थाईलैंड का ख्वाब दिखाकर बर्मा ले गए:24 दिन कैद रहा, जो विरोध करता उसे मगरमच्छ के आगे फेंक देते; शिवेंद्र की आपबीती

थाईलैंड का ख्वाब दिखाकर बर्मा ले गए:24 दिन कैद रहा, जो विरोध करता उसे मगरमच्छ के आगे फेंक देते; शिवेंद्र की आपबीती

थाईलैंड में अच्छी जॉब…80 हजार महीने की सैलरी के ख्वाब लिए कानपुर के शिवेंद्र घर से निकले। उन्हें बैंकॉक जाना था। लेकिन डिजिटल अरेस्ट गैंग उन्हें बर्मा ले गया। 24 दिन वहां कैद करके रखा। एक दिन चोरी छिपे कानपुर में अपने परिवार तक मैसेज पहुंचाया। इसके बाद भारतीय दूतावास एक्टिव हुआ। तब जाकर वह कानपुर वापस पहुंच सके। कानपुर में दैनिक भास्कर उनके कल्याणपुर के घर पहुंचा। शिवेंद्र ने बताया- 24 दिन मेरे लिए 24 साल की तरह बीते। हर वक्त जान का खतरा था। वहां तेज बोलने पर जुर्माना लगता था। उनकी खुद की जेल थी, खुद की फोर्स थी। जो विरोध करता, उसको मारपीट कर मगरमच्छ के आगे फेंक देते। 15 दिन में उन लोगों ने दुनिया भर के लोगों से 125 करोड़ रुपए ठगे। अब पढ़िए शिवेंद्र की जुबानी बर्मा की कहानी… नदी पार करके ले जाया गया बर्मा बॉर्डर
शिवेन्द्र ने कहा-31 अक्टूबर, 2023 को मैं दिल्ली बुलाया गया। वहां मुझे एजेंट संदीप और करनदीप मिले। मुझसे कहा गया कि थाईलैंड में एक बड़ी स्टॉक एक्सचेंज की कंपनी है, उसके कॉल सेंटर में जॉब है। सैलरी 80 हजार रुपए महीने होगी। 3 नवंबर को मुझे फ्लाइट में बैठा दिया गया। मैं थाईलैंड पहुंचा। वहां एयरपोर्ट पर 2 चाइनीज लोग मुझे लेने आए। कार में बैठाकर 450km दूर लेकर गए। वहां दूसरी कार में बैठाया गया। एक नंदी तक पहुंचे। वहां कार छोड़ दी और नाव से नदी पार की। इसके बाद कितने Km कार चली, अंदाजा नहीं, लेकिन 3 कार बदलने के बाद हम बर्मा बॉर्डर पहुंचे। उन लोगों ने बताया कि इसको म्यांमार कहते हैं। ये कोई कंपनी का ऑफिस नहीं, साइबर ठगों का ठिकाना था
शिवेंद्र ने कहा- यहां पहुंचकर मुझे पता चला कि ये कोई चाइनीज कंपनी की जॉब नहीं, बल्कि साइबर जालसाजी करने वालों का ठिकाना है। यहां उन्होंने पूरा शहर बसाया हुआ था। यहां मॉल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और थिएटर मौजूद थे। यहां पहुंचने के बाद जब मैंने वापस भेजने के लिए कहा तो उन्होंने धमकाया। वहां पहले से फंसे लोगों ने बताया कि यहां तेज बोलने पर 1.24 लाख बर्मीज क्यात का फाइन लगाया जाता है। वहां बर्मीज क्यात करेंसी चलती है। जिसकी वैल्यू इंडियन करेंसी से कम है। साइबर जालसाज कैसे काम कराते थे… 8 घंटे लोगों को ठगने के लिए फोन करते, 30 मिनट लंच को मिलते
शिवेंद्र ने कहा- मैं इतना समझ चुका था कि यहां से निकलना मुश्किल है। मेरे अगले 30 दिन ट्रेनिंग के थे। मुझे जिस हॉल में ठहराया गया, वहां 8 बेड थे। 8 लोग एक हॉल में रहते थे। हर रोज सुबह 8.30 बजे जग जाते थे। 10 बजे तक कॉल सेंटर पहुंचना होता था। वहां पहुंचने पर चक दे इंडिया का इंस्पायर करने वाला गाना बजता था। उसके बाद ठगी करने के लिए फोन करना शुरू किए जाते थे। 10.30 बजे कैंटीन जाकर लंच करना होता था। 30 मिनट में ऑफिस वापस लौटना होता था। वहां पर सी फूड सबसे ज्यादा बनता था। मुझे सिर्फ चावल, ब्रेड, फ्रेंच फ्राइज और कभी-कभी पानी जैसी मूंग की दाल खाकर ही रहना पड़ता था। 11 बजे से फिर काम शुरू होता जो शाम 6.30 बजे तक चलता था। फिर 7 बजे यही खाना मिलता था। वहां एक बार मैंने विरोध किया तो चाइनीज बॉस ने कहा- यहां से बचकर जाने के 2 ऑप्शन हैं। 10 लाख रुपए दे दो। अगर नहीं दे सकते हो तो 2 लाख रुपए और 2 आदमियों का इंतजाम करके दो। तब इंडिया भेज देंगे। कितनों को ठगा, हर रोज इवनिंग मीटिंग होती
शिवेन्द्र ने कहा- शाम को 7.30 बजे से रात 11 बजे एक और मीटिंग होती थी। इसका एजेंडा एक दिन में कितने लोगों को लूटा…ये डेटा होता था। उसकी रिपोर्ट बनती थी। इसके बाद हम लोग सोने जा सकते थे। अगले दिन फिर वही रूटीन होता था। शिकंजे से बचना क्यों मुश्किल हुआ… उनकी अपनी आर्मी..हाथ-पैर तोड़कर जेल में डाल देते
शिवेन्द्र ने कहा- उन लोगों की अपनी आर्मी थी। मैं और मेरे जैसे लोग हमेशा सर्विलांस पर रहते थे। मुझे परिवार से बात तो करने देते, मगर सिर्फ इसी शर्त पर कि आपको उन्हें यह बताना होगा कि आप थाईलैंड में हैं और कॉल सेंटर में नौकरी कर रहे हैं। बिल्डिंग और उस जगह की फोटो लेने पर मनाही है। शक होने पर मोबाइल फोन की जांच होती थी। शिवेंद्र ने बताया कि पंजाब के एक लड़के ने कुछ महीने पहले भागने का प्रयास किया तो उसके हाथ-पैर तोड़ दिए गए और जेल में डाल दिया गया। अब शिवेंद्र के बचने की कहानी पढ़िए… एक मैसेज से परिवार को पता चला, फिर दूतावास एक्टिव हुआ
शिवेंद्र ने कहा- एक दिन मैंने अपने मोबाइल से अपने परिवार को अपने फंसने की पूरी डिटेल मैसेज कर दी। इसके बाद मैसेज डिलीट कर दिए। मगर उन लोगों को पता चल गया। उन्होंने पूछताछ के लिए बुलाया। मगर कोई सबूत नहीं मिला। इधर मेरे परिवार को मेरे फंसने की कहानी पता चल चुकी थी। मेरे बड़े भाई जितेंद्र ने अपने आस्ट्रेलिया के दोस्त से संपर्क किया। उन्होंने म्यांमार और बर्मा के भारतीय दूतावास के नंबर दिए। वहां पर पूरी जानकारी भेजी गई। इसके बाद दूतावास एक्टिव हुए। इधर कानपुर में भी एजेंटों के खिलाफ FIR दर्ज कराई गई। कानपुर में जो कुछ छपता, वो लोग बर्मा में पढ़ते, पूछताछ करते
शिवेंद्र ने कहा- सबसे खास बात यह रही कि कानपुर का मीडिया जो कुछ भी छाप रहा था, वो लोग वहां पढ़ते थे। मुझे एक बार फिर बुलाकर पूछताछ की गई। मगर मैंने संयम से काम लिया और किसी को कुछ नहीं बताया। मैंने बस यही जवाब दिया कि मैं यहां हूं वहां क्या हो रहा है मुझे नहीं मालूम। इस पर उन लोगों ने परिवार वालों से स्पीकर फोन पर बात कराने का प्रयास किया। मगर उस दिन किस्मत से शिवेंद्र के भाई और पिता ने इंटरनेट ऑफ कर रखा था। फिर एजेंट संदीप से स्पीकर फोन पर बात कराई गई तो शिवेंद्र ने गिरोह के सामने उससे पूछ लिया कि आपने मुझे चीटिंग कर भेजा है, थाईलैंड बताकर यहां फंसा दिया। इस पर संदीप ने अपनी गलती मानी। तब कंपनी वालों को लगा कि इस मामले में दबाव बढ़ेगा और उनका पूरा सिस्टम खुलकर बाहर आ जाएगा। इस मामले में सांसद देवेंद्र सिंह भोले ने विदेश मंत्रालय को पत्र लिखा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तक मामला पहुंचा तो उन्होंने भी विदेश मंत्रालय से मामले में जल्द कार्रवाई करने के लिए कहा। इससे बाद दूतावास से लेकर दिल्ली मंत्रालय तक सब एक्टिव हो गए। अब भारत आने की कहानी पढ़िए… बैंकॉक हवाई अड्डे पर छोड़ा, पिता ने पैसे भेजे, तब इंडिया आया
शिवेन्द्र ने कहा- 19 नवंबर को अचानक मुझे सामान पैक रखने के लिए कहा गया। फिर 25 नवंबर को मुझे वहां से निकालकर उसी रूट से बैंकॉक एयरपोर्ट ले जाकर छोड़ दिया गया। उस वक्त मेरे पास पैसे भी नहीं थे। वहां से मैंने अपने पापा राजेश सिंह को फोन किया। उन्होंने मेरे अकाउंट में रुपए डलवाए। तब टिकट करवाकर मैं बैंकॉक से दिल्ली और फिर दिल्ली से 27 नवंबर की रात कानपुर पहुंच सका। शिवेंद्र का मोबाइल रखा, नया फोन दिया
शिवेन्द्र ने कहा- मैं जब आ रहा था तब कंपनी वालों ने मेरा मोबाइल रख लिया। उन्हें शक था कि फोन पर अब उनकी लोकेशन औऱ कॉर्डिनेट्स आ चुके होंगे। मुझे एक नया फोन दे दिया। पुलिस के मुताबिक उनके द्वारा दिए गए फोन की जांच कराई जाएगी। जो धोखा करते उन्हें मगरमच्छ के आगे डाल देते
शिवेन्द्र ने बताया- साइबर ठगों ने मगरमच्छ पाल रखे थे। उन्होंने पूरा शहर तालाब के किनारे बसा रखा था। उसमें मगरमच्छ थे। कोई भी उनसे धोखाधड़ी करता तो वह उसे मारकर उसी तालाब में फेंक देते थे। वह भारतीयों के हर शब्द को जानने के लिए एक ट्रांसलेटर अपने साथ रखते हैं। मुंबई का मैडी नाम का व्यक्ति गिरोह से जुड़ा हुआ है और उनके लिए ट्रांसलेटर का काम करता है। फ्रांस, लंदन, मलेशिया के लोग भी फंसे
शिवेन्द्र के मुताबिक, वहां पर सिर्फ इंडिया ही नहीं, फ्रांस, लंदन और मलेशिया के लोग भी फंसे हुए हैं। इंडिया में पंजाब के 10, राजस्थान के 8, बिहार के 4, हरियाणा और महाराष्ट्र के 5-5 लोग गिरोह के चुंगल में फंसे हैं। वहां पर इस समय 15-20 हजार लोग रह रहे हैं। जिसमें से ज्यादातर डिजिटल अरेस्ट वाले कॉल सेंटर में काम करते हैं। शिवेन्द्र ने बताया, जिस दिन मुझे छोड़ा, उसी दिन एक फिलीपींस की युवती भी छोड़ी गई थी।शिवेन्द्र ने कहा- साइबर जालसाजों के पास 8 ऑडी, 7 मर्सिडीज, 4 BMW और पांच पोर्श गाड़ियां खड़ी रहती थीं। बताया गया कि ये चोरी की थीं। ————————— ये भी पढ़ें:
मदरसा कंकाल कांड में महिला की एंट्री:500 मीटर दूर रहने वाली महिला ने कहा– ये मेरा अयान, DNA और ब्लड सैंपल का आगरा लैब में होगा मिलान कानपुर के जिस बंद मदरसा में बच्चे का कंकाल मिला, उससे 500 मीटर की दूरी पर रहने वाली एक महिला ने थाने पहुंचकर कहा– ये मेरा बच्चा अयान है। पुलिस इस बयान की पुष्टि के लिए हड्डियों के सैंपल और महिला के ब्लड सैंपल आगरा की फोरेंसिक लैब भेज रही है। पढृ़िए पूरी खबर.. थाईलैंड में अच्छी जॉब…80 हजार महीने की सैलरी के ख्वाब लिए कानपुर के शिवेंद्र घर से निकले। उन्हें बैंकॉक जाना था। लेकिन डिजिटल अरेस्ट गैंग उन्हें बर्मा ले गया। 24 दिन वहां कैद करके रखा। एक दिन चोरी छिपे कानपुर में अपने परिवार तक मैसेज पहुंचाया। इसके बाद भारतीय दूतावास एक्टिव हुआ। तब जाकर वह कानपुर वापस पहुंच सके। कानपुर में दैनिक भास्कर उनके कल्याणपुर के घर पहुंचा। शिवेंद्र ने बताया- 24 दिन मेरे लिए 24 साल की तरह बीते। हर वक्त जान का खतरा था। वहां तेज बोलने पर जुर्माना लगता था। उनकी खुद की जेल थी, खुद की फोर्स थी। जो विरोध करता, उसको मारपीट कर मगरमच्छ के आगे फेंक देते। 15 दिन में उन लोगों ने दुनिया भर के लोगों से 125 करोड़ रुपए ठगे। अब पढ़िए शिवेंद्र की जुबानी बर्मा की कहानी… नदी पार करके ले जाया गया बर्मा बॉर्डर
शिवेन्द्र ने कहा-31 अक्टूबर, 2023 को मैं दिल्ली बुलाया गया। वहां मुझे एजेंट संदीप और करनदीप मिले। मुझसे कहा गया कि थाईलैंड में एक बड़ी स्टॉक एक्सचेंज की कंपनी है, उसके कॉल सेंटर में जॉब है। सैलरी 80 हजार रुपए महीने होगी। 3 नवंबर को मुझे फ्लाइट में बैठा दिया गया। मैं थाईलैंड पहुंचा। वहां एयरपोर्ट पर 2 चाइनीज लोग मुझे लेने आए। कार में बैठाकर 450km दूर लेकर गए। वहां दूसरी कार में बैठाया गया। एक नंदी तक पहुंचे। वहां कार छोड़ दी और नाव से नदी पार की। इसके बाद कितने Km कार चली, अंदाजा नहीं, लेकिन 3 कार बदलने के बाद हम बर्मा बॉर्डर पहुंचे। उन लोगों ने बताया कि इसको म्यांमार कहते हैं। ये कोई कंपनी का ऑफिस नहीं, साइबर ठगों का ठिकाना था
शिवेंद्र ने कहा- यहां पहुंचकर मुझे पता चला कि ये कोई चाइनीज कंपनी की जॉब नहीं, बल्कि साइबर जालसाजी करने वालों का ठिकाना है। यहां उन्होंने पूरा शहर बसाया हुआ था। यहां मॉल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और थिएटर मौजूद थे। यहां पहुंचने के बाद जब मैंने वापस भेजने के लिए कहा तो उन्होंने धमकाया। वहां पहले से फंसे लोगों ने बताया कि यहां तेज बोलने पर 1.24 लाख बर्मीज क्यात का फाइन लगाया जाता है। वहां बर्मीज क्यात करेंसी चलती है। जिसकी वैल्यू इंडियन करेंसी से कम है। साइबर जालसाज कैसे काम कराते थे… 8 घंटे लोगों को ठगने के लिए फोन करते, 30 मिनट लंच को मिलते
शिवेंद्र ने कहा- मैं इतना समझ चुका था कि यहां से निकलना मुश्किल है। मेरे अगले 30 दिन ट्रेनिंग के थे। मुझे जिस हॉल में ठहराया गया, वहां 8 बेड थे। 8 लोग एक हॉल में रहते थे। हर रोज सुबह 8.30 बजे जग जाते थे। 10 बजे तक कॉल सेंटर पहुंचना होता था। वहां पहुंचने पर चक दे इंडिया का इंस्पायर करने वाला गाना बजता था। उसके बाद ठगी करने के लिए फोन करना शुरू किए जाते थे। 10.30 बजे कैंटीन जाकर लंच करना होता था। 30 मिनट में ऑफिस वापस लौटना होता था। वहां पर सी फूड सबसे ज्यादा बनता था। मुझे सिर्फ चावल, ब्रेड, फ्रेंच फ्राइज और कभी-कभी पानी जैसी मूंग की दाल खाकर ही रहना पड़ता था। 11 बजे से फिर काम शुरू होता जो शाम 6.30 बजे तक चलता था। फिर 7 बजे यही खाना मिलता था। वहां एक बार मैंने विरोध किया तो चाइनीज बॉस ने कहा- यहां से बचकर जाने के 2 ऑप्शन हैं। 10 लाख रुपए दे दो। अगर नहीं दे सकते हो तो 2 लाख रुपए और 2 आदमियों का इंतजाम करके दो। तब इंडिया भेज देंगे। कितनों को ठगा, हर रोज इवनिंग मीटिंग होती
शिवेन्द्र ने कहा- शाम को 7.30 बजे से रात 11 बजे एक और मीटिंग होती थी। इसका एजेंडा एक दिन में कितने लोगों को लूटा…ये डेटा होता था। उसकी रिपोर्ट बनती थी। इसके बाद हम लोग सोने जा सकते थे। अगले दिन फिर वही रूटीन होता था। शिकंजे से बचना क्यों मुश्किल हुआ… उनकी अपनी आर्मी..हाथ-पैर तोड़कर जेल में डाल देते
शिवेन्द्र ने कहा- उन लोगों की अपनी आर्मी थी। मैं और मेरे जैसे लोग हमेशा सर्विलांस पर रहते थे। मुझे परिवार से बात तो करने देते, मगर सिर्फ इसी शर्त पर कि आपको उन्हें यह बताना होगा कि आप थाईलैंड में हैं और कॉल सेंटर में नौकरी कर रहे हैं। बिल्डिंग और उस जगह की फोटो लेने पर मनाही है। शक होने पर मोबाइल फोन की जांच होती थी। शिवेंद्र ने बताया कि पंजाब के एक लड़के ने कुछ महीने पहले भागने का प्रयास किया तो उसके हाथ-पैर तोड़ दिए गए और जेल में डाल दिया गया। अब शिवेंद्र के बचने की कहानी पढ़िए… एक मैसेज से परिवार को पता चला, फिर दूतावास एक्टिव हुआ
शिवेंद्र ने कहा- एक दिन मैंने अपने मोबाइल से अपने परिवार को अपने फंसने की पूरी डिटेल मैसेज कर दी। इसके बाद मैसेज डिलीट कर दिए। मगर उन लोगों को पता चल गया। उन्होंने पूछताछ के लिए बुलाया। मगर कोई सबूत नहीं मिला। इधर मेरे परिवार को मेरे फंसने की कहानी पता चल चुकी थी। मेरे बड़े भाई जितेंद्र ने अपने आस्ट्रेलिया के दोस्त से संपर्क किया। उन्होंने म्यांमार और बर्मा के भारतीय दूतावास के नंबर दिए। वहां पर पूरी जानकारी भेजी गई। इसके बाद दूतावास एक्टिव हुए। इधर कानपुर में भी एजेंटों के खिलाफ FIR दर्ज कराई गई। कानपुर में जो कुछ छपता, वो लोग बर्मा में पढ़ते, पूछताछ करते
शिवेंद्र ने कहा- सबसे खास बात यह रही कि कानपुर का मीडिया जो कुछ भी छाप रहा था, वो लोग वहां पढ़ते थे। मुझे एक बार फिर बुलाकर पूछताछ की गई। मगर मैंने संयम से काम लिया और किसी को कुछ नहीं बताया। मैंने बस यही जवाब दिया कि मैं यहां हूं वहां क्या हो रहा है मुझे नहीं मालूम। इस पर उन लोगों ने परिवार वालों से स्पीकर फोन पर बात कराने का प्रयास किया। मगर उस दिन किस्मत से शिवेंद्र के भाई और पिता ने इंटरनेट ऑफ कर रखा था। फिर एजेंट संदीप से स्पीकर फोन पर बात कराई गई तो शिवेंद्र ने गिरोह के सामने उससे पूछ लिया कि आपने मुझे चीटिंग कर भेजा है, थाईलैंड बताकर यहां फंसा दिया। इस पर संदीप ने अपनी गलती मानी। तब कंपनी वालों को लगा कि इस मामले में दबाव बढ़ेगा और उनका पूरा सिस्टम खुलकर बाहर आ जाएगा। इस मामले में सांसद देवेंद्र सिंह भोले ने विदेश मंत्रालय को पत्र लिखा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तक मामला पहुंचा तो उन्होंने भी विदेश मंत्रालय से मामले में जल्द कार्रवाई करने के लिए कहा। इससे बाद दूतावास से लेकर दिल्ली मंत्रालय तक सब एक्टिव हो गए। अब भारत आने की कहानी पढ़िए… बैंकॉक हवाई अड्डे पर छोड़ा, पिता ने पैसे भेजे, तब इंडिया आया
शिवेन्द्र ने कहा- 19 नवंबर को अचानक मुझे सामान पैक रखने के लिए कहा गया। फिर 25 नवंबर को मुझे वहां से निकालकर उसी रूट से बैंकॉक एयरपोर्ट ले जाकर छोड़ दिया गया। उस वक्त मेरे पास पैसे भी नहीं थे। वहां से मैंने अपने पापा राजेश सिंह को फोन किया। उन्होंने मेरे अकाउंट में रुपए डलवाए। तब टिकट करवाकर मैं बैंकॉक से दिल्ली और फिर दिल्ली से 27 नवंबर की रात कानपुर पहुंच सका। शिवेंद्र का मोबाइल रखा, नया फोन दिया
शिवेन्द्र ने कहा- मैं जब आ रहा था तब कंपनी वालों ने मेरा मोबाइल रख लिया। उन्हें शक था कि फोन पर अब उनकी लोकेशन औऱ कॉर्डिनेट्स आ चुके होंगे। मुझे एक नया फोन दे दिया। पुलिस के मुताबिक उनके द्वारा दिए गए फोन की जांच कराई जाएगी। जो धोखा करते उन्हें मगरमच्छ के आगे डाल देते
शिवेन्द्र ने बताया- साइबर ठगों ने मगरमच्छ पाल रखे थे। उन्होंने पूरा शहर तालाब के किनारे बसा रखा था। उसमें मगरमच्छ थे। कोई भी उनसे धोखाधड़ी करता तो वह उसे मारकर उसी तालाब में फेंक देते थे। वह भारतीयों के हर शब्द को जानने के लिए एक ट्रांसलेटर अपने साथ रखते हैं। मुंबई का मैडी नाम का व्यक्ति गिरोह से जुड़ा हुआ है और उनके लिए ट्रांसलेटर का काम करता है। फ्रांस, लंदन, मलेशिया के लोग भी फंसे
शिवेन्द्र के मुताबिक, वहां पर सिर्फ इंडिया ही नहीं, फ्रांस, लंदन और मलेशिया के लोग भी फंसे हुए हैं। इंडिया में पंजाब के 10, राजस्थान के 8, बिहार के 4, हरियाणा और महाराष्ट्र के 5-5 लोग गिरोह के चुंगल में फंसे हैं। वहां पर इस समय 15-20 हजार लोग रह रहे हैं। जिसमें से ज्यादातर डिजिटल अरेस्ट वाले कॉल सेंटर में काम करते हैं। शिवेन्द्र ने बताया, जिस दिन मुझे छोड़ा, उसी दिन एक फिलीपींस की युवती भी छोड़ी गई थी।शिवेन्द्र ने कहा- साइबर जालसाजों के पास 8 ऑडी, 7 मर्सिडीज, 4 BMW और पांच पोर्श गाड़ियां खड़ी रहती थीं। बताया गया कि ये चोरी की थीं। ————————— ये भी पढ़ें:
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