अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर के गद्दीनशीन महंत ने 288 साल पुरानी परंपरा बदल दी है। परंपरा है कि हनुमानगढ़ी मंदिर में जो भी गद्दीनशीन पद पर होता है, वह मंदिर परिसर से बाहर नहीं निकलता। प्रेमदास तीसरे गद्दीनशीन महंत हैं, जो हनुमानगढ़ी से बाहर निकले हैं। इससे पहले 2 संत बीमारी की वजह से बाहर निकले थे। महंत प्रेमदास 8 सालों से गद्दीनशीन हैं। इस अवधि में वह कभी भी बाहर नहीं आए। क्यों गद्दीनशीन हनुमानगढ़ी से बाहर नहीं निकलते? हनुमानगढ़ी का क्या इतिहास है? गद्दीनशीन के बाहर निकलने के परंपरागत और राजनीतिक रूप से क्या मायने हैं? भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए- सवाल 1- गद्दीनशीन महंत प्रेमदास का राममंदिर जाना क्यों चर्चा का विषय बना? जवाब- इस मामले की शुरुआत तब हुई, जब हाल ही में हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास ने रामलला के दर्शन की इच्छा जताई। उन्होंने कहा- मेरे सपने में हनुमान जी आए थे। उन्होंने रामलला का दर्शन करने का आदेश दिया है। सपने में इस आदेश के बाद उन्होंने सभी अखाड़ों के सदस्यों की 21 अप्रैल को बैठक बुलाई। इसमें महंत रामदास की बात मान ली गई और परंपरा बदलने की मुहर लगी। तय हुआ कि प्रेमदास रामलला के दर्शन करने जाएंगे। हनुमानगढ़ी के इतिहास में महंत प्रेमदास से पहले सिर्फ बीमारी की वजह से कोई गद्दीनशीन बाहर गए हैं। इसमें गद्दीनशीन महंत रमेश दास और गद्दीनशीन महंत दीनबंधु दास को बेहतर इलाज के लिए हनुमानगढ़ी परिसर से बाहर ले जाया गया था। यह पहली बार है, जब कोई गद्दीनशीन किसी धार्मिक यात्रा पर गढ़ी से बाहर निकला। सवाल 2- हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास कौन हैं? जवाब- साल 2016 में कैंसर से पीड़ित तत्कालीन गद्दीनशीन महंत रमेशदास के निधन के बाद महंत प्रेमदास को नया गद्दीनशीन चुना गया था। प्रेमदास महाराज 70 साल की उम्र में इस पद पर 22वें गद्दीनशीन महंत हैं। हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन चुनने की खुद की व्यवस्था है। हनुमानगढ़ी की व्यवस्था चार पट्टी- हरिद्वारी, सागरिया, उज्जैनिया और बसंतिया में बंटी है। इन्हीं में से महंत चुना जाता है। महंत प्रेमदास सागरिया पट्टी से हैं। सवाल 3- हनुमानगढ़ी के क्या नियम हैं? जवाब- हनुमानगढ़ी का अपना संविधान है। इसमें इस मंदिर को लेकर नियम लिखे हैं। इन्हीं नियमों में लिखा है कि मंदिर का मुख्य पुजारी यानी गद्दीनशीन अपने पूरे कार्यकाल के दौरान सिर्फ मंदिर परिसर में रहेगा। 52 बीघा में फैले मंदिर परिसर से बाहर निकलने की उसे इजाजत नहीं है। सिर्फ निधन के बाद ही उनका शरीर परिसर से बाहर जा सकता है। परंपरा के मुताबिक, नियम इतने सख्त हैं कि गद्दीनशीन को स्थानीय अदालतों में भी जाने से रोक दिया जाता था। बताया जाता है, 1980 के दशक में हनुमानगढ़ी में कोर्ट लगी थी और जज आकर यहां बैठे थे। महंत प्रेमदास के मुख्य शिष्यों में से एक और हनुमंत संस्कृत विद्यालय के प्राचार्य डॉ. महेश दास के मुताबिक, हनुमानगढ़ी का संविधान 200 साल पुराना है। इसे 1925 में लिखा गया था। यह बाबा अभय दास जी महाराज के समय तैयार किया गया था। वो बताते हैं कि उस समय जब तीन मुख्य साधु अखाड़ा बनाए गए, तब हनुमानगढ़ी निर्वाणी अखाड़ा का मुख्य गद्दी बना। वो संविधान के हवाले से हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन को लेकर कहते हैं कि यह गद्दी मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा के ठीक सामने बनी है। जो भी इस पर बैठता है, वह यहां का प्रतिनिधित्व करता है। हनुमान जी का सेवक होता है। जब भी किसी बड़े कार्यक्रम में हनुमान जी को निमंत्रित किया जाता है, तब उनके प्रतीक के रूप में एक हनुमान जी के चित्र वाला एक झंडा लगाया जाता है। कभी भी गद्दीनशीन खुद नहीं जाते। इस झंडे पर सोने और चांदी से हनुमान जी का चित्र बना रहता है। सवाल 4- हनुमानगढ़ी मंदिर के बनने का क्या इतिहास है? जवाब- कहा जाता है कि 18वीं सदी में अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह ने हनुमानगढ़ी बनाने के लिए जमीन दान दी थी। 1855 में यहां के एक पुजारी ने नवाब के बेटे की बीमारी दूर कर उसे बचाया था। इस मंदिर को किले की आकृति में बनाया गया। हनुमानगढ़ी मंदिर को लेकर अयोध्या में लोगों की आस्था है कि जब भगवान राम पृथ्वी से गए तब उन्होंने अपने साम्राज्य की जिम्मेदारी भगवान हनुमान को सौंप दी थी। कहा जाता है, हनुमानगढ़ी हनुमान जी का निवास स्थान है। यहीं से हनुमान, भगवान राम के जन्मस्थान की देख-रेख करते हैं। आज भी अयोध्या के लोग हनुमान जी को अपने राजा की तरह देखते हैं। मान्यता है कि राम जन्मभूमि मंदिर की यात्रा तभी पूरी होती है, जब कोई श्रद्धालु हनुमानगढ़ी के दर्शन करता है। सवाल 5- यह यात्रा इतनी महत्वपूर्ण क्यों? जवाब- हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन ने इस ऐतिहासिक यात्रा के लिए अक्षय तृतीया का दिन चुना। यह धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है। इस यात्रा के राजनीतिक मायने इसलिए हैं कि हनुमानगढ़ी ने हमेशा से खुद को राममंदिर आंदोलन से दूर रखा। 90 के दशक के बाद इसके उभार के बाद भी हनुमानगढ़ी ने इसमें किसी भी तरह की भागीदारी नहीं रखी। 22 जनवरी, 2024 को राम मंदिर के निर्माण के बाद यह आंदोलन अब इतिहास के पन्नों का हिस्सा मात्र है। ऐसे में, हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन की राममंदिर की यात्रा और रामलला के दर्शन को बदलते हुए रुख को बताता है। सवाल 6- हनुमानगढ़ी गद्दी का विवादों से क्या नाता रहा? जवाब- हनुमानगढ़ी पीठ में दशकों से वर्चस्व की लड़ाई चली आ रही है। यहां 38 साल में 20 से ज्यादा साधु-संत और महंतों की हत्या हो चुकी है। सिर्फ इसलिए कि गद्दी, धन-दौलत और संपत्ति पर कब्जा हो सके। —————————– ये खबर भी पढ़ें… नेपाल से सटे जिलों में मदरसों पर क्यों चला बुलडोजर, यहां 50% तक बढ़ी मुस्लिम आबादी; यूपी पुलिस की रिपोर्ट में घुसपैठ की बात नेपाल सीमा से सटे यूपी के जिलों में 25 से 27 अप्रैल के बीच बिना मान्यता वाले मदरसों और अवैध कब्जों पर बुलडोजर चलाया गया। बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, लखीमपुर खीरी और महराजगंज में चले अभियान में सैकड़ों अवैध कब्जे हटवाए गए। बिना मान्यता के मदरसों पर ताला लगवाया गया। पढ़ें पूरी खबर अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर के गद्दीनशीन महंत ने 288 साल पुरानी परंपरा बदल दी है। परंपरा है कि हनुमानगढ़ी मंदिर में जो भी गद्दीनशीन पद पर होता है, वह मंदिर परिसर से बाहर नहीं निकलता। प्रेमदास तीसरे गद्दीनशीन महंत हैं, जो हनुमानगढ़ी से बाहर निकले हैं। इससे पहले 2 संत बीमारी की वजह से बाहर निकले थे। महंत प्रेमदास 8 सालों से गद्दीनशीन हैं। इस अवधि में वह कभी भी बाहर नहीं आए। क्यों गद्दीनशीन हनुमानगढ़ी से बाहर नहीं निकलते? हनुमानगढ़ी का क्या इतिहास है? गद्दीनशीन के बाहर निकलने के परंपरागत और राजनीतिक रूप से क्या मायने हैं? भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए- सवाल 1- गद्दीनशीन महंत प्रेमदास का राममंदिर जाना क्यों चर्चा का विषय बना? जवाब- इस मामले की शुरुआत तब हुई, जब हाल ही में हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास ने रामलला के दर्शन की इच्छा जताई। उन्होंने कहा- मेरे सपने में हनुमान जी आए थे। उन्होंने रामलला का दर्शन करने का आदेश दिया है। सपने में इस आदेश के बाद उन्होंने सभी अखाड़ों के सदस्यों की 21 अप्रैल को बैठक बुलाई। इसमें महंत रामदास की बात मान ली गई और परंपरा बदलने की मुहर लगी। तय हुआ कि प्रेमदास रामलला के दर्शन करने जाएंगे। हनुमानगढ़ी के इतिहास में महंत प्रेमदास से पहले सिर्फ बीमारी की वजह से कोई गद्दीनशीन बाहर गए हैं। इसमें गद्दीनशीन महंत रमेश दास और गद्दीनशीन महंत दीनबंधु दास को बेहतर इलाज के लिए हनुमानगढ़ी परिसर से बाहर ले जाया गया था। यह पहली बार है, जब कोई गद्दीनशीन किसी धार्मिक यात्रा पर गढ़ी से बाहर निकला। सवाल 2- हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास कौन हैं? जवाब- साल 2016 में कैंसर से पीड़ित तत्कालीन गद्दीनशीन महंत रमेशदास के निधन के बाद महंत प्रेमदास को नया गद्दीनशीन चुना गया था। प्रेमदास महाराज 70 साल की उम्र में इस पद पर 22वें गद्दीनशीन महंत हैं। हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन चुनने की खुद की व्यवस्था है। हनुमानगढ़ी की व्यवस्था चार पट्टी- हरिद्वारी, सागरिया, उज्जैनिया और बसंतिया में बंटी है। इन्हीं में से महंत चुना जाता है। महंत प्रेमदास सागरिया पट्टी से हैं। सवाल 3- हनुमानगढ़ी के क्या नियम हैं? जवाब- हनुमानगढ़ी का अपना संविधान है। इसमें इस मंदिर को लेकर नियम लिखे हैं। इन्हीं नियमों में लिखा है कि मंदिर का मुख्य पुजारी यानी गद्दीनशीन अपने पूरे कार्यकाल के दौरान सिर्फ मंदिर परिसर में रहेगा। 52 बीघा में फैले मंदिर परिसर से बाहर निकलने की उसे इजाजत नहीं है। सिर्फ निधन के बाद ही उनका शरीर परिसर से बाहर जा सकता है। परंपरा के मुताबिक, नियम इतने सख्त हैं कि गद्दीनशीन को स्थानीय अदालतों में भी जाने से रोक दिया जाता था। बताया जाता है, 1980 के दशक में हनुमानगढ़ी में कोर्ट लगी थी और जज आकर यहां बैठे थे। महंत प्रेमदास के मुख्य शिष्यों में से एक और हनुमंत संस्कृत विद्यालय के प्राचार्य डॉ. महेश दास के मुताबिक, हनुमानगढ़ी का संविधान 200 साल पुराना है। इसे 1925 में लिखा गया था। यह बाबा अभय दास जी महाराज के समय तैयार किया गया था। वो बताते हैं कि उस समय जब तीन मुख्य साधु अखाड़ा बनाए गए, तब हनुमानगढ़ी निर्वाणी अखाड़ा का मुख्य गद्दी बना। वो संविधान के हवाले से हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन को लेकर कहते हैं कि यह गद्दी मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा के ठीक सामने बनी है। जो भी इस पर बैठता है, वह यहां का प्रतिनिधित्व करता है। हनुमान जी का सेवक होता है। जब भी किसी बड़े कार्यक्रम में हनुमान जी को निमंत्रित किया जाता है, तब उनके प्रतीक के रूप में एक हनुमान जी के चित्र वाला एक झंडा लगाया जाता है। कभी भी गद्दीनशीन खुद नहीं जाते। इस झंडे पर सोने और चांदी से हनुमान जी का चित्र बना रहता है। सवाल 4- हनुमानगढ़ी मंदिर के बनने का क्या इतिहास है? जवाब- कहा जाता है कि 18वीं सदी में अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह ने हनुमानगढ़ी बनाने के लिए जमीन दान दी थी। 1855 में यहां के एक पुजारी ने नवाब के बेटे की बीमारी दूर कर उसे बचाया था। इस मंदिर को किले की आकृति में बनाया गया। हनुमानगढ़ी मंदिर को लेकर अयोध्या में लोगों की आस्था है कि जब भगवान राम पृथ्वी से गए तब उन्होंने अपने साम्राज्य की जिम्मेदारी भगवान हनुमान को सौंप दी थी। कहा जाता है, हनुमानगढ़ी हनुमान जी का निवास स्थान है। यहीं से हनुमान, भगवान राम के जन्मस्थान की देख-रेख करते हैं। आज भी अयोध्या के लोग हनुमान जी को अपने राजा की तरह देखते हैं। मान्यता है कि राम जन्मभूमि मंदिर की यात्रा तभी पूरी होती है, जब कोई श्रद्धालु हनुमानगढ़ी के दर्शन करता है। सवाल 5- यह यात्रा इतनी महत्वपूर्ण क्यों? जवाब- हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन ने इस ऐतिहासिक यात्रा के लिए अक्षय तृतीया का दिन चुना। यह धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है। इस यात्रा के राजनीतिक मायने इसलिए हैं कि हनुमानगढ़ी ने हमेशा से खुद को राममंदिर आंदोलन से दूर रखा। 90 के दशक के बाद इसके उभार के बाद भी हनुमानगढ़ी ने इसमें किसी भी तरह की भागीदारी नहीं रखी। 22 जनवरी, 2024 को राम मंदिर के निर्माण के बाद यह आंदोलन अब इतिहास के पन्नों का हिस्सा मात्र है। ऐसे में, हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन की राममंदिर की यात्रा और रामलला के दर्शन को बदलते हुए रुख को बताता है। सवाल 6- हनुमानगढ़ी गद्दी का विवादों से क्या नाता रहा? जवाब- हनुमानगढ़ी पीठ में दशकों से वर्चस्व की लड़ाई चली आ रही है। यहां 38 साल में 20 से ज्यादा साधु-संत और महंतों की हत्या हो चुकी है। सिर्फ इसलिए कि गद्दी, धन-दौलत और संपत्ति पर कब्जा हो सके। —————————– ये खबर भी पढ़ें… नेपाल से सटे जिलों में मदरसों पर क्यों चला बुलडोजर, यहां 50% तक बढ़ी मुस्लिम आबादी; यूपी पुलिस की रिपोर्ट में घुसपैठ की बात नेपाल सीमा से सटे यूपी के जिलों में 25 से 27 अप्रैल के बीच बिना मान्यता वाले मदरसों और अवैध कब्जों पर बुलडोजर चलाया गया। बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, लखीमपुर खीरी और महराजगंज में चले अभियान में सैकड़ों अवैध कब्जे हटवाए गए। बिना मान्यता के मदरसों पर ताला लगवाया गया। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन क्यों नहीं निकलते 52 बीघे से:पहले सिर्फ 2 महंत गए; कई संत-महात्माओं की हत्या का भी रहा है गढ़
