हरियाणा में विधानसभा चुनावों को लेकर बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग ने तारीख निर्धारित कर दी है। बवानी खेड़ा विधान सभा की बात की जाए तो कांग्रेस से लगभग 78 दावेदार है, तो बीजेपी में भी दर्जनों उम्मीदवार दावेदारी कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव को लेकर लोगों ने कहा कि पार्टी उम्मीदवार चुनाव से पहले कस्बा में रिहायश बनाकर यहां विकास के साथ हर दुख सुख में साथी बनने का वायदा करता है। लेकिन कस्बा की किस्मत इस मामले में फूटी हुई है। यहां से जीतने के बाद यहां का नुमाईंदा यहां शकल दिखाना भी पसंद नहीं करता। जनता के फोन उठाने में भी नुमांदों को शर्म आने लगती है। लेकिन इस बार 2024 के चुनावों में बड़ा उलटफेर होने का अंदेशा साफ दिखाई दे रहा है। टिकट न मिलने पर दूसरी पार्टी के टच में नेता बवानी खेड़ा में कांग्रेस पार्टी से लगभग 78 दावेदार है, तो बीजेपी में भी दर्जनों उम्मीदवार है जो टिकट का दावा कर रहे हैं। लेकिन टिकट एक को ही मिलनी है, कुछ उम्मीदवार ऐसे हैं जो पिछले काफी समय से अपने आकाओं को संतुष्ट करने के लिए काम-दाम-दंड-भेद सब अपना कर भीड़ दिखाने का प्रयास रहे हैं। लेकिन उनकी स्वयं की हरकतों से अब उन्हें अंदेशा होने लगा है कि उनके हाथ टिकट नहीं आने वाली जिसके कारण वे दूसरी पार्टी में सेटिंग के लिए जुगाड़ भिड़ा रहे हैं चाहे दूसरी पार्टियों के चर्चे भी कुछ खास न हो। चाहे चुनाव का परिणाम जो भी हो लेकिन उनकी मंशा विधानसभा चुनाव लड़ना है। जनता में आकर उनकी सुनते तो बन सकती थी फिर बात बवानी खेड़ा से ऐसे-ऐसे नेता भी हैं जिन्होंने जनता की सुनी और उनके दिल पर राज किया और जनता ने भी उन्हें पलकों पर बैठाया और हैट्रिक का तोहफा दिया। लेकिन कुछ नेता ऐसे भी हैं यदि पार्टी उन्हें टिकट दे, तो हैट्रिक बना सकते थे यदि जनता के बीच आकर दुख-दर्द के साथी बनते। लेकिन अब कुछ लोगों तक ही सिमट कर रह गए। इसबार कस्बा की जनता चाहती है हलके की बागडोर स्थानीय नेता को दी जाए, ताकि यहीं रहकर कस्बा सहित हलके का विकास करे। लेकिन ये तो वक्त बताएगा की पार्टी किसको टिकट देती है और जनता किसके पक्ष में मतदान करती है। करोड़ों खर्च किए पर नहीं बन पाई बात बवानी खेड़ा में भाजपा सरकार के विकास की बात करें तो पंडित दीन दयाल उपाध्याय पर्यटन स्थल जिसका टैंडर लगभग एक करोड़ से कम का था। इसे रिवाइज करके तीन करोड़ पहुंचा दिया लेकिन ये झील कभी पूरी हो ही नहीं पाई। पहले यहां पालतू पशु पानी पीते थे। आज यह डरावना कुंआ बना हुआ है। इसी झील की दो बार विजिलेंस इंक्वारी हुई लेकिन कुछ हल नहीं निकला। वहीं हांसी चुंगी पर करोड़ों की लागत से अग्निशमन केन्द्र व डॉ. हेडग्वार सभागार बनाया गया। जिसे बने हुए लगभग तीन वर्ष हो चुके हैं लेकिन इसका उद्घाटन अभी तक नहीं हुआ और ये भन जर्जर हालत में हो रहे हैं। इसके अलावा सीवरेज व्यवस्था पर करोड़ों खर्च हुए लेकिन ये कस्बावासियों के गले की फांस बनी हुई है। ऐसा रहा बवानी खेड़ा विधान सभा का इतिहास इतिहास खंगालने व जानकारों की मानें तो 1967 में जगन्नाथ, 1968 में सूबेदार प्रभु सिंह, 1972 अमर सिंह, 1977 जगन्नाथ, 1982 में अमर सिंह, 1987 में जगन्नाथ, 1991 में अमर सिंह, 1996 में जगन्नाथ, 2000-2005-2009 रामकिशन फौजी, 2014, 2019 विशंभर वाल्मीकि ने विजय हासिल की। यहां से नेताओं को मंत्रिमंडल में भी स्थान मिला। लेकिन विकास के नाम पर क्या और कितना हुआ किसी से छिपा नहीं। आज करोड़ों रूपए लगाने पश्चात भवन खंडहर बनने को मजबूर दिखाई दे रहे हैं। मंत्री बनने के बाद हलका विकास के मामले में चमकना चाहिए था। लेकिन विकास कस्बा व हलके से कोसों दूर दिखाई देता है। हरियाणा में विधानसभा चुनावों को लेकर बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग ने तारीख निर्धारित कर दी है। बवानी खेड़ा विधान सभा की बात की जाए तो कांग्रेस से लगभग 78 दावेदार है, तो बीजेपी में भी दर्जनों उम्मीदवार दावेदारी कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव को लेकर लोगों ने कहा कि पार्टी उम्मीदवार चुनाव से पहले कस्बा में रिहायश बनाकर यहां विकास के साथ हर दुख सुख में साथी बनने का वायदा करता है। लेकिन कस्बा की किस्मत इस मामले में फूटी हुई है। यहां से जीतने के बाद यहां का नुमाईंदा यहां शकल दिखाना भी पसंद नहीं करता। जनता के फोन उठाने में भी नुमांदों को शर्म आने लगती है। लेकिन इस बार 2024 के चुनावों में बड़ा उलटफेर होने का अंदेशा साफ दिखाई दे रहा है। टिकट न मिलने पर दूसरी पार्टी के टच में नेता बवानी खेड़ा में कांग्रेस पार्टी से लगभग 78 दावेदार है, तो बीजेपी में भी दर्जनों उम्मीदवार है जो टिकट का दावा कर रहे हैं। लेकिन टिकट एक को ही मिलनी है, कुछ उम्मीदवार ऐसे हैं जो पिछले काफी समय से अपने आकाओं को संतुष्ट करने के लिए काम-दाम-दंड-भेद सब अपना कर भीड़ दिखाने का प्रयास रहे हैं। लेकिन उनकी स्वयं की हरकतों से अब उन्हें अंदेशा होने लगा है कि उनके हाथ टिकट नहीं आने वाली जिसके कारण वे दूसरी पार्टी में सेटिंग के लिए जुगाड़ भिड़ा रहे हैं चाहे दूसरी पार्टियों के चर्चे भी कुछ खास न हो। चाहे चुनाव का परिणाम जो भी हो लेकिन उनकी मंशा विधानसभा चुनाव लड़ना है। जनता में आकर उनकी सुनते तो बन सकती थी फिर बात बवानी खेड़ा से ऐसे-ऐसे नेता भी हैं जिन्होंने जनता की सुनी और उनके दिल पर राज किया और जनता ने भी उन्हें पलकों पर बैठाया और हैट्रिक का तोहफा दिया। लेकिन कुछ नेता ऐसे भी हैं यदि पार्टी उन्हें टिकट दे, तो हैट्रिक बना सकते थे यदि जनता के बीच आकर दुख-दर्द के साथी बनते। लेकिन अब कुछ लोगों तक ही सिमट कर रह गए। इसबार कस्बा की जनता चाहती है हलके की बागडोर स्थानीय नेता को दी जाए, ताकि यहीं रहकर कस्बा सहित हलके का विकास करे। लेकिन ये तो वक्त बताएगा की पार्टी किसको टिकट देती है और जनता किसके पक्ष में मतदान करती है। करोड़ों खर्च किए पर नहीं बन पाई बात बवानी खेड़ा में भाजपा सरकार के विकास की बात करें तो पंडित दीन दयाल उपाध्याय पर्यटन स्थल जिसका टैंडर लगभग एक करोड़ से कम का था। इसे रिवाइज करके तीन करोड़ पहुंचा दिया लेकिन ये झील कभी पूरी हो ही नहीं पाई। पहले यहां पालतू पशु पानी पीते थे। आज यह डरावना कुंआ बना हुआ है। इसी झील की दो बार विजिलेंस इंक्वारी हुई लेकिन कुछ हल नहीं निकला। वहीं हांसी चुंगी पर करोड़ों की लागत से अग्निशमन केन्द्र व डॉ. हेडग्वार सभागार बनाया गया। जिसे बने हुए लगभग तीन वर्ष हो चुके हैं लेकिन इसका उद्घाटन अभी तक नहीं हुआ और ये भन जर्जर हालत में हो रहे हैं। इसके अलावा सीवरेज व्यवस्था पर करोड़ों खर्च हुए लेकिन ये कस्बावासियों के गले की फांस बनी हुई है। ऐसा रहा बवानी खेड़ा विधान सभा का इतिहास इतिहास खंगालने व जानकारों की मानें तो 1967 में जगन्नाथ, 1968 में सूबेदार प्रभु सिंह, 1972 अमर सिंह, 1977 जगन्नाथ, 1982 में अमर सिंह, 1987 में जगन्नाथ, 1991 में अमर सिंह, 1996 में जगन्नाथ, 2000-2005-2009 रामकिशन फौजी, 2014, 2019 विशंभर वाल्मीकि ने विजय हासिल की। यहां से नेताओं को मंत्रिमंडल में भी स्थान मिला। लेकिन विकास के नाम पर क्या और कितना हुआ किसी से छिपा नहीं। आज करोड़ों रूपए लगाने पश्चात भवन खंडहर बनने को मजबूर दिखाई दे रहे हैं। मंत्री बनने के बाद हलका विकास के मामले में चमकना चाहिए था। लेकिन विकास कस्बा व हलके से कोसों दूर दिखाई देता है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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