<p style=”text-align: justify;”><strong>Allahabad High Court:</strong> इलाहाबाद हाईकोर्ट में 81 न्यायाधीशों की रिक्तियों को भरने में हो रही देरी को लेकर दायर जनहित याचिका (PIL) पर जल्द ही ऐतिहासिक सुनवाई होने जा रही है. यह याचिका अधिवक्ता शाश्वत आनंद और सैयद अहमद फैजान के माध्यम से याचिकाकर्ता-वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश त्रिवेदी द्वारा दायर की गई है, जिसमें अदालत से इन रिक्तियों को अविलंब भरने के लिए बाध्यकारी निर्देश जारी करने की मांग की गई है ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक समीक्षा और नागरिकों के न्याय तक पहुंचने के अधिकार की रक्षा की जा सके.</p>
<p style=”text-align: justify;”>इलाहाबाद हाईकोर्ट, जो देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है, उसमें न्यायाधीशों के 160 पद स्वीकृत है, जबकि मौजूदा समय में आधे से ज्यादा पद खाली हैं. यहां इन दिनों 160 में से 81 पद खाली पड़े हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में कहा गया है कि यह स्थिति न्यायपालिका की प्रभावशीलता को गंभीर रूप से बाधित कर रही है और न्यायिक प्रणाली को अक्षम बना रही है. याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक समीक्षा, जो संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न अंग हैं, तब अर्थहीन हो जाते हैं जब स्वयं न्यायपालिका कार्य करने में असमर्थ हो जाती है और आधी ही सक्रिय रह जाती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>याचिकाकर्ता ने क्या दिया तर्क</strong><br />यह जनहित याचिका सबसे पहले 6 मार्च को मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुई थी. उस वक्त वरिष्ठ अधिवक्ता एस.एफ.ए. नकवी ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश होकर तर्क दिया कि हाईकोर्ट की संस्थागत अखंडता 81 न्यायिक रिक्तियों के कारण खतरे में पड़ गई है. हालाँकि, चूँकि मुख्य न्यायाधीश हाईकोर्ट कोलेजियम के प्रमुख हैं, जो नियुक्ति प्रक्रिया का मुख्य अंग है, उन्होंने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया और निर्देश दिया कि इसे किसी अन्य पीठ के समक्ष नए सिरे से सूचीबद्ध किया जाए.</p>
<p><iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/_2G9SKjE-e8?si=t6fnW5tU-x5KcX77″ width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe></p>
<p style=”text-align: justify;”>आज 17 मार्च को यह जनहित याचिका गलती से न्यायमूर्ति एम.के. गुप्ता (मुख्य न्यायाधीश के बाद वरिष्ठतम न्यायाधीश) और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुई. हालांकि यह सामने आया कि यह मामला पहले ही 11 मार्च को मुख्य न्यायाधीश द्वारा न्यायमूर्ति एम.सी. त्रिपाठी की पीठ को सौंपा जा चुका था और सोमवार को यह मानवीय भूल की वजह से गलत बेंच में सूचीबद्ध हो गया. अब यह साफ हो गया है कि मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एम.सी. त्रिपाठी की अध्यक्षता वाली पीठ करेगी, जिसमें न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार भी शामिल रहेंगे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये सदस्य शामिल</strong><br />इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायिक नियुक्तियों की सिफारिश करने वाला कोलेजियम 3 सदस्यों से मिलकर बना है. इनमें मुख्य न्यायाधीश (कोलेजियम प्रमुख), न्यायमूर्ति एम.के. गुप्ता (मुख्य न्यायाधीश के बाद वरिष्ठतम न्यायाधीश) और न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा (मुख्य न्यायाधीश के बाद दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश) शामिल हैं. हालांकि, न्यायमूर्ति एम.सी. त्रिपाठी वर्तमान में हाईकोर्ट के सबसे वरिष्ठ गैर-कोलेजियम न्यायाधीश हैं, इसलिए उनकी अध्यक्षता वाली पीठ इस संवैधानिक संकट पर एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्णय ले सकती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>इस जनहित याचिका में अदालत से न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया को शीघ्र पूरा करने के लिए एक सख्त और समयबद्ध योजना लागू करने की मांग की गई है. याचिका में सुझाए गए मुख्य बिंदु हैं, न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया में बाधा न आए, इसके लिए 81 से अधिक नाम भेजे जाएं. इसके अलावा पूरी प्रक्रिया को 3 महीने के भीतर पूरा करने की समय-सीमा तय की जाए, ताकि नियुक्तियों में किसी भी प्रकार की देरी न हो.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/cm-pushkar-singh-dhami-says-vikram-samvat-and-hindu-month-will-be-mentioned-in-government-notifications-ann-2906105″>सरकारी अधिसूचनाओं में विक्रम संवत एवं हिन्दू माह का होगा उल्लेख: मुख्यमंत्री धामी</a><br /></strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सबसे बड़ा हाईकोर्ट</strong><br />अब जब मामला न्यायमूर्ति एम.सी. त्रिपाठी की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए तय हो गया है, यह केस न्यायिक स्वतंत्रता और संविधानिक अनुपालन की रक्षा के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है. इसका असर न केवल इलाहाबाद हाईकोर्ट बल्कि पूरे देश की न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पर पड़ सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>चूंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है, इसलिए इसका पूर्ण शक्ति के साथ कार्य करना एक संवैधानिक आवश्यकता है, न कि कोई प्रशासनिक विवेकाधिकार. आगामी सुनवाई तय करेगी कि न्यायपालिका अपनी संस्थागत अखंडता पुनः प्राप्त कर सकती है या फिर प्रक्रियागत जटिलताओं से संघर्ष करती रहेगी.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Allahabad High Court:</strong> इलाहाबाद हाईकोर्ट में 81 न्यायाधीशों की रिक्तियों को भरने में हो रही देरी को लेकर दायर जनहित याचिका (PIL) पर जल्द ही ऐतिहासिक सुनवाई होने जा रही है. यह याचिका अधिवक्ता शाश्वत आनंद और सैयद अहमद फैजान के माध्यम से याचिकाकर्ता-वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश त्रिवेदी द्वारा दायर की गई है, जिसमें अदालत से इन रिक्तियों को अविलंब भरने के लिए बाध्यकारी निर्देश जारी करने की मांग की गई है ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक समीक्षा और नागरिकों के न्याय तक पहुंचने के अधिकार की रक्षा की जा सके.</p>
<p style=”text-align: justify;”>इलाहाबाद हाईकोर्ट, जो देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है, उसमें न्यायाधीशों के 160 पद स्वीकृत है, जबकि मौजूदा समय में आधे से ज्यादा पद खाली हैं. यहां इन दिनों 160 में से 81 पद खाली पड़े हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में कहा गया है कि यह स्थिति न्यायपालिका की प्रभावशीलता को गंभीर रूप से बाधित कर रही है और न्यायिक प्रणाली को अक्षम बना रही है. याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक समीक्षा, जो संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न अंग हैं, तब अर्थहीन हो जाते हैं जब स्वयं न्यायपालिका कार्य करने में असमर्थ हो जाती है और आधी ही सक्रिय रह जाती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>याचिकाकर्ता ने क्या दिया तर्क</strong><br />यह जनहित याचिका सबसे पहले 6 मार्च को मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुई थी. उस वक्त वरिष्ठ अधिवक्ता एस.एफ.ए. नकवी ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश होकर तर्क दिया कि हाईकोर्ट की संस्थागत अखंडता 81 न्यायिक रिक्तियों के कारण खतरे में पड़ गई है. हालाँकि, चूँकि मुख्य न्यायाधीश हाईकोर्ट कोलेजियम के प्रमुख हैं, जो नियुक्ति प्रक्रिया का मुख्य अंग है, उन्होंने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया और निर्देश दिया कि इसे किसी अन्य पीठ के समक्ष नए सिरे से सूचीबद्ध किया जाए.</p>
<p><iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/_2G9SKjE-e8?si=t6fnW5tU-x5KcX77″ width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe></p>
<p style=”text-align: justify;”>आज 17 मार्च को यह जनहित याचिका गलती से न्यायमूर्ति एम.के. गुप्ता (मुख्य न्यायाधीश के बाद वरिष्ठतम न्यायाधीश) और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुई. हालांकि यह सामने आया कि यह मामला पहले ही 11 मार्च को मुख्य न्यायाधीश द्वारा न्यायमूर्ति एम.सी. त्रिपाठी की पीठ को सौंपा जा चुका था और सोमवार को यह मानवीय भूल की वजह से गलत बेंच में सूचीबद्ध हो गया. अब यह साफ हो गया है कि मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एम.सी. त्रिपाठी की अध्यक्षता वाली पीठ करेगी, जिसमें न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार भी शामिल रहेंगे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये सदस्य शामिल</strong><br />इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायिक नियुक्तियों की सिफारिश करने वाला कोलेजियम 3 सदस्यों से मिलकर बना है. इनमें मुख्य न्यायाधीश (कोलेजियम प्रमुख), न्यायमूर्ति एम.के. गुप्ता (मुख्य न्यायाधीश के बाद वरिष्ठतम न्यायाधीश) और न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा (मुख्य न्यायाधीश के बाद दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश) शामिल हैं. हालांकि, न्यायमूर्ति एम.सी. त्रिपाठी वर्तमान में हाईकोर्ट के सबसे वरिष्ठ गैर-कोलेजियम न्यायाधीश हैं, इसलिए उनकी अध्यक्षता वाली पीठ इस संवैधानिक संकट पर एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्णय ले सकती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>इस जनहित याचिका में अदालत से न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया को शीघ्र पूरा करने के लिए एक सख्त और समयबद्ध योजना लागू करने की मांग की गई है. याचिका में सुझाए गए मुख्य बिंदु हैं, न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया में बाधा न आए, इसके लिए 81 से अधिक नाम भेजे जाएं. इसके अलावा पूरी प्रक्रिया को 3 महीने के भीतर पूरा करने की समय-सीमा तय की जाए, ताकि नियुक्तियों में किसी भी प्रकार की देरी न हो.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/cm-pushkar-singh-dhami-says-vikram-samvat-and-hindu-month-will-be-mentioned-in-government-notifications-ann-2906105″>सरकारी अधिसूचनाओं में विक्रम संवत एवं हिन्दू माह का होगा उल्लेख: मुख्यमंत्री धामी</a><br /></strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सबसे बड़ा हाईकोर्ट</strong><br />अब जब मामला न्यायमूर्ति एम.सी. त्रिपाठी की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए तय हो गया है, यह केस न्यायिक स्वतंत्रता और संविधानिक अनुपालन की रक्षा के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है. इसका असर न केवल इलाहाबाद हाईकोर्ट बल्कि पूरे देश की न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पर पड़ सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>चूंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है, इसलिए इसका पूर्ण शक्ति के साथ कार्य करना एक संवैधानिक आवश्यकता है, न कि कोई प्रशासनिक विवेकाधिकार. आगामी सुनवाई तय करेगी कि न्यायपालिका अपनी संस्थागत अखंडता पुनः प्राप्त कर सकती है या फिर प्रक्रियागत जटिलताओं से संघर्ष करती रहेगी.</p> उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड Delhi: हंगामे के बीच MCD सदन की बैठक में 22 प्रस्ताव पास, AAP और BJP पार्षदों में तीखी नोकझोंक
इलाहाबाद HC में जजेज के आधे से ज्यादा पद खाली, नियुक्तियों की मांग वाली PIL पर दूसरी बार टली सुनवाई
