बेगुनाही साबित करने के लिए 48 साल केस लड़ा:104 साल की उम्र में हाईकोर्ट ने बाइज्जत बरी किया; बेटियों ने दिया साथ

बेगुनाही साबित करने के लिए 48 साल केस लड़ा:104 साल की उम्र में हाईकोर्ट ने बाइज्जत बरी किया; बेटियों ने दिया साथ

कौशांबी जिले के लखन सरोज। उम्र 104 साल हो गई। 48 साल पहले गांव के झगड़े में एक व्यक्ति की मौत हुई थी। लखन पर हत्या का आरोप लगा था, मुकदमा शुरू हुआ। सेशन कोर्ट ने हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके बाद लखन प्रयागराज की नैनी और फिर कौशांबी की मंझनपुर जेल में रहे। अब इसी मामले में फैसला आया है। लखन को इस हत्याकांड में बाइज्जत बरी कर दिया गया है। दैनिक भास्कर की टीम लखन से मिलने कौशांबी पहुंची। हम जानना चाहते थे कि आखिर 48 साल तक यह केस कैसे खिंचा? विवाद क्या था, जिसके चलते हत्या हुई? लखन ही क्यों आरोपी बनाए गए? जिनके परिवार से विवाद था, अब उनका क्या हाल है? अपर जिला जज कौशांबी का क्या कहना है? पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट… 1977 में मारपीट में हुई थी 1 व्यक्ति की मौत
लखन का घर कौशांबी जिले के गौराए गांव में है। यह कौशांबी थाना क्षेत्र में आता है। 1977 में जिस वक्त विवाद हुआ था, उस वक्त कौशांबी जिला नहीं बना था। 4 अप्रैल, 1997 को यह जिला बना। लखन अब अपने इस गांव में नहीं रहते। उनकी 5 बेटियां हैं, लखन बारी-बारी से उन लोगों के घरों में रहते हैं। इसलिए जब हम उनसे मिलने के लिए निकले, तो हमारे लिए चुनौती थी कि वह कहां मिलेंगे? खोजबीन करने पर पता चला कि वह पश्चिम शरीरा में अपनी चौथे नंबर की बेटी आशा देवी के घर मिलेंगे। हम वहां पहुंचे। 104 साल के लखन के पैर में अब हमेशा दर्द रहता है। बहुत देर तक चल नहीं पाते, खड़े भी नहीं रह पाते। हमारी बातचीत शुरू हुई, तो पहला सवाल यही पूछा कि 1977 में झगड़ा क्या था? वह कहते हैं- गांव में ही हमारी बिरादरी के जगन और प्रभु से झगड़ा था। एक बार झगड़ा हुआ, तो उन लोगों ने हमारी चाची का हाथ तोड़ दिया। इसके बाद फिर झगड़ा हुआ, तो चाचा का पैर तोड़ दिया। हम लोगों को झगड़े से रोक दिया गया। लखन आगे कहते हैं- 6 अगस्त, 1977 को वो 10-12 लोग शराब पीकर हमारे घर में आ गए। सबके हाथ में लाठी-डंडे थे। मारपीट करने लगे, तो हमारी तरफ से भी लाठी चलने लगी। इसी मारपीट में प्रभु सरोज को चोट लगी और बाद में उसकी मौत हो गई। उस मामले में मेरे साथ कलेसर, देशराज और कल्लू को आरोपी बनाया गया और सरायअकिल थाने की पुलिस ने जेल भेज दिया। कुछ दिनों बाद जमानत मिल गई, लेकिन मुकदमा चलता रहा। 1982 में प्रयागराज की सेशन कोर्ट ने सभी को उम्रकैद की सजा सुना दी। तारीख के बारे में पुलिस से पूछते तो कहते कुछ नहीं होगा
हमने पूछा कि सजा के बाद आपने क्या किया? लखन कहते हैं- हमने इस फैसले को हाईकोर्ट में चैलेंज किया। वहां केस शुरू हुआ। हमने अलग-अलग समय पर 3-4 वकील किए, लेकिन ज्यादातर पैसा लेकर अलग हो गए। हम जमानत पर बाहर थे। थाने जाकर पुलिसवालों से तारीख के बारे में पूछते तो वो कहते कि अब इस मामले में कुछ नहीं होगा, घर जाओ। हमको कुछ जानकारी नहीं थी इसलिए हर बार घर चले आते और अपनी बेटियों के घर पर रहने लगते। लखन ने अपनी छोटी बेटी की शादी लवकुश से की थी। हमने लवकुश से इस केस के बारे में पूछा। वह कहते हैं- हमारी शादी 2014 में हुई, तब इस केस के बारे में पता चला। उस वक्त भी पुलिस वाले पूछताछ करने घर आते थे, लेकिन ये उन्हें मिलते नहीं थे। पुलिस भी इन्हें पहचानती नहीं थी। इसलिए वह ढूंढ नहीं पाती थी। 2014 में इनके तीसरे नंबर वाले दामाद राजेंद्र कुमार को पुलिस उठा ले गई। कहा गया कि जब तक लखन को हाजिर नहीं करेंगे, तब तक इन्हें नहीं छोड़ा जाएगा। जेल में हमसे कोई काम नहीं करवाते थे
2014 में लखन को जेल हो गई। जेल में उनके साथ क्या होता था? इस सवाल के जवाब में लखन बताते हैं- हम बुजुर्ग थे, इसलिए हमसे कोई काम नहीं करवाया जाता था। हम सबके साथ मिल-जुलकर उसी में रहते थे। 3 साल तक नैनी जेल में बंद रहे। बेटे सूरजबली ने छुड़वाने का कोई प्रयास नहीं किया। बेटियों ने वकील किया, इसके बाद हमारी जमानत हुई। हमको कोर्ट-कचहरी के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। लखन से बातचीत के वक्त यह पता चला कि सच में उन्हें कोर्ट-कचहरी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए जब भी उनकी तारीख लगती, वह पहुंच ही नहीं पाते थे। इसलिए उनके खिलाफ अलग-अलग समय पर वारंट जारी हो जाता था। पुलिस उन्हें खोजती थी, लेकिन जो उनका पता था, वहां वह रहते नहीं थे। इसलिए कभी पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाई। दिसंबर, 2024 में हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस ने एक बार फिर से गिरफ्तार करके मंझनपुर जेल भेज दिया। जिनसे विवाद, उन्होंने केस छोड़ दिया
लखन का जिनसे विवाद था, उन्होंने सेशन कोर्ट तक केस लड़ा। उसके बाद से ही केस को छोड़ दिया। इसके बाद इनका मुकदमा लखन बनाम स्टेट का हो गया। दूसरी तरफ जिन लोगों ने एफआईआर करवाई थी, उन सबकी मौत हो गई। कल्लू और कलेशर की भी मौत हो गई। देशराज की स्थिति ऐसी है कि वह अब खाट से उठ नहीं पाते। बेटी बोलीं- बेटा इन्हें नहीं ले आया, तो हम ले आए
लखन की 2 शादियां हुई थीं। पहली पत्नी से एक बेटा हुआ। उसकी मौत के बाद लखन ने दूसरी शादी की और उससे उन्हें 5 बेटियां हुईं। चौथे नंबर की बेटी आशा कहती हैं- पापा का जो विवाद था, वह हमारे जन्म से पहले का था। बेटा इनका ख्याल नहीं रखता था, इसलिए हम लोगों को इनका केस लड़ना पड़ा। यह एक जगह नहीं रहते थे, इसलिए वारंट आने पर पुलिस को मिलते नहीं थे। 2014 में तीन साल के लिए जेल गए थे। फैसले के बाद 20 दिन जेल में रहे लखन
इस मामले को लेकर हमने कौशांबी की अपर जिला जज पूर्णिमा प्रांजल से बात की। वह कहती हैं- दिसंबर, 2024 में हाईकोर्ट के वारंट से लखन पासी को जिला कारागार मंझनपुर लाया गया। क्योंकि, उसकी अपील पेंडिंग थी। अपील को डिसाइड करने के लिए हाईकोर्ट को उस व्यक्ति की आवश्यकता थी। हमने सीजीएम कोर्ट के जरिए उसका वारंट तामील करवाया और फिर जेल भेजा। लखन बाइज्जत बरी होने के बाद भी करीब 20 दिन तक जेल में रहे। वजह पूछने पर पूर्णिमा कहती हैं- रिहाई परवाना समय पर जिला कारागार नहीं पहुंच पाया था, इसलिए यह देरी हुई। जिला कारागार बिना रिहाई परवाना मिले किसी को छोड़ नहीं सकता। जैसे ही हमें इसके बारे में पता चला, हमने प्रयास शुरू किया। चूंकि लखन के मामले का सेशन ट्रायल प्रयागराज की सीजीएम कोर्ट में था, इसलिए हमने उनसे संपर्क किया। बताया कि इन्हें हाईकोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया है। इसके बाद वहां से साइन होकर पेपर आया। लेकिन वह अपलोड नहीं हो पाया था, इसलिए लखन 20 दिन अतिरिक्त जेल में रहे। ———————– ये खबर भी पढ़ें… विंध्याचल में कॉरिडोर बना, रोज 50 हजार श्रद्धालु आ रहे, मिर्जापुर में मंदिर के रास्ते तैयार, पक्का घाट बन रहा 4 साल पहले विंध्याचल मंदिर तक लोग संकरी गलियों से पहुंचते थे। भीड़ होती, तो एक-दूसरे से टकराते हुए आगे बढ़ते। प्रमुख पर्व पर जब भीड़ उमड़ती, तो डर इस बात का रहता था कि कहीं कोई दुर्घटना न हो जाए। फिर यहां कॉरिडोर बनना शुरू हुआ। मंदिर पहुंचने के 4 रास्तों की पहचान की गई और उनका चौड़ीकरण हुआ। भव्य पिलर और गेट बने। जयपुर के पत्थरों को तराशकर ऐसी डिजाइन दी गई कि विंध्याचल पूरी तरह से बदल गया। पढ़ें पूरी खबर कौशांबी जिले के लखन सरोज। उम्र 104 साल हो गई। 48 साल पहले गांव के झगड़े में एक व्यक्ति की मौत हुई थी। लखन पर हत्या का आरोप लगा था, मुकदमा शुरू हुआ। सेशन कोर्ट ने हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके बाद लखन प्रयागराज की नैनी और फिर कौशांबी की मंझनपुर जेल में रहे। अब इसी मामले में फैसला आया है। लखन को इस हत्याकांड में बाइज्जत बरी कर दिया गया है। दैनिक भास्कर की टीम लखन से मिलने कौशांबी पहुंची। हम जानना चाहते थे कि आखिर 48 साल तक यह केस कैसे खिंचा? विवाद क्या था, जिसके चलते हत्या हुई? लखन ही क्यों आरोपी बनाए गए? जिनके परिवार से विवाद था, अब उनका क्या हाल है? अपर जिला जज कौशांबी का क्या कहना है? पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट… 1977 में मारपीट में हुई थी 1 व्यक्ति की मौत
लखन का घर कौशांबी जिले के गौराए गांव में है। यह कौशांबी थाना क्षेत्र में आता है। 1977 में जिस वक्त विवाद हुआ था, उस वक्त कौशांबी जिला नहीं बना था। 4 अप्रैल, 1997 को यह जिला बना। लखन अब अपने इस गांव में नहीं रहते। उनकी 5 बेटियां हैं, लखन बारी-बारी से उन लोगों के घरों में रहते हैं। इसलिए जब हम उनसे मिलने के लिए निकले, तो हमारे लिए चुनौती थी कि वह कहां मिलेंगे? खोजबीन करने पर पता चला कि वह पश्चिम शरीरा में अपनी चौथे नंबर की बेटी आशा देवी के घर मिलेंगे। हम वहां पहुंचे। 104 साल के लखन के पैर में अब हमेशा दर्द रहता है। बहुत देर तक चल नहीं पाते, खड़े भी नहीं रह पाते। हमारी बातचीत शुरू हुई, तो पहला सवाल यही पूछा कि 1977 में झगड़ा क्या था? वह कहते हैं- गांव में ही हमारी बिरादरी के जगन और प्रभु से झगड़ा था। एक बार झगड़ा हुआ, तो उन लोगों ने हमारी चाची का हाथ तोड़ दिया। इसके बाद फिर झगड़ा हुआ, तो चाचा का पैर तोड़ दिया। हम लोगों को झगड़े से रोक दिया गया। लखन आगे कहते हैं- 6 अगस्त, 1977 को वो 10-12 लोग शराब पीकर हमारे घर में आ गए। सबके हाथ में लाठी-डंडे थे। मारपीट करने लगे, तो हमारी तरफ से भी लाठी चलने लगी। इसी मारपीट में प्रभु सरोज को चोट लगी और बाद में उसकी मौत हो गई। उस मामले में मेरे साथ कलेसर, देशराज और कल्लू को आरोपी बनाया गया और सरायअकिल थाने की पुलिस ने जेल भेज दिया। कुछ दिनों बाद जमानत मिल गई, लेकिन मुकदमा चलता रहा। 1982 में प्रयागराज की सेशन कोर्ट ने सभी को उम्रकैद की सजा सुना दी। तारीख के बारे में पुलिस से पूछते तो कहते कुछ नहीं होगा
हमने पूछा कि सजा के बाद आपने क्या किया? लखन कहते हैं- हमने इस फैसले को हाईकोर्ट में चैलेंज किया। वहां केस शुरू हुआ। हमने अलग-अलग समय पर 3-4 वकील किए, लेकिन ज्यादातर पैसा लेकर अलग हो गए। हम जमानत पर बाहर थे। थाने जाकर पुलिसवालों से तारीख के बारे में पूछते तो वो कहते कि अब इस मामले में कुछ नहीं होगा, घर जाओ। हमको कुछ जानकारी नहीं थी इसलिए हर बार घर चले आते और अपनी बेटियों के घर पर रहने लगते। लखन ने अपनी छोटी बेटी की शादी लवकुश से की थी। हमने लवकुश से इस केस के बारे में पूछा। वह कहते हैं- हमारी शादी 2014 में हुई, तब इस केस के बारे में पता चला। उस वक्त भी पुलिस वाले पूछताछ करने घर आते थे, लेकिन ये उन्हें मिलते नहीं थे। पुलिस भी इन्हें पहचानती नहीं थी। इसलिए वह ढूंढ नहीं पाती थी। 2014 में इनके तीसरे नंबर वाले दामाद राजेंद्र कुमार को पुलिस उठा ले गई। कहा गया कि जब तक लखन को हाजिर नहीं करेंगे, तब तक इन्हें नहीं छोड़ा जाएगा। जेल में हमसे कोई काम नहीं करवाते थे
2014 में लखन को जेल हो गई। जेल में उनके साथ क्या होता था? इस सवाल के जवाब में लखन बताते हैं- हम बुजुर्ग थे, इसलिए हमसे कोई काम नहीं करवाया जाता था। हम सबके साथ मिल-जुलकर उसी में रहते थे। 3 साल तक नैनी जेल में बंद रहे। बेटे सूरजबली ने छुड़वाने का कोई प्रयास नहीं किया। बेटियों ने वकील किया, इसके बाद हमारी जमानत हुई। हमको कोर्ट-कचहरी के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। लखन से बातचीत के वक्त यह पता चला कि सच में उन्हें कोर्ट-कचहरी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए जब भी उनकी तारीख लगती, वह पहुंच ही नहीं पाते थे। इसलिए उनके खिलाफ अलग-अलग समय पर वारंट जारी हो जाता था। पुलिस उन्हें खोजती थी, लेकिन जो उनका पता था, वहां वह रहते नहीं थे। इसलिए कभी पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाई। दिसंबर, 2024 में हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस ने एक बार फिर से गिरफ्तार करके मंझनपुर जेल भेज दिया। जिनसे विवाद, उन्होंने केस छोड़ दिया
लखन का जिनसे विवाद था, उन्होंने सेशन कोर्ट तक केस लड़ा। उसके बाद से ही केस को छोड़ दिया। इसके बाद इनका मुकदमा लखन बनाम स्टेट का हो गया। दूसरी तरफ जिन लोगों ने एफआईआर करवाई थी, उन सबकी मौत हो गई। कल्लू और कलेशर की भी मौत हो गई। देशराज की स्थिति ऐसी है कि वह अब खाट से उठ नहीं पाते। बेटी बोलीं- बेटा इन्हें नहीं ले आया, तो हम ले आए
लखन की 2 शादियां हुई थीं। पहली पत्नी से एक बेटा हुआ। उसकी मौत के बाद लखन ने दूसरी शादी की और उससे उन्हें 5 बेटियां हुईं। चौथे नंबर की बेटी आशा कहती हैं- पापा का जो विवाद था, वह हमारे जन्म से पहले का था। बेटा इनका ख्याल नहीं रखता था, इसलिए हम लोगों को इनका केस लड़ना पड़ा। यह एक जगह नहीं रहते थे, इसलिए वारंट आने पर पुलिस को मिलते नहीं थे। 2014 में तीन साल के लिए जेल गए थे। फैसले के बाद 20 दिन जेल में रहे लखन
इस मामले को लेकर हमने कौशांबी की अपर जिला जज पूर्णिमा प्रांजल से बात की। वह कहती हैं- दिसंबर, 2024 में हाईकोर्ट के वारंट से लखन पासी को जिला कारागार मंझनपुर लाया गया। क्योंकि, उसकी अपील पेंडिंग थी। अपील को डिसाइड करने के लिए हाईकोर्ट को उस व्यक्ति की आवश्यकता थी। हमने सीजीएम कोर्ट के जरिए उसका वारंट तामील करवाया और फिर जेल भेजा। लखन बाइज्जत बरी होने के बाद भी करीब 20 दिन तक जेल में रहे। वजह पूछने पर पूर्णिमा कहती हैं- रिहाई परवाना समय पर जिला कारागार नहीं पहुंच पाया था, इसलिए यह देरी हुई। जिला कारागार बिना रिहाई परवाना मिले किसी को छोड़ नहीं सकता। जैसे ही हमें इसके बारे में पता चला, हमने प्रयास शुरू किया। चूंकि लखन के मामले का सेशन ट्रायल प्रयागराज की सीजीएम कोर्ट में था, इसलिए हमने उनसे संपर्क किया। बताया कि इन्हें हाईकोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया है। इसके बाद वहां से साइन होकर पेपर आया। लेकिन वह अपलोड नहीं हो पाया था, इसलिए लखन 20 दिन अतिरिक्त जेल में रहे। ———————– ये खबर भी पढ़ें… विंध्याचल में कॉरिडोर बना, रोज 50 हजार श्रद्धालु आ रहे, मिर्जापुर में मंदिर के रास्ते तैयार, पक्का घाट बन रहा 4 साल पहले विंध्याचल मंदिर तक लोग संकरी गलियों से पहुंचते थे। भीड़ होती, तो एक-दूसरे से टकराते हुए आगे बढ़ते। प्रमुख पर्व पर जब भीड़ उमड़ती, तो डर इस बात का रहता था कि कहीं कोई दुर्घटना न हो जाए। फिर यहां कॉरिडोर बनना शुरू हुआ। मंदिर पहुंचने के 4 रास्तों की पहचान की गई और उनका चौड़ीकरण हुआ। भव्य पिलर और गेट बने। जयपुर के पत्थरों को तराशकर ऐसी डिजाइन दी गई कि विंध्याचल पूरी तरह से बदल गया। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर