दिल्ली में सीएम का सस्पेंस बरकरार, कुर्सी एक-कई बेकरार !:डर ये कि कहीं बाहर से कोई मनोहर दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर दुल्हन न ले जाए!

दिल्ली में सीएम का सस्पेंस बरकरार, कुर्सी एक-कई बेकरार !:डर ये कि कहीं बाहर से कोई मनोहर दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर दुल्हन न ले जाए!

8 फरवरी को दिल्ली चुनाव के परिणाम आए। 9 फरवरी को विजयी हुई भाजपा के लोग ढोल-नगाड़ों और बधाइयां लेने-देने में व्यस्त हो गए। लगभग एक सप्ताह का समय बीत चुका है लेकिन दिल्ली में सीएम पद के लिए राजतिलक पर सस्पेंस आज तक बरकरार है। फिलहाल इस सस्पेंस में जीते हुए भाजपा के दिल्ली चुनावों में विजयी हुए विधायकों की स्थिति ‘साजन बिना सुहागन’ जैसी हो गई। ये तो साहब वही बात हो गई कि न हल्दी उतरी, न सिंदूर चढ़ा। हालत इनकी कुछ वैसी शादी की ही है जहां दुल्हन आधा सिंगार किए हुए मंडप पर बैठी है। न ब्याही कही जा सकती, न कंवारी मानी जा सकती है। भाजपा के जीते हुए विधायक अपनी खुशी जाहिर करने के लिए लड्डू बांटना तो दूर, लड्डू देख भी नहीं पा रहे हैं। हर विधायक उम्मीद लगाए बैठा है कि जल्दी उसके मोबाइल पर घंटी बजेगी, उसे आलाकमान द्वारा भारी-भरकम स्वर में बताया जाएगा कि तुरंत मुख्यमंत्री आवास में शिफ्ट कर जाओ। इस चक्कर में सारे के सारे विधायक बार-बार अपना मोबाइल चार्जिंग पर लगा रहे हैं। उन्हें आशंका है कि कहीं ऐसा न हो कि जब उन्हें फोन आए तो उनका फोन ही डिस्चार्ज हो जाए। इस सस्पेंस की हालत ऐसी है कि बेचारे विधायक, न सो पा रहे हैं, न जाग पा रहे हैं। कोई भी विधायक अपनी ही पार्टी के किसी बड़े नेता से भी मिलने नहीं जा पा रहा क्योंकि दिल्ली के राजतिलक पर फिलहाल सस्पेंस रहना जरूरी है। दिल्ली में बिल्कुल स्वयंवर का सा दृश्य है। सभी पराक्रमी राजा सज-धजकर बैठे हैं। दुल्हन के वेश में सजी-धजी राजकुमारी भी लगातार सभी प्रत्याशियों की ओर एकटक निहार रही है, लेकिन स्वयंवर पर फिर भी सस्पेंस है। कुर्सी विधायकों को देखे जा रही है और विधायक कुर्सी को…! उधर जैसे दूल्हा-दुल्हन के लिए लाई गई वरमाला के फूल सूखकर गिरने लगे हैं, राजाओं के कंधे तने-तने थक गए हैं। राजकुमारी का मेकअप उतरने लगा है, लेकिन फिर भी इस स्वयंवर में सस्पेंस बरकरार है। मजे की बात तो यह है कि कोई भी विधायक यह निर्णय नहीं कर पा रहा है कि ताजपोशी के दिन वे किस क्रम पर बैठेंगे। हो सकता है कि शुरुआत वालों पर आलाकमान की निगाहें ही न पड़े और बाद में बैठने का यह रिस्क कि कहीं मुझ तक पहुंचने से पहले ही खोज पूरी न हो जाए। विधायक यह भी तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें आगे आलाकमान की ओर आंख उठाकर देखना है या फिर गर्दन नीची किए हुए बैठे रहना है। आंखें मिलाने पर आलाकमान कहीं यह न सोच ले कि अभी तो कुछ बना भी नहीं और आंखे मिला रहा है। आंखें नीची करने पर उनके बारे में यह भी सोच सकते हैं कि यह उन्हें इग्नोर कर रहा है। वे यह भी सोच सकते हैं कि जो खुद को ही नीची निगाह से देख रहा है, वह जनता को किस निगाह से देखेगा। सबने बंद गले का सूट सिलवा रखा है। पर सबके दिल में खटका भी है कि सफल नहीं हुए तो सिलाई के पैसे कहां से आएंगे। एक डर यह भी है कि कहीं हम सब हाथ मलते ना रह जाएं और बाहर से कोई मनोहर दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर दुल्हन ले जाए। सबको रह-रहकर शिवराज और वसुंधरा के चेहरे याद आ रहे हैं। क्योंकि आलाकमान कभी गलत हो ही नहीं सकता। भाजपा के कार्यालय में भी दिल्ली के नए मुख्यमंत्री के नाम के कयास लगाए जा रहे हैं। भाजपा को 27 साल बाद दिल्ली में वनवास काल से मुक्ति मिली है। 27 साल बाद दिल्ली में भाजपा की पतझड़ वाली बगिया हरी हुई है। लेकिन यह हरियाली किसके बागों में बहार लाएगी, इस पर सबके मन में टॉस उछल रहे हैं। सबके मन में एक ही गीत गूंज रहा है- ‘मेरा सूना पड़ा रे संगीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं।’ ————— ये कॉलम भी पढ़ें… चुनाव वोटर की भी चतुराई का इम्तिहान:सफल वोटर वो है जो पता ही ना चलने दे कि किसके साथ है! 8 फरवरी को दिल्ली चुनाव के परिणाम आए। 9 फरवरी को विजयी हुई भाजपा के लोग ढोल-नगाड़ों और बधाइयां लेने-देने में व्यस्त हो गए। लगभग एक सप्ताह का समय बीत चुका है लेकिन दिल्ली में सीएम पद के लिए राजतिलक पर सस्पेंस आज तक बरकरार है। फिलहाल इस सस्पेंस में जीते हुए भाजपा के दिल्ली चुनावों में विजयी हुए विधायकों की स्थिति ‘साजन बिना सुहागन’ जैसी हो गई। ये तो साहब वही बात हो गई कि न हल्दी उतरी, न सिंदूर चढ़ा। हालत इनकी कुछ वैसी शादी की ही है जहां दुल्हन आधा सिंगार किए हुए मंडप पर बैठी है। न ब्याही कही जा सकती, न कंवारी मानी जा सकती है। भाजपा के जीते हुए विधायक अपनी खुशी जाहिर करने के लिए लड्डू बांटना तो दूर, लड्डू देख भी नहीं पा रहे हैं। हर विधायक उम्मीद लगाए बैठा है कि जल्दी उसके मोबाइल पर घंटी बजेगी, उसे आलाकमान द्वारा भारी-भरकम स्वर में बताया जाएगा कि तुरंत मुख्यमंत्री आवास में शिफ्ट कर जाओ। इस चक्कर में सारे के सारे विधायक बार-बार अपना मोबाइल चार्जिंग पर लगा रहे हैं। उन्हें आशंका है कि कहीं ऐसा न हो कि जब उन्हें फोन आए तो उनका फोन ही डिस्चार्ज हो जाए। इस सस्पेंस की हालत ऐसी है कि बेचारे विधायक, न सो पा रहे हैं, न जाग पा रहे हैं। कोई भी विधायक अपनी ही पार्टी के किसी बड़े नेता से भी मिलने नहीं जा पा रहा क्योंकि दिल्ली के राजतिलक पर फिलहाल सस्पेंस रहना जरूरी है। दिल्ली में बिल्कुल स्वयंवर का सा दृश्य है। सभी पराक्रमी राजा सज-धजकर बैठे हैं। दुल्हन के वेश में सजी-धजी राजकुमारी भी लगातार सभी प्रत्याशियों की ओर एकटक निहार रही है, लेकिन स्वयंवर पर फिर भी सस्पेंस है। कुर्सी विधायकों को देखे जा रही है और विधायक कुर्सी को…! उधर जैसे दूल्हा-दुल्हन के लिए लाई गई वरमाला के फूल सूखकर गिरने लगे हैं, राजाओं के कंधे तने-तने थक गए हैं। राजकुमारी का मेकअप उतरने लगा है, लेकिन फिर भी इस स्वयंवर में सस्पेंस बरकरार है। मजे की बात तो यह है कि कोई भी विधायक यह निर्णय नहीं कर पा रहा है कि ताजपोशी के दिन वे किस क्रम पर बैठेंगे। हो सकता है कि शुरुआत वालों पर आलाकमान की निगाहें ही न पड़े और बाद में बैठने का यह रिस्क कि कहीं मुझ तक पहुंचने से पहले ही खोज पूरी न हो जाए। विधायक यह भी तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें आगे आलाकमान की ओर आंख उठाकर देखना है या फिर गर्दन नीची किए हुए बैठे रहना है। आंखें मिलाने पर आलाकमान कहीं यह न सोच ले कि अभी तो कुछ बना भी नहीं और आंखे मिला रहा है। आंखें नीची करने पर उनके बारे में यह भी सोच सकते हैं कि यह उन्हें इग्नोर कर रहा है। वे यह भी सोच सकते हैं कि जो खुद को ही नीची निगाह से देख रहा है, वह जनता को किस निगाह से देखेगा। सबने बंद गले का सूट सिलवा रखा है। पर सबके दिल में खटका भी है कि सफल नहीं हुए तो सिलाई के पैसे कहां से आएंगे। एक डर यह भी है कि कहीं हम सब हाथ मलते ना रह जाएं और बाहर से कोई मनोहर दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर दुल्हन ले जाए। सबको रह-रहकर शिवराज और वसुंधरा के चेहरे याद आ रहे हैं। क्योंकि आलाकमान कभी गलत हो ही नहीं सकता। भाजपा के कार्यालय में भी दिल्ली के नए मुख्यमंत्री के नाम के कयास लगाए जा रहे हैं। भाजपा को 27 साल बाद दिल्ली में वनवास काल से मुक्ति मिली है। 27 साल बाद दिल्ली में भाजपा की पतझड़ वाली बगिया हरी हुई है। लेकिन यह हरियाली किसके बागों में बहार लाएगी, इस पर सबके मन में टॉस उछल रहे हैं। सबके मन में एक ही गीत गूंज रहा है- ‘मेरा सूना पड़ा रे संगीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं।’ ————— ये कॉलम भी पढ़ें… चुनाव वोटर की भी चतुराई का इम्तिहान:सफल वोटर वो है जो पता ही ना चलने दे कि किसके साथ है!   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर