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गुरदासपुर में गोलीकांड का आरोपी अस्पताल से फरार:अमृतसर में चल रहा था इलाज, घटना में हुई थी 4 लोगों की मौत
गुरदासपुर में गोलीकांड का आरोपी अस्पताल से फरार:अमृतसर में चल रहा था इलाज, घटना में हुई थी 4 लोगों की मौत गुरदासपुर जिले के श्री हरगबिंदपुर साहब के गांव विठवां में दो गुटों के दरमियान हुई फायरिंग मामले में अमृतसर में दाखिल एक जख्मी आरोपी अस्पताल से फरार हो गया। आरोपी के फरार होने के बाद पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया। फिलहाल पुलिस फरार आरोपी की तलाश में जुट गई है। वहीं पुलिस अधिकारी इस मामले को लेकर कुछ भी कहने से बच रहे है। अस्पताल में चल रहा था इलाज 7 जुलाई की शाम को गुरदासपुर के कस्बा श्री हरगबिंदपुर साहब के गांव विठवां में दो गुटों के दरमियान हुई फायरिंग में दोनों गुटों के 2-2 कुल चार लोग मारे गए थे। इस गोलीबारी में 8 से ज्यादा लोग ज़ख्मी हुए थे। घायलों का इलाज अमृतसर के निजी अस्पताल में चल रहा था। बटाला पुलिस में इन घायलों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया हुआ है। अस्पताल में दाखिल इन आरोपियों को पुलिस की कस्टडी में रखा गया था। अधिकारी नहीं कर रहे बात लेकिन बीती शाम को निजी अस्पताल में दाखिल एक गुट का युवक नवनिंदर सिंह उर्फ रवि वासी गांव मोड अपने साथियों की मदद से अस्पताल से फरार हो गया। इस मामले को लेकर एसएसपी बटाला अश्वनी गोटियाल से बात करनी चाहिए तो उन्होंने फोन नहीं उठाया और श्री हरगबिंदपुर साहब के डीएसपी राजेश कंकड़ ने कहा कि वह अभी बिजी हैं। इस मामले की जानकारी आपको बाद में देंगे। लेकिन पुलिस की कस्टडी से एक जख्मी आरोपी का भाग जाना पुलिस पर कई तरह के सवाल खड़े करता है।
गुदड़ी ट्रिपल मर्डर केस- चेहरा छिपाकर कोर्ट पहुंची शीबा:वो लड़की जिसके उकसाने पर 16 साल पहले हुआ हत्याकांड; गोली मारी, तलवार से काटा, आंखें फोड़ी
गुदड़ी ट्रिपल मर्डर केस- चेहरा छिपाकर कोर्ट पहुंची शीबा:वो लड़की जिसके उकसाने पर 16 साल पहले हुआ हत्याकांड; गोली मारी, तलवार से काटा, आंखें फोड़ी मेरठ के चर्चित गुदड़ी बाजार ट्रिपल मर्डर केस में 24 जुलाई को फैसला आना था। कोर्ट पहुंचे सभी को बुधवार को बस 2 चीजों का इंतजार था। पहला- अदालत क्या फैसला सुनाएगी? दूसरा- जिस लड़की के उकसाने पर मर्डर हुआ, उस शीबा सिरोही की पेशी का। 16 साल पुराने इस खौफनाक हत्याकांड में अब 31 जुलाई को फैसला आएगा। दुपट्टे से चेहरे को बांधकर रखा
शीबा अपनी मां के साथ अदालत पहुंची, लेकिन चेहरे को दुपट्टे से बांध रखा था। काफी देर शीबा अपनी मां के साथ कोर्ट रूम के बाहर बेंच पर बैठी रही। इस दौरान उसने दुपट्टे को चेहरे से एक पल भी खिसकने नहीं दिया। शीबा, उसकी मां ने वहां मौजूद किसी शख्स से कोई बात नहीं की। केवल वकीलों से उनकी कुछ बातें हुईं। मां-बेटी आपस में बेहद धीमी आवाज में बातें करती रहीं। जैसे ही पता चला कि फैसला नहीं आएगा। फौरन शीबा अपनी मां के साथ कोर्ट से चली गई। 16 साल पहले खौफनाक हत्याकांड आखिरी क्यों हुआ? पहले इसे जानते हैं… फिर एक दिन पहले कोर्ट में क्या हुआ, बताएंगे। 23 मई 2008 को बागपत और मेरठ जिले के बॉर्डर पर बालैनी नदी के किनारे तीन युवकों के शव मिले। मृतकों की पहचान सुनील ढाका (27) निवासी जागृति विहार मेरठ, पुनीत गिरि (22) निवासी परीक्षितगढ़ रोड मेरठ और सुधीर उज्जवल (23) निवासी गांव सिरसली, बागपत के रूप में हुई। 22 मई की रात तीनों की हत्या कोतवाली के गुदड़ी बाजार में हाजी इजलाल कुरैशी ने अपने भाइयों और दोस्तों के साथ मिलकर की। इजलाल की दोस्ती मेरठ कॉलेज में पढ़ने वाली शीबा सिरोही से थी। वह एकतरफा प्यार करता था। वहीं, सुनील ढाका भी शीबा को चाहने लगा था। शीबा को इजलाल से तीनों युवकों का मिलना पसंद नहीं था। उसने इजलाल को तीनों के खिलाफ उकसाया था। तीनों को गुदड़ी बाजार में आरोपी इजलाल ने घर बुलाया। जहां हत्या कर दी। तीनों को गोली मारी, तलवार से काटा, आंखें फोड़ी
ये हत्याकांड इतना नृशंस था कि प्रदेशभर में चर्चा में रहा। तीनों युवकों को पहले गोली मारी, फिर तलवार से गला काटा गया। लाठी-डंडों से पीटा। आंखें भी फोड़ दी। घटना को देख और सुनकर हर कोई हैरान था। आनन-फानन मेरठ के साथ ही बागपत पुलिस को अलर्ट किया गया। तत्काल एक आरोपी की गिरफ्तारी भी की गई। मुख्य आरोपी इजलाल से पूछताछ हुई तो हैरान करने वाले खुलासे हुए। शीबा का सुनील से प्यार करना गुजरा नागवार
इजलाल को पता चला कि शीबा सुनील ढाका को चाहती है। सुनील भी उसे प्यार करता है। ये बात इजलाल को खटक गई। उसने तय कर लिया कि सुनील ढाका को छोड़ेगा नहीं, ठिकाने लगाएगा। सुनील को ठिकाने लगाने के लिए इजलाल ने अपने तीन दोस्तों सुनील, पुनीत गिरी, सुधीर उज्जवल को अपने ठिकाने पर बुलाया। रातभर मौत का खूनी खेल चलता रहा
इसके बाद जमकर शराब पिलाई। जब तीनों लड़के नशे में बेसुध हो गए तो इजलाल ने तीनों को अपने ही घर में कैद कर लिया। इसके बाद इजलाल ने अपने दूसरे साथियों को घर बुलाया। तीनों युवकों को बुरी तरह पीटा। इजलाल इतना आक्रोशित था कि तीनों लड़कों को बुरी तरह पीटने के बाद भी उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ। उसने तीनों लड़कों की आंखें फोड़ डाली। फिर उनको गोली मार दी। इसके बाद तलवार से उनके गले काटे। रातभर इजलाल के टॉर्चर और मौत का खूनी खेल चलता रहा। पूरी रात इजलाल युवकों को काटता रहा और सुबह हो गई। जीने के पास तीनों के शव फेंके
आरोपी इजलाल और दोस्तों ने तीनों लाशों को घर में ही सड़क की तरफ बने एक छोटे से जीने के पास डाल दिया। लेकिन, थोड़ी ही देर लाशों से खून बह कर सड़क पर आने लगा। आसपास के लोगों ने खून बहता देखा तो शोर मचाया। इसके बाद उस हिस्से को खोला गया तो भयानक मंजर नजर आया। इतने में इजलाल का नशा भी उतर गया। उसने आनन-फानन गाड़ियां मंगाई और तीनों शवों को एक गाड़ी की डिक्गी में डालकर गंग नहर की ओर भागा। कोई सही जगह नजर नहीं आई तो आरोपी इन शवों को लेकर बागपत बॉर्डर पर हिंडन किनारे पहुंचा। इस दौरान गाड़ी का तेल खत्म हो गया तो आरोपी गाड़ी में ही शव छोड़कर फरार हो गया। शवों को गाड़ी में बुरी तरह ठूंसा
स्थानीय लोग बताते हैं- जीने से शवों को निकाल कर ठिकाने लगाने का दृष्य भी भयावह था। दरअसल, आरोपी जब अपने घर से शव निकाल रहा था तो सड़क पर गाड़ियों का काफिला था। इसमें एक गाड़ी पर नीली बत्ती लगी थी। एक गाड़ी में शव ठूंस कर भरे जा रहे थे। मकान के अंदर से लेकर सड़क तक खून ही खून फैला था। बावजूद इसके किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि आरोपी को रोक या टोक सके। बागपत पुलिस ने इस संबंध में केस दर्ज कर आरोपी इजलाल को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन कोर्ट में पेशी के दौरान गुस्साए लोगों ने हिरासत में उसकी पिटाई कर दी। कोर्ट पहुंचे शीबा-इजलाल ने एक-दूसरे को तिरछी नजरों से देखा
शीबा सिरोही पर इजलाल को मर्डर के लिए उकसाने का आरोपी बनाया गया है। इस पर शीबा कोर्ट से स्टे ले आई। वहीं, इजलाल कुरैशी के भाई और दूसरे आरोपी भी मुंह पर मास्क लगाकर पहुंचे। इजलाल कुरैशी सबसे बाद में कोर्ट पहुंचा। जिस शीबा के खातिर इजलाल ने ये सब किया वो दोनों लोग बुधवार को एक-दूसरे से बात करते नहीं दिखे। दोनों ने तिरछी नजरों में एक-दूसरे को देखा। ये भी पढ़ें:- मेरठ में युवती की गला रेतकर हत्या, तेजाब से जलाया चेहरा मेरठ में किशोरी की सड़ी-गली लाश मिली है। चेहरे को तेजाब से जला दिया गया है। बॉडी भी अधजली है। किशोरी के पिता का आरोप है कि 4 युवकों ने गैंगरेप के बाद बेटी की हत्या कर दी। परिजनों ने शव की पहचान पैर पर तिल और कपड़ों से की। परिजनों ने बुधवार को थाने के बाहर शव रखकर हंगामा किया। उनका कहना है कि जब तक आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होगी, तब तक अंतिम संस्कार नहीं करेंगे। पढ़ें पूरी खबर…
28 साल पहले भेड़िया खा गया था 38 बच्चे:हर 5वें दिन एक बच्चे का शिकार करता; एक्सपर्ट बोले- बहराइच वाला हो सकता है बूढ़ा
28 साल पहले भेड़िया खा गया था 38 बच्चे:हर 5वें दिन एक बच्चे का शिकार करता; एक्सपर्ट बोले- बहराइच वाला हो सकता है बूढ़ा बहराइच में इस वक्त भेड़ियों का आतंक है। 9 बच्चों और एक महिला को शिकार बना चुके हैं। इन हमलों में करीब 40 लोग घायल हुए हैं। वन विभाग हमलावर 4 भेड़ियों को पकड़ चुका है। जिले के करीब 50 गांवों में गली-गली पुलिस और वन विभाग की टीमें तैनात कर दी गई हैं। बच्चों की मां लाठी लेकर रात भर उनके सिरहाने बैठकर हिफाजत कर रही हैं। पुरुष दिन-रात पुलिस-प्रशासन के साथ खेतों से लेकर घर तक की रखवाली में लगे हैं। लेकिन, हमले बंद नहीं हुए हैं। सवाल उठता है, क्या यह पहली बार है कि प्रदेश का एक हिस्सा भेड़ियों के खौफ में है? क्या यह पहली बार है, जब इंसान और भेड़िए आमने-सामने आ गए हैं? पहले कब और कौन से हिस्से भेड़ियों के हमलों के शिकार हुए हैं? इन सवालों के जवाब संडे बिग स्टोरी में जानिए- सबसे पहले प्रदेश में भेड़ियों के दो बड़े हमलों की कहानी 1996 में भेड़ियों ने 38 बच्चों का किया शिकार
साल 1996 यानी आज से करीब 28 साल पहले। यूपी के पूर्वी हिस्से के तीन जिले प्रतापगढ़, जौनपुर और सुल्तानपुर में एक के बाद एक बच्चों की हत्या होने लगी। हर बच्चे की लाश क्षत-विक्षत मिलती। सिर्फ 6 महीने के अंदर 38 बच्चों की छत-विक्षत लाशें मिलीं। बच्चों के शवों से बाहरी अंग गायब मिलते। शरीर पर लंबे नुकीले दांतों और नाखूनों के निशान मिलते थे। बच्चों के अलावा इन हमलों में 78 लोग घायल हुए थे। तब खौफ का आलम ऐसा था कि कोई इसे भेड़िए का काम कहता तो कोई शैतान मानने लगा, तो कोई इच्छाधारी भेड़िया बताने लगा। डर के साए में ऐसा अंधविश्वास फैला कि लोगों ने गांव में आने वाले भिखारियों और फेरी लगाकर सामान बेचने वालों को शक में पीटकर मार डाला। हालांकि, लोगों को जल्द ही इस बात का अंदाजा लग गया कि कोई जंगली जानवर है, जो बच्चों के पीछे पड़ा है। लोग दिन के उजाले में जंगली जानवर को खोजते, लेकिन वह नहीं मिलता। रात में वह अपने बच्चों को बचाने की कोशिश करते, लेकिन हर दो-तीन दिन में कोई न कोई बच्चा गायब हो जाता। फिर अगले दिन उसका शव मिलता। उस दौर में हमलों से बच निकलने वाले लोगों ने बताया कि हमला करने वाला जानवर भेड़िया जैसा था। तब तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी नहीं थे कि एक-दूसरे को जल्दी सचेत कर दिया जाता। पहरा कैसे देना है, इसके लिए सब लोग एक जगह पर इकट्ठा होते। यहीं सारी रणनीति तय होती। भेड़िए मारने के लिए वन विभाग को उतारने पड़े शार्प शूटर्स
भेड़ियों के इन हमलों से सुल्तानपुर, जौनपुर और प्रतापगढ़ के 35 गांव डर के साए में जीने लगे थे। 6 महीने में मरने वाले बच्चों की संख्या 38 पहुंच गई। इसके अलावा 40 लोग हमले में किसी तरह बच गए थे। इसमें भी 20 से ज्यादा बच्चे थे। वन विभाग और पुलिस प्रशासन की कई टीमें उतारी गईं। कुछ टीमों का काम लोगों को जागरूक करना और अफवाहों से बचाने का था। क्योंकि, इस वक्त तक इस बात की पुष्टि हो गई थी कि मारने वाला भेड़िया ही है। आखिर में भेड़ियों को कंट्रोल करने के लिए बड़ी संख्या में वन विभाग के शूटर्स और पुलिस की टीम लगी। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट लगे, तब जाकर आदमखोर भेड़िए को मारा गया था। इस पूरी घटना को लेकर 1997 में प्रसिद्ध वाइल्ड लाइफ साइंटिस्ट और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून में तब डीन रहे वाईवी झाला ने रिसर्च किया था। झाला कहते हैं- लगातार बच्चों के गायब होने और फिर मिल रही लाश के बीच यह आदेश आ गया कि भेड़िया जिंदा पकड़ में आए तो ठीक, वरना मार दिया जाए। वन विभाग की तरफ से कई शॉर्प शूटर बुलाए गए। भेड़िए का कहर 1300 स्क्वायर किलोमीटर में था। इसलिए हर हिस्से की रेकी की गई। अपने शोधपत्र में वाईवी झाला इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह हमला भेड़ियों के झुंड का नहीं, सिर्फ एक भेड़िए ने किया था। इच्छाधारी भेड़िया समझ भिखारी और फेरी वालों को मार दिया
झाला कहते हैं- उस वक्त जागरूकता की कमी थी। लोगों में यह चर्चा फैल गई कि यह सब किसी इच्छाधारी आदमी का काम है। वह दोपहर में आता है। इंसान जैसा ही दिखता है। उसके बड़े-बड़े बाल और नाखून हैं। दिन में इंसान रहता है और रात में भेड़िया बन जाता है। दिन में जिस गांव में वह जाता है, रात में उसी गांव में बच्चों की हत्या करता है। इसका नुकसान यह हुआ कि फेरी वालों को लोग शक की नजर से देखने लगे। भिखारी आते, तो उन पर भी गांव वाले शक करे लगे। उन्हें वेयरवूल्फ समझकर मारा जाने लगा। सिर्फ फेरीवाले ही नहीं, कई ऐसे लोगों की भी हत्या की गई जिनकी पड़ोसी गांव के किसी व्यक्ति से दुश्मनी थी। उस वक्त अफवाह का फैक्ट चेक नहीं होता था। इसलिए अफवाह को लगातार हकीकत माना जाने लगा। 2002 से 2005 के बीच भेड़ियों ने 130 बच्चों को अपना निवाला बनाया
1996 की घटना के बाद प्रदेश नवंबर 2002 से जून 2005 तक एक बार फिर भेड़ियों के हमलों को लेकर चर्चा में आ गया था। इस बार जगह थी बहराइच से लगा बलरामपुर जिला। यहां ढाई साल के अंदर भेड़ियों ने 130 बच्चों को मार डाला। 150 से ज्यादा बच्चे घायल हुए थे। बलरामपुर के सोहेलदेव वाइल्ड लाइफ सेंचुरी से लगे 125 गांव तब भेड़ियों के हमलों से सहम गए थे। 2003 में सिर्फ फरवरी और अगस्त के बीच भेड़ियों ने 10 बच्चों को अपना शिकार बनाया था। कहा जाता है, तब खौफ का आलम कुछ ऐसा था कि बच्चों के रोने पर मां कहती थी- चुप हो जा, नहीं तो भेड़िया आ जाएगा। वन विभाग को आखिरकार भेड़ियों का मारना पड़ा
उस वक्त भी वन विभाग ने भेड़ियों का आतंक खत्म करने के लिए शार्प शूटरों की एक लंबी फौज तराई इलाके में उतार दी थी। वन विभाग के शूटर भेड़ियों की खोज में क्षेत्र में दिन-रात गश्त करते थे। आखिरकार जून, 2005 में शार्प शूटरों की फौज को अपने मकसद में कामयाबी मिली। शार्प शूटरों ने आदमखोर भेड़ियों के एक कुनबे मार गिराया था। भारत- नेपाल सीमा से सटे हर्रैया, ललिया, महाराजगंज तराई और तुलसीपुर थाना क्षेत्र के 125 गांव आज भी तब के भेड़ियों के आतंक से प्रभावित परिवारों की कहानी बताते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश में ही इंसानों पर हमला करते हैं भेड़िए
भेड़ियों को लेकर ब्रिटिश रिकॉर्ड से पता चलता है कि पंजाब, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे दक्कन क्षेत्र में भी भेड़िए पाए जाते हैं। लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से यहां इंसानों पर हमले का रिकॉर्ड नहीं मिलता। इन क्षेत्रों में वो बड़ी संख्या में पालतू जनवरों को अपना शिकार बनाते थे। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश समेत बिहार, मध्य प्रदेश और बंगाल में ब्रिटिश राज के समय से ही इंसानों पर भेड़िए के हमले का रिकॉर्ड मिलता है। इसका ताजा उदाहरण है, बीते 6 सितंबर को मध्यप्रदेश के आष्टा में एक ही परिवार के 5 लोगों पर भेड़ियों के हमले की खबर। हमले में ये सभी लोग घायल हुए। 1985-86 के बीच आष्टा में ही 4 वयस्क भेड़ियों ने 17 बच्चों को शिकार बनाया था। तब चारों भेड़ियों को मार गिराया गया था। उनके दो बच्चों के पालन-पोषण का जिम्मा गांव के ही आदिवासियों ने उठाया। पूर्व सिविल सेवक अजय सिंह ने साल, 2000 में इस पूरे घटनाक्रम का डॉक्यूमेंटेशन किया। बात बिहार की करें तो अप्रैल 1993 से अप्रैल 1995 के बीच अविभाजित बिहार में हजारीबाग पश्चिम, कोडरमा और लातेहार वन मंडल में छह भेड़ियों ने 60 बच्चों का शिकार किया था। शोधकर्ता केएस राजपुरोहित ने 1999 में इस घटना को ‘चाइल्ड लिफ्टिंग: वूल्फ्स इन हजारीबाग’ प्रकाशित किया। सवाल उठता है कि आखिर बहराइच समेत कई जिलों में 1996 और 2002-2005 के बीच भेड़ियों ने इंसानों का शिकार करना क्यों चुना? इसके जवाब में वाइल्ड लाइफ साइंटिस्ट डॉ. वीईवी झाला 2 पॉइंट में बताते हैं कि भेड़िए अपना मूल भोजन छोड़कर कैसे आदमखोर बन जाते हैं… 1: जहां भेड़िए का आतंक, वहां उनका मूल भोजन खत्म झाला कहते हैं- बहराइच के जिन हिस्सों में इस वक्त भेड़िए का आतंक है, वहां मैं काम कर चुका हूं। पहले इस तरफ हिरण और खरगोश चारों तरफ दिख जाते थे, लेकिन अब नहीं दिखाई देते। यह दोनों भेड़िए के मूल भोजन का हिस्सा रहे हैं। अब अगर इसकी कमी होगी तो स्वाभाविक है कि वह अपने भोजन की तलाश कहीं और करेंगे। बकरी के बच्चों पर हमला नहीं करने के सवाल पर वह कहते हैं कि यहां बकरी और उसके बच्चों को बहुत ज्यादा सुरक्षा दी जाती है। कई स्थानों पर तो लोग अपने बच्चों से भी ज्यादा सुरक्षित बकरी के बच्चों को रखते हैं। आपने देखा होगा कि घर के बच्चे बाहर सो रहे और बकरी घर में किसी सुरक्षित जगह पर बंधी है। इसकी वजह यह है कि यहां गरीबी ज्यादा है। मजदूरी और बकरी पालन ही जीवन जीने का जरिया है। ऐसे में भेड़िए को बकरी या खरगोश से ज्यादा आसानी से इंसानी बच्चे मिल जा रहे हैं। 2: भेड़िया बूढ़ा, दांत टूटा हुआ या विकलांग हो सकता है बहराइच को लेकर वाईवी झाला अपने अनुभव के आधार पर कहते कि हो सकता है हमला करने वाला भेड़िया बूढ़ा हो गया हो या पैर से विकलांग हो। वह जंगल में शिकार करने की स्थिति में नहीं हो। जानवरों को पकड़ पाने के लिए दौड़ न लगा पा रहा हो। या फिर उसका दांत टूटा हो। जानवरों को न खा पा रहा हो, इसलिए वह इंसानी बच्चों को अपना शिकार बना रहा है। समूह से निकाले जाने पर भेड़िए हिंसक हो जाते, यह सच नहीं
हमने झाला से पूछा कि तमाम जगहों पर कहा गया कि भेड़िए को समूह से बहिष्कृत कर देने पर वह हिंसक हो जाते हैं। इसके जवाब में वह कहते हैं- यह सच है कि भेड़िए समूह में रहते हैं। इनके मां-बाप होते हैं। बच्चे होते हैं। मजबूत भेड़िए शिकार करते हैं और इनके खाने की भी व्यवस्था करते हैं। लेकिन, यह कहना कि किसी को समूह से निकाल दिया गया इसलिए वह अब हिंसक हो गया, इसे मैं नहीं मानता। भेड़िया पकड़ना है तो आसानी से भोजन उपलब्ध कराना होगा
एक्सपर्ट्स कहते हैं- अगर आदमखोर भेड़िए को पकड़ना है तो हर संभावित जगह पर उसके लिए आसान भोजन उपलब्ध कराना होगा। यानी बकरी के बच्चों को इनके संभावित ठिकानों के आसपास रखना होगा। कैमरे या फिर छिपकर निगरानी करनी होगी। ऐसा करके इसे पकड़ा भी जा सकता है और इन्हें इंसानी बस्ती में आने से भी रोका जा सकता है। वन विभाग ने आदमखोर को पकड़ने के लिए झोंकी पूरी ताकत
वन विभाग की 9 टीमों के 200 कर्मचारी भेड़ियों को पकड़ने में लगे हैं। इसके अलावा 3 DFO (बाराबंकी, कतर्निया घाट, बहराइच) को भी लगाया गया है। आदमखोर जानवरों की तलाश में वन विभाग CCTV और ड्रोन कैमरों के जरिए भी निगरानी कर रहा है। पुलिस और राजस्व विभाग की भी टीमों को लगाया गया है। 4 भेड़ियों को पकड़ा भी गया है, जिसमें से एक की मौत भी हो चुकी है। ये भी पढ़ें… बहराइच में भेड़िया ज्यादातर के हाथ-पैर खा गया:पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर बोले-किसी लाश पर दांतों की संख्या 8 तो किसी पर 20 जंगली जानवर ने बहुत ही निर्ममता से मारा था साहब ! ज्यादातर मरने वालों के हाथ-पैर खा गया। सभी की गर्दन पर गहरे निशान थे। कुछ के तो सीने और पेट का हिस्सा भी खा गया। लेकिन, हर लाश पर दांतों की संख्या अलग-अलग थी। लग रहा था, शिकार अलग-अलग भेड़िए ने किया है। पूरी खबर पढ़ें