Delhi: मां ने बेटी के साथ हुए यौन शोषण की देरी से की थी शिकायत, अब दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया ये आदेश

Delhi: मां ने बेटी के साथ हुए यौन शोषण की देरी से की थी शिकायत, अब दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया ये आदेश

<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi Latest News:</strong> दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील फैसले में उस महिला के खिलाफ चल रही POCSO एक्ट की कार्रवाई को रद्द कर दिया, जिसने अपनी बेटी के साथ हुए यौन शोषण की शिकायत करने में देरी की थी. अदालत ने स्पष्ट किया कि महिला स्वयं घरेलू हिंसा का शिकार थी और ऐसे में उसे आरोपित करना उसकी पीड़ा को और बढ़ाना होगा, जो किसी भी हालत में न्यायसंगत नहीं है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल, एक महिला ने अपनी 10 साल की बेटी के साथ यौन शोषण की घटना की रिपोर्ट दी थी. यह अपराध महिला के पति और उसके दो रिश्तेदारों द्वारा किया गया था. जब महिला ने अपनी दुर्दशा के बारे में दिल्ली महिला आयोग की हेल्पलाइन पर जानकारी दी, तो पुलिस ने आरोपी पर POCSO एक्ट के तहत मामला दर्ज किया. हालांकि, महिला को भी आरोपित कर दिया गया और उसे POCSO एक्ट की धारा 21 के तहत चार्जशीट किया गया, जो बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की रिपोर्ट न करने पर दंड का प्रावधान करता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह महिला खुद घरेलू हिंसा का शिकार थी, जहां उसे लगातार शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा था. अदालत ने यह माना कि ऐसी स्थिति में महिला से तुरंत कार्रवाई की उम्मीद करना न केवल अमानवीय है, बल्कि न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ भी है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दिल्ली हाईकोर्ट ने और क्या कहा?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस शर्मा ने कहा जब कोई महिला अपने घर में हिंसा का शिकार हो रही हो और उसकी सुरक्षा खतरे में हो, तो उसका मानसिक स्थिति इतनी कमजोर हो सकती है कि वह अपनी बेटी के साथ हुई घटना को भी सही समय पर रिपोर्ट करने में असमर्थ हो सकती है. कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह की परिस्थितियों में महिला को दोषी ठहराना न केवल उसे शारीरिक और मानसिक रूप से तोड़ने जैसा होगा, बल्कि यह उसकी बेटी के लिए भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत ने यह भी कहा कि जब मां खुद अत्याचार की शिकार हो, तो वह अपनी बेटी को कैसे बचा सकती है. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा यहां पर यह स्थिति साफ तौर पर सामने आती है कि महिला ने पीड़िता को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन हिंसा और डर के माहौल ने उसे निर्णय लेने में असमर्थ बना दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने इस मामले में महिला के खिलाफ चल रही कार्यवाही को रद्द कर दिया, लेकिन आरोपियों के खिलाफ मुकदमा जारी रखने का आदेश दिया. अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया कि पीड़ित महिला को इस मामले में और अधिक मानसिक पीड़ा न हो और उसकी बेटी के भविष्य को सुरक्षित रखा जाए.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें-</strong> <strong><a href=”https://www.abplive.com/states/delhi-ncr/kumar-vishvas-condemn-pahalgam-terror-attack-jammu-kashmir-2930332″>पहलगाम आतंकी हमले पर कुमार विश्वास बोले, ‘धर्म पूछकर गोली मारने वाले भी किसी मजहब…'</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi Latest News:</strong> दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील फैसले में उस महिला के खिलाफ चल रही POCSO एक्ट की कार्रवाई को रद्द कर दिया, जिसने अपनी बेटी के साथ हुए यौन शोषण की शिकायत करने में देरी की थी. अदालत ने स्पष्ट किया कि महिला स्वयं घरेलू हिंसा का शिकार थी और ऐसे में उसे आरोपित करना उसकी पीड़ा को और बढ़ाना होगा, जो किसी भी हालत में न्यायसंगत नहीं है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल, एक महिला ने अपनी 10 साल की बेटी के साथ यौन शोषण की घटना की रिपोर्ट दी थी. यह अपराध महिला के पति और उसके दो रिश्तेदारों द्वारा किया गया था. जब महिला ने अपनी दुर्दशा के बारे में दिल्ली महिला आयोग की हेल्पलाइन पर जानकारी दी, तो पुलिस ने आरोपी पर POCSO एक्ट के तहत मामला दर्ज किया. हालांकि, महिला को भी आरोपित कर दिया गया और उसे POCSO एक्ट की धारा 21 के तहत चार्जशीट किया गया, जो बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की रिपोर्ट न करने पर दंड का प्रावधान करता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह महिला खुद घरेलू हिंसा का शिकार थी, जहां उसे लगातार शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा था. अदालत ने यह माना कि ऐसी स्थिति में महिला से तुरंत कार्रवाई की उम्मीद करना न केवल अमानवीय है, बल्कि न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ भी है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दिल्ली हाईकोर्ट ने और क्या कहा?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस शर्मा ने कहा जब कोई महिला अपने घर में हिंसा का शिकार हो रही हो और उसकी सुरक्षा खतरे में हो, तो उसका मानसिक स्थिति इतनी कमजोर हो सकती है कि वह अपनी बेटी के साथ हुई घटना को भी सही समय पर रिपोर्ट करने में असमर्थ हो सकती है. कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह की परिस्थितियों में महिला को दोषी ठहराना न केवल उसे शारीरिक और मानसिक रूप से तोड़ने जैसा होगा, बल्कि यह उसकी बेटी के लिए भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत ने यह भी कहा कि जब मां खुद अत्याचार की शिकार हो, तो वह अपनी बेटी को कैसे बचा सकती है. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा यहां पर यह स्थिति साफ तौर पर सामने आती है कि महिला ने पीड़िता को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन हिंसा और डर के माहौल ने उसे निर्णय लेने में असमर्थ बना दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने इस मामले में महिला के खिलाफ चल रही कार्यवाही को रद्द कर दिया, लेकिन आरोपियों के खिलाफ मुकदमा जारी रखने का आदेश दिया. अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया कि पीड़ित महिला को इस मामले में और अधिक मानसिक पीड़ा न हो और उसकी बेटी के भविष्य को सुरक्षित रखा जाए.</p>
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