उत्तराखंड हादसा…लोग बोले- रोड पर पल-पल मौत दिखती है:अकेले बराथ गांव से उठीं 11 अर्थियां; पढ़िए परिवारों का दर्द किनाथ बराथ..। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले की धूमाकोट तहसील का एक छोटा सा गांव। पहाड़ की गोद में बसे इस गांव में हर तरफ मातम पसरा है। दूर-दूर बसे घरों से रह-रहकर चीखें गूंजती हैं। लेकिन, पहाड़ में पत्थरों से टकराकर यहीं वीराने में कहीं गुम हो जाती हैं। एक-एक घर में कई-कई मौतों पर मातम मना रहे इन लोगों का दर्द भी पहाड़ जितना ही नजर आता है। हम बात कर रहे हैं, उत्तराखंड के उस गांव की जिससे उत्तराखंड बस हादसे के बाद 11 जनाजे एक साथ उठे। सबसे ज्यादा मौतें इसी गांव से हुई हैं। 4 नवंबर की सुबह 6:15 बजे मौत की वो बस भी इसी गांव से रवाना हुई थी। यहां किसी घर से पति-पत्नी के जनाजे उठे तो किसी घर से पिता के साथ मासूम बच्चे का जनाजा निकला, तो कहीं बाप-बेटी की अर्थी को लोगों ने आंखों से बहते आंसुओं के बीच कंधा दिया। आइए, हम आपको पढ़वाते हैं कि इस सफर के शुरू होने से अंत तक की पूरी कहानी। उस रूट की दुश्वारियां भी बताएंगे। जिनसे होकर ये बस रोजाना गुजरती है, हादसे के पहले भी और हादसे के बाद भी। क्योंकि यहां लोगों के पास इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं। किनाथ बराथ से शुरू हुआ ये सफर मर्चुला से 3 किमी पहले 36 लोगों की मौत के साथ खत्म हुआ। दैनिक भास्कर की टीम उस जगह तक पहुंची जहां से बस चली थी। उस जगह भी जहां 150 फीट गहरी खाई में अब बस का मलवा पड़ा है। हमने उत्तराखंड की टॉप ब्यूरोक्रेसी से सीधे सवाल भी किए, लोगों का दर्द भी जाना… बात शुरू करते हैं किनाथ बराथ से, जहां से इस खतरनाक सफर की शुरुआत होती है इस रोड पर पल-पल नजर आती है मौत
जिम कॉर्बेट के लिए मशहूर उत्तराखंड का रामनगर किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इसी रामनगर से जिम कार्बेट के बीच से होते हुए एक सड़क गुजरती है। इस सड़क पर करीब 35 किमी चलने के बाद एक जगह आती है मर्चुला। ये अल्मोड़ा जिले का हिस्सा है। इसी मर्चुला से एक रास्ता सीधे पौड़ी को जाता है,जबकि दूसरा सराय खेत को। जब आप सराय खेत वाले रास्ते पर आगे बढ़ेंगे तो 3 किमी चलने के बाद ही सारंड बैंड पड़ता है। जहां ये हादसा हुआ। ये रास्ता खतरों से भरा है। जगह-जगह खतरनाक यूटर्न हैं। सड़क जगह-जगह धंसी है और हादसों को मानो न्योता दे रही है। इसी रोड पर थोड़ा आगे बढ़ने पर पौड़ी गढ़वाल जिले की सीमा शुरू हो जाती है। करीब 25 किमी आगे बढ़ने पर इसी रोड पर गोलीखाल आता है। गोलीखाल को पार करने के 4 किमी बाद मझेड़ा मोड़ आता है। यहां से मेन सड़क आगे दिगोलीखाल को जाती है। लेकिन, लेफ्ट टर्न लेने पर आप किनाथ बराथ को चल देते हैं। ये सड़क बेहद खतरनाक है। यहां सामने से आने वाले वाहन को साइड देते वक्त आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। सड़क बेहद संकरी और ऊबड़ खावड़ है। इस पर 12 किमी चलने के बाद आता है किनाथ बराथ। दरअसल किनाथ बराथ पास-पास बसे दो अलग-अलग गांव हैं। जिन्हें किनाथ मल्लाह और बराथ मल्नाह के नाम से भी जानते हैं। अब पहाड़ के इस गांव में घर-घर में पसरे मातम की दास्तां पढ़िए मीना पहली बार शहर जा रही थी, तड़के 4 बजे से खाना बनाने लगी शुरुआत किनाथ से ही करते हैं। यही वो गांव है जहां से हर रोज सुबह 6:15 बजे गढ़वाल मोटर्स यूजर्स (GMU) की बस रामनगर के लिए रवाना होती है। शाम को इसी वक्त तक से बस इसी गांव में आकर रुकती है। दैनिक भास्कर की टीम इस गांव में पहुंची तो हम गांव के बाहर ही धीरेंद्र सिंह मिले। वो अपने छोटे भाई प्रवीण और उसकी पत्नी मीना का क्रिया-कर्म करके लौट रहे थे। धीरेंद्र बोले- ‘हम 4 भाई हैं। प्रवीण सबसे छोटा था। अभी अप्रैल में ही मीना के साथ उसकी शादी हुई थी। रोजगार बचा नहीं। यहां पहाड़ तो उजाड़ ही हो गए। 80 फीसदी घरों में ताले लटके हैं। प्रवीण भी 2 साल पहले रोजगार की तलाश में गांव छोड़ गया। गुड़गांव में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा। वो दिवाली मनाने गांव आया था।’ रुंधे गले से धीरेंद्र आगे कहते हैं-‘रविवार को वो अम्मा (गोता देवी) से बोला- मां इसे (पत्नी मीना) भी साथ ले जाऊं क्या शहर घूम आएगी। नई शादी हुई थी हम बहू को भेजना तो नहीं चाहते थे लेकिन, प्रवीण का मन देखा तो मां ने हां कर दी। प्रवीण पहली बार अपनी घर वाली को लेकर शहर जा रहा था। वो इसके पहले कभी पहाड़ से नीचे गई भी नहीं थी। मीना इतनी खुश थी कि तड़के 4 बजे से ही उठकर खाना बना लिया। 6:15 बजे पूरा परिवार उसे गांव से ही जाने वाली बस में बैठाकर आए थे। एक-डेढ़ घंटे बाद ही बस के खाई में गिरने का पता चला। प्रवीण और मीना दोनों की मौत हो गई…।’ पहाड़ की गोद में बसे इस गांव में घर के कोने में बैठी प्रवीण की मां गोता देवी और पिता भजन सिंह घुटनों में सिर दिए सिसक रहे हैं। 5 साल के बेटे के साथ उठा दीपक का जनाजा
किनाथ से रामनगर को चलते हैं तो महज 500 मीटर की दूरी पर है बराथ मल्लाह। यहां सड़क से करीब 300 मीटर पहाड़ी चढ़ने पर दीपक रावत का घर है। यहां साका देवी घर की बॉलकनी में बैठी सिसक रही हैं। रोते हुए बोलीं- मैंने अपने बेटे दीपक और पोते आरव को खो दिया। दीपक रावत, साका देवी के छोटे बेटे थे। पिछले कई सालों से गांव छोड़ हरिद्वार में प्राइवेट नौकरी करते थे। पत्नी-बच्चे भी वहीं रहने लगे थे। दीपक की बहन मधु बताती हैं- मेरे भाई -भाभी दिवाली मनाने गांव आए थे। सोमवार को अपने काम पर हरिद्वार लौट रहे थे। मेरे भाई दीपक रावत और उनके 5 साल के बेटे आरव की मौत हो गई। भाभी प्रमिला और भतीजी अंशु अभी भी अस्पताल में मौत से जंग लड़ रहे हैं। मंगलवार को दीपक और उनके मासूम बेटे के जनाजे इस घर से एक साथ उठे। बेटी को कॉलेज छोड़ने के लिए निकले, दोनों की लाशें साथ आईं
बिसाथ गांव में ही सड़क किनारे राकेश ध्यानी की आटा चक्की पर ताला लटका है। राकेश ध्यानी (45 साल) और उनकी बेटी मानसी (18 साल) का नाम भी सोमवार को हुए बस हादसे में मरने वालों की सूची में शामिल है। मानसी रामनगर कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रही थी। दिवाली मनाने के लिए गांव आई थी। सोमवार को राकेश अपनी बेटी को रामनगर तक छोड़ने जा रहे थे। लेकिन बस हादसे में दोनों की जान चली गई। राकेश बेटी को पढ़ा लिखाकर बड़ा अफसर बनाना चाहते थे। मंगलवार दोनों के जनाजे एक साथ उठे तो पूरा गांव बिलख उठा। कई साल बाद दिवाली मनाने गांव आए थे देवेंद्र, पत्नी-भाई खो दिए
बराथ गांव के रहने वाले वीरेंद्र सिंह नेगी आर्मी में हैं। उन्होंने रामनगर पीरूमदारा में घर बना लिया है। फैमिली भी वहीं शिफ्ट कर दी है। लेकिन, वर्षों बाद वीरेंद्र का मन हुआ कि दिवाली अपने पैतृक गांव में जाकर मनाएंगे। इसलिए पत्नी और भाई के साथ गांव चले आए। सोमवार को हादसे का शिकार हुई बस में वीरेंद्र नेगी(50 साल), उनकी पत्नी सुमन नेगी(45 साल) और छोटा भाई देवेंद्र भी सवार थे। हादसे में देवेंद्र और सुमन की मौके पर ही मौत हो गई। वीरेंद्र सिंह नेगी को ऑर्मी हॉस्पिटल बरेली में एडमिट कराया गया है। मंगलवार को देवर-भाभी का जनाजा वीरेंद्र के घर से एक साथ उठा। सुमन की बहन सरिता रावत ने दैनिक भास्कर से कहा, वो तो कई सालों से बराथ नहीं गए थे। अचानक पता नहीं क्या मन में आया कि पैतृक गांव जाने की जिद पकड़ ली। रोजाना खतरों के सफर से परेशान मनोज ट्रांसफर चाहते थे
बराथ मल्लाह से ही सटा है बिरखेत। बस हादसे में मरने वालों की सूची में बिरखेत के मनोज और उनकी पत्नी चारू देवी का नाम भी शामिल है। मनोज रावत के दोस्त अरुण पोखरियाल बताते हैं- सोमवार को इस हादसे से एक दिन पहले रविवार को ही मनोज का फोन आया था। वो हॉर्टिकल्चर विभाग में तैनात था। उसकी पोस्टिंग पिछले कई सालों से रामनगर में थी। वो बिरखेत से रोजाना इस खतरों भरे सफर को तय करके रामनगर हॉर्टिकल्चर केनिंग सेंटर तक जाता था। वो अपने अल्मोड़ा ट्रांसफर की कोशिशों में जुटा था।लेकिन, ट्रांसफर से पहले ही ये हादसा उसे निगल गया। मनोज ने रामनगर में किराए का मकान लिया था। पत्नी बच्वों के साथ वहीं रहने लगे थे। गांव दिवाली मनाने आए थे। सोमवार को पत्नी चारू के साथ रामनगर लौट रहे थे। शिक्षक दिलवर सिंह को भी खींच ले गई मौत बस हादसे में मरने वालों की लिस्ट में बिरखेत के रहने वाले दिलवर सिंह का भी नाम शामिल है। दिलवर सिंह किनगौड़ी खाल इंटर कॉलेज में शिक्षक थे। दिलवर सिंह को रोजाना की तरह सोमवार को भी स्कूल ही जाना था। लेकिन अचानक उन्होंने स्कूल से छुट्टी ले ली। सोमवार सुबह वो भी इसी बस में रामनगर के लिए सवार हो गए, जो मर्चुला से पहले 150 फीट गहरी खाई में जा गिरी। अब बात आयुष ध्यानी की जो मौत के मुंह में गिरने से बाल-बाल बचे बस का दरवाजा टूटा और मैं अचानक बाहर गिर गया, लेकिन मेरा भाई नहीं बचा पॉलिटेक्निक मौलीखाल में डिप्लोमा कर रहे आयुष ध्यानी रामनगर के रामदत्त जोशी संयुक्त राजकीय चिकित्सालय में एडमिट हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि आयुष मौत के मुंह से लौटकर आए हैं। जिस सारूड़ बैंड पर यात्रियों से भरी बस 150 मीटर गहरी खाई में गिरी उससे 10 किमी पहले रुन्डाली गांव पड़ता है। आयुष इसी गांव के रहने वाले हैं। आयुष और उनका चचेरा भाई नीरज ध्यानी पॉलिटेक्निक मौलिखाल में पढ़ते हैं। सोमवार को सुबह करीब 7 बजे दोनों इस बस में सवार हुए थे। आयुष तो बच गए लेकिन कई घंटे चले सर्च ऑपरेशन के बाद नीरज ध्यानी की डेडबॉडी सबसे नीचे दबी मिली। आयुष ने कहा- मुझे पता नहीं है कि मैं कैसे इस हादसे में बच गया हूं। बैंड पर अचानक बस ने टर्न नहीं लिया और बस पलटी खाते हुए नीचे गिरने लगी। अचानक बस का गेट टूट गया और मैं बस से बाहर आ गया। पता नहीं कैसे वहीं पहाड़ी के पत्थर की सपोर्ट से मैं नीचे गिरने से बच गया। लेकिन मेरा भाई नीरज ध्यानी नहीं बच सका। मैंने तुरंत अपने परिवार वालों को फोन करके कहा कि बस खाई में गिर गई है। अब हादसे के बाद मौके पर पहुंचे स्थानीय मददगारों की आंखों देखी पढ़िए.., हम यहां आए तो हर तरफ लाशें बिखरी थीं
रुन्डाली गांव के रहने वाले डॉ. राकेश परोड़िया उन स्थानीय युवाओं में शामिल हैं, जिन्होंने पुलिस और SDRF के मौके पर आने से पहले करीब एक-डेढ़ घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन की कमान संभाली। राकेश दैनिक भास्कर टीम को 150 फीट गहरी खाई में उस प्वाइंट तक भी लेकर गए जहां क्षतिग्रस्त बस अभी तक पड़ी है। यहां मृतकों के जूते-चप्पल और दूसरा सामान अभी भी दूर तक बिखरा पड़ा है। राकेश बोले- हमारे गांव के भी कई लोग इस बस में थे। उनमें से एक आयुष ध्यानी किसी तरह बस गिरते समय ऊपर ही फंसकर किसी तरह बच गया। उसी ने फोन से बस खाई में गिरने की जानकारी दी तो हम दौड़कर मौके पर पहुंचे। यहां आए तो हर तरफ लाशें बिखरी थीं। जो घायल थे उनकी चीख पुकार से रोंगटे खड़े हाे रहे थे। घायलों को 150 फीट ऊपर सड़क तक ले जाना चुनौती थी। फिर बीच में बह रही नदी को भी कम से कम दो बार पार करना था। पुलिस और SDRF के आने तक यहां से 22 लाशें निकाल चुके थे। मदद अगर थोड़ा जल्दी आती तो कुछ घायलों की जान शायद बच जाती। पहले हमें यकीन नहीं हुआ, चेक करने सिपाही भेजा
घटनास्थल से करीब 3 किमी दूरी पर अल्मोड़ा जिले के सल्ट थाने की मर्चुला पुलिस चौकी है। इस चौकी पर तैनात हेड कांस्टेबल दीपक बताते हैं- सुबह के करीब 8:15 बजे थे। हमें एक कॉल आई। कॉल करने वाले ने कहा कि कुप्पी बैंड के पास सारूड़ बैंड पर एक बस खाई में गिर गई है। हमें इस सूचना पर यकीन नहीं हुआ। हमने तुरंत एक सिपाही को मौके पर भेजा। सिपाही ने बस गिरने की पुष्टि की तो हम सभी दौड़कर मौके पर पहुंचे। अपने सीनियर अफसरों को भी तुरंत इस हादसे के बारे में जानकारी दी। इस रूट पर कई बार हो चुके हैं ऐसे हादसे
राकेश परोड़िया बताते हैं- ये हादसा नई बात नहीं है। पहले भी ऐसे हादसे होते रहे हैं। लेकिन सरकार इन्हें रोकने के लिए कभी नहीं चेती। इसी रूट पर बमुश्किल 2 किमी दूरी पर 15 अगस्त 2011 को यात्रियों से भरी बस खाई में गिरी थी। तब 25 लोग मरे थे। मरचुला बैंड पर 3 साल पहले सामान से भरा ट्रक खाई में गिर गया था। जड़ाऊ खान में करीब 3 साल पहले एक बस खाई में गिरी थी, जिसमें करीब 60 लोगों की मौत हो गई थी। पहले हमें यकीन नहीं हुआ, चेक करने सिपाही भेजा
घटनास्थल से करीब 3 किमी दूरी पर अल्मोड़ा जिले के सल्ट थाने की मर्चुला पुलिस चौकी है। इस चौकी पर तैनात हेड कांस्टेबल दीपक बताते हैं- सुबह के करीब 8:15 बजे थे। हमें एक कॉल आई। कॉल करने वाले ने कहा कि कुप्पी बैंड के पास सारूड़ बैंड पर एक बस खाई में गिर गई है। हमें इस सूचना पर यकीन नहीं हुआ। हमने तुरंत एक सिपाही को मौके पर भेजा। सिपाही ने बस गिरने की पुष्टि की तो हम सभी दौड़कर मौके पर पहुंचे। अपने सीनियर अफसरों को भी तुरंत इस हादसे के बारे में जानकारी दी। इस रूट पर कई बार हो चुके हैं ऐसे हादसे
राकेश परोड़िया बताते हैं- ये हादसा नई बात नहीं है। पहले भी ऐसे हादसे होते रहे हैं। लेकिन सरकार इन्हें रोकने के लिए कभी नहीं चेती। इसी रूट पर बमुश्किल 2 किमी दूरी पर 15 अगस्त 2011 को यात्रियों से भरी बस खाई में गिरी थी। तब 25 लोग मरे थे। मरचुला बैंड पर 3 साल पहले सामान से भरा ट्रक खाई में गिर गया था। जड़ाऊ खान में करीब 3 साल पहले एक बस खाई में गिरी थी, जिसमें करीब 60 लोगों की मौत हो गई थी। उत्तराखंड में 36 मौतों की आंखों देखी: 100 फीट खाई में लटके युवक ने किया फोन मेरे भाई विनोद पोखरियाल बस में ड्राइवर के सामने वाली सीट पर बैठे थे। जब बस खाई में गिरी तो, वो खिड़की से निकलकर नीचे गिर पड़े। लेकिन, बीच में लगे एक पेड़ ने उनकी जान बचा ली। वो मुझसे मिलने के लिए ही रामनगर आ रहे थे। सुबह करीब 8 बजे मेरे पास उनकी कॉल आई। विनोद ने बेहद घबराई आवाज में कहा- मैं 100 फीट गहरी खाई में पेड़ पर लटका हूं, मुझे बचा लो प्लीज।’ ये कहना है उत्तराखंड में हादसे में बचे यात्री विनोद के भाई अरुण का। पढ़ें पूरी खबर