अलीगढ़ का डॉक्टर डेथ पैरोल लेकर गांव आया:गलतबयानी से 8 साल जेल में रहा निर्दोष व्यक्ति, राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट से छुड़वाया

अलीगढ़ का डॉक्टर डेथ पैरोल लेकर गांव आया:गलतबयानी से 8 साल जेल में रहा निर्दोष व्यक्ति, राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट से छुड़वाया

डॉक्टर डेथ उर्फ देवेंद्र शर्मा पैरोल जंप करके कई दफा अपने अलीगढ़ स्थित पुरैनी गांव आया था। अपना पुश्तैनी घर देखा, लोगों से मिला और चला गया। डॉक्टर डेथ पर 125 से ज्यादा लोगों की किडनी निकालकर बेचने और 50 से ज्यादा मर्डर करके हजारा नहर में मगरमच्छों को खिलाने का आरोप है। गांव के बुजुर्ग कहते हैं- वो हमारे लिए अपराधी नहीं था। कभी किसी को नहीं सताया। लोगों की समय-समय पर मदद करता था। गांव के ज्यादातर लोगों से उसके अच्छे संबंध थे। लेकिन, डॉक्टर डेथ के एक बयान ने 21 साल पहले एक निर्दोष व्यक्ति को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था। उसे कोर्ट से उम्रकैद हो गई थी। खुद को निर्दोष साबित करने में उसे 8 साल लग गए। राहुल गांधी ने मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाकर उस निर्दोष व्यक्ति को छुड़वाया था। कई दशक पुराने इस किस्से की बात आज इसलिए हो रही है, क्योंकि पैरोल जंप करके भागे डॉक्टर डेथ को दिल्ली पुलिस ने 19 मई को राजस्थान से गिरफ्तार किया था। डॉक्टर डेथ का पुश्तैनी घर अब कैसा है? मगरमच्छों वाली हजारा नहर का इतिहास क्या है? 8 साल जेल में बंद रहने वाले व्यक्ति का दर्द क्या है? इस खास रिपोर्ट में पढ़िए… बिहार में नौकरी, राजस्थान में क्लिनिक, अलीगढ़ में सिलेंडर बेचे, फिर किडनी रैकेट से जुड़ा अब देवेंद्र के पैतृक गांव की बात पैरोल लेकर अपने गांव आया, थाने में भी लगाई हाजिरी
डॉक्टर डेथ उर्फ देवेंद्र शर्मा अलीगढ़ जिले में गांव पुरैनी का रहने वाला है। अतरौली-छर्रा मार्ग पर ये गांव पड़ता है। जर्जर रास्ते से होते हुए हम गांव के बीचों-बीच एक खंडहर मकान पर पहुंचे। बाउंड्रीवॉल टूटी पड़ी थी। लोहे के गेट में जंग लग चुका था। लकड़ी के दरवाजे भी जगह-जगह से टूटे पड़े थे। बाहर झाड़ियां उगी हुई थीं। घर के बाहर लोग इकट्ठा थे। मीडियाकर्मी बार-बार यहां आ रहे थे। लोग भी वहां पहुंच रहे थे, ये देखने के लिए कि आज क्या हो रहा? घर के सामने चबूतरे पर बैठे बुजुर्ग महेंद्र सिंह ने दैनिक भास्कर से बात की। महेंद्र सिंह डाक विभाग से रिटायर कर्मचारी हैं। जब विभाग में कार्यरत थे, तब कई बार देवेंद्र शर्मा को डाक पहुंचाने भी आए थे। वो कहते हैं- देवेंद्र शर्मा ने पढ़ाई करके शादी की। फिर डॉक्टरी की पढ़ाई करने बिहार चला गया। वहां से आकर गैस एजेंसी चलाई। करीब 3 महीने ये एजेंसी चली होगी। तब पता चला कि वो सब फर्जी है। छापामार कार्रवाई भी हुई। तब पहली बार पता चला कि ये बदमाशी करता है। उससे पहले देवेंद्र का कोई गलत किस्सा नहीं था। दिल्ली पुलिस कहती है कि देवेंद्र ने 50 मर्डर करने की बात कबूली? इस पर महेंद्र सिंह कहते हैं- ये हम नहीं कह सकते कि उसने कितने मर्डर किए? हां, हमने एक मर्डर सुना है। तब अतरौली क्षेत्र में एक गाड़ी में लाश मिली थी। और कोई केस हमने नहीं सुना। गांव के कई और लोग ऑफ कैमरा कहते हैं- देवेंद्र ने गांव के किसी व्यक्ति को कभी नहीं सताया। वो लोगों की मदद भी करता था। गांव के बाहर उसने क्या किया, ये हमें खबर नहीं है। पढ़िए उस इंसान की दर्द, जो 8 साल जेल में रहा नाम के फेर में मुझे पकड़ा, कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई
पुरैनी गांव के बाद हम इससे 3 किलोमीटर दूर दिलालपुर गांव पहुंचे। डॉक्टर डेथ के एक बयान पर इस गांव के श्यौराज सिंह बेकसूर होकर भी 8 साल तक जेल में रहे थे। अपनी छोटी-सी परचून की दुकान पर बैठे 55 साल के श्यौराज सिंह बताते हैं- एक टैक्सी ड्राइवर के जुर्म में जब हरियाणा पुलिस ने देवेंद्र शर्मा को पकड़ा और पूछताछ की, तो उसने अपने साथियों में श्यौराज सिंह नाम बताया। इसी आधार पर 4 अगस्त, 2004 को हरियाणा की पलवल पुलिस गांव आई और मुझे उठाकर ले गई। गांव दिलालपुर से पलवल तक गाड़ी में पुलिसवालों ने मेरी पिटाई की। पलवल ले जाकर मुझे थर्ड डिग्री दी। मैं बार-बार कहता रहा कि निर्दोष हूं। किसी ने मेरी एक नहीं सुनी। मुझे भोंडसी जेल भेज दिया। साल-2008 में फरीदाबाद कोर्ट ने हत्या के जुर्म में मुझे उम्रकैद की सजा सुना दी। इंस्पेक्टर को 4 लाख रुपए देकर बचा था असली आरोपी
श्यौराज सिंह बताते हैं- असली आरोपी का नाम भी श्यौराज सिंह था, लेकिन पिता का नाम दूसरा था। मेरे पिता का नाम अतर सिंह और आरोपी के पिता का नाम सत्तू उर्फ ठाकुर दास था। मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ, ये मुझे बाद में पता चला। असली आरोपी श्यौराज सिंह का एक रिश्तेदार सत्यपाल हरियाणा पुलिस में इंस्पेक्टर था। वो पास के ही गांव गाजीपुर का रहने वाला था। उसके पास ही इस केस की जांच थी। असली आरोपी श्यौराज सिंह ने खुद को बचाने के लिए इंस्पेक्टर को 4 लाख रुपए दिए थे। इसके बदले तय हुआ था कि वो इसी नाम का दूसरा आरोपी पुलिस को देगा। उस इंस्पेक्टर की अब मौत हो चुकी है। कोर्ट ने कैसे निर्दोष साबित किया? इस पर श्यौराज सिंह बताते हैं- हमने कोर्ट से डॉक्टर देवेंद्र शर्मा के बयान की कॉपी निकलवाई। इसमें उसने सह-आरोपी के रूप में श्यौराज सिंह पुत्र सत्तू उर्फ ठाकुर दास का नाम लिया था। बस यही हमारे लिए बड़ा प्रूफ था। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जेल में बंद मेरे पिता का नाम ये नहीं है। मई-2013 में मैं जेल से छूटकर बाहर आया। मायावती ने दोबारा जांच कराई, राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में मदद की श्यौराज सिंह को बेकसूर साबित कराने में उनकी पत्नी सुनीता ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। सुनीता बताती हैं- जब पुलिस मेरे पति को पकड़कर ले गई, तो मैं पुलिस अधिकारियों से मिली। उन्हें बताया कि मेरे पति निर्दोष हैं। अलीगढ़ पुलिस ने मामला हरियाणा पुलिस का बताकर पल्ला झाड़ लिया। उन दिनों यूपी की मुख्यमंत्री मायावती थीं। सुनीता बताती हैं- मैं मुख्यमंत्री से मिलने लखनऊ पहुंच गई। वहां आवास पर मुझसे कहा गया कि मिलने के लिए अपने इलाके के सांसद से लेटरपैड पर लिखवाकर लाइए। मैं 3 दिन तक सांसद आवास के बाहर बैठी रही। 3 दिन बाद लेटर बना। उसे लेकर मैं मायावती आवास पर पहुंची। वहां पूरी बात सुनाई। उसके ठीक 15 दिन बाद ही अलीगढ़ पुलिस के पास इस केस की जांच लखनऊ से आ गई। पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में माना कि हत्याकांड में जेल गए मेरे पति निर्दोष हैं। असली आरोपी श्यौराज सिंह कोई और है। सुनीता बताती हैं- जुलाई, 2011 में राहुल गांधी जमीन अधिग्रहण आंदोलन को लेकर पदयात्रा करते हुए अलीगढ़ आए थे। मैं भी वहां पहुंच गई। मैंने राहुल के पैर पकड़ लिए। उन्होंने मेरी पूरी बात सुनी और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट का नंबर देते हुए मदद का भरोसा दिया। कुछ दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट के वकील का फोन आया। उन्होंने मुझसे सारे कागज मंगवाए। फिर ये केस सुप्रीम कोर्ट में चला। मई-2013 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मेरे पति गलत जेल गए हैं। उम्रकैद की सजा होने के बावजूद उन्हें 8 साल बाद बाइज्जत बरी करते हुए छोड़ा गया। अब बात हजारा नहर की: मगरमच्छ इतने कि NDRF जवान भी डर गए डॉक्टर देवेंद्र शर्मा उर्फ डॉक्टर डेथ टैक्सी ड्राइवरों के मर्डर करके उनकी लाश कासगंज जिले की हजारा नहर में फेंक देता था। हजारा नहर को लोअर गंगा कैनाल (LGC) बोलते हैं। बुलंदशहर के कस्बा नरौरा में गंगा नदी पर डैम बना है। इसी डैम से ये हजारा नहर निकलती है। निचली गंगा नहर प्रणाली साल 1878 में शुरू की गई थी। बुलंदशहर, अलीगढ़, कासगंज, एटा, फिरोजाबाद होकर इटावा जाने वाली हजारा नहर आगे जाकर दूसरी नदियों में मिल जाती है। जिला कासगंज में अंग्रेजों ने इस नहर पर ऐसा पुल डिजाइन किया है कि लोग हैरान हो जाते हैं। नीचे एक नदी बहती है, उसके ऊपर पुल बनाकर हजारा नदी का पानी गुजरता है। यानि ऊपर-नीचे दो नदियां बहती हैं, जो खुद में अजूबा है। हजारा नदी में मगरमच्छों की मौजूदगी काफी ज्यादा बताई जाती है। हालांकि इनकी सटीक संख्या का कभी अनुमान नहीं हुआ। एक बार ईद के दिन यहां 9 लड़के डूब गए थे। NDRF के जवान जब उन लड़कों को तलाशने के लिए नदी में कूदे, तो वो भी मगरमच्छ देखकर बाहर निकल आए थे। यहां कई बार मगरमच्छ नदी के बाहर तक निकल आते हैं। सिंचाई विभाग ने चेतावनी बोर्ड भी लगाए हुए हैं। ———————— ये खबर भी पढ़ें… विंध्याचल में कॉरिडोर बना, रोज 50 हजार श्रद्धालु आ रहे, मिर्जापुर में मंदिर के रास्ते तैयार, पक्का घाट बन रहा 4 साल पहले विंध्याचल मंदिर तक लोग संकरी गलियों से पहुंचते थे। भीड़ होती, तो एक-दूसरे से टकराते हुए आगे बढ़ते। फिर यहां कॉरिडोर बनना शुरू हुआ। मंदिर पहुंचने के 4 रास्तों की पहचान की गई और उनका चौड़ीकरण हुआ। पढ़ें पूरी खबर डॉक्टर डेथ उर्फ देवेंद्र शर्मा पैरोल जंप करके कई दफा अपने अलीगढ़ स्थित पुरैनी गांव आया था। अपना पुश्तैनी घर देखा, लोगों से मिला और चला गया। डॉक्टर डेथ पर 125 से ज्यादा लोगों की किडनी निकालकर बेचने और 50 से ज्यादा मर्डर करके हजारा नहर में मगरमच्छों को खिलाने का आरोप है। गांव के बुजुर्ग कहते हैं- वो हमारे लिए अपराधी नहीं था। कभी किसी को नहीं सताया। लोगों की समय-समय पर मदद करता था। गांव के ज्यादातर लोगों से उसके अच्छे संबंध थे। लेकिन, डॉक्टर डेथ के एक बयान ने 21 साल पहले एक निर्दोष व्यक्ति को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था। उसे कोर्ट से उम्रकैद हो गई थी। खुद को निर्दोष साबित करने में उसे 8 साल लग गए। राहुल गांधी ने मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाकर उस निर्दोष व्यक्ति को छुड़वाया था। कई दशक पुराने इस किस्से की बात आज इसलिए हो रही है, क्योंकि पैरोल जंप करके भागे डॉक्टर डेथ को दिल्ली पुलिस ने 19 मई को राजस्थान से गिरफ्तार किया था। डॉक्टर डेथ का पुश्तैनी घर अब कैसा है? मगरमच्छों वाली हजारा नहर का इतिहास क्या है? 8 साल जेल में बंद रहने वाले व्यक्ति का दर्द क्या है? इस खास रिपोर्ट में पढ़िए… बिहार में नौकरी, राजस्थान में क्लिनिक, अलीगढ़ में सिलेंडर बेचे, फिर किडनी रैकेट से जुड़ा अब देवेंद्र के पैतृक गांव की बात पैरोल लेकर अपने गांव आया, थाने में भी लगाई हाजिरी
डॉक्टर डेथ उर्फ देवेंद्र शर्मा अलीगढ़ जिले में गांव पुरैनी का रहने वाला है। अतरौली-छर्रा मार्ग पर ये गांव पड़ता है। जर्जर रास्ते से होते हुए हम गांव के बीचों-बीच एक खंडहर मकान पर पहुंचे। बाउंड्रीवॉल टूटी पड़ी थी। लोहे के गेट में जंग लग चुका था। लकड़ी के दरवाजे भी जगह-जगह से टूटे पड़े थे। बाहर झाड़ियां उगी हुई थीं। घर के बाहर लोग इकट्ठा थे। मीडियाकर्मी बार-बार यहां आ रहे थे। लोग भी वहां पहुंच रहे थे, ये देखने के लिए कि आज क्या हो रहा? घर के सामने चबूतरे पर बैठे बुजुर्ग महेंद्र सिंह ने दैनिक भास्कर से बात की। महेंद्र सिंह डाक विभाग से रिटायर कर्मचारी हैं। जब विभाग में कार्यरत थे, तब कई बार देवेंद्र शर्मा को डाक पहुंचाने भी आए थे। वो कहते हैं- देवेंद्र शर्मा ने पढ़ाई करके शादी की। फिर डॉक्टरी की पढ़ाई करने बिहार चला गया। वहां से आकर गैस एजेंसी चलाई। करीब 3 महीने ये एजेंसी चली होगी। तब पता चला कि वो सब फर्जी है। छापामार कार्रवाई भी हुई। तब पहली बार पता चला कि ये बदमाशी करता है। उससे पहले देवेंद्र का कोई गलत किस्सा नहीं था। दिल्ली पुलिस कहती है कि देवेंद्र ने 50 मर्डर करने की बात कबूली? इस पर महेंद्र सिंह कहते हैं- ये हम नहीं कह सकते कि उसने कितने मर्डर किए? हां, हमने एक मर्डर सुना है। तब अतरौली क्षेत्र में एक गाड़ी में लाश मिली थी। और कोई केस हमने नहीं सुना। गांव के कई और लोग ऑफ कैमरा कहते हैं- देवेंद्र ने गांव के किसी व्यक्ति को कभी नहीं सताया। वो लोगों की मदद भी करता था। गांव के बाहर उसने क्या किया, ये हमें खबर नहीं है। पढ़िए उस इंसान की दर्द, जो 8 साल जेल में रहा नाम के फेर में मुझे पकड़ा, कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई
पुरैनी गांव के बाद हम इससे 3 किलोमीटर दूर दिलालपुर गांव पहुंचे। डॉक्टर डेथ के एक बयान पर इस गांव के श्यौराज सिंह बेकसूर होकर भी 8 साल तक जेल में रहे थे। अपनी छोटी-सी परचून की दुकान पर बैठे 55 साल के श्यौराज सिंह बताते हैं- एक टैक्सी ड्राइवर के जुर्म में जब हरियाणा पुलिस ने देवेंद्र शर्मा को पकड़ा और पूछताछ की, तो उसने अपने साथियों में श्यौराज सिंह नाम बताया। इसी आधार पर 4 अगस्त, 2004 को हरियाणा की पलवल पुलिस गांव आई और मुझे उठाकर ले गई। गांव दिलालपुर से पलवल तक गाड़ी में पुलिसवालों ने मेरी पिटाई की। पलवल ले जाकर मुझे थर्ड डिग्री दी। मैं बार-बार कहता रहा कि निर्दोष हूं। किसी ने मेरी एक नहीं सुनी। मुझे भोंडसी जेल भेज दिया। साल-2008 में फरीदाबाद कोर्ट ने हत्या के जुर्म में मुझे उम्रकैद की सजा सुना दी। इंस्पेक्टर को 4 लाख रुपए देकर बचा था असली आरोपी
श्यौराज सिंह बताते हैं- असली आरोपी का नाम भी श्यौराज सिंह था, लेकिन पिता का नाम दूसरा था। मेरे पिता का नाम अतर सिंह और आरोपी के पिता का नाम सत्तू उर्फ ठाकुर दास था। मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ, ये मुझे बाद में पता चला। असली आरोपी श्यौराज सिंह का एक रिश्तेदार सत्यपाल हरियाणा पुलिस में इंस्पेक्टर था। वो पास के ही गांव गाजीपुर का रहने वाला था। उसके पास ही इस केस की जांच थी। असली आरोपी श्यौराज सिंह ने खुद को बचाने के लिए इंस्पेक्टर को 4 लाख रुपए दिए थे। इसके बदले तय हुआ था कि वो इसी नाम का दूसरा आरोपी पुलिस को देगा। उस इंस्पेक्टर की अब मौत हो चुकी है। कोर्ट ने कैसे निर्दोष साबित किया? इस पर श्यौराज सिंह बताते हैं- हमने कोर्ट से डॉक्टर देवेंद्र शर्मा के बयान की कॉपी निकलवाई। इसमें उसने सह-आरोपी के रूप में श्यौराज सिंह पुत्र सत्तू उर्फ ठाकुर दास का नाम लिया था। बस यही हमारे लिए बड़ा प्रूफ था। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जेल में बंद मेरे पिता का नाम ये नहीं है। मई-2013 में मैं जेल से छूटकर बाहर आया। मायावती ने दोबारा जांच कराई, राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में मदद की श्यौराज सिंह को बेकसूर साबित कराने में उनकी पत्नी सुनीता ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। सुनीता बताती हैं- जब पुलिस मेरे पति को पकड़कर ले गई, तो मैं पुलिस अधिकारियों से मिली। उन्हें बताया कि मेरे पति निर्दोष हैं। अलीगढ़ पुलिस ने मामला हरियाणा पुलिस का बताकर पल्ला झाड़ लिया। उन दिनों यूपी की मुख्यमंत्री मायावती थीं। सुनीता बताती हैं- मैं मुख्यमंत्री से मिलने लखनऊ पहुंच गई। वहां आवास पर मुझसे कहा गया कि मिलने के लिए अपने इलाके के सांसद से लेटरपैड पर लिखवाकर लाइए। मैं 3 दिन तक सांसद आवास के बाहर बैठी रही। 3 दिन बाद लेटर बना। उसे लेकर मैं मायावती आवास पर पहुंची। वहां पूरी बात सुनाई। उसके ठीक 15 दिन बाद ही अलीगढ़ पुलिस के पास इस केस की जांच लखनऊ से आ गई। पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में माना कि हत्याकांड में जेल गए मेरे पति निर्दोष हैं। असली आरोपी श्यौराज सिंह कोई और है। सुनीता बताती हैं- जुलाई, 2011 में राहुल गांधी जमीन अधिग्रहण आंदोलन को लेकर पदयात्रा करते हुए अलीगढ़ आए थे। मैं भी वहां पहुंच गई। मैंने राहुल के पैर पकड़ लिए। उन्होंने मेरी पूरी बात सुनी और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट का नंबर देते हुए मदद का भरोसा दिया। कुछ दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट के वकील का फोन आया। उन्होंने मुझसे सारे कागज मंगवाए। फिर ये केस सुप्रीम कोर्ट में चला। मई-2013 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मेरे पति गलत जेल गए हैं। उम्रकैद की सजा होने के बावजूद उन्हें 8 साल बाद बाइज्जत बरी करते हुए छोड़ा गया। अब बात हजारा नहर की: मगरमच्छ इतने कि NDRF जवान भी डर गए डॉक्टर देवेंद्र शर्मा उर्फ डॉक्टर डेथ टैक्सी ड्राइवरों के मर्डर करके उनकी लाश कासगंज जिले की हजारा नहर में फेंक देता था। हजारा नहर को लोअर गंगा कैनाल (LGC) बोलते हैं। बुलंदशहर के कस्बा नरौरा में गंगा नदी पर डैम बना है। इसी डैम से ये हजारा नहर निकलती है। निचली गंगा नहर प्रणाली साल 1878 में शुरू की गई थी। बुलंदशहर, अलीगढ़, कासगंज, एटा, फिरोजाबाद होकर इटावा जाने वाली हजारा नहर आगे जाकर दूसरी नदियों में मिल जाती है। जिला कासगंज में अंग्रेजों ने इस नहर पर ऐसा पुल डिजाइन किया है कि लोग हैरान हो जाते हैं। नीचे एक नदी बहती है, उसके ऊपर पुल बनाकर हजारा नदी का पानी गुजरता है। यानि ऊपर-नीचे दो नदियां बहती हैं, जो खुद में अजूबा है। हजारा नदी में मगरमच्छों की मौजूदगी काफी ज्यादा बताई जाती है। हालांकि इनकी सटीक संख्या का कभी अनुमान नहीं हुआ। एक बार ईद के दिन यहां 9 लड़के डूब गए थे। NDRF के जवान जब उन लड़कों को तलाशने के लिए नदी में कूदे, तो वो भी मगरमच्छ देखकर बाहर निकल आए थे। यहां कई बार मगरमच्छ नदी के बाहर तक निकल आते हैं। सिंचाई विभाग ने चेतावनी बोर्ड भी लगाए हुए हैं। ———————— ये खबर भी पढ़ें… विंध्याचल में कॉरिडोर बना, रोज 50 हजार श्रद्धालु आ रहे, मिर्जापुर में मंदिर के रास्ते तैयार, पक्का घाट बन रहा 4 साल पहले विंध्याचल मंदिर तक लोग संकरी गलियों से पहुंचते थे। भीड़ होती, तो एक-दूसरे से टकराते हुए आगे बढ़ते। फिर यहां कॉरिडोर बनना शुरू हुआ। मंदिर पहुंचने के 4 रास्तों की पहचान की गई और उनका चौड़ीकरण हुआ। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर