया जाता तो दुकानदार पर 150 रुपए और रेहड़ी-पटरी वाले पर 100 रुपए का जुर्माना लगाया जाता है। वहीं विवाह, पार्टी, त्योहार हॉल, मॉल, सामुदायिक हॉल, पार्टी लॉन, प्रदर्शनी एवं मेला आदि पर गीला एवं सूखा कचरा अलग-अलग न करने और खतरनाक कचरा, बागवानी एवं अन्य कचरा खुले सार्वजनिक स्थानों पर डालने पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाता है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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हरियाणा में छात्राओं की 6 लाख फीस लेकर प्रिंसिपल फरार:3 दिन से गायब, मोबाइल स्विच ऑफ, 12वीं की 600 छात्राओं की परीक्षा पर संकट गहराया
हरियाणा में छात्राओं की 6 लाख फीस लेकर प्रिंसिपल फरार:3 दिन से गायब, मोबाइल स्विच ऑफ, 12वीं की 600 छात्राओं की परीक्षा पर संकट गहराया हरियाणा के फरीदाबाद में सरकारी स्कूल का प्रिंसिपल 12वीं क्लास की 600 छात्राओं की 6 लाख रुपए फीस लेकर फरार हो गया। प्रिंसिपल छत्रपाल का पिछले 3 दिन से कोई अता-पता नहीं है। प्रिंसिपल ने किसी अधिकारी या टीचर को इसकी सूचना तक नहीं दी। उसके 2 मोबाइल भी स्विच ऑफ हैं। ऐसे में फीस जमा न होने से स्कूल की छात्राओं की बोर्ड परीक्षा पर संकट आ गया है। इसका खुलासा होने पर शिक्षा विभाग में भी हड़कंप मचा हुआ है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि प्रिंसिपल जानबूझकर गायब हुआ या उसके साथ कोई वारदात हुई है। छात्राओं से जुर्माने समेत वसूली थी फीस
यह मामला फरीदाबाद में बल्लभगढ़ स्थित राजकीय आदर्श कन्या वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल का है। यहां करीब 12वीं क्लास 609 छात्राएं हैं। इनकी फीस 4 लाख 57 हजार 100 रुपए फीस बनती थी। हालांकि जिन छात्राओं ने देरी से फीस भरी, उनसे जुर्माना भी वसूला गया। ऐसे में प्रिंसिपल के पास 6 लाख से ज्यादा रुपए जमा हो गए। प्रिंसिपल ने किसी को कुछ नहीं बताया
फीस जमा होने के बाद 3 दिन से प्रिंसिपल स्कूल नहीं आ रहा। प्रिंसिपल के बारे में स्कूल के बाकी टीचरों, स्टाफ और शिक्षा अधिकारियों के पास भी कोई सूचना नहीं है। जब प्रिंसिपल लगातार स्कूल नहीं आए तो टीचरों ने उनके 2 मोबाइल पर कॉल की लेकिन वह भी स्विच ऑफ मिले। टीचरों ने अधिकारियों को सूचना दी
इसके बाद परेशान होकर टीचरों ने बल्लभगढ़ के खंड शिक्षा अधिकारी, फरीदाबाद के जिला शिक्षा अधिकारी और हरियाणा बोर्ड के अधिकारियों को इसकी सूचना दी। अधिकारियों ने अपने स्तर पर भी प्रिंसिपल के बारे में छानबीन की लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। जिसके बाद हरियाणा बोर्ड ने प्रिंसिपल के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उससे फीस की रिकवरी के आदेश जारी कर दिए हैं। स्कूल इंचार्ज बोलीं- छात्राओं को दिक्कत नहीं होगी
प्रिंसिपल के गायब होने के बाद स्कूल इंचार्ज बनाई गईं टीचर पुष्पा ने पुष्टि की कि प्रिंसिपल बच्चों की फीस लेकर गायब हो गए हैं। उनका कोई पता भी नहीं चल रहा। पुष्पा ने कहा कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने उन्हें कहा है कि छात्राओं को परीक्षा देने में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए। उनकी फीस विभाग के पास जमा न होने की वजह से उन्हें परीक्षा देने से न रोका जाए।
जींद में बाराती ने की हर्ष फायरिंग:लड़की को लगे गोली के छर्रे, छत पर खड़ी होकर देख रही थी बारात
जींद में बाराती ने की हर्ष फायरिंग:लड़की को लगे गोली के छर्रे, छत पर खड़ी होकर देख रही थी बारात जींद में एक शादी समारोह के दौरान एक शख्स ने हर्ष फायरिंग कर दी। वहां स्थित एक घर की छत पर खड़ी लड़की को गोली का छर्रा लग गया, जिससे वह घायल हो गई। गोली बिल्कुल लड़की के करीब से निकला, जिससे वह बाल-बाल बच गई। लड़की के पिता की शिकायत के आधार पर पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। जींद के सफीदों क्षेत्र के गांव ऐंचरा कलां में शादी समारोह में हर्ष फायरिंग के दौरान छत पर खड़ी लड़की को गोली के छर्रे लगने से वह घायल हो गई। घायल लड़की को पानीपत के निजी अस्पताल में उपचार के लिए दाखिल करवाया गया है। सफीदों पुलिस ने एक बाराती के खिलाफ मामला दर्ज किया है। गांव ऐंचरा कलां निवासी साहब सिंह ने बताया कि 6 दिसंबर की रात को उसके चचेरे भाई की बेटी की शादी थी। गांव सिवानामाल से बारात आई हुई थी। शराब के नशे में झूम रहे थे बाराती
बारातियों के द्वारा काफी पटाखे फोड़े जा रहे थे और बाराती शराब के नशे में नाच रहे थे। उनके परिवार की महिलाएं और बच्चे घर की छत से बारात को देख रहे थे। तभी बारातियों में से किसी व्यक्ति ने पिस्टल से फायर कर दिया। इस दौरान छत पर खड़ी उसकी बेटी के पास से गोली निकल गई और गोली के छर्रे उसे जा लगे। छर्रे लगने से उसकी बेटी चोटिल हो गई, जिसके बाद उसे इलाज के लिए पानीपत ले जाया गया। मामले की सूचना पाकर पुलिस मौके पर पहुंची और मौके का मुआयना किया। इस दौरान पुलिस को गली में फायरिंग के बाद गोली का एक खोल बरामद हुआ। पुलिस ने लड़की के पिता की शिकायत पर अज्ञात के खिलाफ आर्म्स एक्ट समेत विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।
बनारसी दास को भाषण के दौरान गोली लगी:ट्रेन में छिपकर पत्नी के साथ लाहौर से भारत पहुंचे; कठपुतली मुख्यमंत्री कहा गया
बनारसी दास को भाषण के दौरान गोली लगी:ट्रेन में छिपकर पत्नी के साथ लाहौर से भारत पहुंचे; कठपुतली मुख्यमंत्री कहा गया साल 1989, चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर डिप्टी प्राइम मिनिस्टर बने और बेटे ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनवा दिया। तब ओम प्रकाश चौटाला विधायक नहीं थे। उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना था। ओमप्रकाश चौटाला, रोहतक जिले की महम सीट से उपचुनाव में उतरे। ये वो सीट थी जहां से लगातार तीन बार देवीलाल जीत चुके थे। जब चुनाव हुआ तो महम सीट हिंसा की भेंट चढ़ गई। 10 लोगों की जान चली गई। चुनाव रद्द हो गया। महम कांड की आंच चौटाला परिवार तक पहुंची। इधर, अप्रैल 1990, जनता दल में नए अध्यक्ष को लेकर गहमागहमी शुरू हो चुकी थी। रेस में दो नाम सबसे आगे थे। पहला- एसआर बोम्मई का, जिन्हें समाजवादी नेता चंद्रशेखर का समर्थन था। दूसरा- एस जयपाल रेड्डी का, जिनके खेमे में रामकृष्ण हेगड़े और अजीत सिंह जैसे नेता थे। देवीलाल, बोम्मई का समर्थन कर रहे थे। उन्हें लगता था कि बोम्मई अध्यक्ष बनते हैं, तो ओमप्रकाश चौटाला की कुर्सी बच जाएगी। उधर, रेड्डी को आशंका थी कि प्रधानमंत्री वीपी सिंह उनका साथ नहीं देंगे। इसी असमंजस में उन्होंने दावेदारी छोड़ दी। 19 मई को बोम्मई जनता दल के निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए गए। इस बीच महम कांड का शोर संसद तक पहुंच गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी चौटाला के इस्तीफे की मांग कर डाली। वीपी सिंह को आनन-फानन में मंत्रिमंडल की बैठक बुलानी पड़ी। देवीलाल की हाजिरी में बोम्मई ने चौटाला से इस्तीफा मांग लिया। 22 मई को ओमप्रकाश चौटाला ने इस्तीफा दे दिया। अब देवीलाल को ऐसे नेता की जरूरत थी, जो हरियाणा का मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन सरकार की बागडोर उनके पास ही रहे। देवीलाल के छोटे बेटे रणजीत चौटाला भी सीएम की रेस में थे, लेकिन ओमप्रकाश को डर था कि रणजीत मुख्यमंत्री बन गए, तो बाद में वे इस्तीफा नहीं देंगे। ऐसे में डिप्टी सीएम बनारसी दास गुप्ता का नाम तय किया गया। वे देवीलाल और ओमप्रकाश दोनों के करीबी थे। 22 मई 1990 को बनारसी दास गुप्ता दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के चौथे एपिसोड में बनारसी दास गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने की कहानी और उनसे जुड़े किस्से… बनारसी दास गुप्ता का जन्म 5 नवंबर 1917 को पंजाब की जींद रियासत के एक छोटे से गांव में हुआ। पिता रामस्वरूप गुप्ता गांव में दुकान चलाते थे और खेती भी करते थे। उनकी मौसी की कोई संतान नहीं थी। इसलिए वे कुछ सालों तक अपनी मौसी के पास रहे, लेकिन जब उनको बेटा हुआ तो बनारसी दास माता-पिता के पास लौट आए। बनारसी दास की तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई गांव में ही हुई। उन दिनों स्कूल में दलित बच्चों को अन्य बच्चों से अलग बिठाया जाता था। वे इसका विरोध करते और उनके साथ ही बैठते। आठवीं के बाद वे पिलानी के बिड़ला कॉलेज में एडमिशन लेने पहुंचे। जब फीस जमा करने की बारी आई तो बनारसी दास ने 100 रुपए का नोट दिया। नोट किनारे से फटा था, मुनीम ने नोट लेने से मना कर दिया। बनारसी दास के पास सिर्फ उतने ही रुपए थे। पूरा दिन उन्होंने सड़क पर बिताया। शाम को कॉलेज के मालिक घनश्यामदास बिड़ला ने उन्हें देखा और कारण पूछा। तब बनारसी दास ने उन्हें पूरा किस्सा बताया। इसके बाद उन्हें एडमिशन मिल गया। बिड़ला कॉलेज से 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद वे पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में उतर गए। उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ साल जेल में भी रहे। बंटवारे के दौरान पत्नी को लेने लाहौर पहुंचे, सीट के नीचे छिपकर लौटे 28 फरवरी 1941, बनारसी दास की शादी भिवानी जिले के तिगराणा गांव की द्रौपदी गुप्ता से हुई। उन्होंने अपनी शादी में भी आजादी के नारे लगाए। बनारसी दास के मित्र और उन पर तीन-तीन किताबें लिखने वाले डॉ. निरजंन रोहिल्ला उनकी शादी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं- ‘बंटवारे के समय बनारसी दास की पत्नी लाहौर के कॉलेज में पढ़ रही थीं। उस वक्त दोनों तरफ कत्लेआम मचा हुआ था। बनारसी दास के पिता ने उनसे कहा कि वे लाहौर जाकर द्रौपदी को लेकर आएं। बनारसी दास लाहौर के लिए निकल पड़े। वे पहले भटिंडा पहुंचे, लेकिन लाहौर जाने वाली ट्रेन में कत्लेआम देखकर उन्होंने ट्रेन से जाने का प्लान कैंसिल कर दिया। वे ट्रक से लाहौर के लिए निकल गए। रात के अंधेरे में जैसे-तैसे वे द्रौपदी को ढूंढने में कामयाब रहे। उन्होंने पूरी रात स्टेशन के पास जंगल में बिताई। सुबह भटिंडा के लिए ट्रेन पकड़ी और सीट के नीचे छिपकर पत्नी के साथ भारत पहुंचे।’ जींद रियासत को देश में मिलाने के लिए जेल गए जींद रियासत को भारत में मिलाने में उनकी बड़ी भूमिका रही। उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 1946 में राजनीतिक हालात बदले तो वे जेल से बाहर आए। इस दौरान जींद के महाराजा ने सीमित मताधिकार से चुने गए 65 सदस्यों की विधानसभा का गठन किया। बनारसी दास जींद से निर्विरोध सदस्य चुने गए। आजादी के बाद बनारसीदास और उनके साथियों ने जींद रियासत का पंजाब में विलय करने के लिए संघर्ष किया। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद पंजाब की सभी रियासतों को मिलाकर पेप्सू यूनियन बनाया गया। आगे चलकर पंजाब में इसका विलय कर दिया गया। रियासती प्रजामंडलों का कांग्रेस में विलय कर दिया। बनारसी दास भी कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस में शामिल होने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने भिवानी को कार्यक्षेत्र बनाया। राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के बैनर तले मजदूरों को संगठित किया। इस दौरान उन्होंने 17 दिन तक अनशन भी किया। वे 1953 से 1960 तक जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1953 में ही भिवानी नगरपालिका के पहले गैर सरकारी अध्यक्ष चुने गए। 1968 में बनारसीदास भिवानी से कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बने। 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 81 में से 52 सीटें जीतीं। बनारसी दास फिर विधायक बने। बंसीलाल दोबारा मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के बाद बंसीलाल ने बनारसी दास को स्पीकर बनाया। बंसीलाल को इंदिरा का बुलावा और बनारसी दास सीएम बन गए स्पीकर बनने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने विधानसभा का सारा काम हिंदी में करने का आदेश दिया। इससे वे चर्चा में आ गए। यह पहला मौका था जब किसी विधानसभा में सारा काम हिंदी में करने का आदेश जारी हुआ था। 1973 में उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और बंसीलाल मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। उन्हें बिजली, सिंचाई, कृषि, सहकारिता, स्वास्थ्य और नागरिक प्रशासन मंत्रालय मिला। इसी बीच इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने बंसीलाल को दिल्ली बुला लिया। बंसीलाल हरियाणा की कमान अपने किसी करीबी को सौंपना चाहते थे। उन्होंने बनारसी दास को मुफीद माना। इस तरह 1 दिसंबर 1975 को बनारसी दास गुप्ता पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि इस दौरान उन पर डमी सीएम होने का आरोप भी लगा। कहा जाता है कि भले ही बंसीलाल दिल्ली में रक्षा मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे, लेकिन हरियाणा में हर फैसले में उनकी और उनके बेटे सुरेंद्र की दखल रहती थी। 1977 में कांग्रेस को 3 सीटें मिलीं, बनारसी दास ने पाला बदल लिया 1977 में इमरजेंसी हटने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 3 सीटों पर सिमट गई। बनारसी दास भी चुनाव हार गए। जनता पार्टी 75 सीटों के साथ सत्ता में आई। चौधरी देवीलाल मुख्यमंत्री बने। हालांकि दो साल बाद ही उनकी जगह भजनलाल को सीएम बना दिया गया। 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोगोंवाल के बीच पंजाब में समझौता हुआ। इसमें चंड़ीगढ़ और रावी-व्यास के जल बंटवारे से जुड़ा मामला शामिल था। इसे लेकर हरियाणा में काफी आक्रोश था। देवीलाल ने 18 विधायकों के साथ विधानसभा से इस्तीफा देकर ‘न्याय युद्ध’ छेड़ दिया। बनारसी दास ने कांग्रेस को आंदोलन में शामिल होने की सलाह दी, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। इसके बाद बनारसी दास कांग्रेस छोड़कर चौधरी देवीलाल के साथ आ गए। 1987 में विधानसभा चुनाव हुए तो चौधरी देवीलाल को 60 सीटें मिलीं। देवीलाल मुख्यमंत्री बने और बनारसी दास गुप्ता को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। ओमप्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा, बनारसी दास पर कठपुतली सीएम का ठप्पा लगा दो साल बाद केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार बनी, तो देवीलाल को उप प्रधानमंत्री बनाया गया। देवीलाल राज्य की सत्ता बेटे ओमप्रकाश चौटाला को सौंप कर दिल्ली की तरफ बढ़ गए। चौटाला सीएम बने तो वे विधायक नहीं थे। उन्होंने महम सीट पर उपचुनाव में पर्चा भर दिया। खाप पंचायतों ने इसका विरोध किया और देवीलाल के करीबी रहे आनंद सिंह दांगी को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर समर्थन दे दिया। 27 फरवरी, 1990 को महम में वोटिंग हुई। आनंद सिंह दांगी ने चुनाव आयोग से आठ वोटिंग सेंटर्स पर बूथ कैप्चरिंग की शिकायत की। अगले दिन यानी 28 फरवरी को उन आठ बूथों पर फिर से वोटिंग हुई। उस दौरान भी भारी हिंसा हुई। भीड़ ने बचाव में जुटी CRPF के एक जवान की हत्या कर दी। इसके बाद सुरक्षाबलों ने भीड़ पर गोलियां चला दीं जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- महम हिंसा के बाद जनता दल में अजीत सिंह, अरुण नेहरू, जॉर्ज फर्नांडिस और रामकृष्ण हेगड़े जैसे नेताओं ने वीपी सिंह पर चौटाला को हटाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। 3 मार्च को एक बैठक में देवीलाल और अजीत सिंह में जमकर गाली-गलौज हुई। इसी रात एक और बैठक हुई इसमें जनता दल शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए। बैठक में उत्तर प्रदेश के सीएम मुलायम सिंह यादव, बिहार के सीएम लालू प्रसाद यादव और ओडिशा के सीएम बीजू पटनायक ने चौटाला को हटाने की वकालत की। देवीलाल के खास शरद यादव भी चौटाला को हटाने के पक्ष में थे। हालांकि बैठक में कोई फैसला नहीं हो सका। अब इसका फैसला करने का जिम्मा एक कमेटी को सौंप गया। कमेटी में अजीत सिंह, जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, अरुण नेहरू और यशवंत सिन्हा शामिल थे। 4 मार्च को कमेटी ने तय किया कि पार्टी चुनाव आयोग से महम सीट पर फिर से वोटिंग कराने को कहे। साथ ही चौटाला इस्तीफा दें। आखिरकार 22 मई 1990 को चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। उसी दिन देवीलाल ने अपने करीबी और तब डिप्टी सीएम रहे बनारसी दास गुप्ता को सीएम बनाया। हालांकि दो महीने के भीतर ही ओमप्रकाश चौटाला दरबान कलां सीट से उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए। उन्होंने बनारसी दास गुप्ता से इस्तीफा ले लिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए। बनारसी दास गुप्ता 51 दिन ही सीएम रह सके। बनारसी दास गुप्ता को गोली लगी, बाल-बाल बचे इसके बाद बनारसी दास गुप्ता के देवीलाल से वैचारिक मतभेद बढ़ गए। वे सक्रिय राजनीति से अलग-थलग रहने लगे थे। 23 सितंबर 1990 की बात है। बनारसी दास भिवानी में महाराजा अग्रसेन जयंती समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इसी दौरान अचानक उन पर फायरिंग हो गई। गोली उनके सीने को चीरती हुई पार निकल गई। हालांकि लंबे इलाज के बाद वे ठीक हो गए। इस घटना ने बनारसी दास को फिर से राजनीति में एक्टिव होने की ऊर्जा दे दी। राजीव गांधी के कहने पर बनारसी दास कांग्रेस में शामिल हो गए। 1996 में भजनलाल सरकार के दौरान उन्हें राज्यसभा भेजा गया। कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्होंने राजनीति से रिटायरमेंट ले लिया और समाजसेवा की तरफ बढ़ गए। 29 अगस्त 2007 को बनारसी दास का निधन हो गया।