उत्तराखंड के बहादुर बच्चों को मिलेगा राज्य स्तरीय वीरता पुरस्कार, राज्यपाल से हरी झंडी मिलने का इंतजार

उत्तराखंड के बहादुर बच्चों को मिलेगा राज्य स्तरीय वीरता पुरस्कार, राज्यपाल से हरी झंडी मिलने का इंतजार

<p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand News Today:</strong> उत्तराखंड में हर साल अनेक बच्चे अपनी बहादुरी और साहस से दूसरों की जान बचाने का काम करते हैं. गुलदार, बाढ़ समेत और अन्य खतरों से अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की जान बचाने वाले इन वीर बच्चों के बारे में अक्सर खबरें आती रहती हैं. पहले भारतीय बाल कल्याण परिषद की ओर से इन बच्चों को हर साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर सम्मानित किया जाता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसके लिए आवेदन प्रक्रिया में कोई पहल नहीं की गई थी.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>अब राज्य सरकार ने इन बहादुर बच्चों को राज्य स्तर पर वीरता पुरस्कार देने का निर्णय लिया है. राज्य बाल कल्याण परिषद ने इस संदर्भ में प्रस्ताव तैयार कर लिया है, जिसे 17 फरवरी को राजभवन की आम सभा में मंजूरी मिल सकती है. इस प्रस्ताव के अनुसार, राज्य के वीर बच्चों को राज्य स्तरीय वीरता पुरस्कार दिए जाएंगे. इसके अलावा राज्य में आयोजित होने वाली चित्रकला प्रतियोगिता के विजेता बच्चों को शैक्षिक सहायता देने का भी प्रस्ताव है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>इन्हें मिल चुका है वीरता पुरस्कार</strong><br />उत्तराखंड में बच्चों के साहसिक कार्यों की कोई कमी नहीं है. एक मिसाल के तौर पर पौड़ी जिले की राखी का नाम लिया जा सकता है. राखी ने अपने चार साल के छोटे भाई की जान बचाने के लिए गुलदार से न केवल मुकाबला किया बल्कि अपनी जान की परवाह किए बिना उसे सुरक्षित किया. राखी की बहादुरी को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. इस तरह से ना सिर्फ राखी बल्कि कई अन्य बच्चे हैं, जिन्होंने असाधारण साहस का परिचय दिया है. &nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>अब तक राज्य के 15 बच्चे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं. इन बच्चों की साहसिक कहानियां न सिर्फ प्रदेश में बल्कि देशभर में चर्चा का विषय बन चुकी हैं. इनमें से कुछ बहादुर का नीचे जिक्र किया गया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>-हरीश राणा(टिहरी गढ़वाल)&ndash; 2003<br />-माजदा(हरिद्वार)&ndash; 2004<br />-पूजा कांडपाल(अल्मोड़ा)&ndash; 2007<br />-प्रियांशु जोशी (देहरादून)&ndash; 2010<br />-श्रुति लोधी (देहरादून)&ndash; 2010<br />-कपिल नेगी(रुद्रप्रयाग)&ndash; 2011<br />-मोनिका उर्फ मनीषा (चमोली)&ndash; 2014<br />-लाभांशु (देहरादून)&ndash; 2014<br />-अर्जुन (टिहरी)&ndash; 2015<br />-सुमित ममगाई (देहरादून)&ndash; 2016<br />-पंकज सेमवाल (टिहरी गढ़वाल)&ndash; 2017<br />-राखी(पौड़ी गढ़वाल)&ndash; 2019<br />-सनी (नैनीताल)&ndash; 2020<br />-मोहित चंद उप्रेती (पिथौरागढ़)&ndash; 2020<br />-नितिन रावत (रुद्रप्रयाग)&ndash; 2022</p>
<p style=”text-align: justify;”>इन वीर बच्चों के कार्यों ने साबित किया है कि उत्तराखंड के बच्चों में साहस और जोश की कोई कमी नहीं है. यह बच्चे न केवल अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की मदद करते हैं बल्कि अपने समुदाय और समाज के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत बनते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>प्रस्ताव को मंजूरी का इंतजार</strong><br />राज्य बाल कल्याण परिषद द्वारा तैयार किया गया प्रस्ताव राज्य सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे इन बच्चों के साहसिक कार्यों को और अधिक सम्मान और पहचान मिलेगी. अब तक इन बच्चों को केवल राष्ट्रीय पुरस्कारों से ही सम्मानित किया गया था, लेकिन राज्य स्तर पर इनकी बहादुरी को सम्मानित करना उनके लिए अतिरिक्त गौरव की बात होगी.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>राज्य बाल कल्याण परिषद द्वारा तैयार किया गया प्रस्ताव अगर मंजूर होता है, तो राज्य के वीर बच्चों को वीरता पुरस्कार प्रदान करने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो जाएगी. इसके साथ ही चित्रकला प्रतियोगिता के विजेताओं को शैक्षिक सहायता देने जैसे अन्य महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर भी चर्चा की जाएगी. उम्मीद है कि इस कदम से राज्य के बच्चों को और अधिक प्रोत्साहन मिलेगा और वह अपनी बहादुरी और साहस से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सफल होंगे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें: <a title=”मौनी अमावस्या पर किसकी गलती से मची भगदड़? जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कर दिया बड़ा दावा” href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/maha-kumbh-mauni-amavasya-stampede-rambhadra-charya-claims-it-was-peoples-fault-2876418″ target=”_blank” rel=”noopener”>मौनी अमावस्या पर किसकी गलती से मची भगदड़? जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कर दिया बड़ा दावा</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand News Today:</strong> उत्तराखंड में हर साल अनेक बच्चे अपनी बहादुरी और साहस से दूसरों की जान बचाने का काम करते हैं. गुलदार, बाढ़ समेत और अन्य खतरों से अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की जान बचाने वाले इन वीर बच्चों के बारे में अक्सर खबरें आती रहती हैं. पहले भारतीय बाल कल्याण परिषद की ओर से इन बच्चों को हर साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर सम्मानित किया जाता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसके लिए आवेदन प्रक्रिया में कोई पहल नहीं की गई थी.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>अब राज्य सरकार ने इन बहादुर बच्चों को राज्य स्तर पर वीरता पुरस्कार देने का निर्णय लिया है. राज्य बाल कल्याण परिषद ने इस संदर्भ में प्रस्ताव तैयार कर लिया है, जिसे 17 फरवरी को राजभवन की आम सभा में मंजूरी मिल सकती है. इस प्रस्ताव के अनुसार, राज्य के वीर बच्चों को राज्य स्तरीय वीरता पुरस्कार दिए जाएंगे. इसके अलावा राज्य में आयोजित होने वाली चित्रकला प्रतियोगिता के विजेता बच्चों को शैक्षिक सहायता देने का भी प्रस्ताव है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>इन्हें मिल चुका है वीरता पुरस्कार</strong><br />उत्तराखंड में बच्चों के साहसिक कार्यों की कोई कमी नहीं है. एक मिसाल के तौर पर पौड़ी जिले की राखी का नाम लिया जा सकता है. राखी ने अपने चार साल के छोटे भाई की जान बचाने के लिए गुलदार से न केवल मुकाबला किया बल्कि अपनी जान की परवाह किए बिना उसे सुरक्षित किया. राखी की बहादुरी को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. इस तरह से ना सिर्फ राखी बल्कि कई अन्य बच्चे हैं, जिन्होंने असाधारण साहस का परिचय दिया है. &nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>अब तक राज्य के 15 बच्चे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं. इन बच्चों की साहसिक कहानियां न सिर्फ प्रदेश में बल्कि देशभर में चर्चा का विषय बन चुकी हैं. इनमें से कुछ बहादुर का नीचे जिक्र किया गया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>-हरीश राणा(टिहरी गढ़वाल)&ndash; 2003<br />-माजदा(हरिद्वार)&ndash; 2004<br />-पूजा कांडपाल(अल्मोड़ा)&ndash; 2007<br />-प्रियांशु जोशी (देहरादून)&ndash; 2010<br />-श्रुति लोधी (देहरादून)&ndash; 2010<br />-कपिल नेगी(रुद्रप्रयाग)&ndash; 2011<br />-मोनिका उर्फ मनीषा (चमोली)&ndash; 2014<br />-लाभांशु (देहरादून)&ndash; 2014<br />-अर्जुन (टिहरी)&ndash; 2015<br />-सुमित ममगाई (देहरादून)&ndash; 2016<br />-पंकज सेमवाल (टिहरी गढ़वाल)&ndash; 2017<br />-राखी(पौड़ी गढ़वाल)&ndash; 2019<br />-सनी (नैनीताल)&ndash; 2020<br />-मोहित चंद उप्रेती (पिथौरागढ़)&ndash; 2020<br />-नितिन रावत (रुद्रप्रयाग)&ndash; 2022</p>
<p style=”text-align: justify;”>इन वीर बच्चों के कार्यों ने साबित किया है कि उत्तराखंड के बच्चों में साहस और जोश की कोई कमी नहीं है. यह बच्चे न केवल अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की मदद करते हैं बल्कि अपने समुदाय और समाज के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत बनते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>प्रस्ताव को मंजूरी का इंतजार</strong><br />राज्य बाल कल्याण परिषद द्वारा तैयार किया गया प्रस्ताव राज्य सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे इन बच्चों के साहसिक कार्यों को और अधिक सम्मान और पहचान मिलेगी. अब तक इन बच्चों को केवल राष्ट्रीय पुरस्कारों से ही सम्मानित किया गया था, लेकिन राज्य स्तर पर इनकी बहादुरी को सम्मानित करना उनके लिए अतिरिक्त गौरव की बात होगी.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>राज्य बाल कल्याण परिषद द्वारा तैयार किया गया प्रस्ताव अगर मंजूर होता है, तो राज्य के वीर बच्चों को वीरता पुरस्कार प्रदान करने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो जाएगी. इसके साथ ही चित्रकला प्रतियोगिता के विजेताओं को शैक्षिक सहायता देने जैसे अन्य महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर भी चर्चा की जाएगी. उम्मीद है कि इस कदम से राज्य के बच्चों को और अधिक प्रोत्साहन मिलेगा और वह अपनी बहादुरी और साहस से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सफल होंगे.</p>
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