यूपी में सिखों ने गरीबी-बेरोजगारी के चलते धर्म छोड़ा:पैसे और मकान का लालच मिला तो बन गए ईसाई नेपाल बॉर्डर से सटे उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के 3 गांवों में धर्मांतरण करने वाले लोगों में 3 बातें कॉमन रहीं। सभी को बीमारी से मुक्ति दिलाने, पैसे देने और भविष्य में मकान बनवाने का लालच दिया गया। पैसा नहीं मिलने या दूसरी वजहों से ईसाई धर्म छोड़कर सिख धर्म में वापस आए कई परिवारों ने कैमरे पर यह बात कबूली। ईसाई मिशनरी के लिए ये इलाका सॉफ्ट टारगेट क्यों बना? इसकी प्रमुख वजह है गरीबी और बेरोजगारी। दूर-दूर तक पक्की सड़कें नहीं हैं। फैक्ट्रियां नहीं हैं। लोगों का एकमात्र आय का साधन थोड़ी-बहुत खेतीबाड़ी है। इसी वजह से परिवारों की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है। ज्यादातर घर कच्चे (छप्पर) बने हैं। शायद इसी बात का फायदा उठाकर इंडो-नेपाल बॉर्डर पर रहने वाले लोगों को सपने दिखाए गए और धर्मांतरण कराया गया। दैनिक भास्कर ने पहली खबर में बताया था कि ये सिंडिकेट किस तरह फैला? इस खबर में हम बताएंगे कि सिखों के धर्म छोड़ने की वजह क्या है? सबसे पहले सिख धर्म में वापस आए लोगों की आपबीती पढ़िए ‘वो सबसे पहले गुरु ग्रंथ साहिब को छुड़वाते हैं’
बेल्हा गांव के बलजीत सिंह बताते हैं- मेरा एक दोस्त है। उसने मुझसे कहा कि चर्च चलो। वहां चलोगे तो फायदे होते रहेंगे। मैं वहां गया। सबसे पहले वो लोग गुरु ग्रंथ साहिब को छुड़वाते हैं। कहते हैं, सिख धर्मस्थलों पर मत जाइए। माथा मत टेकिए, प्रसाद मत खाइए। उन्होंने मुझसे नामदान लेने के लिए कहा, लेकिन मैंने वो नहीं लिया। उन्होंने मुझे आर्थिक मदद करने का भी लालच दिया। जब मैं ईसाई धर्म की तरफ आकर्षित होने लगा तो परिवार-रिश्तेदारों ने मुझे समझाया। इसके बाद मैं अपने धर्म में लौट आया। मेरी तरह बेल्हा गांव के 200-250 लोग संडे के दिन चर्च में इकट्ठा होते हैं, प्रार्थना करते हैं। वो लोग संडे को बाइबल भी बांटते हैं। ‘हमारा भाई अब चर्च चलाता है, उससे कोई वास्ता नहीं’
बेल्हा गांव में घुसते ही पहला मकान भारत सिंह का है। वह बताते हैं- मेरे बड़े भाई फसल बेचने के लिए नेपाल जाते थे। वहां उनका कॉन्टैक्ट नेपाल के पादरियों से हो गया। इसके बाद नेपाल के पादरी हमारे घर आने लगे। मेरे भाई उनसे प्रभावित हो गए। सिख धर्म छोड़कर उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया। हमने उन्हें खूब समझाया। पड़ोसियों, रिश्तेदारों ने भी खूब कहा। गुरुद्वारा कमेटी के लोग भी उनके घर पर गए। लेकिन, भाई नहीं माने और पूरी तरह ईसाई धर्म में चले गए। शायद वो किसी आर्थिक लालच में थे। अब वो एक चर्च का संचालन करते हैं। हम उनसे पूरी तरह अलग हो गए हैं। हमने अपना अलग घर बना लिया है, जहां 2 भाई रहते हैं। अब हमारा उनसे कोई वास्ता नहीं है। मासूम बच्चों का भी किया ब्रेनवॉश
क्लास- 6 में पढ़ने वाले 10 साल के अमृत सिंह कहते हैं- पहले हमारी मां ईसाई धर्म से जुड़ीं। उनके बाद मैं और मेरी बहन भी अपनी मर्जी से चर्च जाने लगे। वो लोग हमें बाइबल सहित कई तरह की किताबें पढ़ने के लिए देते थे। लेकिन, हमको कोई फर्क नहीं पड़ा और हम अपने गुरु धर्म में वापस आ गए। हमारा वहां मन नहीं लगा। बेल्हा गांव में हमें एक बीजेंद्र कौर नाम की लड़की मिली। वह पहले सिख थी और अब ईसाई बन गई है। उसने पूछने पर बताया- मैं पहले बहुत बीमार रहती थी, लेकिन बाद में जब मैंने बाइबल पढ़ी तो मैं ठीक हो गई। तभी से मैं विश्वास करने लगी। 2 साल से मैं बाइबल पढ़ रही हूं। धर्म नहीं बदला है। हालांकि गांव के लोगों ने बताया बीजेंद्र झूठ बोल रही है। उसने धर्म बदल लिया है। ‘नदी में डुबकी लगवाकर कराया धर्मांतरण’
राघवपुरी के खंडा सिंह बताते हैं- मुझे लालच दिया गया था कि अगर ईसाई धर्म अपनाऊंगा, तो 2 लाख 80 हजार रुपए मिलेंगे। बाद में नया मकान बनवाने की बात भी कही गई। इसी लालच में हम फंस गए और चर्च जाना शुरू कर दिया। धर्मांतरण के लिए सबसे पहले उन्होंने वहां मुझे नेपाल बॉर्डर पर नदी के पानी में तीन डुबकियां लगवाईं। इस दौरान नेपाल के पास्टर मौजूद थे। प्रधान का पति बन गया पादरी, ग्रामीणों को धमकाता है
टाटरगंज गांव में हमें एक युवक मिला। उसके परिवार को जबरन ईसाई बनाया गया है। उसने कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया। ऑफ कैमरा उसने बताया- इस गांव में प्रधान के पति से सब डरते हैं। वो खुद पादरी बन गया है। उसने ही गांव के गरीब परिवारों को टारगेट किया। युवक ने बताया- कुछ लोग खुशी-खुशी मान गए, कुछ ने विरोध किया तो उनको धमकाया गया। उनके साथ मारपीट हुई। उनके घर की लड़कियों से छेड़छाड़ हुई। इन सब चीजों से बचने के लिए लोग ईसाई धर्म अपना लेते हैं। उसका कहना है कि प्रधान का पति अर्जुन सिंह पहले सिख था। बाद में उसने गांव में 4-5 बार ईसाइयों की मीटिंग करवाई। उन्हीं मीटिंग में उसको पादरी का पद दिया गया। मीटिंग में सभी लोगों को ईसाई धर्म के बारे में जानकारी दी जाती थी। उसे ईसाई धर्म अपनाने के लिए लालच दिया जाता था। अर्जुन सिंह को गिफ्ट में एक घर भी मिला है, पैसे भी दिए गए। शायद अभी भी उसको इस काम के लिए पैसा मिल रहा है। उसका परिवार इस काम में लगा है। यहां तक कि प्रधान भी लोगों को ईसाई धर्म अपनाने पर सरकारी सुविधा देने का वादा करती है। शारदा नदी क्रॉस करके पहुंचते हैं गांव, कोई पक्का पुल नहीं
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव परमजीत सिंह बताते हैं- बेल्हा ग्राम पंचायत में 12700 हेक्टेयर जमीन है। ये जमीन ग्राम पंचायत, वन विभाग और सिंचाई विभाग की है। इसी जमीन पर लोगों के कच्चे-पक्के मकान बने हैं। इसी जमीन पर खेती भी होती है। ये पूरी जमीन शारदा नदी के खादर क्षेत्र में आती है। साल के करीब 3 महीने बाढ़ की वजह से खेती नहीं हो पाती। घरों में पानी भर जाता है। कई बार कच्चे घर पूरी तरह डूब जाते हैं या बह जाते हैं। कमोबेश यही हालत बेल्हा से सटे सिंघाड़ा उर्फ टाटरगंज, भागीरथ, बम्मनपुरी, बिनवा नगर, राघवपुरी आदि गांव-मजरों की है। यहां से पीलीभीत जिला मुख्यालय की दूरी करीब 40 किलोमीटर है। इसमें भी खादर के कच्चे रास्ते हैं, जो टेम्प्रेरी बने हैं। लोग सिर्फ खेती पर निर्भर हैं। कुछ सक्षम लोगों ने टाटरगंज में छोटी-छोटी दुकानें बना रखी हैं। दूर-दूर तक इसके अलावा आय का कोई और साधन नहीं है। इन सभी गांवों की तहसील पूरनपुर लगती है। यहां से पूरनपुर की दूरी भी 30 किलोमीटर के आसपास है। कुल मिलाकर नेपाल बॉर्डर के ये गांव बीच में शारदा नदी होने की वजह से डेवलपमेंट से पूरी तरह कट गए हैं। लोग बताते हैं कि एक पक्का पुल तक गांव आने के लिए नहीं है। डेवलपमेंट न होने की एक बड़ी वजह ये भी है। गांव के लोगों को आज भी पांटून पुल पार करके ही आना-जाना पड़ता है। इसमें भी ये पांटून पुल दिन ढलने के बाद बंद हो जाता है। पीलीभीत जिले में तैनात रहे एक अफसर ऑफ कैमरा बताते हैं- धर्मांतरण मामलों की शिकायत पर मैं भी कई दफा नेपाल बॉर्डर के गांवों में गया, जांच-पड़ताल की। इसमें यही बात सामने आई कि किसी भी व्यक्ति का जबरन धर्मांतरण नहीं हुआ। वे व्यक्ति लालच में आए और धर्म परिवर्तन कर लिया। अगर इस इलाके में रोजगार के कुछ साधन उपलब्ध हो जाएं तो लोगों की आमदनी अच्छी हो जाएगी। इसके बाद वो इस छोटे लालच में नहीं फंस सकेंगे। 700 लोग सिख धर्म में वापस आए
लगातार बढ़ते धर्मांतरण के मामले देखते हुए कुछ सिख संगठनों ने अब घर वापसी अभियान चलाया है। दावा है कि अब तक वो 140 परिवारों (करीब 700 लोग) की सिख धर्म में वापसी करा चुके हैं। पिछले दिनों बेल्हा गांव के गुरुद्वारा में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें घर वापसी करने वालों का स्वागत हुआ। बाकायदा इन सभी से शपथ पत्र भी लिए गए हैं। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का कहना है कि ये अभियान जारी रहेगा। हमने इसमें कुछ विश्व हिंदू परिषद जैसे कुछ हिंदू संगठनों का भी सहयोग लिया है। 26 मई को ऑल इंडिया सिख पंजाबी वेलफेयर काउंसिल ने पीलीभीत में एक कार्यक्रम आयोजित करके काफी लोगों के घर वापसी करने पर खुशी जताई। ———————— ये खबर भी पढ़ें… भारत-नेपाल बॉर्डर पर 3 हजार सिखों का धर्मांतरण, 23 साल पहले आए पादरी से फैला सिंडिकेट, घरों में दक्षिण कोरिया के कैलेंडर नेपाल बॉर्डर से सटे उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव परमजीत सिंह का कहना है ये पूरा क्षेत्र ट्रांस शारदा के नाम से जाना जाता है। इसमें प्योर सिखों की पॉपुलेशन है। नेपाल के पादरी इंडिया में आए। उन्होंने स्थानीय लोग पादरी बनाए। स्थानीय पादरी अब तक ढाई-तीन हजार लोगों का धर्मांतरण करा चुके हैं। पढ़ें पूरी खबर