Dussehra 2024: आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित अखाड़ों में आज भी होती है शस्त्र पूजा, कराया जाता है कुंभ में सबसे पहले स्नान

Dussehra 2024: आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित अखाड़ों में आज भी होती है शस्त्र पूजा, कराया जाता है कुंभ में सबसे पहले स्नान

<p style=”text-align: justify;”><strong>Dussehra 2024:</strong> दशहरे के दिन आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित दशनामी संन्यासी परंपरा के नागा संन्यासी अखाड़ों में शस्त्र पूजन का विधान है. पिछले 2500 वर्षों से दशनामी संन्यासी परंपरा से जुड़े नागा संन्यासी इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए अपने-अपने अखाड़ों में शस्त्र पूजन करते हैं. अखाड़ों में प्राचीन काल से रखें सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश नामक भालो को देवता के रूप में पूजा जाता है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>वैदिक विधि-विधान के साथ दशनामी संन्यासी इन देवताओं रूपी भालो की पूजा करते हैं. इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए शनिवार को दशहरे के रोज श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा, कनखल में भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश नामक भाले देवता के रूप में पूजे गए. इसके साथ ही आज के युग के हथियार और प्राचीन काल के कई प्रकार के हत्यारों की पूजा मंत्रोच्चारण के साथ की गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कराया जाता है गंगा स्नान</strong><br />भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश देवता रूपी भाले कुंभ मेले के अवसर पर अखाड़ों की पेशवाई के आगे चलते हैं और इन भालो रूपी देवताओं को कुंभ में शाही स्नानों में सबसे पहले गंगा स्नान कराया जाता है. उसके बाद अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर जमात के श्री महन्त और अन्य नागा साधु स्नान करते हैं. इसीलिए विजयादशमी के अवसर पर अखाड़ों में शस्त्र पूजन का विशेष महत्व है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज का कहना है कि दशहरे के दिन हम अपने प्राचीन देवताओं और शस्त्रों की पूजा करते हैं क्योंकि आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने राष्ट्र की रक्षा के लिए शास्त्र और शस्त्र की परंपरा की स्थापना की थी. हमारे देवी देवताओं क हाथों में भी शास्त्र विराजमान है. विजयदशमी के दिन भगवान राम द्वारा रावण का वध किया गया. भारतीय परंपरा में शक्ति पूजन की विशेष परंपरा रही है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/baba-ramdev-says-muslim-religious-leaders-protest-against-spitting-and-urinating-in-food-ann-2802089″>’खाने में थूकने और पेशाब करने का विरोध करें मुस्लिम धर्मगुरु, वो मौन हो जाते हैं’- बाबा रामदेव</a><br /></strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>शस्त्रों का पूजन हुआ</strong><br />महानिर्वाणी अखाड़े की प्राचीन परंपरा के अनुसार अखाड़े के रमता पंच नागा सन्यासियों द्वारा शस्त्रों का पूजन किया गया. आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा परंपरा शुरू की गई थी. सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश हमारे भाले हैं, जिसको हम कुंभ मेले में स्नान कराते हैं. उनका पूजन किया जाता है और आज के जो शस्त्र है उनका भी पूजन किया जाता है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>शंकराचार्य द्वारा सन्यासियों को शास्त्र और शस्त्र में निपुण बनाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की गई थी जिससे धर्म की रक्षा की जाए जो सन्यासी शास्त्र में निपुण थे. उनको शास्त्रों में भी आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा निपुण किया गया. इसलिए शास्त्र के साथ शस्त्रों की पूजा भी आवश्यक है क्योंकि बिना शक्ति के हम चल नहीं सकते वैसे ही वैदिक परंपरा में विधान रहा है कि किसी भी प्रकार का कोई युद्ध रहा है, उसमें बिन शस्त्र से लड़ा नहीं जा सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई अखाड़ों की परंपरा में शस्त्र पूजन का काफी महत्व माना जाता है, इसीलिए सदियों से अखाड़े इस परंपरा को निभा रहे हैं और दशहरे के दिन सभी दशनाम अखाड़ों में शस्त्र पूजन किया जाता है. इन शस्त्रों को कुंभ की पेशवाई में सबसे पहले मां गंगा में स्नान कराने के बाद नागा सन्यासियों की पूरी जमात गंगा में स्नान करती है. दशनाम अखाड़ों के संत शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्र चलाने में भी निपुण होते हैं.&nbsp;</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Dussehra 2024:</strong> दशहरे के दिन आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित दशनामी संन्यासी परंपरा के नागा संन्यासी अखाड़ों में शस्त्र पूजन का विधान है. पिछले 2500 वर्षों से दशनामी संन्यासी परंपरा से जुड़े नागा संन्यासी इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए अपने-अपने अखाड़ों में शस्त्र पूजन करते हैं. अखाड़ों में प्राचीन काल से रखें सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश नामक भालो को देवता के रूप में पूजा जाता है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>वैदिक विधि-विधान के साथ दशनामी संन्यासी इन देवताओं रूपी भालो की पूजा करते हैं. इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए शनिवार को दशहरे के रोज श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा, कनखल में भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश नामक भाले देवता के रूप में पूजे गए. इसके साथ ही आज के युग के हथियार और प्राचीन काल के कई प्रकार के हत्यारों की पूजा मंत्रोच्चारण के साथ की गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कराया जाता है गंगा स्नान</strong><br />भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश देवता रूपी भाले कुंभ मेले के अवसर पर अखाड़ों की पेशवाई के आगे चलते हैं और इन भालो रूपी देवताओं को कुंभ में शाही स्नानों में सबसे पहले गंगा स्नान कराया जाता है. उसके बाद अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर जमात के श्री महन्त और अन्य नागा साधु स्नान करते हैं. इसीलिए विजयादशमी के अवसर पर अखाड़ों में शस्त्र पूजन का विशेष महत्व है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज का कहना है कि दशहरे के दिन हम अपने प्राचीन देवताओं और शस्त्रों की पूजा करते हैं क्योंकि आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने राष्ट्र की रक्षा के लिए शास्त्र और शस्त्र की परंपरा की स्थापना की थी. हमारे देवी देवताओं क हाथों में भी शास्त्र विराजमान है. विजयदशमी के दिन भगवान राम द्वारा रावण का वध किया गया. भारतीय परंपरा में शक्ति पूजन की विशेष परंपरा रही है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/baba-ramdev-says-muslim-religious-leaders-protest-against-spitting-and-urinating-in-food-ann-2802089″>’खाने में थूकने और पेशाब करने का विरोध करें मुस्लिम धर्मगुरु, वो मौन हो जाते हैं’- बाबा रामदेव</a><br /></strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>शस्त्रों का पूजन हुआ</strong><br />महानिर्वाणी अखाड़े की प्राचीन परंपरा के अनुसार अखाड़े के रमता पंच नागा सन्यासियों द्वारा शस्त्रों का पूजन किया गया. आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा परंपरा शुरू की गई थी. सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश हमारे भाले हैं, जिसको हम कुंभ मेले में स्नान कराते हैं. उनका पूजन किया जाता है और आज के जो शस्त्र है उनका भी पूजन किया जाता है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>शंकराचार्य द्वारा सन्यासियों को शास्त्र और शस्त्र में निपुण बनाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की गई थी जिससे धर्म की रक्षा की जाए जो सन्यासी शास्त्र में निपुण थे. उनको शास्त्रों में भी आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा निपुण किया गया. इसलिए शास्त्र के साथ शस्त्रों की पूजा भी आवश्यक है क्योंकि बिना शक्ति के हम चल नहीं सकते वैसे ही वैदिक परंपरा में विधान रहा है कि किसी भी प्रकार का कोई युद्ध रहा है, उसमें बिन शस्त्र से लड़ा नहीं जा सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई अखाड़ों की परंपरा में शस्त्र पूजन का काफी महत्व माना जाता है, इसीलिए सदियों से अखाड़े इस परंपरा को निभा रहे हैं और दशहरे के दिन सभी दशनाम अखाड़ों में शस्त्र पूजन किया जाता है. इन शस्त्रों को कुंभ की पेशवाई में सबसे पहले मां गंगा में स्नान कराने के बाद नागा सन्यासियों की पूरी जमात गंगा में स्नान करती है. दशनाम अखाड़ों के संत शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्र चलाने में भी निपुण होते हैं.&nbsp;</p>  उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड Bihar News: ‘कांग्रेस का युवराज लॉन्च ही नहीं होता’, बोले गिरिराज सिंह- हरियाणा की जनता ने उन्हें नकार दिया