यूपी में भाजपा को ज्यादा नुकसान अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पर:17 में से 14 सीटें हारी, राम मंदिर के आसपास की 5 सीटें भी गंवाईं

यूपी में भाजपा को ज्यादा नुकसान अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पर:17 में से 14 सीटें हारी, राम मंदिर के आसपास की 5 सीटें भी गंवाईं

भाजपा ने जिस राम मंदिर और एक्सप्रेस-वे की देशभर में सियासी ब्रांडिंग की, वहां की ज्यादातर सीटें हार गई। मंदिर और एक्सप्रेस-वे के रूट में 17 लोकसभा सीटें आती हैं, इनमें भाजपा 14 सीटें हार गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां 13 सीटें जीती थीं, 2024 में सिर्फ 3 सीटें जीत सकी, मतलब 10 सीटें गंवा दीं। इन सीटों में फैजाबाद (अयोध्या) की सीट भी शामिल है, जहां राम मंदिर है। यहां मिली हार ने पूरे देश को चौंका दिया। चलिए, आपको सिलसिलेवार बताते हैं कि भाजपा को कैसे सियासी नुकसान हुआ… ड्रीम प्रोजेक्ट-1 राम मंदिर: 9 में से 7 पर भाजपा हारी अयोध्या का राम मंदिर फैजाबाद सीट में आता है। इसके आसपास 8 लोकसभा सीट आती हैं। यानी कुल 9 सीटें हैं। इनमें 4 सीटें फैजाबाद, बस्ती, अंबेडकरनगर और सुल्तानपुर सपा ने जीत लीं। 3 सीटें रायबरेली, अमेठी और बाराबंकी कांग्रेस ने जीतीं। भाजपा को केवल 2 सीट गोंडा और कैसरगंज मिली है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 7 सीटें फैजाबाद, बाराबंकी, गोंडा, बस्ती, कैसरगंज, अमेठी और सुल्तानपुर जीती थीं। अंबेडकरनगर बसपा और रायबरेली कांग्रेस के पाले में गई थी। एक्सपर्ट कहते हैं- इन सीटों पर मौजूदा सांसदों के खिलाफ नाराजगी थी। साथ ही जातिगत समीकरण ऐसे बने कि हार का सामना करना पड़ा। ड्रीम प्रोजेक्ट-2 पूर्वांचल एक्सप्रेस वे: 9 में से भाजपा को केवल 1 सीट मिली पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की बात करें तो लखनऊ से गाजीपुर के बीच कुल 9 लोकसभा सीटें आती हैं। इस बार भाजपा यहां केवल 1 सीट जीत सकी है। 2019 में पार्टी ने यहां की 6 सीटें जीती थी। इस बार समाजवादी पार्टी ने 6 और कांग्रेस ने 2 सीटें जीती। सिर्फ लखनऊ सीट भाजपा बचाने में कामयाब रही। यहां भी रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के जीतने का मार्जिन 2019 की तुलना में 20% तक कम हो गया। एक्सपर्ट कहते हैं- इन सीटों में आजमगढ़ और गाजीपुर को छोड़कर बाकी सीटों पर पार्टी ने ज्यादा मेहनत नहीं की। मौजूदा सांसदों को लेकर एंटी इनकम्बेंसी भी हार की वजह बनी। ड्रीम प्रोजेक्ट-3 बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे: 2019 में भाजपा ने सभी 4 सीटें जीती, इस बार शून्य बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे 7 जिलों की 4 लोकसभा सीटों से होकर गुजरता है। 2019 में इटावा, जालौन, हमीरपुर और बांदा पर भाजपा का कब्जा था, लेकिन 2024 में इन सभी 4 सीटों पर सपा को जीत मिली। ये वही लोकसभा सीटें हैं, जहां इस बार चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने एक्सप्रेस-वे और डेवलपमेंट की खूब चर्चा की। एक्सपर्ट के मुताबिक- मौजूदा सांसदों से नाराजगी का फैक्टर हावी होने से भाजपा नुकसान में रही। अगर चुनाव में डेवलपमेंट फैक्टर नहीं चला, तो कौन से फैक्टर प्रभावी रहे, ये समझते हैं… सुल्तानपुर में ठाकुर बिरादरी की नाराजगी का नुकसान
भाजपा की सुरक्षित सीट पर 80% हिंदू आबादी है। यहां मेनका गांधी को ठाकुर बिरादरी की नाराजगी से नुकसान हुआ। 22% अनुसूचित जाति के वोटर में ज्यादातर छिटक गए। क्योंकि सपा ने राम भुआल निषाद को कैंडिडेट बनाया था। मेनका गांधी को यहां 38% वोट मिले। वो चुनाव हार गईं। बाराबंकी में भाजपा को पिछड़ों का वोट नहीं मिला
रिजर्व सीट पर 55% दलित वोटर हैं। इसमें 13% रावत बिरादरी है। यहां कांग्रेस के तनुज पुनिया चुनाव जीते हैं। उनको मुस्लिम-यादव और दलित वोटर का सपोर्ट मिला। भाजपा की राजरानी रावत को अपनी बिरादरी के साथ कुछ पिछड़ा वर्ग का सपोर्ट मिला। मगर वो चुनाव हार गईं। अमेठी में चेहरों की राजनीति हावी रही
गांधी परिवार के गढ़ में 34% ओबीसी वोटर हैं। इसके बाद सबसे ज्यादा 26% दलित हैं। मुस्लिम 20% हैं। कांग्रेस और सपा गठबंधन की वजह से पूरा मुस्लिम वोट कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा को मिला। संविधान बचाओ वाले दावे के असर से ज्यादातर पिछड़ा-दलित वोट भी I.N.D.I को मिला। फैजाबाद में भाजपा के मौजूदा सांसद से नाराजगी
यहां जातिगत समीकरण में 21% दलित और 12% मुस्लिम हैं। सवर्ण वोटर्स में 18-18% ठाकुर और ब्राह्मण हैं। साथ ही पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 22% है। सपा ने यहां पिछड़ा कार्ड खेला। अवधेश प्रसाद को कैंडिडेट बनाया। भाजपा के सांसद लल्लू सिंह से लोगों की नाराजगी भी थी। I.N.D.I के मुस्लिम-यादव-दलित कॉम्बिनेशन के सामने हार गए। अम्बेडकरनगर में सपा को मुस्लिम-पिछड़ा और दलित का सपोर्ट मिला
बसपा से आए रितेश पांडेय को भाजपा ने चुनाव लड़वाया था। 2.35 लाख ब्राह्मण-ठाकुर वोटर का सपोर्ट तो मिला। मगर सपा मुस्लिम-पिछड़ा और दलित वोटर को अपनी तरफ करने में कामयाब रही। यहां 4 लाख दलित वोटर हैं। 3.70 लाख वोटर मुस्लिम हैं। 1.70 लाख यादव और 1.78 कुर्मी वोटर हैं। राम मंदिर और एक्सप्रेस-वे भाषणों में छाया रहा… आजमगढ़ में ध्रुवीकरण नहीं हुआ, सपा जीती
​​​​​​सपा की परंपरागत सीट पर मुस्लिम वोटर का ध्रुवीकरण नहीं हुआ। मुस्लिम-यादव वोटर ने मिलकर धर्मेंद्र यादव को जीता दिया। भाजपा के दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को यादव ने वोट नहीं किया। नतीजा उन्हें चुनाव में 1.61 लाख वोट से हार का मुंह देखना पड़ा। 2022 में हुए लोकसभा उपचुनाव निरहुआ सिर्फ 8 हजार वोट से जीते थे। मऊ (घोसी) में जातिगत समीकरण हावी रहे
सपा के राजीव राय 1.62 लाख के बड़े अंतर से चुनाव जीते। कारण जातिगत समीकरण थे। सपा को 3.50 लाख मुस्लिम, 2.50 लाख यादव का सपोर्ट मिला। 5 लाख दलित का भी ज्यादातर वोट मिला। वहीं भाजपा के घटक दल सुभासपा के अरविंद राजभर को 1-1 लाख वैश्य, मौर्य, राजपूत, ब्राह्मण का वोट मिला। राजभर बिरादरी का 2 लाख और कुछ चौहान बिरादरी का सपोर्ट मिला। मगर वो हार गए। गाजीपुर में अफजाल ही असरदार, PDA फैक्टर चला
यहां भाजपा के पारस नाथ राय के सामने सपा के अफजाल अंसारी खड़े थे। यहां सपा का PDA खूब चला। दलित-पिछड़ा का सपोर्ट सपा को मिला। मुस्लिम और यादव पहले से सपा के सपोर्ट में थे। यही वजह है कि भाजपा के पारस नाथ राय को 1.24 लाख वोट से हार मिली। इटावा में ध्रुवीकरण नहीं हुआ
ये सपा की परंपरागत सीट रही है। जितेंद्र सिंह दोहरे को I.N.DI. गठबंधन का फायदा मिला। मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण नहीं हुआ। साथ ही, संविधान वाले बयान के बाद 4.5 लाख दलित वोटर में ज्यादातर ने सपा को चुना। यही वजह है कि भाजपा के हाथ ये यह सीट खिसक गई। जालौन में मौजूदा भाजपा सांसद से नाराजगी
बुंदेलखंड की सीट पर सपा को सबसे ज्यादा पिछड़ा और दलित वर्ग का सपोर्ट मिला। इस सीट पर मुस्लिम सिर्फ 90 हजार और यादव 50 हजार हैं। सपा को कोर वोटर का सपोर्ट नहीं था। मगर फिर भी सपा कैंडिडेट 50 हजार के वोट मार्जिन से जीत गया, लोगों ने मौजूदा सांसद भानु प्रताप को नकार दिया। हमीरपुर में जातिवाद हावी
यूपी में हमीरपुर सीट पर सपा को सबसे छोटी जीत मिली है। सपा ने यहां अर्जेद्र सिंह लोधी को टिकट दिया था। मुकाबले में भाजपा के कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल थे। यहां राजपूत, मल्लाह, ब्राह्मण वोट भाजपा को ही मिला। मगर 3 लाख दलित वोट, 1 लाख मुस्लिम और यादव वोट सपा को मिला। यही वजह है भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा। बांदा में भाजपा सांसद से नाराज थे लोग
10 साल की कब्जे वाली सीट भी भाजपा हार गई। यहां जातिगत समीकरण में भाजपा और सपा में कांटे की टक्कर थी। यहां भाजपा को मौजूदा सांसद आरके सिंह पटेल को टिकट देने का नुकसान हुआ। पब्लिक उनसे नाराज थी। 2024 के चुनाव में लोगों ने बदलाव के लिए वोट किया। पॉलिटिकल एक्सपर्ट एक्सपर्ट बोले- 2017 में अखिलेश के डेवलपमेंट भी लोगों ने नकारे थे पॉलिटिकल एक्सपर्ट नवल कांत सिन्हा कहते हैं- यूपी के 2017 के विधानसभा चुनाव में देखिए, अखिलेश ने चुनाव से पहले गोमती रिवर फ्रंट, मेट्रो और जनेश्वर मिश्रा पार्क तैयार करवाए थे। पोस्टर लगवाए थे विकास पुरुष के। मगर लोगों ने विकास को छोड़कर धर्म के आधार पर वोट दिया। अखिलेश चुनाव हार गए थे। इस चुनाव में भाजपा सांसदों का विरोध था। लोग बोल रहे थे कि दो बार जिन्हें जिताया, उन्हें तीसरी बार बर्दाश्त नहीं करेंगे। ऐसे में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा। भाजपा ने जिस राम मंदिर और एक्सप्रेस-वे की देशभर में सियासी ब्रांडिंग की, वहां की ज्यादातर सीटें हार गई। मंदिर और एक्सप्रेस-वे के रूट में 17 लोकसभा सीटें आती हैं, इनमें भाजपा 14 सीटें हार गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां 13 सीटें जीती थीं, 2024 में सिर्फ 3 सीटें जीत सकी, मतलब 10 सीटें गंवा दीं। इन सीटों में फैजाबाद (अयोध्या) की सीट भी शामिल है, जहां राम मंदिर है। यहां मिली हार ने पूरे देश को चौंका दिया। चलिए, आपको सिलसिलेवार बताते हैं कि भाजपा को कैसे सियासी नुकसान हुआ… ड्रीम प्रोजेक्ट-1 राम मंदिर: 9 में से 7 पर भाजपा हारी अयोध्या का राम मंदिर फैजाबाद सीट में आता है। इसके आसपास 8 लोकसभा सीट आती हैं। यानी कुल 9 सीटें हैं। इनमें 4 सीटें फैजाबाद, बस्ती, अंबेडकरनगर और सुल्तानपुर सपा ने जीत लीं। 3 सीटें रायबरेली, अमेठी और बाराबंकी कांग्रेस ने जीतीं। भाजपा को केवल 2 सीट गोंडा और कैसरगंज मिली है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 7 सीटें फैजाबाद, बाराबंकी, गोंडा, बस्ती, कैसरगंज, अमेठी और सुल्तानपुर जीती थीं। अंबेडकरनगर बसपा और रायबरेली कांग्रेस के पाले में गई थी। एक्सपर्ट कहते हैं- इन सीटों पर मौजूदा सांसदों के खिलाफ नाराजगी थी। साथ ही जातिगत समीकरण ऐसे बने कि हार का सामना करना पड़ा। ड्रीम प्रोजेक्ट-2 पूर्वांचल एक्सप्रेस वे: 9 में से भाजपा को केवल 1 सीट मिली पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की बात करें तो लखनऊ से गाजीपुर के बीच कुल 9 लोकसभा सीटें आती हैं। इस बार भाजपा यहां केवल 1 सीट जीत सकी है। 2019 में पार्टी ने यहां की 6 सीटें जीती थी। इस बार समाजवादी पार्टी ने 6 और कांग्रेस ने 2 सीटें जीती। सिर्फ लखनऊ सीट भाजपा बचाने में कामयाब रही। यहां भी रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के जीतने का मार्जिन 2019 की तुलना में 20% तक कम हो गया। एक्सपर्ट कहते हैं- इन सीटों में आजमगढ़ और गाजीपुर को छोड़कर बाकी सीटों पर पार्टी ने ज्यादा मेहनत नहीं की। मौजूदा सांसदों को लेकर एंटी इनकम्बेंसी भी हार की वजह बनी। ड्रीम प्रोजेक्ट-3 बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे: 2019 में भाजपा ने सभी 4 सीटें जीती, इस बार शून्य बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे 7 जिलों की 4 लोकसभा सीटों से होकर गुजरता है। 2019 में इटावा, जालौन, हमीरपुर और बांदा पर भाजपा का कब्जा था, लेकिन 2024 में इन सभी 4 सीटों पर सपा को जीत मिली। ये वही लोकसभा सीटें हैं, जहां इस बार चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने एक्सप्रेस-वे और डेवलपमेंट की खूब चर्चा की। एक्सपर्ट के मुताबिक- मौजूदा सांसदों से नाराजगी का फैक्टर हावी होने से भाजपा नुकसान में रही। अगर चुनाव में डेवलपमेंट फैक्टर नहीं चला, तो कौन से फैक्टर प्रभावी रहे, ये समझते हैं… सुल्तानपुर में ठाकुर बिरादरी की नाराजगी का नुकसान
भाजपा की सुरक्षित सीट पर 80% हिंदू आबादी है। यहां मेनका गांधी को ठाकुर बिरादरी की नाराजगी से नुकसान हुआ। 22% अनुसूचित जाति के वोटर में ज्यादातर छिटक गए। क्योंकि सपा ने राम भुआल निषाद को कैंडिडेट बनाया था। मेनका गांधी को यहां 38% वोट मिले। वो चुनाव हार गईं। बाराबंकी में भाजपा को पिछड़ों का वोट नहीं मिला
रिजर्व सीट पर 55% दलित वोटर हैं। इसमें 13% रावत बिरादरी है। यहां कांग्रेस के तनुज पुनिया चुनाव जीते हैं। उनको मुस्लिम-यादव और दलित वोटर का सपोर्ट मिला। भाजपा की राजरानी रावत को अपनी बिरादरी के साथ कुछ पिछड़ा वर्ग का सपोर्ट मिला। मगर वो चुनाव हार गईं। अमेठी में चेहरों की राजनीति हावी रही
गांधी परिवार के गढ़ में 34% ओबीसी वोटर हैं। इसके बाद सबसे ज्यादा 26% दलित हैं। मुस्लिम 20% हैं। कांग्रेस और सपा गठबंधन की वजह से पूरा मुस्लिम वोट कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा को मिला। संविधान बचाओ वाले दावे के असर से ज्यादातर पिछड़ा-दलित वोट भी I.N.D.I को मिला। फैजाबाद में भाजपा के मौजूदा सांसद से नाराजगी
यहां जातिगत समीकरण में 21% दलित और 12% मुस्लिम हैं। सवर्ण वोटर्स में 18-18% ठाकुर और ब्राह्मण हैं। साथ ही पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 22% है। सपा ने यहां पिछड़ा कार्ड खेला। अवधेश प्रसाद को कैंडिडेट बनाया। भाजपा के सांसद लल्लू सिंह से लोगों की नाराजगी भी थी। I.N.D.I के मुस्लिम-यादव-दलित कॉम्बिनेशन के सामने हार गए। अम्बेडकरनगर में सपा को मुस्लिम-पिछड़ा और दलित का सपोर्ट मिला
बसपा से आए रितेश पांडेय को भाजपा ने चुनाव लड़वाया था। 2.35 लाख ब्राह्मण-ठाकुर वोटर का सपोर्ट तो मिला। मगर सपा मुस्लिम-पिछड़ा और दलित वोटर को अपनी तरफ करने में कामयाब रही। यहां 4 लाख दलित वोटर हैं। 3.70 लाख वोटर मुस्लिम हैं। 1.70 लाख यादव और 1.78 कुर्मी वोटर हैं। राम मंदिर और एक्सप्रेस-वे भाषणों में छाया रहा… आजमगढ़ में ध्रुवीकरण नहीं हुआ, सपा जीती
​​​​​​सपा की परंपरागत सीट पर मुस्लिम वोटर का ध्रुवीकरण नहीं हुआ। मुस्लिम-यादव वोटर ने मिलकर धर्मेंद्र यादव को जीता दिया। भाजपा के दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को यादव ने वोट नहीं किया। नतीजा उन्हें चुनाव में 1.61 लाख वोट से हार का मुंह देखना पड़ा। 2022 में हुए लोकसभा उपचुनाव निरहुआ सिर्फ 8 हजार वोट से जीते थे। मऊ (घोसी) में जातिगत समीकरण हावी रहे
सपा के राजीव राय 1.62 लाख के बड़े अंतर से चुनाव जीते। कारण जातिगत समीकरण थे। सपा को 3.50 लाख मुस्लिम, 2.50 लाख यादव का सपोर्ट मिला। 5 लाख दलित का भी ज्यादातर वोट मिला। वहीं भाजपा के घटक दल सुभासपा के अरविंद राजभर को 1-1 लाख वैश्य, मौर्य, राजपूत, ब्राह्मण का वोट मिला। राजभर बिरादरी का 2 लाख और कुछ चौहान बिरादरी का सपोर्ट मिला। मगर वो हार गए। गाजीपुर में अफजाल ही असरदार, PDA फैक्टर चला
यहां भाजपा के पारस नाथ राय के सामने सपा के अफजाल अंसारी खड़े थे। यहां सपा का PDA खूब चला। दलित-पिछड़ा का सपोर्ट सपा को मिला। मुस्लिम और यादव पहले से सपा के सपोर्ट में थे। यही वजह है कि भाजपा के पारस नाथ राय को 1.24 लाख वोट से हार मिली। इटावा में ध्रुवीकरण नहीं हुआ
ये सपा की परंपरागत सीट रही है। जितेंद्र सिंह दोहरे को I.N.DI. गठबंधन का फायदा मिला। मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण नहीं हुआ। साथ ही, संविधान वाले बयान के बाद 4.5 लाख दलित वोटर में ज्यादातर ने सपा को चुना। यही वजह है कि भाजपा के हाथ ये यह सीट खिसक गई। जालौन में मौजूदा भाजपा सांसद से नाराजगी
बुंदेलखंड की सीट पर सपा को सबसे ज्यादा पिछड़ा और दलित वर्ग का सपोर्ट मिला। इस सीट पर मुस्लिम सिर्फ 90 हजार और यादव 50 हजार हैं। सपा को कोर वोटर का सपोर्ट नहीं था। मगर फिर भी सपा कैंडिडेट 50 हजार के वोट मार्जिन से जीत गया, लोगों ने मौजूदा सांसद भानु प्रताप को नकार दिया। हमीरपुर में जातिवाद हावी
यूपी में हमीरपुर सीट पर सपा को सबसे छोटी जीत मिली है। सपा ने यहां अर्जेद्र सिंह लोधी को टिकट दिया था। मुकाबले में भाजपा के कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल थे। यहां राजपूत, मल्लाह, ब्राह्मण वोट भाजपा को ही मिला। मगर 3 लाख दलित वोट, 1 लाख मुस्लिम और यादव वोट सपा को मिला। यही वजह है भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा। बांदा में भाजपा सांसद से नाराज थे लोग
10 साल की कब्जे वाली सीट भी भाजपा हार गई। यहां जातिगत समीकरण में भाजपा और सपा में कांटे की टक्कर थी। यहां भाजपा को मौजूदा सांसद आरके सिंह पटेल को टिकट देने का नुकसान हुआ। पब्लिक उनसे नाराज थी। 2024 के चुनाव में लोगों ने बदलाव के लिए वोट किया। पॉलिटिकल एक्सपर्ट एक्सपर्ट बोले- 2017 में अखिलेश के डेवलपमेंट भी लोगों ने नकारे थे पॉलिटिकल एक्सपर्ट नवल कांत सिन्हा कहते हैं- यूपी के 2017 के विधानसभा चुनाव में देखिए, अखिलेश ने चुनाव से पहले गोमती रिवर फ्रंट, मेट्रो और जनेश्वर मिश्रा पार्क तैयार करवाए थे। पोस्टर लगवाए थे विकास पुरुष के। मगर लोगों ने विकास को छोड़कर धर्म के आधार पर वोट दिया। अखिलेश चुनाव हार गए थे। इस चुनाव में भाजपा सांसदों का विरोध था। लोग बोल रहे थे कि दो बार जिन्हें जिताया, उन्हें तीसरी बार बर्दाश्त नहीं करेंगे। ऐसे में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर