<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi High Court News:</strong> दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में केंद्र सरकार से केंद्रीय सिविल सेवा (सीसीएस) (छुट्टी) नियम के नियम 43 पर पुनर्विचार करने को कहा है, जिसमें दो से अधिक बच्चों वाली महिला सरकारी कर्मचारियों को मेटरनिटी लीव देने से इनकार किया गया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>बार एंड बेंच के मुताबिक न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और गिरीश कथपालिया की पीठ ने कहा, “बढ़ती जनसंख्या के लिए केवल सरकारी कर्मचारी ही जिम्मेदार नहीं हैं. जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकारी कर्मचारियों के अलावा अन्य नागरिकों के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को दिखाने के लिए हमारे सामने कुछ भी नहीं रखा गया है. जस्टिस ने कहा फिर से दोहराना चाहता हूं कि यह महिला सरकारी कर्मचारी को तीसरे और उसके बाद के मेटरनिटी लीव के लिए प्रोत्साहित करने का सवाल नहीं है; यह तीसरे और उसके बाद के बच्चे के मां के प्यार के अधिकारों की रक्षा करने का सवाल है.” कोर्ट ने कहा कि दो से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए ऐसे कदम माता-पिता के लिए होने चाहिए, न कि बच्चों के लिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अपनी टिप्पणी के दौरान कोर्ट ने ये भी कहा, “तीसरे और उसके बाद के बच्चे का क्या दोष है? उनका अपने जन्म पर कोई नियंत्रण नहीं होता है. ऐसा होने पर, तीसरे और उसके बाद के बच्चे को जन्म के तुरंत बाद और इतनी छोटी उम्र में मां के प्यार से वंचित रखने की अपेक्षा करना अत्याचार होगा, क्योंकि नियम 43 के अनुसार उस बच्चे की मां को डिलीवरी के अगले दिन ही अपनी ड्यूटी पर रिपोर्ट करना होता है. वह तीसरा और उसके बाद का बच्चा पूरी तरह से असहाय है, इसलिए, कोर्ट का यह फर्ज है कि वह इसमें हस्तक्षेप करे.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट कोर्ट सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें पुलिस अधिकारियों को तीसरे बच्चे वाली महिला कांस्टेबल को मेरटनिटी लीव देने का निर्देश दिया गया था.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a title=”‘राज्यों का हक मारा, हमारे साथ…’, बजट पर इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद बोले संजय सिंह” href=”https://www.abplive.com/states/delhi-ncr/union-budget-2024-india-aap-mp-sanjay-singh-india-alliance-sanjay-singh-accused-center-of-discrimination-2744307″ target=”_blank” rel=”noopener”>’राज्यों का हक मारा, हमारे साथ…’, बजट पर इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद बोले संजय सिंह</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi High Court News:</strong> दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में केंद्र सरकार से केंद्रीय सिविल सेवा (सीसीएस) (छुट्टी) नियम के नियम 43 पर पुनर्विचार करने को कहा है, जिसमें दो से अधिक बच्चों वाली महिला सरकारी कर्मचारियों को मेटरनिटी लीव देने से इनकार किया गया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>बार एंड बेंच के मुताबिक न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और गिरीश कथपालिया की पीठ ने कहा, “बढ़ती जनसंख्या के लिए केवल सरकारी कर्मचारी ही जिम्मेदार नहीं हैं. जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकारी कर्मचारियों के अलावा अन्य नागरिकों के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को दिखाने के लिए हमारे सामने कुछ भी नहीं रखा गया है. जस्टिस ने कहा फिर से दोहराना चाहता हूं कि यह महिला सरकारी कर्मचारी को तीसरे और उसके बाद के मेटरनिटी लीव के लिए प्रोत्साहित करने का सवाल नहीं है; यह तीसरे और उसके बाद के बच्चे के मां के प्यार के अधिकारों की रक्षा करने का सवाल है.” कोर्ट ने कहा कि दो से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए ऐसे कदम माता-पिता के लिए होने चाहिए, न कि बच्चों के लिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अपनी टिप्पणी के दौरान कोर्ट ने ये भी कहा, “तीसरे और उसके बाद के बच्चे का क्या दोष है? उनका अपने जन्म पर कोई नियंत्रण नहीं होता है. ऐसा होने पर, तीसरे और उसके बाद के बच्चे को जन्म के तुरंत बाद और इतनी छोटी उम्र में मां के प्यार से वंचित रखने की अपेक्षा करना अत्याचार होगा, क्योंकि नियम 43 के अनुसार उस बच्चे की मां को डिलीवरी के अगले दिन ही अपनी ड्यूटी पर रिपोर्ट करना होता है. वह तीसरा और उसके बाद का बच्चा पूरी तरह से असहाय है, इसलिए, कोर्ट का यह फर्ज है कि वह इसमें हस्तक्षेप करे.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट कोर्ट सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें पुलिस अधिकारियों को तीसरे बच्चे वाली महिला कांस्टेबल को मेरटनिटी लीव देने का निर्देश दिया गया था.</p>
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