‘मैंने आज तक यहां पर कभी तालाब नहीं देखा। सिर्फ मस्जिद ही देखी है। यह तो ऊपर वाले का घर है। कोर्ट जो भी माने, लेकिन हम तो इसे मस्जिद ही मानेंगे।’ यह कहना है 70 साल के अख्तर का। अख्तर बागपत जिले में राजपुर खामपुर गांव के रहने वाले हैं। इस गांव की करीब 65-70 साल पुरानी मस्जिद को तहसील कोर्ट ने खाली करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने माना है कि ये मस्जिद तालाब की जमीन पर बनी है। गांव के लोग इस फैसले के खिलाफ हैं। अपनी पूरी जिंदगी इसी गांव में बिता चुके बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने इस जगह पर आज तक तालाब नहीं देखा। यहां पहले खाली जमीन थी, फिर मस्जिद बनी। इस बात का समर्थन हिंदू और मुसलमान दोनों ही करते हैं। लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ मस्जिद पक्ष ने ऊपरी अदालत में अपील दायर की है। जिस पर लंबी सुनवाई चलने की उम्मीद है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में जारी विवाद के बीच अब उत्तर प्रदेश में भी मस्जिदों पर विवाद शुरू हो गया है। ऐसे में दैनिक भास्कर ने ग्राउंड जीरो पर जाकर इस पूरे केस की पड़ताल की और सभी पहलुओं को समझा। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… सबसे पहले पूरा मामला समझिए…
यूपी के बागपत जिले में हरियाणा बॉर्डर से सटा हुआ खादर का गांव है राजपुर खामपुर। 28 अक्टूबर, 2024 को सहायक कलेक्टर/तहसीलदार अभिषेक कुमार सिंह ने 5 पेज का आदेश जारी किया। इसमें लिखा था कि खसरा नंबर-603, तालाब के क्षेत्रफल 0.630 में से 0.282 हेक्टेयर पर अवैध कब्जा करके मस्जिद बनाने पर फरियाद पुत्र वहीद को बेदखल किया जाता है। फरियाद पर 4,12,650 रुपए का अर्थदंड (जुर्माना) और 5000 रुपए निष्पादन व्यय (execution expenses) लगाया जाता है। इस आदेश में कहीं पर भी मस्जिद गिराने का जिक्र लिखित तौर पर नहीं है। इस आदेश के बाद तहसील की एक टीम ने गांव का दौरा करके मस्जिद की भौगोलिक स्थिति भी देखी है। तीन तालाबों पर कब्जे की HC में हुई थी शिकायत
दरअसल, इस पूरे विवाद की शुरुआत साल, 2019 से हुई। मस्जिद से करीब 500 मीटर दूर गुलशार का घर है। उनकी शिकायत पर तहसील कोर्ट ने मस्जिद को अवैध निर्माण मानते हुए खाली करने का आदेश दिया। पूरा मसला समझने के लिए हम सबसे पहले गुलशार के घर पहुंचे। दोनों पैरों से दिव्यांग गुलशार घर के बाहर वाले कमरे में बेड पर बैठे मिले। गुलशार बताते हैं- मैं समाजसेवी हूं। मुझे पता चला कि हमारे गांव में तीन तालाब हुआ करते थे। बाद में तीनों तालाबों पर अवैध कब्जे हो गए। खसरा नंबर- 603 पर एक मस्जिद और 6 मकान, खसरा नंबर- 617 पर 30 से ज्यादा मकान बने हैं। खसरा नंबर- 636 पर फसल खड़ी है। ये तीनों खसरा नंबर सरकारी कागजातों में तालाब के नाम पर हैं। मैंने 2019 में सबसे पहले बागपत DM को शिकायत भेजी। उन्होंने तत्कालीन लेखपाल विनोद वर्मा से जांच कराई। जांच में लेखपाल ने बताया कि तालाब की जमीन पर सिर्फ मस्जिद बनी है, बाकी कुछ और नहीं। मैंने इस जांच रिपोर्ट पर 2020 में मेरठ कमिश्नर के यहां आपत्ति दाखिल की। वहां से फिर जांच का आदेश हुआ। दूसरी जांच में भी लेखपाल ने पहले जैसी रिपोर्ट लगा दी। इसके बाद 2022 में मैं मुख्यमंत्री कार्यालय, लखनऊ गया। प्रशासनिक स्तर पर एक्शन नहीं होने पर मैंने 15 जुलाई, 2024 को सीधे इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। महज 14 दिन बाद ही 29 जुलाई, 2024 को हाईकोर्ट ने बागपत तहसील कोर्ट को आदेश दिया कि मामले का 90 दिन में निस्तारण करें। ठीक एक महीने के भीतर यानी 28 अक्टूबर, 2024 को बागपत तहसील कोर्ट ने मस्जिद को अवैध निर्माण पाते हुए इसे खाली करने का आदेश दे दिया। मैंने कुल तीन तालाबों पर अवैध कब्जों की शिकायत हाईकोर्ट में की थी। हाईकोर्ट ने पूरी शिकायत निस्तारित करने का आदेश दिया था। इसके बावजूद तहसील कोर्ट ने सिर्फ एक तालाब के अवैध निर्माण पर फैसला सुनाया है। गुलशार बोले- शिकायत करने पर मेरा दरवाजा तोड़ दिया
शिकायतकर्ता गुलशार बताते हैं- मेरे शिकायत करने के बाद गांव के कुछ लोगों ने मुझ पर जुल्म करने शुरू कर दिए। एक बार उन्होंने मेरे घर का गेट तोड़ दिया। मुझे और भी कई तरह से प्रताड़ित किया। इस वजह से मेरा मोबाइल रिपेयरिंग का काम-धंधा बंद हो गया। घर के एक कोने में टूटा-फूटा रखा दुकान का काउंटर दिखाते हुए गुलशार कहते हैं- मैं चाहता हूं कि गांव के तीनों तालाब पहले की तरह हों। बुजुर्ग बोले- जो शिकायत कर रहा, वो रेप केस में फंसा है
यहां से हम सीधे उस मस्जिद पर पहुंचे, जिसको लेकर पूरा विवाद है। गांव के बाहरी छोर पर सरकारी स्कूल के सामने एक रास्ता जाता है। इसी रास्ते पर मस्जिद बनी है। मस्जिद के बगल में दोनों तरफ करीब 5-6 मकान बने हैं। दोपहर के साढ़े 12 बज रहे थे। मस्जिद में ताला लगा था। पता चला, फरियाद सिर्फ सुबह-शाम के वक्त नमाज पढ़ाने के लिए आते हैं। यहां पर हमने स्थानीय बुजुर्गों से बात करके तालाब की जमीन पर मस्जिद निर्माण की असलियत समझनी चाही। 70 साल के मोहम्मद अख्तर बताते हैं- मैंने आज तक यहां पर कभी तालाब नहीं देखा। यहां सिर्फ मस्जिद ही देखी है। ये तो ऊपर वाले का घर है। वो आगे बताते हैं- दरअसल, ये आपस की लड़ाई है। जो युवक मस्जिद की शिकायत कर रहा, वो पहले रेप केस में फंस चुका है। जिस परिवार ने मुकदमा दर्ज कराया था, वो मस्जिद के पास ही रहता है। शिकायतकर्ता चाहता है कि रेप केस में समझौता हो जाए तो मस्जिद और घरों के अवैध निर्माण की शिकायत वापस ले लेगा। गांव के बुजुर्ग शीदा बताते हैं- हमें 70 साल हो गए देखते हुए, ये मस्जिद ही है। सिर्फ एक व्यक्ति ने शिकायत की है कि तालाब की जमीन पर मस्जिद बनाई गई है। पूरे गांव में उसके अलावा कोई और ये बात नहीं कह रहा। वो व्यक्ति पूरे गांव के खिलाफ है। उसे सिर्फ पैसे चाहिएं। ‘मस्जिद को ऐसे तो नहीं ढहाने देंगे’
इसी मोहल्ले में रहने वाले संजीव बताते हैं- 70-75 साल पहले मस्जिद बनी थी। हम शुरू से ही इसको मस्जिद देखते आ रहे हैं। यहां तालाब जैसा कुछ नहीं है। शिकायतकर्ता पैसे मांग रहा है और ब्लैकमेल कर रहा है। हम मस्जिद को ऐसे थोड़े ही ढहाने देंगे। अगर ऐसा हुआ तो फिर पूरा मोहल्ला ही खत्म हो जाएगा। ‘सिर्फ एक व्यक्ति बताता है तालाब, कोई और नहीं’
स्थानीय युवकों से बातचीत के बाद हम गांव के प्रधान रामसेवक के घर पर पहुंचे। 80 साल के रामसेवक घर के बाहर चारपाई पर बैठे मिले। वो ऑन कैमरा बातचीत को तैयार नहीं हुए। इन्हीं के पास 65 साल के रामफल बैठे थे। वो बोले- हमने आज तक उस जमीन पर तालाब नहीं देखा। हमारे बुजुर्गों ने भी तालाब जैसी बात कभी नहीं बताई। हमारा गांव शांत है। यहां कभी झगड़ा नहीं हुआ। सिर्फ एक व्यक्ति गुलशार कहता है कि उस जमीन पर कभी तालाब हुआ करता था। ये बात उसके अलावा कोई और नहीं कह रहा। यहीं पर मौजूद कुछ अन्य युवकों ने नाम न छापने की शर्त पर ऑफ कैमरा बताया- गुलशार के खिलाफ कई साल पहले रेप का मुकदमा दर्ज हुआ था। इस वजह से वह मस्जिद और पूरे मोहल्ले से रंजिश मानता है। इसी के चलते उसने ये शिकायत की है, ताकि वो अपने खिलाफ दर्ज रेप के मुकदमे में समझौता करने का दबाव बना सके। गुलशार बोला- मुझे झूठा फंसाया, मस्जिद प्रकरण से इसका मतलब नहीं
मुकदमे की सच्चाई जानने के लिए हमने फिर से गुलशार से बातचीत की। उन्होंने बताया- मैंने साल 2019 में तत्कालीन प्रधान सतेंद्र चौधरी के खिलाफ विकास कार्यों में किए गए गड़बड़झाले की शिकायत की थी। जांच में आरोप सही पाए गए। डीएम ने तत्कालीन प्रधान से 1 करोड़ 28 लाख रुपए की रिकवरी करने का आदेश दिया। इसमें 58 लाख रुपए की रिकवरी हो भी गई थी। तत्कालीन प्रधान पक्ष ने इस केस में समझौते के लिए मुझ पर खूब दबाव बनाया। वो 10 लाख रुपए लेकर मेरे घर भी आए, लेकिन मैंने समझौता करने से मना कर दिया। गुलशार ने बताया- मेरे 20 हजार रुपए एक महिला पर उधार थे। पूर्व प्रधान ने उस महिला को मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया और मुझ पर साल 2021 के आखिर में थाना बड़ौत में रेप की FIR करा दी। बागपत कोर्ट में अब ये केस ट्रायल पर चल रहा है। मैं इस केस में पूरी तरह निर्दोष हूं। वकील के जरिए मैं अपना पक्ष मजबूती से कोर्ट में रखूंगा। ग्रामीणों की ये बात पूरी तरह गलत है कि मैं इस केस में समझौते के लिए अवैध निर्माण की शिकायत कर रहा हूं। इस केस का मस्जिद प्रकरण से कोई मतलब नहीं है। वकील बोले- कोर्ट के आदेश के खिलाफ आपत्ति दायर
सबसे आखिर में हम मस्जिद के मुतवल्ली (देख-रेख करने वाले) फरियाद के घर पहुंचे। गांव के बाहर मुख्य रास्ते पर ही उनका घर है। घर पर वो फर्नीचर बनाने का काम करते हैं। फरियाद हमें फर्नीचर बनाते मिले। फरियाद ने कोई भी बात करने से इनकार कर दिया और अपने वकील का मोबाइल नंबर दे दिया। हमने मस्जिद पक्ष के वकील दिनेश शर्मा से फोन पर बात की। वकील ने बताया- तहसील कोर्ट के फैसले के खिलाफ हमने डीएम कोर्ट में आपत्ति दायर कर दी है। वहां हम पूरा पक्ष रखेंगे। इस आपत्ति पर डीएम कोर्ट में 18 नवंबर को सुनवाई होगी। रिपोर्ट सहयोगी : आशीष त्यागी ———————— ये खबर भी पढ़ें… यूपी में प्रदूषण से 8 साल उम्र घटी, 30 साल में हवा 1000% खराब हुई; दुनिया के सबसे खराब हवा वाले शहरों में गाजियाबाद-नोएडा दिवाली के बाद से यूपी में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। पश्चिमी यूपी के शहरों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। दिल्ली के पास के गाजियाबाद, नोएडा और मेरठ जैसे जिलों में जैसे-जैसे ठंड बढ़ रही, हवा की गुणवत्ता खराब होती जा रही है। नवंबर के पहले हफ्ते से ही इन शहरों का AQI 300 से ऊपर दर्ज हो रहा है। AQI से ही हवा की गुणवत्ता मापी जाती है। 300 से ऊपर AQI खराब कैटेगरी में आता है। दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ सहित और आसपास के जिलों में भी AQI 150 से ऊपर रह रहा है। यह हवा भी हेल्थ पर बुरा असर डालने वाली होती है। खासकर बीमार, बुजुर्ग और बच्चों के लिए। WHO के मुताबिक, बढ़े प्रदूषण की वजह से यूपी के लोगों की औसत उम्र में 8.6 साल की कमी आई है। पढ़ें पूरी खबर… ‘मैंने आज तक यहां पर कभी तालाब नहीं देखा। सिर्फ मस्जिद ही देखी है। यह तो ऊपर वाले का घर है। कोर्ट जो भी माने, लेकिन हम तो इसे मस्जिद ही मानेंगे।’ यह कहना है 70 साल के अख्तर का। अख्तर बागपत जिले में राजपुर खामपुर गांव के रहने वाले हैं। इस गांव की करीब 65-70 साल पुरानी मस्जिद को तहसील कोर्ट ने खाली करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने माना है कि ये मस्जिद तालाब की जमीन पर बनी है। गांव के लोग इस फैसले के खिलाफ हैं। अपनी पूरी जिंदगी इसी गांव में बिता चुके बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने इस जगह पर आज तक तालाब नहीं देखा। यहां पहले खाली जमीन थी, फिर मस्जिद बनी। इस बात का समर्थन हिंदू और मुसलमान दोनों ही करते हैं। लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ मस्जिद पक्ष ने ऊपरी अदालत में अपील दायर की है। जिस पर लंबी सुनवाई चलने की उम्मीद है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में जारी विवाद के बीच अब उत्तर प्रदेश में भी मस्जिदों पर विवाद शुरू हो गया है। ऐसे में दैनिक भास्कर ने ग्राउंड जीरो पर जाकर इस पूरे केस की पड़ताल की और सभी पहलुओं को समझा। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… सबसे पहले पूरा मामला समझिए…
यूपी के बागपत जिले में हरियाणा बॉर्डर से सटा हुआ खादर का गांव है राजपुर खामपुर। 28 अक्टूबर, 2024 को सहायक कलेक्टर/तहसीलदार अभिषेक कुमार सिंह ने 5 पेज का आदेश जारी किया। इसमें लिखा था कि खसरा नंबर-603, तालाब के क्षेत्रफल 0.630 में से 0.282 हेक्टेयर पर अवैध कब्जा करके मस्जिद बनाने पर फरियाद पुत्र वहीद को बेदखल किया जाता है। फरियाद पर 4,12,650 रुपए का अर्थदंड (जुर्माना) और 5000 रुपए निष्पादन व्यय (execution expenses) लगाया जाता है। इस आदेश में कहीं पर भी मस्जिद गिराने का जिक्र लिखित तौर पर नहीं है। इस आदेश के बाद तहसील की एक टीम ने गांव का दौरा करके मस्जिद की भौगोलिक स्थिति भी देखी है। तीन तालाबों पर कब्जे की HC में हुई थी शिकायत
दरअसल, इस पूरे विवाद की शुरुआत साल, 2019 से हुई। मस्जिद से करीब 500 मीटर दूर गुलशार का घर है। उनकी शिकायत पर तहसील कोर्ट ने मस्जिद को अवैध निर्माण मानते हुए खाली करने का आदेश दिया। पूरा मसला समझने के लिए हम सबसे पहले गुलशार के घर पहुंचे। दोनों पैरों से दिव्यांग गुलशार घर के बाहर वाले कमरे में बेड पर बैठे मिले। गुलशार बताते हैं- मैं समाजसेवी हूं। मुझे पता चला कि हमारे गांव में तीन तालाब हुआ करते थे। बाद में तीनों तालाबों पर अवैध कब्जे हो गए। खसरा नंबर- 603 पर एक मस्जिद और 6 मकान, खसरा नंबर- 617 पर 30 से ज्यादा मकान बने हैं। खसरा नंबर- 636 पर फसल खड़ी है। ये तीनों खसरा नंबर सरकारी कागजातों में तालाब के नाम पर हैं। मैंने 2019 में सबसे पहले बागपत DM को शिकायत भेजी। उन्होंने तत्कालीन लेखपाल विनोद वर्मा से जांच कराई। जांच में लेखपाल ने बताया कि तालाब की जमीन पर सिर्फ मस्जिद बनी है, बाकी कुछ और नहीं। मैंने इस जांच रिपोर्ट पर 2020 में मेरठ कमिश्नर के यहां आपत्ति दाखिल की। वहां से फिर जांच का आदेश हुआ। दूसरी जांच में भी लेखपाल ने पहले जैसी रिपोर्ट लगा दी। इसके बाद 2022 में मैं मुख्यमंत्री कार्यालय, लखनऊ गया। प्रशासनिक स्तर पर एक्शन नहीं होने पर मैंने 15 जुलाई, 2024 को सीधे इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। महज 14 दिन बाद ही 29 जुलाई, 2024 को हाईकोर्ट ने बागपत तहसील कोर्ट को आदेश दिया कि मामले का 90 दिन में निस्तारण करें। ठीक एक महीने के भीतर यानी 28 अक्टूबर, 2024 को बागपत तहसील कोर्ट ने मस्जिद को अवैध निर्माण पाते हुए इसे खाली करने का आदेश दे दिया। मैंने कुल तीन तालाबों पर अवैध कब्जों की शिकायत हाईकोर्ट में की थी। हाईकोर्ट ने पूरी शिकायत निस्तारित करने का आदेश दिया था। इसके बावजूद तहसील कोर्ट ने सिर्फ एक तालाब के अवैध निर्माण पर फैसला सुनाया है। गुलशार बोले- शिकायत करने पर मेरा दरवाजा तोड़ दिया
शिकायतकर्ता गुलशार बताते हैं- मेरे शिकायत करने के बाद गांव के कुछ लोगों ने मुझ पर जुल्म करने शुरू कर दिए। एक बार उन्होंने मेरे घर का गेट तोड़ दिया। मुझे और भी कई तरह से प्रताड़ित किया। इस वजह से मेरा मोबाइल रिपेयरिंग का काम-धंधा बंद हो गया। घर के एक कोने में टूटा-फूटा रखा दुकान का काउंटर दिखाते हुए गुलशार कहते हैं- मैं चाहता हूं कि गांव के तीनों तालाब पहले की तरह हों। बुजुर्ग बोले- जो शिकायत कर रहा, वो रेप केस में फंसा है
यहां से हम सीधे उस मस्जिद पर पहुंचे, जिसको लेकर पूरा विवाद है। गांव के बाहरी छोर पर सरकारी स्कूल के सामने एक रास्ता जाता है। इसी रास्ते पर मस्जिद बनी है। मस्जिद के बगल में दोनों तरफ करीब 5-6 मकान बने हैं। दोपहर के साढ़े 12 बज रहे थे। मस्जिद में ताला लगा था। पता चला, फरियाद सिर्फ सुबह-शाम के वक्त नमाज पढ़ाने के लिए आते हैं। यहां पर हमने स्थानीय बुजुर्गों से बात करके तालाब की जमीन पर मस्जिद निर्माण की असलियत समझनी चाही। 70 साल के मोहम्मद अख्तर बताते हैं- मैंने आज तक यहां पर कभी तालाब नहीं देखा। यहां सिर्फ मस्जिद ही देखी है। ये तो ऊपर वाले का घर है। वो आगे बताते हैं- दरअसल, ये आपस की लड़ाई है। जो युवक मस्जिद की शिकायत कर रहा, वो पहले रेप केस में फंस चुका है। जिस परिवार ने मुकदमा दर्ज कराया था, वो मस्जिद के पास ही रहता है। शिकायतकर्ता चाहता है कि रेप केस में समझौता हो जाए तो मस्जिद और घरों के अवैध निर्माण की शिकायत वापस ले लेगा। गांव के बुजुर्ग शीदा बताते हैं- हमें 70 साल हो गए देखते हुए, ये मस्जिद ही है। सिर्फ एक व्यक्ति ने शिकायत की है कि तालाब की जमीन पर मस्जिद बनाई गई है। पूरे गांव में उसके अलावा कोई और ये बात नहीं कह रहा। वो व्यक्ति पूरे गांव के खिलाफ है। उसे सिर्फ पैसे चाहिएं। ‘मस्जिद को ऐसे तो नहीं ढहाने देंगे’
इसी मोहल्ले में रहने वाले संजीव बताते हैं- 70-75 साल पहले मस्जिद बनी थी। हम शुरू से ही इसको मस्जिद देखते आ रहे हैं। यहां तालाब जैसा कुछ नहीं है। शिकायतकर्ता पैसे मांग रहा है और ब्लैकमेल कर रहा है। हम मस्जिद को ऐसे थोड़े ही ढहाने देंगे। अगर ऐसा हुआ तो फिर पूरा मोहल्ला ही खत्म हो जाएगा। ‘सिर्फ एक व्यक्ति बताता है तालाब, कोई और नहीं’
स्थानीय युवकों से बातचीत के बाद हम गांव के प्रधान रामसेवक के घर पर पहुंचे। 80 साल के रामसेवक घर के बाहर चारपाई पर बैठे मिले। वो ऑन कैमरा बातचीत को तैयार नहीं हुए। इन्हीं के पास 65 साल के रामफल बैठे थे। वो बोले- हमने आज तक उस जमीन पर तालाब नहीं देखा। हमारे बुजुर्गों ने भी तालाब जैसी बात कभी नहीं बताई। हमारा गांव शांत है। यहां कभी झगड़ा नहीं हुआ। सिर्फ एक व्यक्ति गुलशार कहता है कि उस जमीन पर कभी तालाब हुआ करता था। ये बात उसके अलावा कोई और नहीं कह रहा। यहीं पर मौजूद कुछ अन्य युवकों ने नाम न छापने की शर्त पर ऑफ कैमरा बताया- गुलशार के खिलाफ कई साल पहले रेप का मुकदमा दर्ज हुआ था। इस वजह से वह मस्जिद और पूरे मोहल्ले से रंजिश मानता है। इसी के चलते उसने ये शिकायत की है, ताकि वो अपने खिलाफ दर्ज रेप के मुकदमे में समझौता करने का दबाव बना सके। गुलशार बोला- मुझे झूठा फंसाया, मस्जिद प्रकरण से इसका मतलब नहीं
मुकदमे की सच्चाई जानने के लिए हमने फिर से गुलशार से बातचीत की। उन्होंने बताया- मैंने साल 2019 में तत्कालीन प्रधान सतेंद्र चौधरी के खिलाफ विकास कार्यों में किए गए गड़बड़झाले की शिकायत की थी। जांच में आरोप सही पाए गए। डीएम ने तत्कालीन प्रधान से 1 करोड़ 28 लाख रुपए की रिकवरी करने का आदेश दिया। इसमें 58 लाख रुपए की रिकवरी हो भी गई थी। तत्कालीन प्रधान पक्ष ने इस केस में समझौते के लिए मुझ पर खूब दबाव बनाया। वो 10 लाख रुपए लेकर मेरे घर भी आए, लेकिन मैंने समझौता करने से मना कर दिया। गुलशार ने बताया- मेरे 20 हजार रुपए एक महिला पर उधार थे। पूर्व प्रधान ने उस महिला को मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया और मुझ पर साल 2021 के आखिर में थाना बड़ौत में रेप की FIR करा दी। बागपत कोर्ट में अब ये केस ट्रायल पर चल रहा है। मैं इस केस में पूरी तरह निर्दोष हूं। वकील के जरिए मैं अपना पक्ष मजबूती से कोर्ट में रखूंगा। ग्रामीणों की ये बात पूरी तरह गलत है कि मैं इस केस में समझौते के लिए अवैध निर्माण की शिकायत कर रहा हूं। इस केस का मस्जिद प्रकरण से कोई मतलब नहीं है। वकील बोले- कोर्ट के आदेश के खिलाफ आपत्ति दायर
सबसे आखिर में हम मस्जिद के मुतवल्ली (देख-रेख करने वाले) फरियाद के घर पहुंचे। गांव के बाहर मुख्य रास्ते पर ही उनका घर है। घर पर वो फर्नीचर बनाने का काम करते हैं। फरियाद हमें फर्नीचर बनाते मिले। फरियाद ने कोई भी बात करने से इनकार कर दिया और अपने वकील का मोबाइल नंबर दे दिया। हमने मस्जिद पक्ष के वकील दिनेश शर्मा से फोन पर बात की। वकील ने बताया- तहसील कोर्ट के फैसले के खिलाफ हमने डीएम कोर्ट में आपत्ति दायर कर दी है। वहां हम पूरा पक्ष रखेंगे। इस आपत्ति पर डीएम कोर्ट में 18 नवंबर को सुनवाई होगी। रिपोर्ट सहयोगी : आशीष त्यागी ———————— ये खबर भी पढ़ें… यूपी में प्रदूषण से 8 साल उम्र घटी, 30 साल में हवा 1000% खराब हुई; दुनिया के सबसे खराब हवा वाले शहरों में गाजियाबाद-नोएडा दिवाली के बाद से यूपी में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। पश्चिमी यूपी के शहरों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। दिल्ली के पास के गाजियाबाद, नोएडा और मेरठ जैसे जिलों में जैसे-जैसे ठंड बढ़ रही, हवा की गुणवत्ता खराब होती जा रही है। नवंबर के पहले हफ्ते से ही इन शहरों का AQI 300 से ऊपर दर्ज हो रहा है। AQI से ही हवा की गुणवत्ता मापी जाती है। 300 से ऊपर AQI खराब कैटेगरी में आता है। दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ सहित और आसपास के जिलों में भी AQI 150 से ऊपर रह रहा है। यह हवा भी हेल्थ पर बुरा असर डालने वाली होती है। खासकर बीमार, बुजुर्ग और बच्चों के लिए। WHO के मुताबिक, बढ़े प्रदूषण की वजह से यूपी के लोगों की औसत उम्र में 8.6 साल की कमी आई है। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर