हरियाणा में राव इंद्रजीत ने सांसद बनने का रिकॉर्ड तोड़ा:11 चुनाव लड़े, सिर्फ 1 हारा; गुरुग्राम से लगातार चौथी जीत, विनिंग मार्जिन ने बढ़ाई टेंशन

हरियाणा में राव इंद्रजीत ने सांसद बनने का रिकॉर्ड तोड़ा:11 चुनाव लड़े, सिर्फ 1 हारा; गुरुग्राम से लगातार चौथी जीत, विनिंग मार्जिन ने बढ़ाई टेंशन

हरियाणा में छठी बार सांसद बनने का रिकॉर्ड गुरुग्राम से जीते राव इंद्रजीत सिंह के नाम दर्ज हो गया है। राव से पहले पंडित चिरंजीलाल शर्मा करनाल सीट से लगातार 4 बार सांसद बने थे। गुरुग्राम सीट की बात करें तो यहां भी लगातार 4 बार सांसद बनने का ताज राव इंद्रजीत सिंह के सिर पर ही सजा। हालांकि इन चार चुनावों में राव इंद्रजीत सिंह का विनिंग मार्जिन पहली बार सबसे निचले स्तर पर इस बार आ गया। राव इंद्रजीत सिंह रामपुरा हाउस की राजनीति को संभाले हुए हैं। रामपुरा हाउस का दक्षिणी हरियाणा (अहीरवाल) में लंबे समय से दबदबा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह ने अपने निधन से पहले ही अपनी राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी राव इंद्रजीत को बना दिया था। पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए राव इंद्रजीत भी दक्षिणी हरियाणा की अलग-अलग सीटों से 11 बार चुनाव लड़े। उन्हें एक बार तत्कालीन महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से 1999 में कारगिल लहर के वक्त बीजेपी कैंडिडेट सुधा यादव से हार का सामना करना पड़ा था। 4 बार MLA और 6 बार सांसद बन चुके
राव इंद्रजीत सिंह ने अपनी सियासी पारी का आगाज साल 1977 में रेवाड़ी जिले की जाटूसाना विधानसभा (अब कोसली) से किया था। परंपरागत सीट रही जाटूसाना में बीरेंद्र ने अपने बड़े बेटे राव इंद्रजीत सिंह को यहां से अपना राजनीतिक वारिस बना चुनाव मैदान में उतारा। राव इंद्रजीत सिंह ने अपने पहले ही चुनाव में जीत दर्ज की। इसके बाद यहां से लगातार चार बार 1977 से 1982, 1982 से 1987 और 1987 से 1991 और फिर 2000 से 2004 तक हरियाणा विधानसभा के सदस्य के तौर पर चंडीगढ़ पहुंचे। प्रदेश सरकार में मंत्री भी बने
1986 से 1987 और 1991 से 1996 तक प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। इसके बाद लंबे समय तक महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट पर सांसद रहे राव बीरेंद्र सिंह ने राव इंद्रजीत सिंह को 1998 में अपनी जगह लोकसभा का कैंडिडेट बनाया। राव ने पहले ही लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की, लेकिन एक साल बाद ही 1999 में दोबारा हुए लोकसभा चुनाव में राव इंद्रजीत सिंह बीजेपी कैंडिडट सुधा यादव से हार गए, लेकिन 2004 के चुनाव में राव इंद्रजीत सिंह ने अपने प्रतिद्वंदी से हार का बदला चुकता किया। इसके बाद सीट जरूर बदली, लेकिन राव इंद्रजीत सिंह की जीत का सिलसिला जारी है। परिसीमन के बाद गुरुग्राम से लड़ा चुनाव
साल 2008 में हुए परिसीमन में गुरुग्राम को फिर से लोकसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में लाया गया। 1971 के चुनाव के बाद इसे महेंद्रगढ़ में मर्ज कर दिया गया था और इसके बड़े हिस्से फरीदाबाद को अलग लोकसभा क्षेत्र बना दिया गया था। परिसीमन के बाद 2009 में चुनाव हुआ और क्षेत्र बदलने के बाद भी राव ने जीत हासिल की। यह संसद सदस्य के रूप में उनका तीसरा कार्यकाल था। इसके बाद राव इंद्रजीत सिंह तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दोनों टर्म और 2014 से 2024 तक दोनों टर्म में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में मंत्री बने। 2 चुनाव के बाद फिर विनिंग मार्जिन कम
पिछले 2 लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में राव इंद्रजीत सिंह ने एक तरफा जीत हासिल की थी। 2014 में 2,74,722 और 2019 में 3,86,256 लाख वोट से जीते, लेकिन 2024 में जीत का ये मार्जिन सिर्फ 70 हजार 79 वोट पर आकर रुक गया। जबकि इससे पहले 2009 में राव इंद्रजीत सिंह ने 84 हजार 864 वोटों से जीत हासिल की थी। इस बार राव इंद्रजीत सिंह और कांग्रेस के कैंडिडेट राज बब्बर के बीच कांटे का मुकाबला रहा, जिसकी वजह से राव की जीत का मार्जिन सबसे कम रहा। हरियाणा में छठी बार सांसद बनने का रिकॉर्ड गुरुग्राम से जीते राव इंद्रजीत सिंह के नाम दर्ज हो गया है। राव से पहले पंडित चिरंजीलाल शर्मा करनाल सीट से लगातार 4 बार सांसद बने थे। गुरुग्राम सीट की बात करें तो यहां भी लगातार 4 बार सांसद बनने का ताज राव इंद्रजीत सिंह के सिर पर ही सजा। हालांकि इन चार चुनावों में राव इंद्रजीत सिंह का विनिंग मार्जिन पहली बार सबसे निचले स्तर पर इस बार आ गया। राव इंद्रजीत सिंह रामपुरा हाउस की राजनीति को संभाले हुए हैं। रामपुरा हाउस का दक्षिणी हरियाणा (अहीरवाल) में लंबे समय से दबदबा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह ने अपने निधन से पहले ही अपनी राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी राव इंद्रजीत को बना दिया था। पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए राव इंद्रजीत भी दक्षिणी हरियाणा की अलग-अलग सीटों से 11 बार चुनाव लड़े। उन्हें एक बार तत्कालीन महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से 1999 में कारगिल लहर के वक्त बीजेपी कैंडिडेट सुधा यादव से हार का सामना करना पड़ा था। 4 बार MLA और 6 बार सांसद बन चुके
राव इंद्रजीत सिंह ने अपनी सियासी पारी का आगाज साल 1977 में रेवाड़ी जिले की जाटूसाना विधानसभा (अब कोसली) से किया था। परंपरागत सीट रही जाटूसाना में बीरेंद्र ने अपने बड़े बेटे राव इंद्रजीत सिंह को यहां से अपना राजनीतिक वारिस बना चुनाव मैदान में उतारा। राव इंद्रजीत सिंह ने अपने पहले ही चुनाव में जीत दर्ज की। इसके बाद यहां से लगातार चार बार 1977 से 1982, 1982 से 1987 और 1987 से 1991 और फिर 2000 से 2004 तक हरियाणा विधानसभा के सदस्य के तौर पर चंडीगढ़ पहुंचे। प्रदेश सरकार में मंत्री भी बने
1986 से 1987 और 1991 से 1996 तक प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। इसके बाद लंबे समय तक महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट पर सांसद रहे राव बीरेंद्र सिंह ने राव इंद्रजीत सिंह को 1998 में अपनी जगह लोकसभा का कैंडिडेट बनाया। राव ने पहले ही लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की, लेकिन एक साल बाद ही 1999 में दोबारा हुए लोकसभा चुनाव में राव इंद्रजीत सिंह बीजेपी कैंडिडट सुधा यादव से हार गए, लेकिन 2004 के चुनाव में राव इंद्रजीत सिंह ने अपने प्रतिद्वंदी से हार का बदला चुकता किया। इसके बाद सीट जरूर बदली, लेकिन राव इंद्रजीत सिंह की जीत का सिलसिला जारी है। परिसीमन के बाद गुरुग्राम से लड़ा चुनाव
साल 2008 में हुए परिसीमन में गुरुग्राम को फिर से लोकसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में लाया गया। 1971 के चुनाव के बाद इसे महेंद्रगढ़ में मर्ज कर दिया गया था और इसके बड़े हिस्से फरीदाबाद को अलग लोकसभा क्षेत्र बना दिया गया था। परिसीमन के बाद 2009 में चुनाव हुआ और क्षेत्र बदलने के बाद भी राव ने जीत हासिल की। यह संसद सदस्य के रूप में उनका तीसरा कार्यकाल था। इसके बाद राव इंद्रजीत सिंह तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दोनों टर्म और 2014 से 2024 तक दोनों टर्म में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में मंत्री बने। 2 चुनाव के बाद फिर विनिंग मार्जिन कम
पिछले 2 लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में राव इंद्रजीत सिंह ने एक तरफा जीत हासिल की थी। 2014 में 2,74,722 और 2019 में 3,86,256 लाख वोट से जीते, लेकिन 2024 में जीत का ये मार्जिन सिर्फ 70 हजार 79 वोट पर आकर रुक गया। जबकि इससे पहले 2009 में राव इंद्रजीत सिंह ने 84 हजार 864 वोटों से जीत हासिल की थी। इस बार राव इंद्रजीत सिंह और कांग्रेस के कैंडिडेट राज बब्बर के बीच कांटे का मुकाबला रहा, जिसकी वजह से राव की जीत का मार्जिन सबसे कम रहा।   हरियाणा | दैनिक भास्कर