कबीरपंथी 5 वक्त की करते हैं ‘बंदगी’:प्रसाद में मिलता है धागा, काशी में कबीरचौरा के कुआं की मिट्‌टी-पानी की करते हैं पूजा

कबीरपंथी 5 वक्त की करते हैं ‘बंदगी’:प्रसाद में मिलता है धागा, काशी में कबीरचौरा के कुआं की मिट्‌टी-पानी की करते हैं पूजा

स्थान : लहरतारा (वाराणसी, यूपी) समय : 2 बजे, 9 जून, 2025 आज हम लहरतारा में मौजूद हैं, ये वही जगह है जहां 1398 ई. में कबीरदास का प्राकट्य हुआ था। यहां 20 देशों से 3 लाख लोग पहुंच रहे हैं। पहले जो प्राकट्य स्थल था, आज वहां संत कबीरदास का स्मारक बनाया जा चुका है। अंदर कबीर की मूर्ति और सामने ज्योति जल रही है। यहां पर अनुयायी माथा टेक रहे हैं, महिलाएं कीर्तन कर रही हैं। सजावट भी हुई है, मगर बहुत सादगी का एहसास कराते हुए। अनुयायी मूर्ति के सामने बैठकर, अपने दोनों हाथ एक साथ जमीन पर फैलाकर, जोर-जोर से साहेब बंदगी…साहेब बंदगी…साहेब बंदगी कह रहे हैं। संत अधनाम से हमें इसका जवाब मिला- कबीरपंथी पूजा को बंदगी कहते हैं। जिस तरह एक मुस्लिम के लिए पांच वक्त की नमाज जरूरी है। उसी तरह एक कबीरपंथी के लिए पांच समय की बंदगी जरूरी है। जो लोग किसी वजह से 5 समय की बंदगी नहीं कर पाते, उनके लिए भी सुबह-शाम बंदगी जरूरी होती है। पूरा स्थल समझिए… गुलाबी पत्थरों का 4 मंजिला मठ
मठ तक पहुंचने के लिए महुआडीह का फ्लाइओवर क्रॉस करते ही कबीरदास की जन्मस्थली पर एक गुलाबी पत्थरों का 4 मंजिला मठ दिखने लगा। बाहर गाड़ियों की लंबी कतार थी, जो उनके अनुयायियों की थी। जो लोग मठ की तरफ जा रहे थे उनके हाथ में नारियल और धागा था, मठ के बाहर छोटी-छोटी दुकानें थीं, माहौल बिल्कुल मेला जैसा था। अनुयायियों के साथ हम मठ के अंदर दाखिल हो गए। सामने एक बड़ा मैदान था। यहां पंडाल के अंदर एक मंच पर कबीरपंथी संत मौजूद थे। लोगों ने बताया कि उन्हें संत अधनाम कहा जाता है। वह कबीरदास के उपदेशों के बारे में अनुयायियों को बता रहे थे। अनुयायी दरियों पर सामने बैठे हुए थे। कबीर पंथ के लोग संत के सामने हाथ जोड़कर आशीर्वाद नहीं ले रहे थे, बल्कि वह दोनों हाथों को खोलकर अपने साहब से आशीर्वाद लेते हुए दिखाई दिए। संत उपदेश देते हुए कह रहे थे– हमारे पंथ में सिर्फ राम नाम लिया जाता है। कबीरदास आडंबरों का विरोध करते थे, सबको एकसूत्र में बांधने की कोशिश करते थे। आज हमको यही करना चाहिए। अनुयायी संत के हाथों में नारियल, धागा देकर आशीर्वाद लेते थे। संत धागा पर राम नाम जपकर अनुयायियों को वापस दे देते थे। यही धागा उनका प्रसाद था। अब हमने स्मारक को देखना शुरू किया। अंदर पूरे परिसर को लाल, नीली और पीली रोशनी से सजाया गया था। यहां संत कबीरदास की एक मूर्ति है, उसके सामने एक ज्योति जल रही थी। बताया गया कि यह ज्योति 24 घंटे जलती रहती है। इस परिसर के प्रांगण में महिलाएं राम के नाम का कीर्तन कर रही थीं। ढोल की थाप और मंजीरों की आवाज माहौल को भक्तिमय बना रही थी। स्मारक स्थल के बाहर बने गलियारे में संत अधनाम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी​ की तस्वीर लगी हुई दिखाई दी, जिनको वहां पहुंचने वाले अनुयायी अपने कैमरे में कैद कर रहे थे। लहरतारा के बाद चलते हैं संत कबीर दास उपदेश स्थल, कबीर चौरा यहां कबीरदास की कुटिया, नाम है ताना-बाना
अब लहरतारा से करीब 5Km दूर दैनिक भास्कर की टीम कबीर चौरा स्थित संत कबीर दास के उपदेश स्थल पर पहुंची। 5 फीट चौड़ी गली में लगभग 500 मीटर अंदर संत कबीरदास की उपदेश स्थली है, जहां पर वह बैठकर उपदेश दिया करते थे। यहां महिलाएं भजन कीर्तन करते हुए राम नाम की धुन गा रही थीं। पूरे प्रांगण में कबीरदास से जुड़ी हुई स्मृतियों को रखा गया है, जिसे आने वाले अनुयायी देख रहे थे। अंदर एक कुटिया है, बताया गया कि इसमें ही संत कबीरदास रहते थे। आज इसका नाम ताना-बाना रखा गया है। इसके अंदर आज भी करीब 1420 वर्ष पुरानी वह मशीन रखी हुई है, जिससे कबीरदास कपड़ा बुनते थे। इसके अलावा गोरा कुम्हार की चाक, दादू की धुनिया, संत दरिया दर्जी का सूई-धागा, सेना नाई की कैंची और रैदास की सुम्मी-फरमा रखा गया था। इसके ठीक सामने एक और स्मारक है, जो मां नीमा और पिता नीरू के हैं। लोग यहां भी माथा टेक रहे हैं। यही प्रांगण में हमारी मुलाकात सुदर्शन दास से हुई। वह कहते हैं- यहां पर वह स्थल है, जहां संत कबीर दास 111 वर्ष पानी पिए थे। यह कहते हुए उन्होंने एक कुआं की तरफ इशारा किया। बताया कि उनके अलावा यहां कृष्ण भक्त मीराबाई और गोरखनाथ बाबा ने भी पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई थी। उपदेशों को मानने लगें, तो सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी
गुजरात से स्मारक को देखने आई वंदना कहती हैं- मैं पिछले 10 सालों से लगातार जन्मोत्सव में शामिल होने के लिए पहुंच रही हूं। कबीरदास ने मनुष्य के बीच भेदभाव नहीं होने का संदेश दिया। आज की डेट में यह उपदेश बहुत सटीक है, अगर सब लोग कबीरदास के कहे हुए उपदेशों को मानने लगें, तो ज्यादातर समस्याएं खत्म हो जाएंगी। सैकड़ों साल पुरानी बातें, आज जैसी लगती हैं
अहमदाबाद से आए अनहरदास कहते हैं- कबीरदास ने हमेशा सत्य के रास्ते पर चलने का उपदेश दिया। वह जाति धर्म में भेदभाव नहीं करते थे। यही वजह है कि हम जैसे बहुत से अनुयायी हैं, जो उनकी पूजा करते हैं। यही काशी का पंच गंगा घाट एक आम लड़के के कबीर बनने का साक्षी है। देखिए कितनी महिमा है, सैकड़ों साल गुजर गए, मगर उनकी कही हुई सभी बातों को सुने और पढ़े, तो आज के वक्त के हिसाब से सही लगती है। संत कबीरदास को गुरु दीक्षा मिलने की कहानी भी पढ़िए…
कबीर प्राकट्य स्थल लहरतारा के महंत आचार्य गोविंद दास कहते हैं- पंच गंगा घाट कबीर के संत कबीर बनने का सबसे बड़ा प्रमाण है, इसी घाट पर काशी के महान विद्वान और संत रामानंदाचार्य रहते थे। कबीर एक बार उनसे मिलने पहुंचे और उन्हें अपना गुरु बनाने की इच्छा जाहिर करते हुए उनका चरण स्पर्श करने की कोशिश की। लेकिन रामानंदाचार्य नाराज हो गए और उनसे कहा कि तुम अभी बहुत छोटे हो, यहां से जाओ। तुम अभी इस योग्य नहीं हो कि तुम्हें मैं अपना शिष्य बना लूं, लेकिन कबीर ने उनसे ही शिक्षा लेने की धुन पकड़ ली। रोज उनके पास जाते और वहां से उनको यह कहकर लौटा दिया जाता कि तुम्हें शिक्षा-दीक्षा नहीं दूंगा। लेकिन, कबीर ने हट पकड़ ली और एक दिन जब रामानंदाचार्य जी सुबह सूर्य उदय से पहले घाटों की सीढ़ियों से उतरकर मां गंगा में स्नान करने जा रहे थे। उसी दौरान ब्रह्म मुहूर्त में कबीर वहां एक सीढ़ी पर जाकर लेट गए। रोज की तरह जब रामानंदाचार्य जी स्नान के लिए नीचे उतरने लगे तब उनका पैर कबीर के सीने पर पड़ गया। सीने पर पैर पड़ने के बाद रामानंदाचार्य के मुंह से राम-राम निकला। इसे सुनते ही कबीर खड़े हो गए और रामानंदाचार्य जी का पैर छूकर उन्होंने कहा कि उन्हें उनका गुरु मंत्र मिल गया राम। इतना सुनने के बाद रामानंदाचार्य जी ने कबीर को अपने सीने से लगाया और कहा कि तुम निश्चित तौर पर पूरे विश्व में राम नाम की अलख जगाओगे। उन्होंने कहा कि सभी धर्म और जातियों को एक साथ लेकर आगे आने का काम करोगे। बस यही घटना एक आम लड़के को कबीर बनाने की सबसे महत्वपूर्ण और बड़ी घटना मानी जाती है। काशी में कबीर से जुड़े तीन स्थान हैं- संत कबीर बनारस में कबीरचौरा में ही जीवन के बडे़ हिस्से में रहे। यही उनकी कर्मस्थली थी। यहीं उन्होंने लोगों को अपनी बातों से प्रभावित किया। ये मठ उनकी शिक्षाओं, संदेशों और स्मृतियों का केंद्र है‌। ———————— ये भी पढ़ें : लखनऊ में 25 साल के वकील की चलते-चलते मौत:कचहरी में हार्टअटैक आया, बेहोश होकर गिरे…फिर नहीं उठे, शादी की चल रही थी बात लखनऊ में 25 साल के एक वकील की चलते-फिरते मौत हो गई। सोमवार दोपहर वकील अभिषेक कचहरी में अपने एक साथी के साथ पैदल जा रहे थे। तभी उन्हें अचानक चक्कर आया, कदम लड़खड़ाने लगे और चेहरा सीधे दीवार से टकराया। फिर अभिषेक जमीन पर गिर पड़े और बेहोश हो गए। पढ़िए पूरी खबर… स्थान : लहरतारा (वाराणसी, यूपी) समय : 2 बजे, 9 जून, 2025 आज हम लहरतारा में मौजूद हैं, ये वही जगह है जहां 1398 ई. में कबीरदास का प्राकट्य हुआ था। यहां 20 देशों से 3 लाख लोग पहुंच रहे हैं। पहले जो प्राकट्य स्थल था, आज वहां संत कबीरदास का स्मारक बनाया जा चुका है। अंदर कबीर की मूर्ति और सामने ज्योति जल रही है। यहां पर अनुयायी माथा टेक रहे हैं, महिलाएं कीर्तन कर रही हैं। सजावट भी हुई है, मगर बहुत सादगी का एहसास कराते हुए। अनुयायी मूर्ति के सामने बैठकर, अपने दोनों हाथ एक साथ जमीन पर फैलाकर, जोर-जोर से साहेब बंदगी…साहेब बंदगी…साहेब बंदगी कह रहे हैं। संत अधनाम से हमें इसका जवाब मिला- कबीरपंथी पूजा को बंदगी कहते हैं। जिस तरह एक मुस्लिम के लिए पांच वक्त की नमाज जरूरी है। उसी तरह एक कबीरपंथी के लिए पांच समय की बंदगी जरूरी है। जो लोग किसी वजह से 5 समय की बंदगी नहीं कर पाते, उनके लिए भी सुबह-शाम बंदगी जरूरी होती है। पूरा स्थल समझिए… गुलाबी पत्थरों का 4 मंजिला मठ
मठ तक पहुंचने के लिए महुआडीह का फ्लाइओवर क्रॉस करते ही कबीरदास की जन्मस्थली पर एक गुलाबी पत्थरों का 4 मंजिला मठ दिखने लगा। बाहर गाड़ियों की लंबी कतार थी, जो उनके अनुयायियों की थी। जो लोग मठ की तरफ जा रहे थे उनके हाथ में नारियल और धागा था, मठ के बाहर छोटी-छोटी दुकानें थीं, माहौल बिल्कुल मेला जैसा था। अनुयायियों के साथ हम मठ के अंदर दाखिल हो गए। सामने एक बड़ा मैदान था। यहां पंडाल के अंदर एक मंच पर कबीरपंथी संत मौजूद थे। लोगों ने बताया कि उन्हें संत अधनाम कहा जाता है। वह कबीरदास के उपदेशों के बारे में अनुयायियों को बता रहे थे। अनुयायी दरियों पर सामने बैठे हुए थे। कबीर पंथ के लोग संत के सामने हाथ जोड़कर आशीर्वाद नहीं ले रहे थे, बल्कि वह दोनों हाथों को खोलकर अपने साहब से आशीर्वाद लेते हुए दिखाई दिए। संत उपदेश देते हुए कह रहे थे– हमारे पंथ में सिर्फ राम नाम लिया जाता है। कबीरदास आडंबरों का विरोध करते थे, सबको एकसूत्र में बांधने की कोशिश करते थे। आज हमको यही करना चाहिए। अनुयायी संत के हाथों में नारियल, धागा देकर आशीर्वाद लेते थे। संत धागा पर राम नाम जपकर अनुयायियों को वापस दे देते थे। यही धागा उनका प्रसाद था। अब हमने स्मारक को देखना शुरू किया। अंदर पूरे परिसर को लाल, नीली और पीली रोशनी से सजाया गया था। यहां संत कबीरदास की एक मूर्ति है, उसके सामने एक ज्योति जल रही थी। बताया गया कि यह ज्योति 24 घंटे जलती रहती है। इस परिसर के प्रांगण में महिलाएं राम के नाम का कीर्तन कर रही थीं। ढोल की थाप और मंजीरों की आवाज माहौल को भक्तिमय बना रही थी। स्मारक स्थल के बाहर बने गलियारे में संत अधनाम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी​ की तस्वीर लगी हुई दिखाई दी, जिनको वहां पहुंचने वाले अनुयायी अपने कैमरे में कैद कर रहे थे। लहरतारा के बाद चलते हैं संत कबीर दास उपदेश स्थल, कबीर चौरा यहां कबीरदास की कुटिया, नाम है ताना-बाना
अब लहरतारा से करीब 5Km दूर दैनिक भास्कर की टीम कबीर चौरा स्थित संत कबीर दास के उपदेश स्थल पर पहुंची। 5 फीट चौड़ी गली में लगभग 500 मीटर अंदर संत कबीरदास की उपदेश स्थली है, जहां पर वह बैठकर उपदेश दिया करते थे। यहां महिलाएं भजन कीर्तन करते हुए राम नाम की धुन गा रही थीं। पूरे प्रांगण में कबीरदास से जुड़ी हुई स्मृतियों को रखा गया है, जिसे आने वाले अनुयायी देख रहे थे। अंदर एक कुटिया है, बताया गया कि इसमें ही संत कबीरदास रहते थे। आज इसका नाम ताना-बाना रखा गया है। इसके अंदर आज भी करीब 1420 वर्ष पुरानी वह मशीन रखी हुई है, जिससे कबीरदास कपड़ा बुनते थे। इसके अलावा गोरा कुम्हार की चाक, दादू की धुनिया, संत दरिया दर्जी का सूई-धागा, सेना नाई की कैंची और रैदास की सुम्मी-फरमा रखा गया था। इसके ठीक सामने एक और स्मारक है, जो मां नीमा और पिता नीरू के हैं। लोग यहां भी माथा टेक रहे हैं। यही प्रांगण में हमारी मुलाकात सुदर्शन दास से हुई। वह कहते हैं- यहां पर वह स्थल है, जहां संत कबीर दास 111 वर्ष पानी पिए थे। यह कहते हुए उन्होंने एक कुआं की तरफ इशारा किया। बताया कि उनके अलावा यहां कृष्ण भक्त मीराबाई और गोरखनाथ बाबा ने भी पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई थी। उपदेशों को मानने लगें, तो सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी
गुजरात से स्मारक को देखने आई वंदना कहती हैं- मैं पिछले 10 सालों से लगातार जन्मोत्सव में शामिल होने के लिए पहुंच रही हूं। कबीरदास ने मनुष्य के बीच भेदभाव नहीं होने का संदेश दिया। आज की डेट में यह उपदेश बहुत सटीक है, अगर सब लोग कबीरदास के कहे हुए उपदेशों को मानने लगें, तो ज्यादातर समस्याएं खत्म हो जाएंगी। सैकड़ों साल पुरानी बातें, आज जैसी लगती हैं
अहमदाबाद से आए अनहरदास कहते हैं- कबीरदास ने हमेशा सत्य के रास्ते पर चलने का उपदेश दिया। वह जाति धर्म में भेदभाव नहीं करते थे। यही वजह है कि हम जैसे बहुत से अनुयायी हैं, जो उनकी पूजा करते हैं। यही काशी का पंच गंगा घाट एक आम लड़के के कबीर बनने का साक्षी है। देखिए कितनी महिमा है, सैकड़ों साल गुजर गए, मगर उनकी कही हुई सभी बातों को सुने और पढ़े, तो आज के वक्त के हिसाब से सही लगती है। संत कबीरदास को गुरु दीक्षा मिलने की कहानी भी पढ़िए…
कबीर प्राकट्य स्थल लहरतारा के महंत आचार्य गोविंद दास कहते हैं- पंच गंगा घाट कबीर के संत कबीर बनने का सबसे बड़ा प्रमाण है, इसी घाट पर काशी के महान विद्वान और संत रामानंदाचार्य रहते थे। कबीर एक बार उनसे मिलने पहुंचे और उन्हें अपना गुरु बनाने की इच्छा जाहिर करते हुए उनका चरण स्पर्श करने की कोशिश की। लेकिन रामानंदाचार्य नाराज हो गए और उनसे कहा कि तुम अभी बहुत छोटे हो, यहां से जाओ। तुम अभी इस योग्य नहीं हो कि तुम्हें मैं अपना शिष्य बना लूं, लेकिन कबीर ने उनसे ही शिक्षा लेने की धुन पकड़ ली। रोज उनके पास जाते और वहां से उनको यह कहकर लौटा दिया जाता कि तुम्हें शिक्षा-दीक्षा नहीं दूंगा। लेकिन, कबीर ने हट पकड़ ली और एक दिन जब रामानंदाचार्य जी सुबह सूर्य उदय से पहले घाटों की सीढ़ियों से उतरकर मां गंगा में स्नान करने जा रहे थे। उसी दौरान ब्रह्म मुहूर्त में कबीर वहां एक सीढ़ी पर जाकर लेट गए। रोज की तरह जब रामानंदाचार्य जी स्नान के लिए नीचे उतरने लगे तब उनका पैर कबीर के सीने पर पड़ गया। सीने पर पैर पड़ने के बाद रामानंदाचार्य के मुंह से राम-राम निकला। इसे सुनते ही कबीर खड़े हो गए और रामानंदाचार्य जी का पैर छूकर उन्होंने कहा कि उन्हें उनका गुरु मंत्र मिल गया राम। इतना सुनने के बाद रामानंदाचार्य जी ने कबीर को अपने सीने से लगाया और कहा कि तुम निश्चित तौर पर पूरे विश्व में राम नाम की अलख जगाओगे। उन्होंने कहा कि सभी धर्म और जातियों को एक साथ लेकर आगे आने का काम करोगे। बस यही घटना एक आम लड़के को कबीर बनाने की सबसे महत्वपूर्ण और बड़ी घटना मानी जाती है। काशी में कबीर से जुड़े तीन स्थान हैं- संत कबीर बनारस में कबीरचौरा में ही जीवन के बडे़ हिस्से में रहे। यही उनकी कर्मस्थली थी। यहीं उन्होंने लोगों को अपनी बातों से प्रभावित किया। ये मठ उनकी शिक्षाओं, संदेशों और स्मृतियों का केंद्र है‌। ———————— ये भी पढ़ें : लखनऊ में 25 साल के वकील की चलते-चलते मौत:कचहरी में हार्टअटैक आया, बेहोश होकर गिरे…फिर नहीं उठे, शादी की चल रही थी बात लखनऊ में 25 साल के एक वकील की चलते-फिरते मौत हो गई। सोमवार दोपहर वकील अभिषेक कचहरी में अपने एक साथी के साथ पैदल जा रहे थे। तभी उन्हें अचानक चक्कर आया, कदम लड़खड़ाने लगे और चेहरा सीधे दीवार से टकराया। फिर अभिषेक जमीन पर गिर पड़े और बेहोश हो गए। पढ़िए पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर