महाकुंभ के बाद कहां जाते हैं अखाड़ों के नागा:रविंद्र पुरी बोले- पुलिस सिस्टम की तरह होती है तैनाती; नए साधु 12 साल तप करेंगे

महाकुंभ के बाद कहां जाते हैं अखाड़ों के नागा:रविंद्र पुरी बोले- पुलिस सिस्टम की तरह होती है तैनाती; नए साधु 12 साल तप करेंगे

महाकुंभ में 3 अमृत स्नान के बाद सभी 7 शैव अखाड़े काशी में मौजूद हैं। घाट पर बने आश्रम में लोग नागा साधुओं से आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं। अखाड़े के महामंडलेश्वर और नागा साधु इन दिनों पंचकोशी परिक्रमा और मसाने की होली खेलने की तैयारी कर रहे हैं। पंचकोशी परिक्रमा और मसाने की होली के बाद ये अखाड़े काशी से भी कूच कर जाएंगे। सवाल उठता है कि अखाड़े कहां जाते हैं? हजारों नए नागा साधुओं की भूमिका क्या होगी? दोबारा उनके दर्शन कब और कहां होंगे? इनके जवाब के लिए दैनिक भास्कर डिजिटल ऐप टीम ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी महाराज से कुछ सवाल किए। पढ़िए… क्या कुंभ के बाद भी नागा साधु निर्वस्त्र ही रहते हैं?
रविंद्र पुरी महाराज ने कहा- महाकुंभ में पहला स्नान नागा साधु करते हैं। तब वह दिगंबर स्वरूप में होते हैं, यानी निर्वस्त्र। लेकिन, सामान्य दिनों में वह दिगंबर स्वरूप में नहीं होते। समाज में दिगंबर स्वरूप स्वीकार नहीं होता। इसलिए भस्म, रुद्राक्ष, जानवरों की खाल लपेटे यह लोग आश्रम में रहते हैं। नागा साधु दिगंबर स्वरूप में क्यों रहते हैं?
कुंभ में ज्यादातर नागा साधु 2 विशेष अखाड़ों से आते हैं। पहला- वाराणसी का महापरिनिर्वाण अखाड़ा, दूसरा- पंच दशनाम जूना अखाड़ा। इन दोनों अखाड़ों के नागा साधु कुंभ का हिस्सा बनते हैं। दिगंबर का अर्थ है, धरती और अंबर। नागा साधुओं का मानना है कि धरती उनका बिछौना है, अंबर उनका ओढ़ना। इसलिए वे कुंभ की अमृत वर्षा के लिए नागा स्वरूप में आते हैं। जब कुंभ खत्म हो जाता है, तब नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों में लौट जाते हैं। महाकुंभ में कितने नए नागा साधु जुड़े, वे क्या करेंगे?
महाकुंभ में हजारों नए नागा संन्यासी तैयार हुए हैं। इन नागा संन्यासियों का जीवन अब 12 साल तक कठिन तपस्या से गुजरेगा। इनके ऊपर उनके गुरु, थानापति के साथ सभापति की खास निगाह रहेगी। अगर संन्यासी परंपरा का जरा भी पालन नहीं होता, तो इन्हें तत्काल अखाड़े से बाहर कर दिया जाएगा। नए नागा संन्यासियों की पहचान कैसे की जाती है?
जो नए नागा संन्यासी बने हैं, उनके लिए वाराणसी में मोर मुकुट, आईकार्ड और अखाड़े के कानूनी दस्तावेज जारी किए जाएंगे। जो हमारे संरक्षक और अध्यक्ष के सिग्नेचर के जरिए इन्हें दिए जाएंगे। यह सब होली से पहले दिए जाएंगे। उनके गुरु निर्धारित होंगे। गुरु के आदेश पर ये संन्यास परंपरा और कठिन तप का पालन करेंगे। संन्यास लेते वक्त उनके गले में एक सफेद रंग के धागे में सिंगल रुद्राक्ष डाला गया है, वह उन्हें हमेशा धारण करना होगा। अखाड़ों में अन्य नागा साधुओं का काम क्या है?
रविंद्र पुरी ने कहा- इन अखाड़ों में नागा साधु ध्यान और साधना करते हैं। साथ ही, धार्मिक शिक्षा भी देते हैं। इनकी तपस्वी जीवनशैली होती है। बहुत से नागा साधु हिमालय, जंगलों और अन्य एकांत स्थानों में तपस्या करने चले जाते हैं। वे कठोर तप करते हैं, फल-फूल खाकर जीवन बिताते हैं। महाकुंभ के बाद अखाड़ों का क्या काम होता है?
अखाड़ों के संत और संन्यासी धार्मिक व आध्यात्मिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते हैं। गांव-गांव और शहर-शहर जाकर कथा, प्रवचन और सत्संग करते हैं। इन प्रवचनों में गीता, वेद, पुराण और उपनिषदों की शिक्षाओं को सरल भाषा में लोगों तक पहुंचाया जाता है। वे नियमित रूप से योग, ध्यान और धार्मिक अनुष्ठानों का अभ्यास करते हैं। उनका उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना और अपने अनुयायियों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देना होता है। अखाड़ों और नागा साधुओं का प्रशासन कैसे चलता है?
नागा संन्यासी सनातन परंपरा की एक ऐसी अद्भुत कड़ी हैं, जिसे सनातन की रक्षा के लिए शंकराचार्य ने तैयार किया। अलग-अलग अखाड़े के नागा संन्यासियों का कार्यक्षेत्र और उससे जुड़ी उनकी कार्यशैली भी अलग-अलग होती है। जिस तरह से आम जनजीवन में लोगों की सुरक्षा के लिए एसपी, थानेदार, चौकी इंचार्ज होते हैं, वैसे ही अखाड़े में सभापति, थानापति और क्षेत्र रक्षक के रूप में भी नागा संन्यासियों को तैनात किया जाता है। चारों दिशाओं यानी उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम के लिए अलग-अलग थानापतियों की नियुक्ति होती है। क्या नागा साधुओं पर सर्दी का असर नहीं होता?
इन्हें ठंड या गर्मी का कोई असर नहीं होता। कुंभ में सिर्फ इसलिए आते हैं, क्योंकि हमारे अखाड़े की पेशवाई और अखाड़ों का शक्ति प्रदर्शन होता है। इसके बाद सभी का अपना अलग-अलग रास्ता होता है। कोई हिमालय की तरफ निकलेगा तो कोई उत्तराखंड, हरिद्वार, नैनीताल और हिमाचल के पहाड़ों की तरफ चला जाएगा। हमें सुकून और शांति चाहिए। अखाड़े के महमंडलेश्वर क्या करते हैं?
हमारे झूंडी महंत होते हैं। वे गांव में और जहां भी उन्हें पसंद होता है, वहां घूम घूम कर सनातन का प्रचार करते हैं। हमारे महामंडलेश्वर भी पूरी मंडली लेकर भारत में भ्रमण करते हैं। हमारे अखाड़े में पंच होते हैं। उन सभी की जिम्मेदारी होती है कि सनातन का प्रचार-प्रसार करें। महामंडलेश्वर की बातों का पालन करें। सबसे ज्यादा नागा संत कहां पाए जाते हैं?
रविंद्र पुरी ने कहा- अखाड़े में जो भी होता है, वह नागा ही होता है। लेकिन जिन्हें आप नंगे बाबा के नाम से कहते हैं, वह बहुत कम संख्या में रहते हैं। सबसे ज्यादा नागा नर्मदा खंड में मिलते हैं, जो मध्य प्रदेश में है। वहां पर वह धूनी रमाते हैं, 3 साल 3 महीने की परिक्रमा करते हैं। इसमें हमारे साधु-संत भी शामिल होते हैं। अब आप लोगों से अगली मुलाकात कहां होगी?
रविंद्र पुरी ने कहा- होली तक हम सभी अखाड़े यहां पर रुकेंगे। हमारे आचार्य महामंडलेश्वर काशी आएंगे और हम यहां पर पंचकोशी परिक्रमा भी करेंगे। उसके बाद हम सभी अपना दंड और कमंडल लेकर यहां से अलग-अलग राज्यों में चले जाएंगे। इसके बाद नासिक और उज्जैन में मुलाकात होगी। ————————— यह खबर भी पढ़िए महाकुंभ में कैसे बदली यूपी की अर्थव्यवस्था, श्रद्धालुओं ने सिर्फ होटल-ट्रांसपोर्ट और खानपान पर खर्च किए 2.25 लाख करोड़ रुपए ‘महाकुंभ ने दुनिया को आस्था और आर्थिकी का बेहतर समन्वय दिया है। ऐसा कहीं नहीं होता कि किसी शहर के विकास पर साढ़े 7 हजार करोड़ खर्च करें, उससे उस प्रदेश की अर्थव्यवस्था साढ़े 3 लाख करोड़ बढ़ जाए। ऐसा दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता, लेकिन महाकुंभ ने ये करके दिखाया है।’सीएम योगी आदित्यनाथ का ये बयान प्रयागराज महाकुंभ के समापन के दूसरे दिन (27 फरवरी) का है। आर्थिक विशेषज्ञ भी गिनाते हैं कि महाकुंभ में आए 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने औसतन 5 हजार रुपए खर्च किए, तो यह कुल 3.30 लाख करोड़ होता है। पूरी खबर पढ़िए महाकुंभ में 3 अमृत स्नान के बाद सभी 7 शैव अखाड़े काशी में मौजूद हैं। घाट पर बने आश्रम में लोग नागा साधुओं से आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं। अखाड़े के महामंडलेश्वर और नागा साधु इन दिनों पंचकोशी परिक्रमा और मसाने की होली खेलने की तैयारी कर रहे हैं। पंचकोशी परिक्रमा और मसाने की होली के बाद ये अखाड़े काशी से भी कूच कर जाएंगे। सवाल उठता है कि अखाड़े कहां जाते हैं? हजारों नए नागा साधुओं की भूमिका क्या होगी? दोबारा उनके दर्शन कब और कहां होंगे? इनके जवाब के लिए दैनिक भास्कर डिजिटल ऐप टीम ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी महाराज से कुछ सवाल किए। पढ़िए… क्या कुंभ के बाद भी नागा साधु निर्वस्त्र ही रहते हैं?
रविंद्र पुरी महाराज ने कहा- महाकुंभ में पहला स्नान नागा साधु करते हैं। तब वह दिगंबर स्वरूप में होते हैं, यानी निर्वस्त्र। लेकिन, सामान्य दिनों में वह दिगंबर स्वरूप में नहीं होते। समाज में दिगंबर स्वरूप स्वीकार नहीं होता। इसलिए भस्म, रुद्राक्ष, जानवरों की खाल लपेटे यह लोग आश्रम में रहते हैं। नागा साधु दिगंबर स्वरूप में क्यों रहते हैं?
कुंभ में ज्यादातर नागा साधु 2 विशेष अखाड़ों से आते हैं। पहला- वाराणसी का महापरिनिर्वाण अखाड़ा, दूसरा- पंच दशनाम जूना अखाड़ा। इन दोनों अखाड़ों के नागा साधु कुंभ का हिस्सा बनते हैं। दिगंबर का अर्थ है, धरती और अंबर। नागा साधुओं का मानना है कि धरती उनका बिछौना है, अंबर उनका ओढ़ना। इसलिए वे कुंभ की अमृत वर्षा के लिए नागा स्वरूप में आते हैं। जब कुंभ खत्म हो जाता है, तब नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों में लौट जाते हैं। महाकुंभ में कितने नए नागा साधु जुड़े, वे क्या करेंगे?
महाकुंभ में हजारों नए नागा संन्यासी तैयार हुए हैं। इन नागा संन्यासियों का जीवन अब 12 साल तक कठिन तपस्या से गुजरेगा। इनके ऊपर उनके गुरु, थानापति के साथ सभापति की खास निगाह रहेगी। अगर संन्यासी परंपरा का जरा भी पालन नहीं होता, तो इन्हें तत्काल अखाड़े से बाहर कर दिया जाएगा। नए नागा संन्यासियों की पहचान कैसे की जाती है?
जो नए नागा संन्यासी बने हैं, उनके लिए वाराणसी में मोर मुकुट, आईकार्ड और अखाड़े के कानूनी दस्तावेज जारी किए जाएंगे। जो हमारे संरक्षक और अध्यक्ष के सिग्नेचर के जरिए इन्हें दिए जाएंगे। यह सब होली से पहले दिए जाएंगे। उनके गुरु निर्धारित होंगे। गुरु के आदेश पर ये संन्यास परंपरा और कठिन तप का पालन करेंगे। संन्यास लेते वक्त उनके गले में एक सफेद रंग के धागे में सिंगल रुद्राक्ष डाला गया है, वह उन्हें हमेशा धारण करना होगा। अखाड़ों में अन्य नागा साधुओं का काम क्या है?
रविंद्र पुरी ने कहा- इन अखाड़ों में नागा साधु ध्यान और साधना करते हैं। साथ ही, धार्मिक शिक्षा भी देते हैं। इनकी तपस्वी जीवनशैली होती है। बहुत से नागा साधु हिमालय, जंगलों और अन्य एकांत स्थानों में तपस्या करने चले जाते हैं। वे कठोर तप करते हैं, फल-फूल खाकर जीवन बिताते हैं। महाकुंभ के बाद अखाड़ों का क्या काम होता है?
अखाड़ों के संत और संन्यासी धार्मिक व आध्यात्मिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते हैं। गांव-गांव और शहर-शहर जाकर कथा, प्रवचन और सत्संग करते हैं। इन प्रवचनों में गीता, वेद, पुराण और उपनिषदों की शिक्षाओं को सरल भाषा में लोगों तक पहुंचाया जाता है। वे नियमित रूप से योग, ध्यान और धार्मिक अनुष्ठानों का अभ्यास करते हैं। उनका उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना और अपने अनुयायियों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देना होता है। अखाड़ों और नागा साधुओं का प्रशासन कैसे चलता है?
नागा संन्यासी सनातन परंपरा की एक ऐसी अद्भुत कड़ी हैं, जिसे सनातन की रक्षा के लिए शंकराचार्य ने तैयार किया। अलग-अलग अखाड़े के नागा संन्यासियों का कार्यक्षेत्र और उससे जुड़ी उनकी कार्यशैली भी अलग-अलग होती है। जिस तरह से आम जनजीवन में लोगों की सुरक्षा के लिए एसपी, थानेदार, चौकी इंचार्ज होते हैं, वैसे ही अखाड़े में सभापति, थानापति और क्षेत्र रक्षक के रूप में भी नागा संन्यासियों को तैनात किया जाता है। चारों दिशाओं यानी उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम के लिए अलग-अलग थानापतियों की नियुक्ति होती है। क्या नागा साधुओं पर सर्दी का असर नहीं होता?
इन्हें ठंड या गर्मी का कोई असर नहीं होता। कुंभ में सिर्फ इसलिए आते हैं, क्योंकि हमारे अखाड़े की पेशवाई और अखाड़ों का शक्ति प्रदर्शन होता है। इसके बाद सभी का अपना अलग-अलग रास्ता होता है। कोई हिमालय की तरफ निकलेगा तो कोई उत्तराखंड, हरिद्वार, नैनीताल और हिमाचल के पहाड़ों की तरफ चला जाएगा। हमें सुकून और शांति चाहिए। अखाड़े के महमंडलेश्वर क्या करते हैं?
हमारे झूंडी महंत होते हैं। वे गांव में और जहां भी उन्हें पसंद होता है, वहां घूम घूम कर सनातन का प्रचार करते हैं। हमारे महामंडलेश्वर भी पूरी मंडली लेकर भारत में भ्रमण करते हैं। हमारे अखाड़े में पंच होते हैं। उन सभी की जिम्मेदारी होती है कि सनातन का प्रचार-प्रसार करें। महामंडलेश्वर की बातों का पालन करें। सबसे ज्यादा नागा संत कहां पाए जाते हैं?
रविंद्र पुरी ने कहा- अखाड़े में जो भी होता है, वह नागा ही होता है। लेकिन जिन्हें आप नंगे बाबा के नाम से कहते हैं, वह बहुत कम संख्या में रहते हैं। सबसे ज्यादा नागा नर्मदा खंड में मिलते हैं, जो मध्य प्रदेश में है। वहां पर वह धूनी रमाते हैं, 3 साल 3 महीने की परिक्रमा करते हैं। इसमें हमारे साधु-संत भी शामिल होते हैं। अब आप लोगों से अगली मुलाकात कहां होगी?
रविंद्र पुरी ने कहा- होली तक हम सभी अखाड़े यहां पर रुकेंगे। हमारे आचार्य महामंडलेश्वर काशी आएंगे और हम यहां पर पंचकोशी परिक्रमा भी करेंगे। उसके बाद हम सभी अपना दंड और कमंडल लेकर यहां से अलग-अलग राज्यों में चले जाएंगे। इसके बाद नासिक और उज्जैन में मुलाकात होगी। ————————— यह खबर भी पढ़िए महाकुंभ में कैसे बदली यूपी की अर्थव्यवस्था, श्रद्धालुओं ने सिर्फ होटल-ट्रांसपोर्ट और खानपान पर खर्च किए 2.25 लाख करोड़ रुपए ‘महाकुंभ ने दुनिया को आस्था और आर्थिकी का बेहतर समन्वय दिया है। ऐसा कहीं नहीं होता कि किसी शहर के विकास पर साढ़े 7 हजार करोड़ खर्च करें, उससे उस प्रदेश की अर्थव्यवस्था साढ़े 3 लाख करोड़ बढ़ जाए। ऐसा दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता, लेकिन महाकुंभ ने ये करके दिखाया है।’सीएम योगी आदित्यनाथ का ये बयान प्रयागराज महाकुंभ के समापन के दूसरे दिन (27 फरवरी) का है। आर्थिक विशेषज्ञ भी गिनाते हैं कि महाकुंभ में आए 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने औसतन 5 हजार रुपए खर्च किए, तो यह कुल 3.30 लाख करोड़ होता है। पूरी खबर पढ़िए   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर