हरियाणा के करनाल के कैमला गांव के बलराज पंवार ने ओलिंपिक रोइंग में क्वार्टरफाइनल मुकाबले के लिए क्वालिफाई कर लिया है। आपको बता दें कि 27 जुलाई को हिट्स राउंड में बलराज पंवार चौथे स्थान पर रहे थे, जिसके बाद उनके पास एक रिपीचेज राउंड का मौका था और इसको उन्होंने नहीं गंवाया। आज रिपीचेज राउंड में बलराज दूसरे स्थान पर रहे। उन्होंने 7 मिनट 12 सेकेंड और 41 मिलीसेकेंड में अपनी रेस को पूरा किया। पेरिस ओलिंपिक में मुकाबले में मोनाको के खिलाड़ी ने उन्हें दो सेकेंड से मात दी, लेकिन बलराज से मेडल की उम्मीद अब भी बरकरार है। आपको बता दें कि प्रत्येक रिपीचेज में पहले 2 खिलाड़ी क्वार्टरफाइनल के लिए क्वालिफाई करेंगे। शेष खिलाड़ी सेमीफाइनल ई/एफ में जाएंगे। पहले मुकाबले में चौथे स्थान पर था बलराज बलराज ने शुरुआत में तेज गति दिखाई और तीसरे स्थान पर थे, लेकिन एल्बन्ना ने जल्दी ही उन्हें पीछे छोड़ दिया। पहले 500 मीटर का चेकपॉइंट एल्बन्ना ने 1:41.94 में पार किया जबकि बलराज 1:43.53 पर थे। 1000 मीटर के निशान पर बलराज और एल्बन्ना एक दूसरे के करीब थे, जबकि मैकिन्टोश ने बड़ी बढ़त बना रखी थी। बलराज ने अंतिम 100 मीटर में भी मिस्री खिलाड़ी पर दबाव बनाए रखा, लेकिन 2000 मीटर की हीट 7:07.11 में पूरी की, जो एल्बन्ना से 2 सेकेंड पीछे थी। उम्मीद है गोल्ड मेडल आएगा: मां बलराज की मां कमला, बहन मनीषा, भाई संदीप व पत्नी सोनिया का कहना है कि हमें बलराज की मेहनत पर पूरा भरोसा है। जिस तरह से आज बलराज ने अपना प्रदर्शन दिखाया है, वह दूसरे स्थान पर रहा है और क्वार्टर फाइनल में पहुंच गया है। वह सेमीफाइनल में भी पहुंचेगा और फाइनल में भी। वह जीतकर देश का नाम जरूर रोशन करेगा और इसकी उम्मीदें हमें भी है और पूरे देश को भी। हरियाणा के करनाल के कैमला गांव के बलराज पंवार ने ओलिंपिक रोइंग में क्वार्टरफाइनल मुकाबले के लिए क्वालिफाई कर लिया है। आपको बता दें कि 27 जुलाई को हिट्स राउंड में बलराज पंवार चौथे स्थान पर रहे थे, जिसके बाद उनके पास एक रिपीचेज राउंड का मौका था और इसको उन्होंने नहीं गंवाया। आज रिपीचेज राउंड में बलराज दूसरे स्थान पर रहे। उन्होंने 7 मिनट 12 सेकेंड और 41 मिलीसेकेंड में अपनी रेस को पूरा किया। पेरिस ओलिंपिक में मुकाबले में मोनाको के खिलाड़ी ने उन्हें दो सेकेंड से मात दी, लेकिन बलराज से मेडल की उम्मीद अब भी बरकरार है। आपको बता दें कि प्रत्येक रिपीचेज में पहले 2 खिलाड़ी क्वार्टरफाइनल के लिए क्वालिफाई करेंगे। शेष खिलाड़ी सेमीफाइनल ई/एफ में जाएंगे। पहले मुकाबले में चौथे स्थान पर था बलराज बलराज ने शुरुआत में तेज गति दिखाई और तीसरे स्थान पर थे, लेकिन एल्बन्ना ने जल्दी ही उन्हें पीछे छोड़ दिया। पहले 500 मीटर का चेकपॉइंट एल्बन्ना ने 1:41.94 में पार किया जबकि बलराज 1:43.53 पर थे। 1000 मीटर के निशान पर बलराज और एल्बन्ना एक दूसरे के करीब थे, जबकि मैकिन्टोश ने बड़ी बढ़त बना रखी थी। बलराज ने अंतिम 100 मीटर में भी मिस्री खिलाड़ी पर दबाव बनाए रखा, लेकिन 2000 मीटर की हीट 7:07.11 में पूरी की, जो एल्बन्ना से 2 सेकेंड पीछे थी। उम्मीद है गोल्ड मेडल आएगा: मां बलराज की मां कमला, बहन मनीषा, भाई संदीप व पत्नी सोनिया का कहना है कि हमें बलराज की मेहनत पर पूरा भरोसा है। जिस तरह से आज बलराज ने अपना प्रदर्शन दिखाया है, वह दूसरे स्थान पर रहा है और क्वार्टर फाइनल में पहुंच गया है। वह सेमीफाइनल में भी पहुंचेगा और फाइनल में भी। वह जीतकर देश का नाम जरूर रोशन करेगा और इसकी उम्मीदें हमें भी है और पूरे देश को भी। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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हरियाणा में 24 घंटे में 4 विधायकों ने JJP छोड़ी:इस्तीफा देने वालों में 2 पूर्व मंत्री; 1 BJP-3 कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं हरियाणा में विधानसभा चुनाव के ऐलान के बाद से जननायक जनता पार्टी (JJP) में घमसान मचा है। पूर्व श्रम मंत्री अनूप धानक के इस्तीफे के बाद शनिवार को शाहबाद से विधायक रामकरण काला, गुहला चीका से विधायक ईश्वर सिंह और टोहाना से विधायक देवेंद्र बबली ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। डॉ. अजय सिंह चौटाला को लिखे लेटर में विधायक ईश्वर सिंह और रामकरण काला ने इस्तीफे के पीछे निजी कारण लिखे हैं। देवेंद्र बबली ने कहा, ‘5 साल पहले जब वह कांग्रेस में थे तो परिस्थितियां अलग थीं। तब जनता और साथ चलने वाले लोगों की राय पर वह जजपा में आए। अब 5 साल बाद परिस्थितियां बदल चुकी हैं, इसलिए वे इस्तीफा दे रहे हैं। उनके साथी और कमेटी आगे का फैसला करेगी। विधायक व मंत्री के रूप में टोहाना व हरियाणा को आगे बढ़ाया, लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं।’ विधायकों के करीबियों के मुताबिक, रामकरण काला, ईश्वर सिंह और देवेंद्र बबली कांग्रेस जॉइन कर सकते हैं। वहीं पूर्व मंत्री अनूप धानक के BJP में शामिल होने की चर्चा है। दिग्विजय चौटाला बोले- फर्क नहीं पड़ता JJP के प्रधान महासचिव दिग्विजय चौटाला ने कहा कि कई लोगों ने हमें धोखा दिया है। किसी के आने और जाने से पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता। विधानसभा चुनाव के लिए JJP पूरी तरह तैयार है। हम पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएंगे। पार्टी सचिव बोले- पहले हमने नोटिस भी दिए थे लगातार 4 विधायकों के इस्तीफे के बाद JJP के प्रदेश कार्यालय सचिव रणधीर सिंह ने कहा कि जब पार्टी बनी तो ये दूसरी पार्टियों से आए थे। चुनाव होने के बाद ये विधायक बन गए। अब इन्होंने पार्टी छोड़ दी। हमने इन विधायकों को पार्टी के खिलाफ काम करने पर नोटिस भी दिए थे। रामकरण काला का 2 बार जवाब भी आया था। उन्होंने बताया था कि मैं किसी पार्टी के साथ नहीं हूं। हमने लोकसभा चुनाव के दौरान रामनिवास सुरजाखेड़ा और जोगीराम सिहाग के खिलाफ याचिका दायर की थी। वह चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों के कार्यक्रम में पहुंचे थे। गठबंधन टूटने के बाद विधायकों में टूट शुरू हुई 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में JJP ने 10 सीट जीती थी। बहुमत से चूकी BJP ने JJP के साथ मिलकर सरकार बनाई। उस दौरान मनोहर लाल मुख्यमंत्री और दुष्यंत चौटाला को डिप्टी सीएम बनाया गया। JJP कोटे से अनूप धानक श्रम एंव रोजगार राज्यमंत्री और देवेंद्र बबली पंचायत मंत्री बने। 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट गया। इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष निशान सिंह भी इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो गए। JJP विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा और विधायक जोगीराम सिहाग भी भाजपा के कार्यक्रमों में नजर आए। इसके बाद JJP ने दोनों विधायकों को नोटिस जारी किया। साथ ही सदस्यता रद्द करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष के पास याचिका लगाई। अभी याचिका पर फैसला नहीं आया है। JJP के साथ सिर्फ 3 विधायक 4 विधायकों के पार्टी से इस्तीफे के बाद जजपा के साथ अब 6 विधायक हैं। इनमें से 3 रामनिवास सुरजाखेड़ा, जोगीराम सिहाग और रामकुमार गौतम भी जजपा से दूरी बनाए हुए हैं। फिलहाल JJP के साथ उचाना से विधायक दुष्यंत चौटाला, बाढड़ा से विधायक उनकी मां नैना चौटाला और जुलाना से विधायक अमरजीत ढांडा ही साथ हैं। बबली लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ दिखे देवेंद्र बबली ने वर्ष 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में टोहाना विधानसभा से कांग्रेस की टिकट न मिलने के बाद जजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था। उस दौरान एक लाख से भी ज्यादा वोट पाकर उन्होंने तत्कालीन भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला को करारी शिकस्त दी थी। बाद में जजपा कोटे से उन्हें दिसंबर 2021 में विकास एवं पंचायत मंत्री बनाया गया। लोकसभा चुनाव के दौरान देवेंद्र बबली ने सिरसा से कांग्रेस की उम्मीदवार कुमारी सैलजा को समर्थन दिया था। अनूप धानक दुष्यंत चौटाला के करीबियों में रहे अनूप धानक 2 बार उकलाना से विधायक चुने गए हैं। एक बार वह इनेलो से जीते और दूसरी बार उन्होंने जजपा से टिकट लेकर चुनाव लड़ा और जीता। इस बार भी वह उकलाना से जजपा के उम्मीदवार के तौर पर देखे जा रहे थे, लेकिन उससे पहले ही उन्होंने पार्टी को छोड़ दिया। अनूप धानक की गिनती दुष्यंत चौटाला के करीबियों में होती थी। गठबंधन सरकार बनने के बाद दुष्यंत ने ही उन्हें राज्यमंत्री बनवाया था। ईश्वर सिंह का बेटा पहले ही कांग्रेस में, पिछले साल बाढ़ में झेल चुके विरोध
जननायक जनता पार्टी छोड़ने वाले गुहला के विधायक और पूर्व राज्यसभा मेंबर ईश्वर सिंह के बेटे रणधीर सिंह पहले ही कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। वह लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के मंचों पर खुलकर नजर आए थे। पिछले साल मानसून सीजन के दौरान गुहला-चीका इलाके में घग्गर नदी की वजह से बाढ़ आ गई थी। तब लोगों ने विधायक ईश्वर सिंह का खूब विरोध किया था। ईश्वर सिंह 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर जेजेपी में शामिल हुए थे और पार्टी में आते ही दुष्यंत चौटाला ने उन्हें गुहला से टिकट दे दिया था।
जींद में विनेश फौगाट के कार्यक्रम में भिड़े कार्यकर्ता:हालात बिगड़ते देख कांग्रेस प्रत्याशी ने किया बचाव, वीडियो वायरल
जींद में विनेश फौगाट के कार्यक्रम में भिड़े कार्यकर्ता:हालात बिगड़ते देख कांग्रेस प्रत्याशी ने किया बचाव, वीडियो वायरल हरियाणा के जींद जिले के जुलाना क्षेत्र के बुआना गांव में कांग्रेस प्रत्याशी विनेश फौगाट के कार्यक्रम में कांग्रेस कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए। इसका एक विडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। जुलाना हलके में कांग्रेस प्रत्याशी विनेश फौगाट चुनाव को लेकर दौरे कर रही है। बीती रात बुआना गांव में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। कार्यकर्ता के संबोधित करने पर विरोध कार्यक्रम में विनेश फौगाट के बोलने से पहले विनेश ने अपना माइक कांग्रेस कार्यकर्ता कृष्ण बुआना को दे दिया। जैसे ही उसने बोलना शुरू किया, तो गांव के सरपंच प्रतिनिधि सुधीर बुआना ने इसका विरोध किया, कार्यक्रम में हंगामा हो गया। कुछ लोग माइक पर बोलने का विरोध कर रहे थे, तो कुछ लोग समर्थन कर रहे थे। सुधीर बुआना ने बताया कि गांव में विनेश फौगाट का कार्यक्रम चल रहा था। कार्यक्रम तय समय से चार घंटे लेट हो रहा था। इसलिए कार्यकर्ताओं को बोलने से मना कर दिया गया था। मामले को बिगड़ता देख विनेश फौगाट ने माइक को खुद लिया और कार्यकर्ताओं को नसीहत दी, कि छोटी छोटी बातों पर झगड़ना हमारे संस्कार नही हैं।
राव बीरेंद्र को मनाने हवाई चप्पल में पहुंचीं इंदिरा:कांग्रेस सरकार गिराकर CM बने; एक बेटा कांग्रेस में तो दूसरा BJP में
राव बीरेंद्र को मनाने हवाई चप्पल में पहुंचीं इंदिरा:कांग्रेस सरकार गिराकर CM बने; एक बेटा कांग्रेस में तो दूसरा BJP में साल 1977, इमरजेंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। 352 सीटें जीतने वाली कांग्रेस महज 154 सीटों पर सिमट गई। इंदिरा अपनी भी सीट नहीं बचा पाईं। अलग-अलग दलों को मिलाकर बनी जनता पार्टी 295 सीटें जीतकर सत्ता पर काबिज हुई। मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। राजनीतिक गलियारों में इंदिरा युग खत्म होने की बातें होने लगीं। ये वो दौर था, जब कई राज्यों में कांग्रेस से टूटकर छोटे-छोटे दल बन गए थे। हरियाणा में तो कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई थी। राव बीरेंद्र सिंह के मित्र और लेखक गोपी यादव अपनी किताब ‘राव बीरेन्द्र सिंह स्मृति’ में लिखते हैं- ‘हरियाणा और खास तौर पर रेवाड़ी में कांग्रेस की हार ने इंदिरा को झकझोर कर रख दिया था। इस सीट पर जीत के लिए इंदिरा ने पूरी ताकत झोंक दी थी। हार के बाद वे समझ गई थीं कि क्षत्रपों की राजनीति को नजरअंदाज करना ठीक नहीं होगा। 23 सितंबर 1978, इंदिरा गांधी कहीं जाने की तैयारी में थीं। उनके करीबी नेताओं को भी ज्यादा पता नहीं था। दोपहर होते-होते इंदिरा हवाई चप्पल में ही हरियाणा के रेवाड़ी वाले रामपुरा हाउस पहुंच गईं। रामपुरा हाउस यानी, अहीरवाल क्षेत्र के राजपरिवार की हवेली, जिसके मुखिया राव बीरेंद्र सिंह ने 10 साल पहले कांग्रेस तोड़कर नई पार्टी बना ली थी। 9 महीने मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। दोनों के बीच देर तक बातचीत हुई। आखिरकार इंदिरा ने बीरेंद्र सिंह को उनकी ‘विशाल हरियाणा पार्टी’ का कांग्रेस में विलय करने के लिए मना लिया। दो साल बाद यानी, 1980 में इंदिरा ने केंद्र में जोरदार वापसी की। तब राव बीरेंद्र सिंह को चार विभागों का मंत्री बनाया गया। इंदिरा के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद दूसरे नंबर पर राव बीरेंद्र सिंह ने ही कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली थी। राव बीरेंद्र सिंह हरियाणा के मुख्यमंत्री और तीन बार केंद्रीय मंत्री रहे। उनकी बहन सुमित्रा देवी चार बार विधायक रहीं। तीन बेटों में से दो राजनीति में उतरे। बड़े बेटे इंद्रजीत सिंह चार बार केंद्रीय मंत्री रहे। आज राव की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है। हरियाणा के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के चौथे एपिसोड में रामपुरा स्टेट के राव बीरेंद्र सिंह परिवार के किस्से… राव बीरेंद्र सिंह का जन्म 20 फरवरी 1921 को दिल्ली से 95 किलोमीटर दूर रेवाड़ी के नांगल पठानी गांव में हुआ। उनके पिता राव बहाल सिंह रेवाड़ी के यदुवंशी राजा तुलाराम के कुनबे से थे। तब रेवाड़ी राजवंश यानी, रामपुरा हाउस पर तुलाराम के वंशज राव बहादुर बलबीर सिंह का शासन था। राव बलबीर सिंह का कोई बच्चा नहीं था। उनकी पत्नी को ये बात काफी चुभती थी। उन्होंने कोई बच्चा गोद लेने की इच्छा जाहिर की। इस पर बलबीर सिंह ने कहा कि हम बच्चा गोद ले सकते हैं, लेकिन वो बच्चा अपने ही वंश का होना चाहिए। 1945 में उन्होंने राव बीरेंद्र सिंह को गोद लिया। अंग्रेजों की फौज में रहे, दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा भी लिया राव बीरेंद्र सिंह ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। 1942 में वे अंग्रेजों की फौज में भर्ती हुए और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा में तैनात भी रहे। 1947 में उन्होंने रामपुरा हाउस की विरासत संभालने के लिए सेना से रिटायरमेंट ले लिया। तब वे ब्रिटिश आर्मी में कैप्टन थे। 1949-50 में उन्होंने IPS परीक्षा पास की, लेकिन सर्विस जॉइन नहीं किया। यहां से उन्होंने राजनीति की तरफ बढ़ने का फैसला किया और 1952 में पहली बार हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव में उतरे, लेकिन हार गए। 1954 में बीरेंद्र सिंह अंबाला मंडल से निर्दलीय विधायक चुने गए। तब अंबाला संयुक्त पंजाब का हिस्सा था। हिंदी बेल्ट में राव के प्रभाव को देखते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया। अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार को हराकर हरियाणा के पहले स्पीकर बने राव बीरेंद्र सिंह नवंबर 1966, पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। इंदिरा गांधी चाहती थीं कि राव बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बनें, लेकिन नेहरू के करीबी भगवत दयाल शर्मा खुद सीएम बनना चाहते थे। उन्होंने इंदिरा से कहा- ‘ज्यादातर विधायक मुझे पसंद करते हैं। राव बीरेंद्र सिंह अभी विधायक भी नहीं हैं। अगर उन्हें सीधे मुख्यमंत्री बनाया जाता है, तो गलत मैसेज जाएगा।’ इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री बने। फरवरी 1967 में हरियाणा में पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए। कांग्रेस को 81 में से 48 सीटें मिलीं और भगवत दयाल शर्मा दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। इस बार राव बीरेंद्र सिंह विधायक बन चुके थे। 17 मार्च 1967 को विधानसभा में सभी विधायक इकट्ठा हुए। CM भगवत दयाल शर्मा ने स्पीकर पद के लिए जींद के विधायक लाला दयाकिशन के नाम का प्रस्ताव रखा। उसी समय उन्हीं की पार्टी के एक विधायक ने राव बीरेंद्र सिंह का नाम भी प्रपोज कर दिया। मुख्यमंत्री दंग रह गए। वोटिंग हुई, तो राव बीरेंद्र सिंह को लाला दयाकिशन से 3 वोट ज्यादा मिले। भगवत दयाल शर्मा सदन छोड़कर बाहर चले गए। आजाद भारत के इतिहास में ये पहला मौका था, जब किसी सदन में मुख्यमंत्री का प्रस्ताव खारिज हुआ। इससे हरियाणा में संवैधानिक संकट पैदा हो गया। बीरेंद्र सिंह ने ऐलान कर दिया कि वह भगवत दयाल शर्मा की सरकार 13 दिन भी नहीं चलने देंगे। 23 मार्च 1967, कांग्रेस के 12 विधायकों ने बगावत कर दी और हरियाणा कांग्रेस नाम से नया ग्रुप बनाया। 16 निर्दलीय विधायकों ने मिलकर नवीन हरियाणा कांग्रेस बनाई। ये दोनों ग्रुप साथ मिल गए। इसके बाद भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने भी इनका समर्थन कर दिया। भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिर गई। राव बीरेंद्र सिंह पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि 9 महीने बाद ही राज्यपाल ने बार-बार विधायकों के दल बदलने की बात कहकर विधानसभा भंग कर दी। 1968 में हरियाणा में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। राव बीरेंद्र सिंह अपनी पार्टी विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर दो सीटों से मैदान में उतरें। दोनों सीटों से वे चुनाव जीत गए, लेकिन उनकी पार्टी 16 सीटें ही जीत सकी। 81 में से 48 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के चौधरी बंसीलाल मुख्यमंत्री बने। ‘आया राम गया राम’ की शुरुआत, एक विधायक ने 24 घंटे में तीन बार दल बदला राव बीरेंद्र सिंह के मुख्यमंत्री रहने के दौरान ‘आया राम गया राम’ सियासी गलियारों में खूब चर्चा में रहा। तब गया लाल नाम के एक विधायक ने 24 घंटे के भीतर तीन बार दल बदल किया था। इसको लेकर राव बीरेंद्र सिंह के मित्र और सीनियर जर्नलिस्ट त्रिलोक दीप लिखते हैं- ‘मैंने एक दिन राव साहब से पूछा- आपके नाम के साथ ‘आया राम गया राम ‘ क्यों लगाया जाता है। उन्होंने गुस्सा नहीं किया। बहुत ही सहज भाव से कहा- तब नया-नया हरियाणा बना था। ज्यादातर विधायक भगवत दयाल शर्मा से खुश नही थे। उन्होंने मेरे कंधे पर बंदूक रखकर चलाई। एक दिन काफी संख्या में विधायकों ने मेरे पास आकर बगावत की बात कही। मैं भी ताव में आ गया। उन दिनों ऐसा था कि कोई विधायक सुबह मेरे खेमे में आता, लेकिन उसी शाम या दूसरे दिन दूसरे खेमे में चला जाता। यह खेल मार्च से नवंबर, 1967 तक चला। मैं भी इससे तंग आ चुका था। उसके बाद मैंने अलग पार्टी बना ली।’ इंदिरा प्रचार करने पहुंचीं, तो राव बीरेंद्र सिंह पैदल कैंपेन करने लगे साल 1971, राव बीरेंद्र सिंह महेंद्रगढ़ सीट से चुनावी मैदान में उतरे। कांग्रेस ने इस सीट से राव निहाल सिंह को टिकट दिया। चुनाव प्रचार के दौरान दिलचस्प मोड़ तब आया, जब इंदिरा गांधी प्रचार करने के लिए रेवाड़ी पहुंच गईं। इंदिरा को देखने के लिए हुजूम उमड़ पड़ा। लोग सड़कों के किनारे आकर खड़े हो गए। इस चुनाव में राव बीरेंद्र सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर थी। हरियाणा कांग्रेस के सीनियर लीडर वेद प्रकाश विद्रोही एक मीडिया रिपोर्ट में बताते हैं- ‘उस समय मैं रेवाड़ी स्कूल में पढ़ने आता था। छुट्टी के बाद जब स्कूल से वापस घर जा रहा था तो मैंने देखा कि राव बीरेंद्र सिंह पैदल चलकर लोगों से वोट मांग रहे थे। शायद यह पहला मौका था जब राव ने पैदल चलकर वोट मांगे। कांटे के मुकाबले में राव बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के राव निहाल सिंह को 1899 वोट से हराकर चुनाव में जीत दर्ज की थी। 1971 में कांग्रेस को हरियाणा में 7 लोकसभा सीटें मिली थीं, लेकिन 1977 में पार्टी का खाता भी नहीं खुला। इंदिरा गांधी समझ गई थीं कि हरियाणा जीतने के लिए अपनों को साथ लाना ही होगा। इसी कड़ी में 1978 में उन्होंने राव बीरेंद्र सिंह के घर जाकर उन्हें मनाया और उनकी पार्टी का कांग्रेस में विलय कराया। जिसके बाद वे 1980 में इंदिरा सरकार में मंत्री भी बने। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। उन्होंने राव बीरेंद्र सिंह को खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री बनाया, लेकिन एक साल बाद ही 25 दिसंबर 1985 को राजीव-लोगोंवाल समझौते के विरोध में बीरेंद्र सिंह ने सदन में ही इस्तीफा दे दिया। ये पहली बार था जब किसी मंत्री ने सदन में इस्तीफा दिया हो। दरअसल, 1984 में दिल्ली में हुए सिख नरसंहार के बाद राजीव गांधी ने 1985 में अकाली दल के संत लोंगोवाल के साथ शांति समझौता किया था। राव बीरेंद्र सिंह का कहना था कि इस समझौते से हरियाणा को कम पानी मिलेगा। 1989 में वे जनता दल के टिकट पर फिर लोकसभा पहुंचे। 1990 में चंद्रशेखर सरकार में राव 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कदम रखा और रेवाड़ी से विधायक बनीं। इसके बाद 1962, 1967 और 1968 में भी उन्होंने जीत हासिल की और चौथी बार विधायक बनीं। हालांकि 1977 में सुमित्रा राजनीति से संन्यास लेकर समाज सेवा में जुट गईं। उन्हें पद्मश्री भी मिला। राजनीति के साथ-साथ सुमित्रा देवी घुड़सवारी और तलवारबाजी में भी माहिर थीं। स्कीट शूटिंग में उन्होंने कई मेडल्स जीते थे। बहन के राजनीतिक से संन्यास के बाद 1977 में राव बीरेंद्र सिंह ने बड़े बेटे राव इंद्रजीत को रेवाड़ी जिले की अपनी परंपरागत जाटूसाना सीट से उतारा। उस साल पिता-पुत्र दोनों साथ-साथ विधानसभा पहुंचे। राव इंद्रजीत 1982, 1987, 1991 और 2000 में भी विधायक बने। 1986 और 1991 में हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। 1998 में इंद्रजीत महेंद्रगढ़ से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे। हालांकि 1999 लोकसभा चुनाव में वे हार गए। इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में राव इंद्रजीत को जीत मिली और वे मनमोहन सरकार में मंत्री भी बने। मोदी सरकार में लगातार तीन बार मंत्री बने राव इंद्रजीत सिंह 2009 में राव इंद्रजीत को केंद्रीय मंत्री नहीं बनाया गया। इसके बाद राव इंद्रजीत की कांग्रेस से दूरियां बढ़ने लगीं। वे अपनी ही सरकार की नीतियों की आलोचना करने लगे। मुख्यमंत्री हुड्डा पर आरोप लगाया कि वे केवल रोहतक इलाके का विकास कर रहे हैं। रेवाड़ी की अनदेखी हो रही है। 2013 में राव इंद्रजीत ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। 2014 के चुनाव में BJP ने राव इंद्रजीत को गुरुग्राम से टिकट दिया और वे जीत भी गए। PM मोदी ने अपने पहले मंत्रिमंडल में राव इंद्रजीत को शामिल किया। 2019 में लगातार दूसरी बार वे केंद्र सरकार में मंत्री बने। मोदी ने उन्हें राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार का जिम्मा दिया। फरवरी 2024, PM नरेंद्र मोदी रेवाड़ी में AIIMS का शिलान्यास करने पहुंचे, तो उन्होंने मंच से राव इंद्रजीत को अपना दोस्त बताते हुए उनकी खुलकर तारीफ की। मोदी 3.0 में भी राव इंद्रजीत को मंत्रिमंडल में जगह मिली है। राव इंद्रजीत सिंह शूटिंग के अच्छे खिलाड़ी रहे हैं। 1990 से 2003 तक वे भारतीय शूटिंग टीम के मेंबर रहे। उन्होंने कॉमनवेल्थ शूटिंग चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल भी जीता। इंद्रजीत लगातार 3 साल तक स्कीट में नेशनल चैंपियन रहे। साउथ एशियन गेम्स में 3 गोल्ड मेडल भी जीते। मंत्री रहते हुए भी 2022 में उन्होंने 65वीं नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में सीनियर कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। 2014 के बाद BJP-कांग्रेस में बंट गया बीरेंद्र सिंह का परिवार राव बीरेंद्र सिंह ने अपने दूसरे बेटे राव अजीत सिंह को भी कई चुनाव लड़वाए, लेकिन वह कभी जीत नहीं पाए और राजनीति से दूर हो गए। राव के सबसे छोटे बेटे राव यादवेंद्र सिंह ने 2005 में राजनीति में कदम रखा और परिवार की परंपरागत सीट कोसली से विधायक चुने गए। वे कोसली से दो बार MLA रहे। इस बार कोसली से पार्टी टिकट के दावेदार हैं। राव इंद्रजीत सिंह की 2 बेटियां- आरती राव और भारती राव हैं। राव इंद्रजीत, आरती को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुके हैं। आरती इस बार अटेली विधानसभा से BJP के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। राव अजीत सिंह के बड़े बेटे राव अर्जुन सिंह का निधन हो चुका है, जबकि छोटे बेटे अभिजीत सिंह कांग्रेस में हैं। परिवार राज सीरीज की ये स्टोरीज भी पढ़िए… 1. विधायक बचाने के लिए बंदूक रखते थे भजनलाल:केंद्रीय मंत्री बने तो पत्नी को MLA बनवाया; मुस्लिम बनने पर बेटे को पार्टी से निकाला 20 जनवरी 1980, हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल फूलों का गुलदस्ता लेकर इंदिरा गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचे। इंदिरा ने कहा- ‘भजनलाल जी, आप अपने घर में वापसी कर लीजिए, लेकिन मेजॉरिटी लेकर आना, वर्ना मैं आपका राज कायम नहीं रख पाऊंगी। 22 जनवरी 1980 को भजनलाल ने इंदिरा गांधी के सामने बहुमत पेश कर दिया। भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार था जब रातों-रात एक पार्टी की पूरी कैबिनेट दूसरी पार्टी की सरकार में बदल गई। पूरी खबर पढ़िए… 2. बंसीलाल पर 164 अविवाहितों की नसबंदी का आरोप लगा:4 बार CM बने; बड़ा बेटा BCCI अध्यक्ष बना, छोटा बेटा सांसद रहा साल 1967, हरियाणा विधानसभा में मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा को बहुमत साबित करना था। राव बीरेंद्र सिंह के नेतृत्व में कुछ विधायकों ने बगावत कर दिया, लेकिन बंसीलाल बगावत के लिए तैयार नहीं हुए। जिस दिन बहुमत साबित करना था, उसी दिन एक अफसर ने विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने से पहले बंसीलाल को अपने घर बुलाया। कुछ देर बाद बंसीलाल बाथरूम में गए, तो उस अफसर ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। बंसीलाल काफी देर तक अंदर से आवाज लगाते रहे, लेकिन तब तक दरवाजा नहीं खुला, जब तक भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिरा नहीं दी गई। पूरी खबर पढ़िए…