हिमाचल हाईकोर्ट आज (बुधवार को) मुख्य संसदीय सचिव (CPS) केस में अपना फैसला सुना सकता है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की बैंच आज अपना फैसला सुना सकती है। बता दें कि, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कांग्रेस के 6 विधायकों को CPS बना रखा है। कल्पना नाम की एक महिला के अलावा राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी BJP के 11 विधायकों और पीपल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस संस्था ने CPS की नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए हिमाचल हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है। इस केस की सुनवाई जून को पूरी हो गई है। तब अदालत ने फैसला सुरक्षित रख दिया था। इनकी याचिका पर हाईकोर्ट बीते जनवरी महीने में CPS द्वारा मंत्रियों जैसी शक्तियों का उपयोग न करने के अंतरिम आदेश सुना चुका है। इसी मामले में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट (SC) का भी दरवाजा खटखटा चुकी है और दूसरे राज्यों के SC में चल रहे CPS केस के साथ क्लब करने का आग्रह कर चुकी है। मगर, SC ने राज्य सरकार के आग्रह को ठुकराते हुए हाईकोर्ट में ही केस सुनने के आदेश दिए हैं। ये कांग्रेसी विधायक बनाए गए CPS CM सुक्खू ने कांग्रेस पार्टी के जिन 6 विधायकों को CPS बना रखा है, उनमें रोहड़ू के MLA एमएल ब्राक्टा, कुल्लू के सुंदर सिंह ठाकुर, अर्की के संजय अवस्थी, पालमपुर के आशीष बुटेल, दून के राम कुमार चौधरी और बैजनाथ के विधायक किशोरी लाल शामिल हैं। सरकार इन्हें गाड़ी, दफ्तर, स्टाफ और मंत्रियों के समान वेतन दे रही है। मंत्रियों की लिमिट तय, इसलिए विधायकों का एडजस्टमेंट भारतीय संविधान के अनुच्छेद-164 में किए गए संशोधन के मुताबिक, किसी राज्य में उसके विधायकों की कुल संख्या के 15% से अधिक मंत्री नहीं हो सकती। हिमाचल विधानसभा में 68 MLA हैं, इसलिए यहां अधिकतम 12 मंत्री ही बन सकते हैं। संसदीय सचिवों की नियुक्ति को गैर कानूनी ठहरा चुका SC याचिका में कहा गया कि हिमाचल और असम में संसदीय सचिवों की नियुक्ति से जुड़े एक्ट एक जैसे हैं। सुप्रीम कोर्ट, असम और मणिपुर में संसदीय सचिवों की नियुक्ति से जुड़े एक्ट को गैरकानूनी ठहरा चुका है। इस बात की जानकारी होने के बावजूद हिमाचल की कांग्रेस सरकार ने अपने विधायकों की नियुक्ति बतौर CPS की। इसकी वजह से राज्य में मंत्रियों और CPS की कुल संख्या 15% से ज्यादा हो गई। इस केस की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील पर CPS बने सभी कांग्रेसी विधायकों को व्यक्तिगत तौर पर प्रतिवादी बना रखा है। हर महीने सवा 2 लाख रुपए वेतन-भत्ता हाईकोर्ट में दाखिल पिटीशन में आरोप लगाया गया कि CPS बनाए गए सभी 6 कांग्रेसी विधायक लाभ के पदों पर तैनात हैं। इन्हें हर महीने 2 लाख 20 हजार रुपए वेतन और भत्ते के रूप में मिलते हैं। यानी ये विधायक राज्य के मंत्रियों के बराबर वेतन और अन्य सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। याचिका में हिमाचल संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) एक्ट, 2006 को भी रद्द करने की मांग की गई। राज्य सरकार ने इसी एक्ट के तहत छह CPS तैनात कर रखे हैं। हिमाचल हाईकोर्ट आज (बुधवार को) मुख्य संसदीय सचिव (CPS) केस में अपना फैसला सुना सकता है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की बैंच आज अपना फैसला सुना सकती है। बता दें कि, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कांग्रेस के 6 विधायकों को CPS बना रखा है। कल्पना नाम की एक महिला के अलावा राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी BJP के 11 विधायकों और पीपल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस संस्था ने CPS की नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए हिमाचल हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है। इस केस की सुनवाई जून को पूरी हो गई है। तब अदालत ने फैसला सुरक्षित रख दिया था। इनकी याचिका पर हाईकोर्ट बीते जनवरी महीने में CPS द्वारा मंत्रियों जैसी शक्तियों का उपयोग न करने के अंतरिम आदेश सुना चुका है। इसी मामले में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट (SC) का भी दरवाजा खटखटा चुकी है और दूसरे राज्यों के SC में चल रहे CPS केस के साथ क्लब करने का आग्रह कर चुकी है। मगर, SC ने राज्य सरकार के आग्रह को ठुकराते हुए हाईकोर्ट में ही केस सुनने के आदेश दिए हैं। ये कांग्रेसी विधायक बनाए गए CPS CM सुक्खू ने कांग्रेस पार्टी के जिन 6 विधायकों को CPS बना रखा है, उनमें रोहड़ू के MLA एमएल ब्राक्टा, कुल्लू के सुंदर सिंह ठाकुर, अर्की के संजय अवस्थी, पालमपुर के आशीष बुटेल, दून के राम कुमार चौधरी और बैजनाथ के विधायक किशोरी लाल शामिल हैं। सरकार इन्हें गाड़ी, दफ्तर, स्टाफ और मंत्रियों के समान वेतन दे रही है। मंत्रियों की लिमिट तय, इसलिए विधायकों का एडजस्टमेंट भारतीय संविधान के अनुच्छेद-164 में किए गए संशोधन के मुताबिक, किसी राज्य में उसके विधायकों की कुल संख्या के 15% से अधिक मंत्री नहीं हो सकती। हिमाचल विधानसभा में 68 MLA हैं, इसलिए यहां अधिकतम 12 मंत्री ही बन सकते हैं। संसदीय सचिवों की नियुक्ति को गैर कानूनी ठहरा चुका SC याचिका में कहा गया कि हिमाचल और असम में संसदीय सचिवों की नियुक्ति से जुड़े एक्ट एक जैसे हैं। सुप्रीम कोर्ट, असम और मणिपुर में संसदीय सचिवों की नियुक्ति से जुड़े एक्ट को गैरकानूनी ठहरा चुका है। इस बात की जानकारी होने के बावजूद हिमाचल की कांग्रेस सरकार ने अपने विधायकों की नियुक्ति बतौर CPS की। इसकी वजह से राज्य में मंत्रियों और CPS की कुल संख्या 15% से ज्यादा हो गई। इस केस की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील पर CPS बने सभी कांग्रेसी विधायकों को व्यक्तिगत तौर पर प्रतिवादी बना रखा है। हर महीने सवा 2 लाख रुपए वेतन-भत्ता हाईकोर्ट में दाखिल पिटीशन में आरोप लगाया गया कि CPS बनाए गए सभी 6 कांग्रेसी विधायक लाभ के पदों पर तैनात हैं। इन्हें हर महीने 2 लाख 20 हजार रुपए वेतन और भत्ते के रूप में मिलते हैं। यानी ये विधायक राज्य के मंत्रियों के बराबर वेतन और अन्य सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। याचिका में हिमाचल संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) एक्ट, 2006 को भी रद्द करने की मांग की गई। राज्य सरकार ने इसी एक्ट के तहत छह CPS तैनात कर रखे हैं। हिमाचल | दैनिक भास्कर
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CM सुक्खू ने राधा-स्वामी हॉस्पिटल मुद्दे पर बुलाई बैठक:प्रबंधन ने की अस्पताल को बंद करने की घोषणा, प्रदर्शन कर रहे ग्रामीण
CM सुक्खू ने राधा-स्वामी हॉस्पिटल मुद्दे पर बुलाई बैठक:प्रबंधन ने की अस्पताल को बंद करने की घोषणा, प्रदर्शन कर रहे ग्रामीण हमीरपुर जिले में के भोटा में स्थित राधा स्वामी सत्संग व्यास चैरिटेबल अस्पताल के मुद्दे को लेकर रविवार को सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपने सरकारी आवास पर उच्च स्तरीय बैठक बुलाई है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सीएम सूक्खू ने बैठक के लिए राधा स्वामी सत्संग व्यास प्रबंधन के पदाधिकारियों सहित जिले के कई अन्य नेताओं को भी इस बैठक में बुलाया है। यह बैठक 2 बजे सीएम सुक्खू के सरकारी आवास ओक ओवर में होगी। बता दें कि भोटा में स्थित राधा स्वामी सत्संग व्यास चैरिटेबल अस्पताल अब बंद होने की कगार पर जिसको लेकर पिछले दिनों से आसपास की पंचायतों के लोग सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे है। इस प्रदर्शन में बीजेपी के विधायक भी शामिल है। क्या है पूरा मामला हमीरपुर जिले के भोटा में राधा स्वामी सत्संग व्यास अस्पताल है, प्रबंधन इसको अपग्रेड करना चाहता है। लेकिन उपकरण खरीदने के लिए भारी भरकम GST चुकाना पड़ रहा है। इस पूरे मामले में हिमाचल सरकार अब लैंड सीलिंग एक्ट 1972 आड़े आ रहा है। जानकारी के अनुसार राधा स्वामी सत्संग ब्यास अस्पताल की जमीन को महाराज जगत सिंह मेडिकल रिलीफ सोसाइटी को ट्रांसफर करना चाहती है। अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि उन्हें हर साल 2 करोड़ रुपए जीएसटी देना पड़ रहा है। जबकि वह मुफ्त में लोगों का इलाज कर रहे हैं। ऐसे में प्रबंधन चाहता है कि जमीन को उनकी सिस्टर कन्सर्न संस्था को ट्रांसफर कर दिया जाए। 5 दिनों से प्रदर्शन लोग कर रहे प्रदर्शन डेरा प्रबंधन द्वारा अस्पताल को बंद करने की घोषणा के बाद आस-पास की पंचायतों के ग्रामीण सड़क पर उतर गए है। लोग हर दिन चैरिटेबल अस्पताल भोटा के बाहर पहुंच रहे और नेशनल हाई-वे पर चक्का जाम कर नारेबाजी कर रहे है। बता दें कि क्षेत्र में डेरा स्वामी की काफी लोकप्रियता है, उनके समर्थकों की काफी संख्या है। बता दें कि भाजपा ने मामले पर समर्थन किया है। भाजपा के कई विधायक इसमें शामिल हो रहे है। भाजपा विधायकों ने साधा सुक्खू सरकार पर निशाना बता दें कि बीते दिनों प्रदर्शन में पहुंचे हमीरपुर जिले से भाजपा विधायक प्रदर्शन में शामिल हुए थे। इस दौरान उन्होंने सरकार घेरने की कोशिश की। हमीरपुर के बड़सर विधानसभा से भाजपा विधायक इंद्र दत्त लखनपाल ने कहा कि भोटा चैरिटेबल अस्पताल को बंद करने के चलते लोग अब सड़कों पर उतरे है और सीएम सुक्खू को चाहिए कि विवाद को सुलझाने के लिए जल्द से जल्द काम किया जाना चाहिए। ताकि समस्या हल हो सके। हमीरपुर सदर से भाजपा विधायक आशीष शर्मा ने कहा कि पिछले 24 साल से अस्पताल चल रहा है और सीआईडी ने यह जानकारी सरकार तक क्यों नहीं पहुंचाई। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में जब तक लोग सड़कों में ना आए। तब तक सीएम कुछ नहीं करेंगे। सीएम सुक्खू अगर लिख कर दो लाइनें संस्थान को दे देते हैं कि आगामी सत्र में संशोधन किया जाएगा तो अस्पताल बंद होने से बच जाएगा। विधायक रणधीर शर्मा ने कहा कि जनता के विरोध का बीजेपी पूर्ण रूप से समर्थन करती है और अस्पताल प्रबंधन की मांग जायज है। कितनी जमीन है संस्था के पास राधा स्वामी सत्संग ब्यास के पास हिमाचल में 6000 बीघा से ज्यादा की लैंड होल्डिंग है। पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार के समय 2014 में इन्हें लैंड सीलिंग एक्ट से छूट दी गई थी। तब भारत सरकार ने एक राइडर लगा दिया था कि लैंड सीलिंग की सीमा से बाहर की जमीन को ये सेल, लीज, गिफ्ट, विल, मॉर्टगेज या किसी अन्य तरीके से ट्रांसफर नहीं कर पाएंगे। इसी राइडर की बाधा को अब हटाया जा रहा है। हिमाचल निर्माता ने दिया था हिमाचल को सुरक्षा कवच हिमाचल प्रदेश के पहले सीएम डॉ. वाईएस परमार के समय हिमाचल प्रदेश सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग एक्ट इसलिए बनाया गया था। ताकि भूमि के व्यक्तिगत उपयोग की सीमा तय की जा सके। यह भू-सुधारों में सबसे बड़ा कदम था। इसमें लैंड होल्डिंग की सीमा निर्धारित है। कोई भी व्यक्ति या परिवार राज्य में पानी लगने वाली जमीन सिर्फ 50 बीघा, एक फसल देने वाली जमीन 75 बीघा और बगीचा 150 बीघा और ट्राइबल एरिया में 350 बीघा जमीन ही रख सकता है। इस एक्ट की धारा-5 के अनुसार राज्य और केंद्र सरकार, सहकारी समितियों, सहकारी बैंकों, स्थानीय निकायों, चाय बागानों, उद्योगों तथा जल विद्युत परियोजनाओं की जमीन को सीलिंग से छूट दी गई है। लेकिन अब संशोधन से जो छूट राधा स्वामी सत्संग ब्यास को दी जा रही है, वह किसी अन्य को उपलब्ध नहीं है। भारत सरकार की अनुमति पर ही लागू होगा ऑर्डिनेंस स्वामी सत्संग ब्यास ने एक अन्य सोसाइटी को हमीरपुर के भोटा स्थित अस्पताल परिसर की लैंड ट्रांसफर करने का आवेदन किया है। यदि ऐसा न हुआ तो अस्पताल को बंद करने का नोटिस भी सरकार को दिया है। वहीं प्रदेश सरकार ने चैरिटेबल संस्था को देखते हुए बीते दिनों सीएम सुक्खू ने संस्था को छूट देने की बात कही थी। मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार अध्यादेश लाकर में वन टाइम छूट के तहत 30 एकड़ जमीन ट्रांसफर करने की अनुमति कुछ शर्तों के साथ देने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। इसके बदले हस्तांतरण शुल्क भी मार्केट वैल्यू के फार्मूले से प्रस्तावित किया जा रहा है। हालांकि यह अध्यादेश तभी प्रख्यापित या घोषित होगा, जब इसमें राष्ट्रपति की मंजूरी भारत सरकार से आ जाएगी। इस प्रक्रिया में राज्य के हित का ध्यान रखा जाएगा। सीएम सुक्खू ने पहले ही कहा है कि पहले सभी कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सरकार फैसला करेगी।
हिमाचल के किसानों पर सूखे की मार:90% जमीन पर नहीं कर पाए गेंहू की बुवाई; पोस्ट-मानसून सीजन में 98% कम बारिश
हिमाचल के किसानों पर सूखे की मार:90% जमीन पर नहीं कर पाए गेंहू की बुवाई; पोस्ट-मानसून सीजन में 98% कम बारिश हिमाचल प्रदेश में भयंकर सूखे वाली स्थिति बनती जा रही है। पोस्ट-मानसून सीजन में सामान्य से 98% कम बारिश हुई है। इसकी सबसे ज्यादा मार गेंहू उत्पादक किसानों पर पड़ रही है। प्रदेश के अधिक ऊंचे व मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में गेंहू की बुवाई का उपयुक्त समय निकल चुका है। अब मैदानी इलाकों में ही बुवाई के लिए एक सप्ताह शेष बचा है। मगर अभी तक 10 प्रतिशत क्षेत्र में ही किसान गेंहू की बुवाई कर पाए हैं। 90 प्रतिशत जमीन पर किसान गेंहू की बुवाई के लिए बारिश होने का इंतजार कर रहे हैं। 3.26 लाख हैक्टेयर में होती है गेंहू की फसल कृषि विभाग के अनुसार, प्रदेश में गेंहू की फसल 3 लाख 26 हजार हैक्टेयर में होती है। बीते साल 6.20 लाख मीट्रिक टन गेंहू की पैदावार हुई थी, लेकिन इस बार गेंहू की बुवाई मुश्किल से 30 हजार हैक्टेयर में हो पाई है। इससे हिमाचल का किसान चिंता में है। गेंहू के साथ साथ दूसरी नगदी फसलों फूलगोभी, मटर, शिमला मिर्च इत्यादि पर भी सूखे की मार पड़नी शुरू हो गई है। मानसून में 19% कम, पोस्ट मानसून सीजन में 98% कम बारिश हिमाचल में इस बार मानसून सीजन में भी सामान्य से 19 प्रतिशत कम बादल बरसे है। मानसून बीतने यानी पोस्ट-मानसून सीजन में भी सामान्य से (1 अक्टूबर से 8 नवंबर तक) 98 प्रतिशत कम बारिश हुई है। मौसम विभाग के अनुसार, 123 सालों में ऐसा तीसरी बार हुआ है, जब पोस्ट-मानसून सीजन में इतनी कम बारिश हुई है। 6 जिलों में 38 दिन से एक बूंद भी नहीं बरसी प्रदेश में छह जिले चंबा, बिलासपुर, हमीरपुर, सोलन, सिरमौर और कुल्लू में तो बीते 38 दिनों से पानी की बूंद तक नहीं गिरी। अन्य जिलों में भी नाममात्र बारिश व बूंदाबांदी हुई है। इससे हिमाचल में सूखे के कारण गंभीर हालात बन रहे है। गेंहू की बात करें तो कांगड़ा, हमीरपुर, मंडी, सिरमौर, ऊना और चंबा जिला में ज्यादा पैदावार ज्यादा होती है। इन जिलों के किसान ज्यादा परेशान है। 11-12 को बारिश-बर्फबारी मौसम विभाग की माने तो अगले 72 घंटे तक बारिश के आसार नहीं है। मगर 11 और 12 नवंबर को अधिक ऊंचाई वाले व मध्यम ऊंचाई वाले इलाकों में हल्की बारिश-बर्फबारी हो सकती है। मैदानी इलाकों में बारिश-बर्फबारी की संभावना नहीं है, जबकि प्रदेश में गेंहू की ज्यादा फसल मैदानी इलाकों में ही होती है। गेंहू की बुवाई का उपयुक्त समय कृषि विभाग के अनुसार, ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में 1 अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक गेंहू की बुवाई की जा सकती है, जबकि मैदानी व मध्यम ऊंचाई वाले इलाकों में 25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक गेंहू की फसल की बुवाई का सकती है।
बिलासपुर में सीएम सुक्खू पर MLA त्रिलोक का हमला:बोले- सरकार के खिलाफ भाजपा पूरे प्रदेश में करेगी धरना प्रदर्शन
बिलासपुर में सीएम सुक्खू पर MLA त्रिलोक का हमला:बोले- सरकार के खिलाफ भाजपा पूरे प्रदेश में करेगी धरना प्रदर्शन बिलासपुर के सदर विधायक त्रिलोक जमवाल ने बताया कि प्रदेश सरकार के खिलाफ भाजपा पूरे प्रदेश में धरना प्रदर्शन करने जा रही है। इसी कड़ी में 9 दिसंबर को बिलासपुर की मेन मार्केट में जिला भाजपा द्वारा धरने का आयोजन किया जाएगा। जिसमें प्रदेश सरकार की कारगुज़ारी उजागर की जाएगी। इसमें प्रदेश के वरिष्ठ नेता भी शामिल होंगे। मंगलवार को भाजपा कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में त्रिलोक जमवाल ने बताया कि प्रदेश सरकार अपने 2 साल के कार्यकाल में प्रदेश का विकास कार्य करने में नाकाम साबित हुई है। फिर बिलासपुर में 11 दिसंबर को कैसा जश्न मनाया जा रहा है। यह झूठ की सरकार है, जिसने सत्ता में आने के लिए प्रदेश की जनता को ठगा है। सरकार ने इन दो वर्षों में 3 हजार करोड़ का लोन लिया है और लोन के पैसे से सैलरी और पेंशन दी जा रही है। जबकि, विकास के लिए एक पैसा खर्च नहीं हो रहा है। फिर जश्न किस बात का मनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जिला में पानी को लेकर हाहाकार मची हुई है और सड़कों की हालत खस्ता है। सरकार को चाहिए कि जश्न पर पैसे बर्बाद करने के बजाय पानी की मीटरों को ठीक करवाया जाए और सड़कों की मरम्मत करवाई जाए। हालत यह है कि इनके मुखिया से लेकर नेता झूठ बोलते हैं।