32 साल पहले आतंकी कहकर मारे थे:अदालत में पुलिस की कहानी पड़ी झूठी, फर्जी एनकाउंटर केस में पूर्व पुलिस कर्मियों को सजा आज

32 साल पहले आतंकी कहकर मारे थे:अदालत में पुलिस की कहानी पड़ी झूठी, फर्जी एनकाउंटर केस में पूर्व पुलिस कर्मियों को सजा आज

पंजाब के तरनतारन में 32 साल पहले दो लोगों को आतंकी बताकर फर्जी एनकाउंटर मामले में मोहाली स्थित सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा दो पूर्व पुलिस कर्मियों को सजा सुनाई जाएगी। दोषियों में तरनतारन के पट्‌टी में तैनात तत्कालीन पुलिस अधिकारी सीता राम (80) व एसएचओ पट्‌टी राज पाल (57) शामिल हैं। सीता राम को आईपीसी की धारा 302, 201 और 218 के तहत दोषी ठहराया गया है। जबकि राजपाल को धारा 201 और 120-बी के तहत सजा होगी। जबकि 5 आरोपियों को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया गया। इस मामले में 11 पुलिस अधिकारियों पर अगवा, गैन कानूनी हिरासत व हत्या का दोष लगाया गया था, सुनवाई के दौरान चार लोगों की मौत हो गई थी। वहीं, परिवार का कहना है कि जो लोग बरी हुए, उन्हें सजा दिलाने के लिए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे। घर से उठाकर मारे, परिवार चेहरा तक नहीं देख पाए सीबीआई ने जिन दो युवाओं का फर्जी एनकाउंटर किया था। उसके लिए एक फर्जी कहानी बनाई थी। पुलिस की कहानी के मुताबिक पुलिस पार्टी ने नाका लगाया हुआ था। दोनों नौजवान ट्रैक्टर पर आ रहे थे। जब पुलिस ने इन्हें रोकने की कोशिश की तो उन्होंने पुलिस पर फायरिंग कर दी। पुलिस ने जवाबी फायरिंग की, इसमें दोनों मारे गए। जबकि अदालत में यह कहानी झूठी पड़ गई। असल में 30 जनवरी 1993 को गुरदेव सिंह उर्फ देबा निवासी गलीलीपुर तरनतारन को पुलिस चौकी करण तरनतारन के इंचार्ज एएसआई नौरंग सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी ने उसके घर से उठाया था। जबकि 5 फरवरी 1993 को एक अन्य युवक सुखवंत सिंह को एएसआई दीदार सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस टीम ने पट्टी थाना क्षेत्र के बाम्हणीवाला गांव से उसके घर से उठा लिया था। बाद में दोनों को 6 फरवरी 1993 को थाना पट्टी के भागूपुर क्षेत्र में एक मुठभेड़ में मार दिखाया। दोनों की थाना पट्टी तरनतारन में एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस ने दोनों मृतकों के शवों का अंतिम संस्कार लावारिस हालत में कर दिया। परिवार दोनों का आखिरी बार मुंह तक नहीं देख पाए थे। पुलिस ने दावा किया था कि दोनों युवक हत्या, फिरौती जैसे अपराधों में मामलों में शामिल थे। अदालत में यह कहानी फेल साबित हुई है। आतंकी का दाग धोने के लिए लड़ी सालों संग परिवार ने मृतकों को इंसाफ दिलाने व आतंकवाद के दाग को मिटाने के लिए लंबी जंग जारी रखी। 1995 सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर इस मामले की जांच की थी। शुरूआती जांच में 27 नवंबर 1996 को एक गवाह, ज्ञान सिंह का बयान दर्ज किया। बाद में, फरवरी 1997 में सीबीआई ने जम्मू में पीपी कैरों और पीएस पट्टी के एएसआई नोरंग सिंह और अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 364/34 के तहत केस दर्ज किया। साल 2000 में जांच पूरी होने के बाद, सीबीआई ने तरनतारन के 11 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इन अधिकारियों में नोरंग सिंह (तत्कालीन इंचार्ज पीपी कैरों), एएसआई दीदार सिंह, कश्मीर सिंह (तत्कालीन डीएसपी, पट्टी), सीता राम (तत्कालीन एसएचओ पट्टी), दरशन सिंह, गोबिंदर सिंह (तत्कालीन एसएचओ वल्टोहा), एएसआई शमीर सिंह, एएसआई फकीर सिंह, सी. सरदूल सिंह, सी. राजपाल और सी. अमरजीत सिंह शामिल थे। सबूत तक न्यायिक फाइल से गायब हो गए साल 2001 में इन सभी आरोपियों पर आरोप तय किए गए थे, लेकिन पंजाब डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट 1983 के तहत आवश्यक मंजूरी की अपील के आधार पर उच्च अदालतों ने 2021 तक इस मामले पर रोक लगा दी थी, जिसे बाद में खारिज कर दिया गया था। हैरानी की बात यह थी कि सीबीआई द्वारा एकत्र किए गए सभी सबूत इस केस की न्यायिक फाइल से गायब हो गए। हाईकोर्ट के संज्ञान लेने के बाद कोर्ट के आदेशों पर रिकॉर्ड को दोबारा तैयार किया गया और अंततः घटना के 30 साल बाद, 2023 में पहले सरकारी गवाह का बयान दर्ज किया गया। बेटे ने पुलिस में भर्ती होकर संभाला परिवार सुखवत सिंह के बेटे राजबीर ने बताया कि जब यह सारा मामला हुआ था। उस समय चार साल का था। वह अपने पिता की गोद में खेलता था। जब पुलिस उन्हें उठाकर ले गई थी। पिता के इस तरह मारे जाने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। मोहाली में गुरु आसारा ट्रस्ट उसके लिए सहारा बनी। फ्री में नौ साल तक पढ़ाया। इसके बाद पुलिस में भर्ती हुए। इसके बाद अपनी दो बहनों की शादी की। छोटे भाई युद्वबीर को 2009 स्पेन भेजा। वह वहां सेटल है। उनके चाचा सुखचैन सिंह हमारे लिए सहारा बने। पंजाब के तरनतारन में 32 साल पहले दो लोगों को आतंकी बताकर फर्जी एनकाउंटर मामले में मोहाली स्थित सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा दो पूर्व पुलिस कर्मियों को सजा सुनाई जाएगी। दोषियों में तरनतारन के पट्‌टी में तैनात तत्कालीन पुलिस अधिकारी सीता राम (80) व एसएचओ पट्‌टी राज पाल (57) शामिल हैं। सीता राम को आईपीसी की धारा 302, 201 और 218 के तहत दोषी ठहराया गया है। जबकि राजपाल को धारा 201 और 120-बी के तहत सजा होगी। जबकि 5 आरोपियों को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया गया। इस मामले में 11 पुलिस अधिकारियों पर अगवा, गैन कानूनी हिरासत व हत्या का दोष लगाया गया था, सुनवाई के दौरान चार लोगों की मौत हो गई थी। वहीं, परिवार का कहना है कि जो लोग बरी हुए, उन्हें सजा दिलाने के लिए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे। घर से उठाकर मारे, परिवार चेहरा तक नहीं देख पाए सीबीआई ने जिन दो युवाओं का फर्जी एनकाउंटर किया था। उसके लिए एक फर्जी कहानी बनाई थी। पुलिस की कहानी के मुताबिक पुलिस पार्टी ने नाका लगाया हुआ था। दोनों नौजवान ट्रैक्टर पर आ रहे थे। जब पुलिस ने इन्हें रोकने की कोशिश की तो उन्होंने पुलिस पर फायरिंग कर दी। पुलिस ने जवाबी फायरिंग की, इसमें दोनों मारे गए। जबकि अदालत में यह कहानी झूठी पड़ गई। असल में 30 जनवरी 1993 को गुरदेव सिंह उर्फ देबा निवासी गलीलीपुर तरनतारन को पुलिस चौकी करण तरनतारन के इंचार्ज एएसआई नौरंग सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी ने उसके घर से उठाया था। जबकि 5 फरवरी 1993 को एक अन्य युवक सुखवंत सिंह को एएसआई दीदार सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस टीम ने पट्टी थाना क्षेत्र के बाम्हणीवाला गांव से उसके घर से उठा लिया था। बाद में दोनों को 6 फरवरी 1993 को थाना पट्टी के भागूपुर क्षेत्र में एक मुठभेड़ में मार दिखाया। दोनों की थाना पट्टी तरनतारन में एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस ने दोनों मृतकों के शवों का अंतिम संस्कार लावारिस हालत में कर दिया। परिवार दोनों का आखिरी बार मुंह तक नहीं देख पाए थे। पुलिस ने दावा किया था कि दोनों युवक हत्या, फिरौती जैसे अपराधों में मामलों में शामिल थे। अदालत में यह कहानी फेल साबित हुई है। आतंकी का दाग धोने के लिए लड़ी सालों संग परिवार ने मृतकों को इंसाफ दिलाने व आतंकवाद के दाग को मिटाने के लिए लंबी जंग जारी रखी। 1995 सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर इस मामले की जांच की थी। शुरूआती जांच में 27 नवंबर 1996 को एक गवाह, ज्ञान सिंह का बयान दर्ज किया। बाद में, फरवरी 1997 में सीबीआई ने जम्मू में पीपी कैरों और पीएस पट्टी के एएसआई नोरंग सिंह और अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 364/34 के तहत केस दर्ज किया। साल 2000 में जांच पूरी होने के बाद, सीबीआई ने तरनतारन के 11 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इन अधिकारियों में नोरंग सिंह (तत्कालीन इंचार्ज पीपी कैरों), एएसआई दीदार सिंह, कश्मीर सिंह (तत्कालीन डीएसपी, पट्टी), सीता राम (तत्कालीन एसएचओ पट्टी), दरशन सिंह, गोबिंदर सिंह (तत्कालीन एसएचओ वल्टोहा), एएसआई शमीर सिंह, एएसआई फकीर सिंह, सी. सरदूल सिंह, सी. राजपाल और सी. अमरजीत सिंह शामिल थे। सबूत तक न्यायिक फाइल से गायब हो गए साल 2001 में इन सभी आरोपियों पर आरोप तय किए गए थे, लेकिन पंजाब डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट 1983 के तहत आवश्यक मंजूरी की अपील के आधार पर उच्च अदालतों ने 2021 तक इस मामले पर रोक लगा दी थी, जिसे बाद में खारिज कर दिया गया था। हैरानी की बात यह थी कि सीबीआई द्वारा एकत्र किए गए सभी सबूत इस केस की न्यायिक फाइल से गायब हो गए। हाईकोर्ट के संज्ञान लेने के बाद कोर्ट के आदेशों पर रिकॉर्ड को दोबारा तैयार किया गया और अंततः घटना के 30 साल बाद, 2023 में पहले सरकारी गवाह का बयान दर्ज किया गया। बेटे ने पुलिस में भर्ती होकर संभाला परिवार सुखवत सिंह के बेटे राजबीर ने बताया कि जब यह सारा मामला हुआ था। उस समय चार साल का था। वह अपने पिता की गोद में खेलता था। जब पुलिस उन्हें उठाकर ले गई थी। पिता के इस तरह मारे जाने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। मोहाली में गुरु आसारा ट्रस्ट उसके लिए सहारा बनी। फ्री में नौ साल तक पढ़ाया। इसके बाद पुलिस में भर्ती हुए। इसके बाद अपनी दो बहनों की शादी की। छोटे भाई युद्वबीर को 2009 स्पेन भेजा। वह वहां सेटल है। उनके चाचा सुखचैन सिंह हमारे लिए सहारा बने।   पंजाब | दैनिक भास्कर