<p style=”text-align: justify;”><strong>Bombay High Court News:</strong> जमानत के सिद्धांत को नियम और इनकार को अपवाद बताते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि बिना सुनवाई के किसी कैदी को लंबे समय तक हिरासत में रखना ‘मुकदमे से पहले सजा’ के समान है. जस्टिस मिलिंद जाधव की पीठ ने नौ मई को राज्य की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों के होने का भी संज्ञान लिया और कहा कि कोर्ट को संतुलन बनाने की जरूरत है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या है मामला?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>पीठ ने 2018 में अपने भाई की हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार विकास पाटिल को जमानत देते हुए ये टिप्पणियां कीं. जस्टिस जाधव ने कहा कि आजकल मुकदमों को पूरा होने में काफी समय लग रहा है और कुछ क्षेत्रों में जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी हैं. पीठ ने कहा कि वह नियमित रूप से ऐसे मामलों की सुनवाई करती है, जहां विचाराधीन कैदी लंबे समय से हिरासत में हैं और वह जेलों की स्थिति से भी अच्छी तरह वाकिफ है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस जाधव ने आर्थर रोड जेल के अधीक्षक की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि जेल में स्वीकृत क्षमता से छह गुना ज्यादा कैदी हैं. कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक बैरक में केवल 50 कैदियों को रखने की अनुमति होती है, लेकिन आज की तारीख में वहां 220- 250 कैदी हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कोर्ट दो ध्रुवों के बीच संतुलन कैसे बना सकता है?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस जाधव ने कहा, ‘‘इस तरह की असंगति हमें इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए प्रेरित करती है: कोर्ट दो ध्रुवों के बीच संतुलन कैसे बना सकता है?’’ कोर्ट ने कहा कि ये मामले विचाराधीन कैदियों की स्वतंत्रता से संबंधित हैं, जो लंबे समय से जेल में बंद हैं, जिससे उनके त्वरित न्याय पाने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार पर असर पड़ता है. कोर्ट ने कहा कि मूल नियम यह है कि जमानत नियम है और इनकार अपवाद है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस जाधव ने दो विचाराधीन कैदियों द्वारा लिखे गए लेख ‘प्रूफ ऑफ गिल्ट’ का हवाला दिया, जिसमें मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे व्यक्तियों की लंबी कैद पर सवाल उठाया गया था. उन्होंने कहा कि केवल लंबी कारावास अवधि को जमानत के लिए पूर्ण आधार नहीं माना जा सकता, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसपर त्वरित सुनवाई के अधिकार के साथ विचार किया जाना चाहिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>यह भी पढ़ें -</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a href=”https://www.abplive.com/states/maharashtra/sharad-pawar-and-ajit-pawar-will-see-together-in-program-in-mumbai-with-devendra-fadnavis-2941996″>महाराष्ट्र में फिर एक साथ आएंगे शरद पवार और अजीत पवार, देवेंद्र फडणवीस भी रहेंगे मौजूद</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Bombay High Court News:</strong> जमानत के सिद्धांत को नियम और इनकार को अपवाद बताते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि बिना सुनवाई के किसी कैदी को लंबे समय तक हिरासत में रखना ‘मुकदमे से पहले सजा’ के समान है. जस्टिस मिलिंद जाधव की पीठ ने नौ मई को राज्य की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों के होने का भी संज्ञान लिया और कहा कि कोर्ट को संतुलन बनाने की जरूरत है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या है मामला?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>पीठ ने 2018 में अपने भाई की हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार विकास पाटिल को जमानत देते हुए ये टिप्पणियां कीं. जस्टिस जाधव ने कहा कि आजकल मुकदमों को पूरा होने में काफी समय लग रहा है और कुछ क्षेत्रों में जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी हैं. पीठ ने कहा कि वह नियमित रूप से ऐसे मामलों की सुनवाई करती है, जहां विचाराधीन कैदी लंबे समय से हिरासत में हैं और वह जेलों की स्थिति से भी अच्छी तरह वाकिफ है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस जाधव ने आर्थर रोड जेल के अधीक्षक की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि जेल में स्वीकृत क्षमता से छह गुना ज्यादा कैदी हैं. कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक बैरक में केवल 50 कैदियों को रखने की अनुमति होती है, लेकिन आज की तारीख में वहां 220- 250 कैदी हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कोर्ट दो ध्रुवों के बीच संतुलन कैसे बना सकता है?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस जाधव ने कहा, ‘‘इस तरह की असंगति हमें इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए प्रेरित करती है: कोर्ट दो ध्रुवों के बीच संतुलन कैसे बना सकता है?’’ कोर्ट ने कहा कि ये मामले विचाराधीन कैदियों की स्वतंत्रता से संबंधित हैं, जो लंबे समय से जेल में बंद हैं, जिससे उनके त्वरित न्याय पाने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार पर असर पड़ता है. कोर्ट ने कहा कि मूल नियम यह है कि जमानत नियम है और इनकार अपवाद है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस जाधव ने दो विचाराधीन कैदियों द्वारा लिखे गए लेख ‘प्रूफ ऑफ गिल्ट’ का हवाला दिया, जिसमें मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे व्यक्तियों की लंबी कैद पर सवाल उठाया गया था. उन्होंने कहा कि केवल लंबी कारावास अवधि को जमानत के लिए पूर्ण आधार नहीं माना जा सकता, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसपर त्वरित सुनवाई के अधिकार के साथ विचार किया जाना चाहिए.</p>
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Maharashtra News: ‘मुकदमे से पहले सजा’, बिना सुनवाई कैदी को हिरासत में रखने पर हाई कोर्ट ने कही बड़ी बात
