हरियाणा में इनेलो-बसपा 6 साल बाद फिर साथ:11 को हो सकती है गठबंधन की घोषणा, मायावती से मिले अभय चौटाला

हरियाणा में इनेलो-बसपा 6 साल बाद फिर साथ:11 को हो सकती है गठबंधन की घोषणा, मायावती से मिले अभय चौटाला

हरियाणा में बड़ा सियासी उलटफेर होने की संभावना है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ में बसपा सुप्रीमो मायावती से इनेलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला की मुलाकात ने प्रदेश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। राजनीतिक गलियारे में कयास लगाए जा रहे हैं बसपा और इनेलो प्रदेश में साथ मिलकर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि इनेलो और बसपा की ओर से किसी तरह की घोषणा नहीं की गई है। मगर सोशल मीडिया पर मायवती और अभय चौटाला की मुलाकात की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। वहीं बताया जा रहा है कि दोनों दल 11 जुलाई को चंडीगढ़ में संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस कर सकते हैं। इसमें इनेलो के शीर्ष नेताओं के अलावा बसपा के शीर्ष नेता मौजूद रहेंगे। इसके साथ ही हरियाणा में गैर कांग्रेस और गैर भाजपा दलों को साथ लाने के प्रयास में इनेलो जुट गई है। तीसरे मोर्चा बनाने की कवायद वहीं इनेलो के प्रदेशाध्यक्ष रामपाल माजरा ने X पर पोस्ट कर तीसरे मोर्चे के प्रयासों को हवा दे दी है। रामपाल माजरा ने X पर लिखा है ” हम समान विचारधारा के लोगों को एक मंच पर इकट्ठा कर रहे हैं। प्रदेश के सभी गैर भाजपा एवं गैर कांग्रेस संगठनों, जिसमे राजनैतिक संगठनों के साथ-साथ सामाजिक संगठनों से आग्रह है कि वे सभी साथ आएं और किसान-कमेरे वर्ग के हितैषी चौ. अभय सिंह चौटाला जी के हाथ मज़बूत करें। सियासी गलियारों में चर्चा है इनेलो आम आदमी पार्टी और महम के निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू की पार्टी हरियाणा जनसेवक पार्टी (हजपा) से भी गठबंधन के लिए बातचीत कर सकती है। हरियाणा में तीसरा मोर्चा बना तो कांग्रेस को नुकसान
वहीं हरियाणा में अगर गैर कांग्रेसी और भाजपाई दलों को एकजुट करने में कामयाब रहती है तो इसका सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को होगा। जब भी भाजपा के खिलाफ प्रदेश में वोट बैंक बटता है इसका फायदा भाजपा को होता है और कांग्रेस को नुकसान पहुंचता है। इस बार लोकसभा चुनाव में जनता ने दो ही पार्टी कांग्रेस और भाजपा को वोट दिए जिसके कारण कांग्रेस का वोट प्रतिशत पिछली बार के मुकाबले बढ़ा। वहीं विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों की अपनी अलग पहचान होती है। हरियाणा में क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस और भाजपा के अलावा प्रभाव दिखाया है। 2014 में इनेलो ने कांग्रेस से ज्यादा विधानसभा सीटें जीती थीं। 2019 में जजपा के विधायकों के सहयोग से हरियाणा में भाजपा की सरकार बनी थी। गठबंधन की बसपा को इसलिए मजबूरी
हरियाणा में बसपा ने पहला लोकसभा चुनाव साल 1989 में लड़ा था। उस दौरान पार्टी ने नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, मगर जनता ने सभी प्रत्याशियों को नकार दिया। पार्टी को मात्र डेढ़ फीसदी वोट मिला। उसके बाद से पार्टी हर लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाती रही है। पिछले चार दशकों के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का जादू हरियाणा में नहीं चल पाया है। हर चुनाव में बसपा कभी गठबंधन के साथ तो कभी दसों सीट पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ती रही है। 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टियों का वोट प्रतिशत गठबंधन करती गई और तोड़ती रही बसपा
1998 में बसपा ने इनेलो के साथ गठबंधन किया और तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। इनमें से एक प्रत्याशी जीता भी। उसके कुछ ही दिन बाद बसपा ने इनेलो से गठबंधन तोड़ लिया। 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद बसपा ने हजकां के साथ गठबंधन किया। मगर यह समझौता ज्यादा दिन टिक नहीं सका। मई 2018 में पार्टी ने इनेलो के साथ गठबंधन किया। मायावती ने अभय सिंह चौटाला को राखी बांधकर गठबंधन को और मजबूत किया, मगर लोकसभा चुनाव से पहले ही यह करार टूट गया। 2019 के चुनाव में बसपा ने राजकुमार सैनी की पार्टी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (लोसुपा) का साथ पकड़ा। चुनाव के बाद यह भी टूट गया। लोसुपा से साथ छूटने के बाद बसपा से गठबंधन किया और एक महीने बाद बसपा ने अलग राह पकड़ ली। हरियाणा में भाजपा के खिलाफत वाले वोट लेने की होड़
हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर के वोट पाने की जहां कांग्रेस हर संभव कोशिश कर रही है। वहीं विपक्षी दल इनेलो कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा को भाजपा का मोहरा बताने में लगे हैं ताकि सत्ता विरोधी लहर का फायदा उनको भी मिल सके। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर इनेलो और जजपा में बटने के बजाय कांग्रेस को गया। इससे कांग्रेस को लोकसभा में 5 सीटें मिली। वहीं विधानसभा वाईज 42 सीटों पर बढ़त मिली। ऐसे में विपक्षी दल हुड्‌डा की पोल खोलने में लगे हैं। हुड्‌डा के चुनाव से पीछे हटने से बैठे बठाए इनेलो और जजपा के हाथ मुद्दा लग गया है। इनेलो के लिए गठबंधन करना जरूरी चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार किसी भी पार्टी को लगातार 2 चुनाव (लोकसभा व विधानसभा) में निर्धारित वोट नहीं मिलते हैं तो स्टेट पार्टी का दर्जा छिन जाता है। लोकसभा चुनाव में 6% वोट और एक सीट या 8% वोट की जरूरत होती है। विधानसभा में 6% वोट और 2 सीटें होनी चाहिए। नियम के अनुसार, अगर लगातार 2 चुनाव (2 लोस व 2 विस) में ये सब नहीं होता है तो पार्टी का चुनाव चिह्न भी छिन सकता है। इनेलो ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 1.89% और विधानसभा चुनाव में 2.44% ही वोट हासिल किए थे। इसके अलावा 2019 के चुनाव भाजपा की लहर ने हरियाणा में सभी दलों का सूपड़ा साफ कर दिया। 10 की 10 सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी विजयी हुए। इस चुनाव में इनेलो को एक भी सीट नहीं मिली। इसके बाद विधानसभा चुनाव हुआ। इस चुनाव में इनेलो के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन यहां भी निराशा हाथ लगी। अभय चौटाला के अलावा सभी प्रत्याशी हार गए। इस बार भी कम से कम 6% वोट और एक सीट या 8% वोट नहीं मिले तो स्टेट पार्टी का दर्जा व चश्मे का चुनाव निशान तक छिन सकता है। हरियाणा में बड़ा सियासी उलटफेर होने की संभावना है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ में बसपा सुप्रीमो मायावती से इनेलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला की मुलाकात ने प्रदेश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। राजनीतिक गलियारे में कयास लगाए जा रहे हैं बसपा और इनेलो प्रदेश में साथ मिलकर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि इनेलो और बसपा की ओर से किसी तरह की घोषणा नहीं की गई है। मगर सोशल मीडिया पर मायवती और अभय चौटाला की मुलाकात की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। वहीं बताया जा रहा है कि दोनों दल 11 जुलाई को चंडीगढ़ में संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस कर सकते हैं। इसमें इनेलो के शीर्ष नेताओं के अलावा बसपा के शीर्ष नेता मौजूद रहेंगे। इसके साथ ही हरियाणा में गैर कांग्रेस और गैर भाजपा दलों को साथ लाने के प्रयास में इनेलो जुट गई है। तीसरे मोर्चा बनाने की कवायद वहीं इनेलो के प्रदेशाध्यक्ष रामपाल माजरा ने X पर पोस्ट कर तीसरे मोर्चे के प्रयासों को हवा दे दी है। रामपाल माजरा ने X पर लिखा है ” हम समान विचारधारा के लोगों को एक मंच पर इकट्ठा कर रहे हैं। प्रदेश के सभी गैर भाजपा एवं गैर कांग्रेस संगठनों, जिसमे राजनैतिक संगठनों के साथ-साथ सामाजिक संगठनों से आग्रह है कि वे सभी साथ आएं और किसान-कमेरे वर्ग के हितैषी चौ. अभय सिंह चौटाला जी के हाथ मज़बूत करें। सियासी गलियारों में चर्चा है इनेलो आम आदमी पार्टी और महम के निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू की पार्टी हरियाणा जनसेवक पार्टी (हजपा) से भी गठबंधन के लिए बातचीत कर सकती है। हरियाणा में तीसरा मोर्चा बना तो कांग्रेस को नुकसान
वहीं हरियाणा में अगर गैर कांग्रेसी और भाजपाई दलों को एकजुट करने में कामयाब रहती है तो इसका सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को होगा। जब भी भाजपा के खिलाफ प्रदेश में वोट बैंक बटता है इसका फायदा भाजपा को होता है और कांग्रेस को नुकसान पहुंचता है। इस बार लोकसभा चुनाव में जनता ने दो ही पार्टी कांग्रेस और भाजपा को वोट दिए जिसके कारण कांग्रेस का वोट प्रतिशत पिछली बार के मुकाबले बढ़ा। वहीं विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों की अपनी अलग पहचान होती है। हरियाणा में क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस और भाजपा के अलावा प्रभाव दिखाया है। 2014 में इनेलो ने कांग्रेस से ज्यादा विधानसभा सीटें जीती थीं। 2019 में जजपा के विधायकों के सहयोग से हरियाणा में भाजपा की सरकार बनी थी। गठबंधन की बसपा को इसलिए मजबूरी
हरियाणा में बसपा ने पहला लोकसभा चुनाव साल 1989 में लड़ा था। उस दौरान पार्टी ने नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, मगर जनता ने सभी प्रत्याशियों को नकार दिया। पार्टी को मात्र डेढ़ फीसदी वोट मिला। उसके बाद से पार्टी हर लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाती रही है। पिछले चार दशकों के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का जादू हरियाणा में नहीं चल पाया है। हर चुनाव में बसपा कभी गठबंधन के साथ तो कभी दसों सीट पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ती रही है। 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टियों का वोट प्रतिशत गठबंधन करती गई और तोड़ती रही बसपा
1998 में बसपा ने इनेलो के साथ गठबंधन किया और तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। इनमें से एक प्रत्याशी जीता भी। उसके कुछ ही दिन बाद बसपा ने इनेलो से गठबंधन तोड़ लिया। 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद बसपा ने हजकां के साथ गठबंधन किया। मगर यह समझौता ज्यादा दिन टिक नहीं सका। मई 2018 में पार्टी ने इनेलो के साथ गठबंधन किया। मायावती ने अभय सिंह चौटाला को राखी बांधकर गठबंधन को और मजबूत किया, मगर लोकसभा चुनाव से पहले ही यह करार टूट गया। 2019 के चुनाव में बसपा ने राजकुमार सैनी की पार्टी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (लोसुपा) का साथ पकड़ा। चुनाव के बाद यह भी टूट गया। लोसुपा से साथ छूटने के बाद बसपा से गठबंधन किया और एक महीने बाद बसपा ने अलग राह पकड़ ली। हरियाणा में भाजपा के खिलाफत वाले वोट लेने की होड़
हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर के वोट पाने की जहां कांग्रेस हर संभव कोशिश कर रही है। वहीं विपक्षी दल इनेलो कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा को भाजपा का मोहरा बताने में लगे हैं ताकि सत्ता विरोधी लहर का फायदा उनको भी मिल सके। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर इनेलो और जजपा में बटने के बजाय कांग्रेस को गया। इससे कांग्रेस को लोकसभा में 5 सीटें मिली। वहीं विधानसभा वाईज 42 सीटों पर बढ़त मिली। ऐसे में विपक्षी दल हुड्‌डा की पोल खोलने में लगे हैं। हुड्‌डा के चुनाव से पीछे हटने से बैठे बठाए इनेलो और जजपा के हाथ मुद्दा लग गया है। इनेलो के लिए गठबंधन करना जरूरी चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार किसी भी पार्टी को लगातार 2 चुनाव (लोकसभा व विधानसभा) में निर्धारित वोट नहीं मिलते हैं तो स्टेट पार्टी का दर्जा छिन जाता है। लोकसभा चुनाव में 6% वोट और एक सीट या 8% वोट की जरूरत होती है। विधानसभा में 6% वोट और 2 सीटें होनी चाहिए। नियम के अनुसार, अगर लगातार 2 चुनाव (2 लोस व 2 विस) में ये सब नहीं होता है तो पार्टी का चुनाव चिह्न भी छिन सकता है। इनेलो ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 1.89% और विधानसभा चुनाव में 2.44% ही वोट हासिल किए थे। इसके अलावा 2019 के चुनाव भाजपा की लहर ने हरियाणा में सभी दलों का सूपड़ा साफ कर दिया। 10 की 10 सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी विजयी हुए। इस चुनाव में इनेलो को एक भी सीट नहीं मिली। इसके बाद विधानसभा चुनाव हुआ। इस चुनाव में इनेलो के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन यहां भी निराशा हाथ लगी। अभय चौटाला के अलावा सभी प्रत्याशी हार गए। इस बार भी कम से कम 6% वोट और एक सीट या 8% वोट नहीं मिले तो स्टेट पार्टी का दर्जा व चश्मे का चुनाव निशान तक छिन सकता है।   हरियाणा | दैनिक भास्कर