<p style=”text-align: justify;”>मध्य प्रदेश के रतलाम जिला मुख्यालय से 55 किमी दूर एक गांव ऐसा भी है जहां रावण की नाक काटकर उसका अंत 6 महीने पहले किया जाता है. शारदीय नवरात्रि (सितंबर-अक्टूबर) के दशहरे से 6 महीने पहले ऐसा किया जाता है. इस अनोखी परपंरा को हिन्दू-मुस्लिम दोनों मिलकर निभाते हैं. जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर चिकलाना गांव में रावण की मूर्ति की नाक काटकर छह महीने पहले ही उसका प्रतीकात्मक अंत कर दिया जाता है. इस गांव में चैत्र नवरात्रि में रावण के अंत की परंपरा वर्षों से चली आ रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दशहरे में नहीं जलाया जाता रावण का पुतला </strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>दरसअल, गांव की इस अनोखी परंपरा में ग्रामीण चैत्र नवरात्रि के दसवें दिन भव्य समारोह आयोजित कर भाले से रावण की नाक काटकर उसका अंत करते हैं. यहां शारदीय नवरात्रि के दशहरे पर रावण दहन नहीं होता है. इसके पहले गांव में भव्य समारोह का आयोजन होता है, जिसके बाद राम और रावण की सेना कार्यक्रम स्थल पर पहुंचती है यहां दोनों सेना के बीच वाक युद्ध भी होता है, जिसके बाद रावण का अंत किया जाता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>नाक काटने के पीछे क्या है वजह?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>यहां रहने वाले लोगों से जब इसके पीछे की वजह पूछी गई तो वे बताते हैं कि प्रसिद्ध कहावत नाक कटना का मतलब है बदनामी होना. लिहाजा रावण की नाक काटे जाने की परंपरा के पीछे यह अहम संदेश छिपा है कि बुराई के प्रतीक की सार्वजनिक रूप से निंदा के जरिये उसके अहंकार को नष्ट करने में हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए. रावण ने माता सीता का हरण किया था. इसी अपमान का बदला लेने के लिए अब यहां लोग रावण की नाक काटकर उसका अपमान करते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>गांव में नहीं होता रावण दहन </strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>चिकलाना गांव में इस परंपरा के पालन से जुड़े परिवार का कहना है कि चैत्र नवरात्रि की यह परंपरा हमारे पुरखों के जमाने से निभाई जा रही है. इसलिए हम भी इसी का पालन कर रहे हैं. परंपरा के मुताबिक ही गांव के प्रतिष्ठित परिवार का व्यक्ति भाले से पहले रावण के पुतले की नाक पर वार करता है, यानी सांकेतिक रूप से उसकी नाक काट दी जाती है. शारदीय नवरात्र के बाद पड़ने वाले दशहरे पर हमारे गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>लोग बताते हैं कि परंपरा के तहत रावण दहन से पहले शोभायात्रा निकाली जाती है, ढोल बजते हैं और गांव के हनुमान मंदिर से चल समारोह निकलकर दशहरा मैदान तक जाता है. राम और रावण की सेनाओं के बीच वाकयुद्ध का रोचक स्वांग होता है. इस दौरान हनुमान की वेश-भूषा वाला व्यक्ति रावण की मूर्ति की नाभि पर गदा से तीन बार वार करते हुए सांकेतिक लंका दहन भी करता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>गांव में रावण की स्थायी मूर्ति बनवाई</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>गांव के लोग बताते हैं कि पहले हमारे गांव को ये परंपरा औरों से अलग करती है. पहले हर साल रावण का पुतला बनाया जाता था, लेकिन पांच-छह साल पहले यहां 15 फीट ऊंची रावण की दस सिरों वाली स्थायी मूर्ति बनवा दी गई है. गांव में जिस जगह रावण की यह मूर्ति स्थित है, उसे दशहरा मैदान घोषित कर दिया गया है. यहीं हर साल परंपरा का निर्वाह किया जाता है.</p> <p style=”text-align: justify;”>मध्य प्रदेश के रतलाम जिला मुख्यालय से 55 किमी दूर एक गांव ऐसा भी है जहां रावण की नाक काटकर उसका अंत 6 महीने पहले किया जाता है. शारदीय नवरात्रि (सितंबर-अक्टूबर) के दशहरे से 6 महीने पहले ऐसा किया जाता है. इस अनोखी परपंरा को हिन्दू-मुस्लिम दोनों मिलकर निभाते हैं. जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर चिकलाना गांव में रावण की मूर्ति की नाक काटकर छह महीने पहले ही उसका प्रतीकात्मक अंत कर दिया जाता है. इस गांव में चैत्र नवरात्रि में रावण के अंत की परंपरा वर्षों से चली आ रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दशहरे में नहीं जलाया जाता रावण का पुतला </strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>दरसअल, गांव की इस अनोखी परंपरा में ग्रामीण चैत्र नवरात्रि के दसवें दिन भव्य समारोह आयोजित कर भाले से रावण की नाक काटकर उसका अंत करते हैं. यहां शारदीय नवरात्रि के दशहरे पर रावण दहन नहीं होता है. इसके पहले गांव में भव्य समारोह का आयोजन होता है, जिसके बाद राम और रावण की सेना कार्यक्रम स्थल पर पहुंचती है यहां दोनों सेना के बीच वाक युद्ध भी होता है, जिसके बाद रावण का अंत किया जाता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>नाक काटने के पीछे क्या है वजह?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>यहां रहने वाले लोगों से जब इसके पीछे की वजह पूछी गई तो वे बताते हैं कि प्रसिद्ध कहावत नाक कटना का मतलब है बदनामी होना. लिहाजा रावण की नाक काटे जाने की परंपरा के पीछे यह अहम संदेश छिपा है कि बुराई के प्रतीक की सार्वजनिक रूप से निंदा के जरिये उसके अहंकार को नष्ट करने में हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए. रावण ने माता सीता का हरण किया था. इसी अपमान का बदला लेने के लिए अब यहां लोग रावण की नाक काटकर उसका अपमान करते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>गांव में नहीं होता रावण दहन </strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>चिकलाना गांव में इस परंपरा के पालन से जुड़े परिवार का कहना है कि चैत्र नवरात्रि की यह परंपरा हमारे पुरखों के जमाने से निभाई जा रही है. इसलिए हम भी इसी का पालन कर रहे हैं. परंपरा के मुताबिक ही गांव के प्रतिष्ठित परिवार का व्यक्ति भाले से पहले रावण के पुतले की नाक पर वार करता है, यानी सांकेतिक रूप से उसकी नाक काट दी जाती है. शारदीय नवरात्र के बाद पड़ने वाले दशहरे पर हमारे गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>लोग बताते हैं कि परंपरा के तहत रावण दहन से पहले शोभायात्रा निकाली जाती है, ढोल बजते हैं और गांव के हनुमान मंदिर से चल समारोह निकलकर दशहरा मैदान तक जाता है. राम और रावण की सेनाओं के बीच वाकयुद्ध का रोचक स्वांग होता है. इस दौरान हनुमान की वेश-भूषा वाला व्यक्ति रावण की मूर्ति की नाभि पर गदा से तीन बार वार करते हुए सांकेतिक लंका दहन भी करता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>गांव में रावण की स्थायी मूर्ति बनवाई</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>गांव के लोग बताते हैं कि पहले हमारे गांव को ये परंपरा औरों से अलग करती है. पहले हर साल रावण का पुतला बनाया जाता था, लेकिन पांच-छह साल पहले यहां 15 फीट ऊंची रावण की दस सिरों वाली स्थायी मूर्ति बनवा दी गई है. गांव में जिस जगह रावण की यह मूर्ति स्थित है, उसे दशहरा मैदान घोषित कर दिया गया है. यहीं हर साल परंपरा का निर्वाह किया जाता है.</p> मध्य प्रदेश ‘बड़े अस्पतालों में दवाएं तक नहीं, डबल इंजन सरकार पूरी तरह फेल’, देवेंद्र यादव का BJP पर हमला
इस गांव में वध से पहले काटी जाती है रावण की नाक, हिंदू-मुसलमान दोनों निभाते हैं परंपरा
