पंचकूला में राम नवमी पर पुलिस अलर्ट:मनसा देवी-काली माता मंदिर में लगा मेला, नवरात्रों में आया 1.5 करोड़ का चढ़ावा चैत्र नवरात्र का आज अंतिम दिन है। माता के मंदिरों में पिछले एक हफ्ते से श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी हुई है। इस बार नवरात्रि 30 मार्च से शुरू होकर 6 अप्रैल तक थे। मान्यता है कि इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आई हैं, जो समृद्धि और शांति का संकेत माना जाता है। इसी आस्था के साथ श्रद्धालुओं ने देशभर से पंचकूला के प्रसिद्ध माता श्री मनसा देवी मंदिर और श्री काली माता मंदिर, कालका में भी पहुंचकर मां के चरणों में शीश नवाया है। 1.5 करोड़ का आया दान पहले नवरात्र से लेकर बीते दिन शनिवार तक इन दोनों मंदिरों में करीब 3 लाख 50 हजार श्रद्धालु पहुंचे। इस दौरान माता के प्रति अपनी गहरी आस्था दर्शाते हुए श्रद्धालुओं ने करीब 1 करोड़ 50 लाख रुपए का दान दिया। साथ ही 400 से अधिक गहने मां के चरणों में अर्पित किए। इतना ही नहीं, श्रद्धालुओं ने अमेरिका, कनाडा और यूरोप से भी विदेशी करेंसी भेंट स्वरूप मंदिर में समर्पित की। यह माता के प्रति अंतरराष्ट्रीय श्रद्धा का भी प्रतीक है। श्रद्धालुओं की सेवा में प्रशासन रहा तत्पर
श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए पंचकूला प्रशासन ने व्यवस्थाओं में कोई कसर नहीं छोड़ी। बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों के लिए ई-रिक्शा सेवा और विभिन्न स्थानों से स्पेशल बस सेवा की व्यवस्था की गई। सुरक्षा व्यवस्था भी रही पुख्ता
पंचकूला पुलिस ने 5 एसीपी की निगरानी में 837 पुलिसकर्मियों को तैनात किया और 12 स्थानों पर नाके लगाकर सुरक्षा सुनिश्चित की। इस बार का चैत्र नवरात्र श्रद्धा, सेवा और अनुशासन का अद्भुत संगम बनकर उभरा। जिसमें हर उम्र और क्षेत्र से आए श्रद्धालुओं ने मां के प्रति अटूट भक्ति दिखाई और समाज को एक सकारात्मक संदेश दिया। माता मनसा देवी मंदिर पंचकूला
माता मनसा देवी मंदिर पंचकूला का इतिहास बहुत समृद्ध और आध्यात्मिक महत्व से भरा हुआ है। यह मंदिर हरियाणा के पंचकूला जिले में स्थित है और उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। नीचे इसका संक्षिप्त इतिहास और महत्व बताया गया है। मंदिर का इतिहास: मंदिर का धार्मिक महत्व: परिसर और स्थापत्य: पर्यटन और सरकार की देखरेख:
इसके बाद मां जगदंबा युद्ध भूमि में उतरीं और महिषासुर समेत अन्य राक्षसों का नाश कर कालका भूमि पर अवतरित हुईं, जो कालका में काली माता के नाम से प्रसिद्ध हुईं। ऐसी भी मान्यता है कि द्वापर युग में जब भगवान पांडव अपना यज्ञ हार गए तो उन्हें 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास मिला था। उस दौरान वे 12 वर्ष विराटनगर में रहे। उस समय कवित्त राजा के राज्य में गाय की काफी सेवा होती थी। वहीं श्यामा नाम की गाय प्रतिदिन अपने दूध से मां के पिंड का अभिषेक करती थी। यह करिश्मा देख पांडव आश्चर्यचकित हो गए और पांडवों ने इसी स्थान पर मंदिर की स्थापना की।