समाजवादी पार्टी 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए अभी से दलितों को साधने में जुट गई है। सपा नेताओं के बयानों में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को तरजीह दी जा रही है। होर्डिंग्स और बैनरों में भी उनकी तस्वीरें नजर आ रही हैं। कुछ दिन पहले लखनऊ में एक होर्डिंग लगाई गई। इसमें सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की तस्वीर के साथ लिखा था- ‘हक है तो हम हैं, अंबेडकर हैं तो हम हैं।’ इसके अलावा पार्टी कार्यालय के बाहर लगी ज्यादातर होर्डिंग में लोहिया और मुलायम सिंह के बराबर में अंबेडकर की भी फोटो लगी है। वहीं, सपा कार्यालय के बाहर एक और होर्डिंग चर्चा का विषय बनी है। सामाजिक न्याय खटिक यात्रा के प्रभारी प्रदीप सोनकर ने अखिलेश यादव और अन्य सपा नेताओं के साथ अंबेडकर और लोहिया की तस्वीर लगाई है। एक बड़ी तस्वीर हनुमानजी की है। इस पर लिखा है, हम दलितों के साथ हनुमान जी। होर्डिंग्स और पोस्टर में तो सपा का दलित-प्रेम दिख ही रहा है, पार्टी 27 जनवरी से बड़े पैमाने पर विधानसभा में सेक्टरवार ‘पीडीए पर चर्चा कार्यक्रम’ भी करेगी। इनमें पीडीए से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के साथ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने पर जोर दिया जाएगा। पीडीए से जुड़ा पर्चा भी घर-घर पहुंचाने की कोशिश होगी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस बारे में पार्टी के शीर्ष नेताओं से भी कहा है कि वे अपने क्षेत्र में होने वाली चर्चा में शामिल हों। पीडीए पर हो रहे अत्याचार के बारे में लोगों को बताएं। बताए कि किस तरह मौजूदा सरकार उनका हक मार रही है। बाबा साहब के संविधान को सरकार किस तरह से खत्म करना चाह रही है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं- पीडीए चर्चा कार्यक्रम में पार्टी के सभी जनप्रतिनिधि, संगठन के सभी पदाधिकारी और फ्रंटल संगठनों के पदाधिकारियों को सक्रिय रूप से शामिल होने को कहा गया है। ये मतदाताओं को सामाजिक न्याय, आरक्षण, बेरोजगारी, महंगाई, जातीय जनगणना, स्थानीय मुद्दों के प्रति लोगों को जागरूक करेंगे। पीडीए समाज को अधिकार-भागीदारी के बारे में जागरूक कर एकजुट करने का प्रयास करेंगे। सपा प्रवक्ता अमीक जामेई कहते हैं- पार्टी ने ‘पीडीए पर चर्चा कार्यक्रम’ 26 दिसंबर से शुरू करने की योजना बनाई थी। लेकिन, त्योहारों और सर्द मौसम को देखते हुए इसे एक महीने के लिए आगे बढ़ाया गया है। पार्टी के नेता-कार्यकर्ता संविधान बचाने और अंबेडकर के सम्मान के नाम पर दलितों के बीच जाएंगे। पार्टी यह भी बताएगी कि किस तरह से दलितों की भागीदारी सरकार में कम हो रही है? किस तरह से उसे वापस लाया जा सकता है? पार्टी यह बताने की कोशिश करेगी कि भाजपा पीडीए समाज को मुख्य धारा से बाहर करने के लिए हर स्तर पर काम कर रही है। जबकि सपा हमेशा से ही पीड़ित, दुखी और अपमानित लोगों की आवाज उठाती रही है। दलितों को जोड़ने की ये 3 तैयारी… 1- अंबेडकर जयंती पर बड़े कार्यक्रम की तैयारी
सपा बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के जन्मदिन (14 अप्रैल) पर बड़ा कार्यक्रम करने की योजना बना रही है। पीडीए पर चर्चा कार्यक्रम में पार्टी को जैसा फीडबैक मिलेगा, उसी के हिसाब से अप्रैल में होने वाले कार्यक्रम को अमलीजामा पहनाया जाएगा। 2- दलित नेताओं को दी जाएगी बड़ी जिम्मेदारी
2022 के विधानसभा चुनाव के समय इंद्रजीत सरोज, त्रिभुवन दत्त, आरके चौधरी, राम प्रसाद चौधरी जैसे कद्दावर दलित नेता पार्टी में आए थे। इसका उतना फायदा सपा को 2022 में नहीं हुआ, जितना 2024 में हुआ। अब उन्हीं नेताओं को बड़ी जिम्मेदारियां देकर 2027 के चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने की तैयारी की जा रही है। 2027 के चुनाव से पहले इन नेताओं को अपने समाज का वोट सपा के पक्ष में करने के लिए बड़ी जिम्मेदारी दी जा रही है। सपा फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद को दलित चेहरे के रूप में पेश कर रही है। अखिलेश यादव लगातार उन्हें अपने साए की तरह साथ रख रहे हैं। हालांकि इसका कितना फायदा होगा, यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा। 3- प्रत्याशियों को तैयारी के लिए दिया जाएगा पूरा समय
समाजवादी पार्टी चुनाव से काफी पहले अपने प्रत्याशी तय कर लेना चाहती है, ताकि तैयारी का पूरा मौका मिल सके। अंदर ही अंदर इसकी तैयारी भी की जा रही है। ऐसे प्रत्याशी, जिनकी 2022 के चुनाव में कम वोटों से हार हुई थी, उन्हें दोबारा टिकट देने के संकेत दिए गए हैं। वहीं, ज्यादातर मौजूदा विधायकों को भी टिकट मिलेगा। हाल ही में सपा ने पहले मंडलवार और फिर जिलेवार पार्टी नेताओं को बुलाकर खेमेबाजी खत्म करने की चेतावनी दी थी। कहा था, पार्टी का निर्णय सभी को मानना होगा। हालांकि, यह प्रक्रिया भी कुछ मंडलों और जिलों तक ही सीमित रही। आने वाले दिनों में फिर से बाकी बचे मंडलों और जिलों के नेताओं की बैठकें शुरू होंगी। दलित वोट बैंक हाथ खिसकने नहीं देना चाहती सपा
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सपा की निगाह दलित वोट बैंक पर है। पार्टी काे लगता है कि 2024 के लोकसभा के चुनाव में बड़ी संख्या में दलित समाज के लोगों ने सपा-कांग्रेस गठबंधन को वोट दिया है। वह इस वोट बैंक को हाथ से निकलने नहीं देना चाहती। लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने संविधान का मुद्दा उठाया था। इसका असर यह हुआ कि बड़ी संख्या में दलित वर्ग के मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया। यही वजह रही कि 5 सीटों पर सिमटी सपा 37 पर पहुंच गई। कांग्रेस भी 1 सीट से सीधे 6 सीटों पर पहुंच गई। ऐसे में सपा न तो इस मुद्दे को छोड़ना चाहती है और न ही इस वोट बैंक के अपनी ओर मुड़े रुझान को कम होने देना चाहती है। लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफ्रेसर और दलित चिंतक रविकांत कहते हैं कि राजनीतिक दलों को समझना होगा कि दलित समाज को प्रतिनिधत्व दिए बिना उनका वोट हासिल नहीं किया जा सकता। विधानसभा चुनाव में संविधान का मुद्दा उस तरीके से हावी रहेगा, जैसे लोकसभा चुनाव में था, इस पर संशय है। दलित वोट को लेकर भाजपा भी अलर्ट
दलित वोट बैंक को लेकर भारतीय जनता पार्टी भी सचेत है। भाजपा ने हाल ही में जो मंडल अध्यक्ष बनाए हैं, उनमें इस समीकरण का खास ख्याल रखा गया है। हर जिले और हर विधानसभा में सपा के पीडीए फॉर्मूले को अपने यहां लागू करने की कोशिश की है। मंडल अध्यक्ष और जिलाध्यक्षों के चयन में भाजपा ने करीब 50 फीसदी दलित पिछड़े और अति पिछड़ों को रखा है। वहीं, भाजपा संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर भी दलित समाज को समझाने का प्रयास कर रही है कि उसका हित केवल भाजपा में ही सुरक्षित है। ————— यह खबर भी पढ़ें… BJP ने मिल्कीपुर से नए चेहरे चंद्रभानु पासवान को उतारा, गुटबाजी, जनता की नाराजगी से कटा बाबा गोरखनाथ का टिकट अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए BJP ने प्रत्याशी का ऐलान कर दिया। BJP ने 39 साल के चंद्रभानु पासवान को टिकट दिया है। चंद्रभानु का मुकाबला सपा प्रत्याशी अजीत प्रसाद से होगा। यानी, अयोध्या में दोनों प्रत्याशी पासी समुदाय से हैं। चंद्रभानु पासवान रुदौली के परसोली गांव के रहने वाले हैं। उनका यह पहला विधानसभा चुनाव है। चंद्रभानु पासवान पेशे से कारोबारी है। रुदौली में इनकी कपड़े की दुकान है। इसके अलावा पेपर का कारोबार है। चंद्रभानु की पत्नी कंचन पासवान जिला पंचायत सदस्य हैं। पिता भी कई साल तक ग्राम प्रधान रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर समाजवादी पार्टी 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए अभी से दलितों को साधने में जुट गई है। सपा नेताओं के बयानों में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को तरजीह दी जा रही है। होर्डिंग्स और बैनरों में भी उनकी तस्वीरें नजर आ रही हैं। कुछ दिन पहले लखनऊ में एक होर्डिंग लगाई गई। इसमें सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की तस्वीर के साथ लिखा था- ‘हक है तो हम हैं, अंबेडकर हैं तो हम हैं।’ इसके अलावा पार्टी कार्यालय के बाहर लगी ज्यादातर होर्डिंग में लोहिया और मुलायम सिंह के बराबर में अंबेडकर की भी फोटो लगी है। वहीं, सपा कार्यालय के बाहर एक और होर्डिंग चर्चा का विषय बनी है। सामाजिक न्याय खटिक यात्रा के प्रभारी प्रदीप सोनकर ने अखिलेश यादव और अन्य सपा नेताओं के साथ अंबेडकर और लोहिया की तस्वीर लगाई है। एक बड़ी तस्वीर हनुमानजी की है। इस पर लिखा है, हम दलितों के साथ हनुमान जी। होर्डिंग्स और पोस्टर में तो सपा का दलित-प्रेम दिख ही रहा है, पार्टी 27 जनवरी से बड़े पैमाने पर विधानसभा में सेक्टरवार ‘पीडीए पर चर्चा कार्यक्रम’ भी करेगी। इनमें पीडीए से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के साथ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने पर जोर दिया जाएगा। पीडीए से जुड़ा पर्चा भी घर-घर पहुंचाने की कोशिश होगी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस बारे में पार्टी के शीर्ष नेताओं से भी कहा है कि वे अपने क्षेत्र में होने वाली चर्चा में शामिल हों। पीडीए पर हो रहे अत्याचार के बारे में लोगों को बताएं। बताए कि किस तरह मौजूदा सरकार उनका हक मार रही है। बाबा साहब के संविधान को सरकार किस तरह से खत्म करना चाह रही है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं- पीडीए चर्चा कार्यक्रम में पार्टी के सभी जनप्रतिनिधि, संगठन के सभी पदाधिकारी और फ्रंटल संगठनों के पदाधिकारियों को सक्रिय रूप से शामिल होने को कहा गया है। ये मतदाताओं को सामाजिक न्याय, आरक्षण, बेरोजगारी, महंगाई, जातीय जनगणना, स्थानीय मुद्दों के प्रति लोगों को जागरूक करेंगे। पीडीए समाज को अधिकार-भागीदारी के बारे में जागरूक कर एकजुट करने का प्रयास करेंगे। सपा प्रवक्ता अमीक जामेई कहते हैं- पार्टी ने ‘पीडीए पर चर्चा कार्यक्रम’ 26 दिसंबर से शुरू करने की योजना बनाई थी। लेकिन, त्योहारों और सर्द मौसम को देखते हुए इसे एक महीने के लिए आगे बढ़ाया गया है। पार्टी के नेता-कार्यकर्ता संविधान बचाने और अंबेडकर के सम्मान के नाम पर दलितों के बीच जाएंगे। पार्टी यह भी बताएगी कि किस तरह से दलितों की भागीदारी सरकार में कम हो रही है? किस तरह से उसे वापस लाया जा सकता है? पार्टी यह बताने की कोशिश करेगी कि भाजपा पीडीए समाज को मुख्य धारा से बाहर करने के लिए हर स्तर पर काम कर रही है। जबकि सपा हमेशा से ही पीड़ित, दुखी और अपमानित लोगों की आवाज उठाती रही है। दलितों को जोड़ने की ये 3 तैयारी… 1- अंबेडकर जयंती पर बड़े कार्यक्रम की तैयारी
सपा बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के जन्मदिन (14 अप्रैल) पर बड़ा कार्यक्रम करने की योजना बना रही है। पीडीए पर चर्चा कार्यक्रम में पार्टी को जैसा फीडबैक मिलेगा, उसी के हिसाब से अप्रैल में होने वाले कार्यक्रम को अमलीजामा पहनाया जाएगा। 2- दलित नेताओं को दी जाएगी बड़ी जिम्मेदारी
2022 के विधानसभा चुनाव के समय इंद्रजीत सरोज, त्रिभुवन दत्त, आरके चौधरी, राम प्रसाद चौधरी जैसे कद्दावर दलित नेता पार्टी में आए थे। इसका उतना फायदा सपा को 2022 में नहीं हुआ, जितना 2024 में हुआ। अब उन्हीं नेताओं को बड़ी जिम्मेदारियां देकर 2027 के चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने की तैयारी की जा रही है। 2027 के चुनाव से पहले इन नेताओं को अपने समाज का वोट सपा के पक्ष में करने के लिए बड़ी जिम्मेदारी दी जा रही है। सपा फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद को दलित चेहरे के रूप में पेश कर रही है। अखिलेश यादव लगातार उन्हें अपने साए की तरह साथ रख रहे हैं। हालांकि इसका कितना फायदा होगा, यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा। 3- प्रत्याशियों को तैयारी के लिए दिया जाएगा पूरा समय
समाजवादी पार्टी चुनाव से काफी पहले अपने प्रत्याशी तय कर लेना चाहती है, ताकि तैयारी का पूरा मौका मिल सके। अंदर ही अंदर इसकी तैयारी भी की जा रही है। ऐसे प्रत्याशी, जिनकी 2022 के चुनाव में कम वोटों से हार हुई थी, उन्हें दोबारा टिकट देने के संकेत दिए गए हैं। वहीं, ज्यादातर मौजूदा विधायकों को भी टिकट मिलेगा। हाल ही में सपा ने पहले मंडलवार और फिर जिलेवार पार्टी नेताओं को बुलाकर खेमेबाजी खत्म करने की चेतावनी दी थी। कहा था, पार्टी का निर्णय सभी को मानना होगा। हालांकि, यह प्रक्रिया भी कुछ मंडलों और जिलों तक ही सीमित रही। आने वाले दिनों में फिर से बाकी बचे मंडलों और जिलों के नेताओं की बैठकें शुरू होंगी। दलित वोट बैंक हाथ खिसकने नहीं देना चाहती सपा
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सपा की निगाह दलित वोट बैंक पर है। पार्टी काे लगता है कि 2024 के लोकसभा के चुनाव में बड़ी संख्या में दलित समाज के लोगों ने सपा-कांग्रेस गठबंधन को वोट दिया है। वह इस वोट बैंक को हाथ से निकलने नहीं देना चाहती। लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने संविधान का मुद्दा उठाया था। इसका असर यह हुआ कि बड़ी संख्या में दलित वर्ग के मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया। यही वजह रही कि 5 सीटों पर सिमटी सपा 37 पर पहुंच गई। कांग्रेस भी 1 सीट से सीधे 6 सीटों पर पहुंच गई। ऐसे में सपा न तो इस मुद्दे को छोड़ना चाहती है और न ही इस वोट बैंक के अपनी ओर मुड़े रुझान को कम होने देना चाहती है। लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफ्रेसर और दलित चिंतक रविकांत कहते हैं कि राजनीतिक दलों को समझना होगा कि दलित समाज को प्रतिनिधत्व दिए बिना उनका वोट हासिल नहीं किया जा सकता। विधानसभा चुनाव में संविधान का मुद्दा उस तरीके से हावी रहेगा, जैसे लोकसभा चुनाव में था, इस पर संशय है। दलित वोट को लेकर भाजपा भी अलर्ट
दलित वोट बैंक को लेकर भारतीय जनता पार्टी भी सचेत है। भाजपा ने हाल ही में जो मंडल अध्यक्ष बनाए हैं, उनमें इस समीकरण का खास ख्याल रखा गया है। हर जिले और हर विधानसभा में सपा के पीडीए फॉर्मूले को अपने यहां लागू करने की कोशिश की है। मंडल अध्यक्ष और जिलाध्यक्षों के चयन में भाजपा ने करीब 50 फीसदी दलित पिछड़े और अति पिछड़ों को रखा है। वहीं, भाजपा संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर भी दलित समाज को समझाने का प्रयास कर रही है कि उसका हित केवल भाजपा में ही सुरक्षित है। ————— यह खबर भी पढ़ें… BJP ने मिल्कीपुर से नए चेहरे चंद्रभानु पासवान को उतारा, गुटबाजी, जनता की नाराजगी से कटा बाबा गोरखनाथ का टिकट अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए BJP ने प्रत्याशी का ऐलान कर दिया। BJP ने 39 साल के चंद्रभानु पासवान को टिकट दिया है। चंद्रभानु का मुकाबला सपा प्रत्याशी अजीत प्रसाद से होगा। यानी, अयोध्या में दोनों प्रत्याशी पासी समुदाय से हैं। चंद्रभानु पासवान रुदौली के परसोली गांव के रहने वाले हैं। उनका यह पहला विधानसभा चुनाव है। चंद्रभानु पासवान पेशे से कारोबारी है। रुदौली में इनकी कपड़े की दुकान है। इसके अलावा पेपर का कारोबार है। चंद्रभानु की पत्नी कंचन पासवान जिला पंचायत सदस्य हैं। पिता भी कई साल तक ग्राम प्रधान रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर