Lucknow News: दारुल उलूम देवबंद की जायरीनों से अपील, ‘बच्चों-महिलाओं को लेकर कैंपस में दाखिल न हों’

Lucknow News: दारुल उलूम देवबंद की जायरीनों से अपील, ‘बच्चों-महिलाओं को लेकर कैंपस में दाखिल न हों’

<p style=”text-align: justify;”><strong>Lucknow News:</strong> देश के प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने जायरीन (जियारत करने वालों) से एक महत्वपूर्ण अपील की है. संस्थान ने उनसे आग्रह किया है कि वे अपने साथ छोटे बच्चों और महिलाओं को लेकर कैंपस में दाख़िल न हों. यह अपील ईद के बाद होने वाले दाख़िले और तालीमी गतिविधियों को सुचारू रखने के मकसद से की गई है. दारुल उलूम ने कहा है कि हर साल ईद के बाद देशभर से हज़ारों छात्र नए दाख़िले के लिए देवबंद आते हैं. ऐसे में कैंपस में भीड़ और हलचल काफी बढ़ जाती है. बच्चों और महिलाओं की मौजूदगी से न सिर्फ तलबा की पढ़ाई में विघ्न पड़ सकता है, बल्कि संस्थान के अनुशासन और शांति में भी बाधा आ सकती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>दारुल उलूम ने अपनी अपील में कहा है कि ‘हम सभी से तावुन (सहयोग) की उम्मीद करते हैं ताकि हमारा तालीमी निज़ाम बिना किसी खलल के चलता रहे.’ इस अपील को लेकर प्रसिद्ध देवबंदी उलेमा मौलाना क़ारी इसहाक गोरा ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा, ‘दारुल उलूम का यह फैसला बहुत सोच-समझकर लिया गया है. इस्लामी शिक्षण संस्थानों की पवित्रता और वहां की तालीमी फिज़ा को बरकरार रखना हम सबकी जिम्मेदारी है. आम लोगों को संस्थान के कायदे-कानूनों का सम्मान करना चाहिए.'</p>
<p style=”text-align: justify;”><iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/wjnsWpyrzok?si=ILeIXLMp38KiM7R9″ width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दारुल उलूम का ऐतिहासिक महत्व</strong><br />गौरतलब है कि दारुल उलूम देवबंद की स्थापना वर्ष 1866 में हुई थी. यह न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में इस्लामी तालीम का एक अहम केंद्र माना जाता है. यहां हर साल हजारों छात्र हिफ्ज, आलिम, फाजिल और मुफ्ती कोर्स में दाख़िला लेते हैं. यह संस्थान देवबंदी विचारधारा का प्रमुख केंद्र भी है, जिसने आज़ादी की लड़ाई से लेकर समाज में धार्मिक शिक्षा के प्रचार तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>शांति और अनुशासन का माहौल ज़रूरी</strong><br />दारुल उलूम हमेशा से अपने अनुशासित और शांत तालीमी माहौल के लिए जाना जाता है. यहां पढ़ने वाले छात्रों की दिनचर्या काफी सख्त और नियमबद्ध होती है. ऐसे में जायरीन की अधिक भीड़ या गैरजरूरी हलचल से इस माहौल पर असर पड़ सकता है.संस्थान ने साफ किया है कि यह फैसला किसी भेदभाव या नाराज़गी की वजह से नहीं, बल्कि तालीमी माहौल की पवित्रता को बनाए रखने के लिए लिया गया है. संस्थान की इस अपील का सम्मान करना और सहयोग देना हर जायरीन की जिम्मेदारी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>ये भी पढ़ें: <a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/uttar-pradesh-leads-in-dbt-and-digital-payment-2920375″><strong>यूपी ‘डीबीटी’ और ‘डिजिटल पेमेंट’ में सबसे आगे, 8 माह में 1,024 करोड़ रुपए से अधिक के ट्रांजेक्शन</strong></a></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Lucknow News:</strong> देश के प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने जायरीन (जियारत करने वालों) से एक महत्वपूर्ण अपील की है. संस्थान ने उनसे आग्रह किया है कि वे अपने साथ छोटे बच्चों और महिलाओं को लेकर कैंपस में दाख़िल न हों. यह अपील ईद के बाद होने वाले दाख़िले और तालीमी गतिविधियों को सुचारू रखने के मकसद से की गई है. दारुल उलूम ने कहा है कि हर साल ईद के बाद देशभर से हज़ारों छात्र नए दाख़िले के लिए देवबंद आते हैं. ऐसे में कैंपस में भीड़ और हलचल काफी बढ़ जाती है. बच्चों और महिलाओं की मौजूदगी से न सिर्फ तलबा की पढ़ाई में विघ्न पड़ सकता है, बल्कि संस्थान के अनुशासन और शांति में भी बाधा आ सकती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>दारुल उलूम ने अपनी अपील में कहा है कि ‘हम सभी से तावुन (सहयोग) की उम्मीद करते हैं ताकि हमारा तालीमी निज़ाम बिना किसी खलल के चलता रहे.’ इस अपील को लेकर प्रसिद्ध देवबंदी उलेमा मौलाना क़ारी इसहाक गोरा ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा, ‘दारुल उलूम का यह फैसला बहुत सोच-समझकर लिया गया है. इस्लामी शिक्षण संस्थानों की पवित्रता और वहां की तालीमी फिज़ा को बरकरार रखना हम सबकी जिम्मेदारी है. आम लोगों को संस्थान के कायदे-कानूनों का सम्मान करना चाहिए.'</p>
<p style=”text-align: justify;”><iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/wjnsWpyrzok?si=ILeIXLMp38KiM7R9″ width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दारुल उलूम का ऐतिहासिक महत्व</strong><br />गौरतलब है कि दारुल उलूम देवबंद की स्थापना वर्ष 1866 में हुई थी. यह न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में इस्लामी तालीम का एक अहम केंद्र माना जाता है. यहां हर साल हजारों छात्र हिफ्ज, आलिम, फाजिल और मुफ्ती कोर्स में दाख़िला लेते हैं. यह संस्थान देवबंदी विचारधारा का प्रमुख केंद्र भी है, जिसने आज़ादी की लड़ाई से लेकर समाज में धार्मिक शिक्षा के प्रचार तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>शांति और अनुशासन का माहौल ज़रूरी</strong><br />दारुल उलूम हमेशा से अपने अनुशासित और शांत तालीमी माहौल के लिए जाना जाता है. यहां पढ़ने वाले छात्रों की दिनचर्या काफी सख्त और नियमबद्ध होती है. ऐसे में जायरीन की अधिक भीड़ या गैरजरूरी हलचल से इस माहौल पर असर पड़ सकता है.संस्थान ने साफ किया है कि यह फैसला किसी भेदभाव या नाराज़गी की वजह से नहीं, बल्कि तालीमी माहौल की पवित्रता को बनाए रखने के लिए लिया गया है. संस्थान की इस अपील का सम्मान करना और सहयोग देना हर जायरीन की जिम्मेदारी है.</p>
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