एक चौधरी की भैंस खो गई। चौधरी अपने बेटे के साथ अपनी खोई हुई भैंस खोजने निकला। चौधरी ने सोचा कि भैंस के लिए आज मैं देवों ने मन्नत मांग लूं। चौधरी ने देवों से हाथ जोड़कर कहा, ‘हे देवता, भैंस मिल गई तो जितना दूध होगा उस दूध का एक हिस्सा मैं फलाने गरीब को दूंगा।’ बेटे को घोर आश्चर्य हुआ। उसने अपने बाप को इतना धार्मिक होते पहले कभी नहीं देखा था। थोड़ी देर बाद एक अन्य देव से मनौती मांग ली कि दूध का दूसरा हिस्सा मैं कमजोरों को दे दूंगा। दोपहर होते-होते चौधरी ने चार विभिन्न देवों से वादा कर लिया और लगभग सारा दूध दूसरों को बांटने का वादा मन्नत में कर लिया। इस पर चौधरी के बेटे ने कहा, ‘बापू, अब घर चलते हैं। दूध तो सारा तुमने मन्नतों के नाम पर चढ़ा दिया, अब भैंस मिल भी गई तो हम केवल चारा खिलाने और गोबर उठाने में ही लगे रहेंगे।’ चौधरी बोला, ‘बेटा एक बार भैंस मिल जाने दे, फिर इन देवताओं से तो मैं निपट लूंगा।’ यही आत्मविश्वास चुनाव लड़ने वाले हर नेता में होता है। वह घर-घर जाकर हाथ जोड़ता है, वादे करता है। नेताजी की विनम्रता देखकर वोटर सचमुच खुद को देश का मालिक समझने लगता है। वह विनम्रता से भरे नेताजी से अकड़कर बात करता है। नेताजी वोटर की देहरी पर खड़े होकर नाक रगड़ते हुए मन ही मन सोचते हैं, ‘अकड़ ले बच्चू, खूब अकड़ ले। एक बार मुझे चुनाव जीतने दे, फिर तुझे मेरी ड्योढ़ी में घुसना तक नसीब नहीं होगा।’ चुनाव के समय प्रत्याशियों की ही परीक्षा नहीं होती, बल्कि वोटर की भी चतुराई का इम्तिहान होता है। सबसे सफल वोटर वो है, जो किसी को पता ही नहीं चलने दे कि वह किसके साथ है। चुनाव की तारीख घोषित होते ही अपने चेहरे को ऐसा सपाट कर ले, जिसमें सबको अपना समर्थन दिखाई दे। ऐसा करने से वह वोट के खरीदारों के साथ आराम से मोलभाव कर सकता है। सीधी बात कर सकता है कि झाड़ू वाले इतने यूनिट बिजली फ्री दे रहे हैं, तो मैं कमल का बटन क्यों दबाने जाऊंगा? वोटर की इस चतुराई से मुफ्त बांटने के वादों में स्वस्थ प्रतियोगिता का माहौल बनेगा। दिल्ली के चुनावी दंगल में मुफ्त बांटने और पैसा बांटने का खूब वादा किया गया। मैंने एक कांग्रेसी से पूछा, ‘तुम इतना पैसा कहां से बांटोगे?’ वह बोला, ‘बांटने की नौबत ही नहीं आएगी।’ मैंने कांग्रेसी मित्र के चेहरे की ओर ध्यान से देखा, वह खेल जीतने से ज्यादा खेल बिगाड़ने के लिए खेल रहा था। एक भाजपाई से मैंने पूछा, ‘और भाई चुनाव के परिणाम आने के बाद तुम्हारी क्या योजना है?’ वह बोला, ‘हमें क्या करना है, परिणाम चाहे जो हो, हमें तो अगले चुनाव की तैयारी करनी है। ‘आम आदमी पार्टी हार गई, तो ईवीएम और जीत गई तो बम-बम!मीडिया वाले इस बार पूरे सावधान रहे। ऐसे सर्वे आए हैं कि परिणाम जो भी हो उनका सर्वे वास्तविक परिणाम के निकट दिखाई देगा। बहरहाल देखा जाए तो, चुनाव लोकतंत्र की बुनियाद था, हमने इसे खिलवाड़ बना डाला। हमारा एक ही अपराध है कि हमने पार्टियों को वोट देना शुरू कर दिया। अगर हम अच्छे व्यक्तियों को वोट देना शुरू कर देंगे तो हर पार्टी अच्छे व्यक्तियों को टिकट देना शुरू कर देगी। फिर पार्टियां चुनाव हारेंगी, देश कभी चुनाव नहीं हारेगा, क्योंकि जो भी जीतकर आएगा, वह अच्छा व्यक्ति ही होगा। ————- ये कॉलम भी पढ़ें… मैं एक मंजिला मकान में लिफ्ट लगवा दूंगा!:जनता को 5 साल तक बेवकूफ बनाने की क्या जरूरत है! एक चौधरी की भैंस खो गई। चौधरी अपने बेटे के साथ अपनी खोई हुई भैंस खोजने निकला। चौधरी ने सोचा कि भैंस के लिए आज मैं देवों ने मन्नत मांग लूं। चौधरी ने देवों से हाथ जोड़कर कहा, ‘हे देवता, भैंस मिल गई तो जितना दूध होगा उस दूध का एक हिस्सा मैं फलाने गरीब को दूंगा।’ बेटे को घोर आश्चर्य हुआ। उसने अपने बाप को इतना धार्मिक होते पहले कभी नहीं देखा था। थोड़ी देर बाद एक अन्य देव से मनौती मांग ली कि दूध का दूसरा हिस्सा मैं कमजोरों को दे दूंगा। दोपहर होते-होते चौधरी ने चार विभिन्न देवों से वादा कर लिया और लगभग सारा दूध दूसरों को बांटने का वादा मन्नत में कर लिया। इस पर चौधरी के बेटे ने कहा, ‘बापू, अब घर चलते हैं। दूध तो सारा तुमने मन्नतों के नाम पर चढ़ा दिया, अब भैंस मिल भी गई तो हम केवल चारा खिलाने और गोबर उठाने में ही लगे रहेंगे।’ चौधरी बोला, ‘बेटा एक बार भैंस मिल जाने दे, फिर इन देवताओं से तो मैं निपट लूंगा।’ यही आत्मविश्वास चुनाव लड़ने वाले हर नेता में होता है। वह घर-घर जाकर हाथ जोड़ता है, वादे करता है। नेताजी की विनम्रता देखकर वोटर सचमुच खुद को देश का मालिक समझने लगता है। वह विनम्रता से भरे नेताजी से अकड़कर बात करता है। नेताजी वोटर की देहरी पर खड़े होकर नाक रगड़ते हुए मन ही मन सोचते हैं, ‘अकड़ ले बच्चू, खूब अकड़ ले। एक बार मुझे चुनाव जीतने दे, फिर तुझे मेरी ड्योढ़ी में घुसना तक नसीब नहीं होगा।’ चुनाव के समय प्रत्याशियों की ही परीक्षा नहीं होती, बल्कि वोटर की भी चतुराई का इम्तिहान होता है। सबसे सफल वोटर वो है, जो किसी को पता ही नहीं चलने दे कि वह किसके साथ है। चुनाव की तारीख घोषित होते ही अपने चेहरे को ऐसा सपाट कर ले, जिसमें सबको अपना समर्थन दिखाई दे। ऐसा करने से वह वोट के खरीदारों के साथ आराम से मोलभाव कर सकता है। सीधी बात कर सकता है कि झाड़ू वाले इतने यूनिट बिजली फ्री दे रहे हैं, तो मैं कमल का बटन क्यों दबाने जाऊंगा? वोटर की इस चतुराई से मुफ्त बांटने के वादों में स्वस्थ प्रतियोगिता का माहौल बनेगा। दिल्ली के चुनावी दंगल में मुफ्त बांटने और पैसा बांटने का खूब वादा किया गया। मैंने एक कांग्रेसी से पूछा, ‘तुम इतना पैसा कहां से बांटोगे?’ वह बोला, ‘बांटने की नौबत ही नहीं आएगी।’ मैंने कांग्रेसी मित्र के चेहरे की ओर ध्यान से देखा, वह खेल जीतने से ज्यादा खेल बिगाड़ने के लिए खेल रहा था। एक भाजपाई से मैंने पूछा, ‘और भाई चुनाव के परिणाम आने के बाद तुम्हारी क्या योजना है?’ वह बोला, ‘हमें क्या करना है, परिणाम चाहे जो हो, हमें तो अगले चुनाव की तैयारी करनी है। ‘आम आदमी पार्टी हार गई, तो ईवीएम और जीत गई तो बम-बम!मीडिया वाले इस बार पूरे सावधान रहे। ऐसे सर्वे आए हैं कि परिणाम जो भी हो उनका सर्वे वास्तविक परिणाम के निकट दिखाई देगा। बहरहाल देखा जाए तो, चुनाव लोकतंत्र की बुनियाद था, हमने इसे खिलवाड़ बना डाला। हमारा एक ही अपराध है कि हमने पार्टियों को वोट देना शुरू कर दिया। अगर हम अच्छे व्यक्तियों को वोट देना शुरू कर देंगे तो हर पार्टी अच्छे व्यक्तियों को टिकट देना शुरू कर देगी। फिर पार्टियां चुनाव हारेंगी, देश कभी चुनाव नहीं हारेगा, क्योंकि जो भी जीतकर आएगा, वह अच्छा व्यक्ति ही होगा। ————- ये कॉलम भी पढ़ें… मैं एक मंजिला मकान में लिफ्ट लगवा दूंगा!:जनता को 5 साल तक बेवकूफ बनाने की क्या जरूरत है! उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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