लोकसभा चुनाव में 7वें चरण में प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों पर वोटिंग होगी। साथ ही दुद्धी विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए 1 जून को ही मतदान होगा। इन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में 144 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें 134 पुरुष और 10 महिला प्रत्याशी हैं। सोनभद्र की दुद्धी विधानसभा सीट पर 6 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा ने बताया, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा-126 के तहत निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान से 48 घंटे घंटे पहले चुनाव प्रचार समाप्त होगा। गुरुवार 30 मई को सायं 6 बजे से 7वें चरण का चुनाव प्रचार समाप्त होगा। इस दौरान चुनाव प्रचार-प्रसार संबंधी समस्त गतिविधियों व अभियानों पर प्रतिबंध रहेगा। चुनाव प्रचार की अवधि समाप्त होने के बाद इन निर्वाचन क्षेत्रों में सभी राजनीतिक दलों के बाहरी कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों की मौजूदगी पूर्णतया प्रतिबंधित रहेगी। मतदान स्थल पर मोबाइल फोन ले जाने पर रोक 7वें चरण का चुनाव प्रचार अभियान समाप्ति के बाद इन निर्वाचन क्षेत्रों के जिला निर्वाचन अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि राजनीतिक दलों के सभी बाहरी पदाधिकारी व कार्यकर्ता इस दौरान इन निर्वाचन क्षेत्रों में उपस्थित न रहें। इसके लिए मतदान से पहले चुनाव प्रचार पर रोक संबंधी भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश को सभी राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों के संज्ञान में लाना सुनिश्चित करेंगे। उन्होंने बताया कि निर्वाचन आयोग द्वारा मतदान के दिन मतदेय स्थलों (पोलिंग बूथ) के अंदर मोबाइल फोन, स्मार्ट फोन, वायरलेस सेट आदि ले जाने पर रोक लगाई गई है। 11 सीटें सामान्य और 2 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने बताया, प्रदेश में 7वें चरण के अंतर्गत 13 लोकसभा सीटों में से 11 सीटें सामान्य श्रेणी की हैं। 02 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इस चरण के 13 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव , घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, राबर्ट्सगंज शामिल हैं। मतदान केंद्रों पर किए जाएंगे सभी प्रबंध नवदीप रिणवा ने बताया, भीषण गर्मी को देखते हुए मतदेय स्थलों में आवश्यक प्रबंध किए गए हैं। मतदान केंद्रों में शीतल पेयजल, महिला एवं पुरुष के लिए शौचालय तथा दिव्यांग व वृद्धजनों के लिए व्हीलचेयर व कुर्सियों की व्यवस्था की गई है। पोलिंग स्टेशन परिसर में मतदाताओं की कतार तक छाया के इंतजाम किए गए हैं। साथ ही लू से बचाव के लिए प्रत्येक मतदेय स्थल पर पैरामेडिक्स व आशा कार्यकर्ताओं को पर्याप्त मात्रा में ओआरएस एवं मेडिकल किट उपलब्ध कराई गई है। सेक्टर मजिस्ट्रेट के साथ पैरामेडिक कर्मी भी तैनात किए गए हैं। जनपदों में उपलब्ध आपातकालीन एंबुलेंस सेवा को अलग-अलग उपयुक्त स्थानों पर रखा गया है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उन्हें आसानी से मतदान केंद्रों व मतदेय स्थलों (पोलिंग बूथ) पर भेजा जा सके। मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने मतदान कार्मिक तथा मतदाताओं को सलाह दी है कि गर्मी से बचने के लिए पूर्ण सावधानी बरतते हुए हल्के सूती वस्त्रों का प्रयोग करें। लोकसभा चुनाव में 7वें चरण में प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों पर वोटिंग होगी। साथ ही दुद्धी विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए 1 जून को ही मतदान होगा। इन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में 144 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें 134 पुरुष और 10 महिला प्रत्याशी हैं। सोनभद्र की दुद्धी विधानसभा सीट पर 6 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा ने बताया, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा-126 के तहत निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान से 48 घंटे घंटे पहले चुनाव प्रचार समाप्त होगा। गुरुवार 30 मई को सायं 6 बजे से 7वें चरण का चुनाव प्रचार समाप्त होगा। इस दौरान चुनाव प्रचार-प्रसार संबंधी समस्त गतिविधियों व अभियानों पर प्रतिबंध रहेगा। चुनाव प्रचार की अवधि समाप्त होने के बाद इन निर्वाचन क्षेत्रों में सभी राजनीतिक दलों के बाहरी कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों की मौजूदगी पूर्णतया प्रतिबंधित रहेगी। मतदान स्थल पर मोबाइल फोन ले जाने पर रोक 7वें चरण का चुनाव प्रचार अभियान समाप्ति के बाद इन निर्वाचन क्षेत्रों के जिला निर्वाचन अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि राजनीतिक दलों के सभी बाहरी पदाधिकारी व कार्यकर्ता इस दौरान इन निर्वाचन क्षेत्रों में उपस्थित न रहें। इसके लिए मतदान से पहले चुनाव प्रचार पर रोक संबंधी भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश को सभी राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों के संज्ञान में लाना सुनिश्चित करेंगे। उन्होंने बताया कि निर्वाचन आयोग द्वारा मतदान के दिन मतदेय स्थलों (पोलिंग बूथ) के अंदर मोबाइल फोन, स्मार्ट फोन, वायरलेस सेट आदि ले जाने पर रोक लगाई गई है। 11 सीटें सामान्य और 2 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने बताया, प्रदेश में 7वें चरण के अंतर्गत 13 लोकसभा सीटों में से 11 सीटें सामान्य श्रेणी की हैं। 02 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इस चरण के 13 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव , घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, राबर्ट्सगंज शामिल हैं। मतदान केंद्रों पर किए जाएंगे सभी प्रबंध नवदीप रिणवा ने बताया, भीषण गर्मी को देखते हुए मतदेय स्थलों में आवश्यक प्रबंध किए गए हैं। मतदान केंद्रों में शीतल पेयजल, महिला एवं पुरुष के लिए शौचालय तथा दिव्यांग व वृद्धजनों के लिए व्हीलचेयर व कुर्सियों की व्यवस्था की गई है। पोलिंग स्टेशन परिसर में मतदाताओं की कतार तक छाया के इंतजाम किए गए हैं। साथ ही लू से बचाव के लिए प्रत्येक मतदेय स्थल पर पैरामेडिक्स व आशा कार्यकर्ताओं को पर्याप्त मात्रा में ओआरएस एवं मेडिकल किट उपलब्ध कराई गई है। सेक्टर मजिस्ट्रेट के साथ पैरामेडिक कर्मी भी तैनात किए गए हैं। जनपदों में उपलब्ध आपातकालीन एंबुलेंस सेवा को अलग-अलग उपयुक्त स्थानों पर रखा गया है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उन्हें आसानी से मतदान केंद्रों व मतदेय स्थलों (पोलिंग बूथ) पर भेजा जा सके। मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने मतदान कार्मिक तथा मतदाताओं को सलाह दी है कि गर्मी से बचने के लिए पूर्ण सावधानी बरतते हुए हल्के सूती वस्त्रों का प्रयोग करें। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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बिहार सरकार ने दिया लुधियाना के उद्योगपतियों को ऑफर:कपड़ा और होजरी इंडस्ट्री लगाने की पेशकश की, 1 लाख करोड़ निवेश का लक्ष्य बिहार सरकार ने लुधियाना के उद्योगपतियों को बिहार में इंडस्ट्री लगाने की पेशकश की है। जिसके चलते बिहार सरकार ने 1 लाख करोड़ निवेश का लक्ष्य भी रखा है। इस बाबत उद्योगपतियों और कारोबारियों से बिहार सरकार की तरफ से लुधियाना के एक नामी होटल में बैठक का आयोजन हुआ, जिसमें बडी तादाद में कारोबारी पहुंचे। लुधियाना के कारोबारियों के लिए ढेर सारी ऑफर लेकर बिहार सरकार मंगलवार को शहर के होटल हयात पहुंची। सरकार की तरफ से उद्योग विभाग बिहार की अधिकारी बंधन परायशी और निदेशक उद्योग विभाग के आलोक रंजन विशेष तौर पर पहुंचे, जिन्होंने कारोबारियों से बैठक कर उन्हें सरकार की तरफ से ढेर सारी सहूलियतों ऑफर की। जिसमें कारोबारियों को बिहार सरकार जहां मुफ्त के भाव यानी की बिल्कुल सस्ते भाव पे इंडस्ट्री लगाने के लिए जगह मुहैया करवाकर देगी तो वहीं कारोबारियों के लिए कुशल श्रमिक, सिंगल विंडो क्लीयरेंस, स्टाम्प ड्यूटी में बड़ी राहत के साथ-साथ बिजनेस फ्रेंडली माहौल के सुअवसर भी मुहैया करवाए जाएंगे। 1 लाख करोड़ निवेश का रखा लक्ष्य
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यूपी में अखिलेश कैसे 5 से 39 सीटों पर पहुंचे:राहुल का साथ, मुस्लिमों के वोट बसपा में बंटने नहीं दिए; पढ़िए…वह घेराबंदी जिसमें भाजपा उलझी लोकसभा चुनाव 2024 में सपा अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन कर रही है। 62 सीटों पर लड़ रही सपा को 39 सीटें मिलती नजर आ रही हैं। यूपी में सपा की इस बड़ी जीत ने देश की राजनीति का समीकरण बदल दिया। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद भी सपा ने ऐसा प्रदर्शन कर लोगों को चौंकाया। अखिलेश की इस जीत के पीछे की स्ट्रैटजी क्या रही? वो कौन से मुद्दे रहे, जिन्होंने अखिलेश को बड़ा चेहरा बना दिया? कैसे सपा ने रिकॉर्ड बनाया? अब उनकी आगे की रणनीति क्या होगी? सिलसिलेवार समझते हैं… सबसे पहले एक नजर सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर
यूपी में सपा ने गठबंधन के तहत 62 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। 17 सीटें कांग्रेस और एक सीट (भदोही) ममता बनर्जी की पार्टी TMC को दी। इसके पहले 2004 में सपा ने सबसे ज्यादा 35 सीटें जीती थी। 2014 और 2019 में वह सिमटकर 5 सीटों पर आ गई थी। 2019 में सपा ने बसपा के साथ गठबंधन किया था। अब जानिए सपा ने किन मुद्दों पर चुनाव लड़ा… पेपर लीक और परीक्षाओं में देरी का मुद्दा उठाया, अग्निवीर योजना पर ऐलान
अखिलेश यादव ने शुरू से पेपर लीक और परीक्षा में देरी को मुद्दा बनाया। अपनी सभी जनसभाओं में अखिलेश ने इस पर भाजपा को टारगेट किया। यूपी में विधानसभा के 2017 चुनावों में इसी मुद्दे पर युवाओं ने पहली बार भाजपा को चुना था। लेकिन, भाजपा की दूसरी सरकार के आते-आते एक के बाद एक कई परीक्षाओं के पेपर लीक हुए। यही कारण रहा, राज्य में पेपर लीक और बेरोजगारी के चलते युवाओं का गुस्सा सातवें आसमान पर रहा। पेपर लीक और धांधली को लेकर युवा सड़कों पर संघर्ष करते नजर आए। वहीं, भर्तियों का लंबा इंतजार भी वर्तमान सरकार के लिए असंतोष का बड़ा कारण बना। अखिलेश ने अग्निवीर योजना को कैंसिल कराने का वादा किया, जो जीत का बड़ा फैक्टर माना जा रहा है। विकास और महंगाई का मुद्दा
अखिलेश यादव अपनी जनसभाओं में विकास और महंगाई के मुद्दे पर NDA को जमकर टारगेट किया। उन्होंने सरकार की योजनाओं को नहीं, अपनी सरकार में किए गए कामों को ज्यादा गिनाया। वह यूपी तक ही सीमित रहे। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के चुनाव के बाद से अखिलेश लगातार हर मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देते रहे। अब 5 पॉइंट में समझिए रणनीति क्या थी 1- इस बार पूरे परिवार ने मोर्चा संभाला
2019 के लोकसभा चुनाव में सपा को सबसे बड़ा नुकसान परिवार में कलह से हुआ। अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव ने अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा। लेकिन, इस बार यादव फैमिली एकजुट रही। भाजपा के बयानों से परिवार और ज्यादा करीब होता गया। अखिलेश ने शिवपाल की बात मानी, तो उन्होंने भतीजे की। कन्नौज और मैनपुरी: साल 2019 में कन्नौज से सपा ने डिंपल यादव और भाजपा ने सुब्रत पाठक को मैदान में उतारा था। सुब्रत पाठक ने 12 हजार 353 वोट से डिंपल को हरा दिया था। उन्हें 5 लाख 63 हजार 87 वोट मिले, डिंपल को 5 लाख 50 हजार 734 वोट मिले। एक बार मुलायम सिंह यादव, तीन बार अखिलेश यादव और दो बार खुद सांसद रहने के बावजूद डिंपल यह सीट नहीं बचा पाई थीं। इस बार डिंपल यादव को मैनपुरी से उतारा। कन्नौज में पहले आदित्य यादव को कैंडिडेट बनाया गया, लेकिन समीकरणों को देखते हुए अखिलेश यादव खुद यहां से चुनाव लड़े। बदायूं: सपा का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर साल 2014 में मोदी लहर में भी धर्मेंद्र यादव ने जीत दर्ज की थी। 2019 में वह प्रत्याशी तो बने पर 4 लाख 92 हजार 898 वोट ही पा सके। भाजपा से स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा को 5 लाख 11 हजार 352 वोट मिले थे। धर्मेंद्र 18 हजार 454 वोट से हार गए। इस बार सपा ने पहले अपने सबसे मजबूत चेहरे शिवपाल यादव को टिकट दिया, लेकिन उन्होंने अपने बेटे आदित्य यादव की पॉलिटिक्स में एंट्री कराई। आदित्य ने नामांकन किया। उनके लिए शिवपाल ने प्रचार किया। इसके अलावा अखिलेश यादव ने भी जनसभा की। दूसरी तरफ भाजपा ने अपने सिटिंग सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट काटकर दुर्विजय सिंह शाक्य को मैदान में उतारा। फिरोजाबाद: इस सीट पर साल 2019 में सपा के सांसद अक्षय यादव का मुकाबला भाजपा के डॉ. चंद्रसेन जादौन से था। अक्षय को तब 4 लाख 67 हजार 38 वोट मिले, भाजपा के चंद्रसेन जादौन को 4 लाख 95 हजार 819 वोट मिले थे। मुस्लिम और यादव बाहुल्य इस सीट पर अक्षय 28 हजार 781 वोट से चुनाव हार गए। इसका कारण ये था कि चाचा शिवपाल नाराज थे। खुद चुनाव लड़कर यहां 91 हजार 869 वोट पाए थे। इस बार चाचा साथ हैं और अक्षय यादव को फिर सीट जीतने की जिम्मेदारी दी गई। लगातार प्रचार किया गया। आजमगढ़: इस सीट पर साल 2019 में अखिलेश यादव खुद चुनाव जीते थे। उन्होंने भाजपा के दिनेश लाल निरहुआ को 2 लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। इसके बाद विधानसभा चुनाव में वह करहल से चुनाव जीते और नेता प्रतिपक्ष बने। आजमगढ़ सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें निरहुआ ने धर्मेंद्र यादव को हरा दिया। 2024 में अखिलेश ने फिर धर्मेंद्र पर ही भरोसा जताया। दो प्लस पॉइंट यहां और बढ़े हैं…नंबर एक इस बार कांग्रेस साथ है, दूसरा गुड्डू जमाली सपा से जुड़े। 2- प्रत्याशियों के सिलेक्शन पर PDA फॉर्मूला अपनाया लोकसभा में प्रत्याशियों के सिलेक्शन में अखिलेश का PDA फॉर्मूले पर फोकस रहा। सपा ने 17 सीटों पर दलित, 29 पर ओबीसी, 4 पर मुस्लिम और बाकी सवर्ण कैंडिडेट उतारे। मुस्लिम प्रत्याशियों में गाजीपुर से अफजाल अंसारी, कैराना से इकरा हसन, संभल से जियाउर्रहमान बर्क और रामपुर से मोहिबुल्लाह नदवी को उतारा। 3- संगठन के लेवल पर स्ट्रैटजी: रनरअप सीटों पर शिविर और कैडर वोट पर फोकस
अखिलेश ने पहली बार ग्राउंड लेवल पर जाकर कैडर को मजबूत करने की प्रक्रिया शुरू की। ट्रेनिंग सेशन में सबसे ज्यादा यूथ और 40 साल से कम उम्र के कार्यकर्ताओं को प्रतिनिधि बनाने और सेक्टर-बूथ की जिम्मेदारी सौंपने का काम किया। हर बूथ पर 10 नए कैडर मेंबर बनाए। कन्नौज, फिरोजाबाद, बदायूं, मैनपुरी, आजमगढ़ में परिवार के लोग ही शिविर में मोर्चा संभाले रहे। छोटी-छोटी सभाएं कर लोगों को सपा से जोड़ने का काम किया गया। 4. रनर टू विनर स्ट्रैटजी
2019 के लोकसभा चुनाव में 37 सीटों पर उतरी समाजवादी पार्टी 5 सीटें जीतीं, 31 पर रनरअप रही थी। ये चुनाव सपा ने बसपा-रालोद के साथ गठबंधन में लड़ा था। 2024 के सियासी सफर में अखिलेश यादव का सबसे ज्यादा फोकस रनरअप सीटों पर रहा। अखिलेश यादव ने रनरअप सीटों को जीतने के लिए प्रत्याशी, जातीय, धार्मिक और संगठन लेवल पर अलग रणनीति बनाई। 31 रनरअप सीटों में 6 ऐसी थीं, जहां सपा 50 हजार से भी कम वोटों से हारी थी। 7 सीटें ऐसी थीं, जहां कांग्रेस साथ होती तो सपा जीत सकती थी। 2024 में बसपा और रालोद से गठबंधन तो टूटा, लेकिन साइकिल को कांग्रेस के हाथ का साथ मिल गया। 5- जातीय समीकरण पर स्ट्रैटजी: PDA के साथ सॉफ्ट हिंदुत्व से सवर्णों पर नजर रखी स्वामी प्रसाद मौर्य से किनारा, इटावा में शिव मंदिर की नींव रखी
अखिलेश यादव ने सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि रखी। भाजपा ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर सपा को जमकर टारगेट किया। लेकिन, अखिलेश ने कभी भी इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्होंने इटावा में शिव मंदिर की नींव रख दी। इसके बारे में प्रचार भी किया। इसके अलावा स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयानों पर अखिलेश यादव और सपा ने खुद को दूर रखा। सवर्णों को साधने पर टारगेट किया: चंदौली से राजपूत और भदोही से ब्राह्मण प्रत्याशी उतारे
ब्राह्मण चेहरे के रूप में सपा में स्टैब्लिश मनोज पांडे के बगावत करने के बाद अखिलेश ने ब्राह्मण-ठाकुर वोटरों को रिझाने की योजना बनाई। उन्होंने भदोही सीट TMC को देकर ललितेश त्रिपाठी को मैदान में उतारा। ललितेश पूर्व सीएम कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र हैं। ब्राह्मण वोट बैंक में पूर्वांचल में त्रिपाठी परिवार की खास पकड़ है। वहीं, पूर्व विधायक और मंत्री रहे अनिल सिंह को चंदौली से टिकट दिया। पिछले चुनाव में चंदौली में सपा रनरअप रही थी। अनिल सिंह के माध्यम से अखिलेश क्षत्रिय वोट बैंक साधने की कोशिश करते रहे। यही नहीं, अखिलेश सॉफ्ट हिंदुत्व के रूप में सपा को प्रजेंट करते रहे। नैमिषारण्य से चुनावी मिशन का शुभारंभ, इटावा में शिव मंदिर का निर्माण, नवरात्र पूजा की तस्वीरें जारी करना, इससे एक मैसेज देने की कोशिश है कि वह सिर्फ मुस्लिम परस्त नहीं हैं। दलित/पिछड़ों से जुड़ाव: अंबेडकर वाहिनी समाजवादी टीम फील्ड में उतरी
2019 रिजल्ट को देखते हुए अखिलेश यादव ने दलित और पिछड़े वोट बैंक से सीधा संवाद बनाने का प्रयास शुरू किया। लगातार दलित और पिछड़ा वर्ग को एक राह और एक विचारधारा की लड़ाई लड़ने की मांग करते रहे। लगातार जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया। दलितों से जुड़ने के लिए अंबेडकर वाहिनी समाजवादी टीम तैयार की। सपा के शिविरों में इस टीम को फील्ड में जाने की ट्रेनिंग दी गई। दलित कैडर को मजबूत करने में सबसे ज्यादा यूथ को जिम्मेदारी दी गई। एक तरफ सेक्टर और बूथ लेवल पर ट्रेनिंग हुई, दूसरी तरफ अंबेडकर वाहिनी समाजवादी की अलग से ट्रेनिंग हुई। ये लोग बूथ लेवल पर दलित बस्तियों और उनके क्षेत्र में जाकर कैंपेनिंग करते रहे। इस अभियान में दलित और पिछड़ों को एक होकर, कैसे सामाजिक न्याय, जातीय जनगणना और आरक्षण का लाभ बताया जाए, इस बारे में बताया जा रहा है। राजनीतिक जानकार यह पहले ही मान रहे थे कि अगर सपा पिछड़ों के साथ दलितों को एक करके वोट बैंक में सेंध लगाती है, तो मुसलमान के भरोसे 2024 चुनाव में कई सीटों पर भाजपा का खेल बिगाड़ देगी। मुस्लिम वोट रोकने की स्ट्रैटजी: सीएए-एनआरसी से भाजपा के खिलाफ माहौल बना रहे
सपा के पास सबसे मजबूत फैक्टर MY (मुस्लिम-यादव) रहा। 2019 में कांग्रेस से गठबंधन न होने के कारण मुस्लिम वोट बैंक में कुछ बिखराव दिखाई पड़ा था। इससे सपा को 7 सीटों पर नुकसान भी हुआ। 2024 में सपा-कांग्रेस का गठबंधन हो गया। मुसलमानों का वोट बिखरने न पाए, यह मैसेज अल्पसंख्यक समुदाय में पहुंचाया। प्रदेश के सभी राज्यों के अल्पसंख्यक नेताओं को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। साथ ही मुस्लिम वोटर को एकजुट करने के लिए शहर-शहर सभाएं की गईं। CAA और NRC के मुद्दे को भी पब्लिक के बीच में पहुंचाया गया। ऐसे केस कंपाइल किए गए, जिनमें मुस्लिम विधायकों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए। साथ ही जिन मुस्लिम आरोपियों के घर बुलडोजर चला, उनकी भी कहानी मुस्लिमों के बीच सुनाई गई। 7 सीटें, जहां कांग्रेस ने सपा को मजबूत किया
रणनीति के तहत सपा ने उन सीटों पर भी फोकस किया, जहां अगर 2019 में कांग्रेस का साथ होता तो पार्टी लीड कर जाती। इन सीटों में बाराबंकी, बदायूं और बांदा थीं। पिछली बार दोनों दलों के अलग-अलग चुनाव लड़ने से मुस्लिम वोटर बिखर गया था। ऐसा ही हाल कैराना, फैजाबाद, रॉबर्ट्सगंज और कौशांबी में भी देखने को मिला था। यहां भी सपा 12 से 22 हजार तक वोटों से हारी थी। कांग्रेस के कैंडिडेट ने यहां 16 से लेकर 70 हजार वोट तक पाए थे। ये वोट अगर गठबंधन में मिलते, तो दोनों पार्टियों को फायदा होता। क्या अखिलेश यादव केंद्र की पॉलिटिक्स करेंगे?
यूपी में अखिलेश यादव सफलता की ओर हैं। उनकी आगे की रणनीति क्या होगी? इस सवाल पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट अरविंद जय तिलक कहते हैं- मुझे लगता है, अखिलेश यादव को केंद्र की राजनीति की ओर शिफ्ट होना चाहिए। विपक्ष में अभी दूर-दूर तक मजबूत चेहरा नहीं दिखाई देता। राहुल गांधी हैं, लेकिन उनका वेटेज कम है। बिहार में तेजस्वी यादव और ओडिशा में नवीन पटनायक जैसे नेता अभी खुद को साबित नहीं कर सके। ऐसे में अखिलेश बेहतर विकल्प होंगे। वो आगे कहते हैं- अगर अखिलेश दोबारा कन्नौज छोड़कर जाते हैं, तो जनता में गलत मैसेज जाएगा। हां वो ऐसा कर सकते हैं कि चाचा शिवपाल सिंह को यूपी की कमान सौंपे और खुद पिता की तरह केंद्र की राजनीति की ओर मूव करें। इसी सवाल पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रो. टीपी सिंह कहते हैं- मुझे नहीं लगता कि अखिलेश यादव केंद्र की ओर शिफ्ट होंगे। उनके सांसदों की संख्या बढ़ी जरूर है, लेकिन इंडी गठबंधन की सरकार बनती, तब वह ऐसा कुछ सोच सकते थे।
IMD forecasts heavy rain, thunderstorms in Telangana
IMD forecasts heavy rain, thunderstorms in Telangana Hyderabad may see rain towards the evening on Monday, as per Independent weather forecasters. The IMD predicts that Telangana will receive normal to above normal rainfall in July.