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काशी इतिहास से भी पुराना और किंवदंतियों से भी प्राचीन:भगवान शिव से पहले विष्णु का निवास स्थान था; 4 जैन तीर्थंकरों की जन्मस्थली, बुद्ध ने यहीं पहला उपदेश दिया
काशी इतिहास से भी पुराना और किंवदंतियों से भी प्राचीन:भगवान शिव से पहले विष्णु का निवास स्थान था; 4 जैन तीर्थंकरों की जन्मस्थली, बुद्ध ने यहीं पहला उपदेश दिया आज वो दिन है जब सब देवतागण भगवान शिव से मिलने उनके घर काशी में उतरेंगे। ये वजह है बनारस में भव्य देव दीपावली मनाने के पीछे। मान्यता है कि काशी भगवान शिव का घर है। हजारों साल पहले जब उन्होंने देवताओं को बचाने के लिए त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया तो सभी देवगण भगवान शिव से मिलने काशी नगरी पहुंचे। यहां देवताओं ने गंगा स्नान किया और दीपदान किया। तभी से काशी इस दुनिया में अपने तरह के इकलौते और दिव्य पर्व का गवाह बनती आ रही है। काशी यानी बनारस की प्राचीनता, शहर को लेकर कौतूहल, इसका मिजाज, यहां का रहन-सहन हमेशा से ही दुनिया की तमाम नजरों को आकर्षित करता रहा है। इस देव दीपावली पर जानिए इस शहर की प्राचीनता से लेकर इसका शिव के घर-आंगन और सब माया से मुक्त करने वाले मोक्ष की राजधानी बनने की पूरी कहानी… ‘बनारस इतिहास से भी पुराना है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों से भी प्राचीन है और जब इन सबको एक जगह कर दिया जाए तो उस संग्रह से भी दोगुनी प्राचीन है।’ ये बातें अमेरिका के महान लेखकों में शुमार मार्क ट्वेन ने अपनी किताब ‘ट्रवेलॉग फॉलोइंग द इक्वेटर’ में लिखी। बनारस की प्राचीनता, उसकी दिव्यता और उसके मस्तमौलापन पर ना जाने कितना कुछ लिखा गया है। उन सबकी प्रतिध्वनि इन पंक्तियों में आती है। बनारस अपने आप में एक अलग दुनिया है। एक अलग संस्कृति है। काशी का जिक्र वेदों से लेकर पुराणों, महाकाव्य महाभारत और रामायण में मिलता है। कभी तीर्थ के रूप में, तो कभी मोक्ष दायिनी नगरी के रूप में, तो कभी शिव के त्रिशूल के बीचो-बीच नोंक पर टिकी सहस्त्र तो कभी सदियों से बहती सभ्यता के रूप में। आर्कियोलॉजिकल साक्ष्यों में भी दुनिया के प्राचीनतम शहरों में काशी
ऐसा नहीं है कि दुनिया के प्राचीनतम शहरों का एक मात्र दावेदार काशी है। इस फेहरिस्त में ग्रीस की राजधानी एथेंस, सीरिया की राजधानी दमास्कस (दमिश्क), लेबनान का बाइब्लोस शहर और बुल्गारिया के प्लोवदीव शहर पर भी अपना दावा मजबूत करते हैं। ऐसे में, जब प्राचीनता के ठोस आधार आर्कियोलॉजिकल सबूतों पर जाते हैं तो ये सभी शहर समय में करीब 8 से 10 हजार साल पीछे जाते हैं। वाराणसी के पड़ोसी जिले चंदौली में विंध्य की गुफाओं में पाषाण काल में लोगों के रहने के सबूत मिलते हैं। यह क्षेत्र कभी काशी का ही हिस्सा थे। दुनिया के दूसरे प्राचीन शहरों की प्राचीनता भी वहां मिले ऐसे रॉक सेल्टर्स से साबित होती है। ऋग्वेद से लेकर महाभारत में काशी का जिक्र
काशी की प्राचीनता को लेकर ना उस शहर को किसी प्रमाण की जरूरत रही, ना ही वहां के बाशिंदों को। उन्हें पता है कि ऋग्वेद से लेकर पुराणों में काशी आती है। रामायण और महाभारत काल में काशी देवताओं का निवास स्थान बनी। काशी ऋग्वेद के तीसरे, छठे और सातवें मंडल में आती है। यहां श्लोकों में काशी को ‘प्रकाश का शहर’ कहा गया है। काशी शब्द खुद संस्कृत के ‘कस’ शब्द से बना है, जिसका मतलब होता है- वो जिसमें रोशनी हो। ऋग्वेद से आगे बढ़ते हैं तो काशी पहुंचाती है स्कंद पुराण में। इसमें काशी खंड नाम से पूरा एक हिस्सा है। इसमें कुल 1500 श्लोकों में काशी नगर की महिमा का गान किया गया है। हरिवंश पुराण में काशी का पवित्र नगरी के रूप में जिक्र मिलता है। मत्स्य और शिव पुराण में वरुणा और असी नदी से मिलकर वाराणसी नाम पड़ने का जिक्र है। इससे आगे बढ़ने पर उपनिषदों के साथ ही रामायण और महाभारत में भी काशी का उल्लेख है। इस तरह प्राचीन भारत से जुड़े हिंदू धर्म के जितने भी ग्रंथ हैं उनमें काशी का वास है। यही वजह है कि काशी को कई आधुनिक लेखक और दार्शनिक इन ग्रंथों से भी प्राचीन बताते हैं। काशी मतलब शिव और शिव मतलब काशी। यह हम नहीं खुद पुराण कहते हैं। वहां का मानस कहता है। यहां सवाल उठता है कि काशी नगरी शिव का घर कैसे बनी? काशी शिव का पर्याय कैसे बना? तो जवाब मिलता है पुराणों में। स्कंद पुराण के एक श्लोक में भगवान शिव कहते हैं- तीनों लोकों से समाहित एक शहर है, जिसमें स्थित मेरा निवास स्थान है काशी। पुराणों के ही मुताबिक काशी पहले भगवान विष्णु की पुरी थी। यहां श्रीहरि के आनंदश्रु् गिरे थे। इससे वहां बिंदु सरोवर बन गया और प्रभु वहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। लेकिन फिर भगवान शिव को काशी भा गई। ऐसी रमी कि उन्होंने भगवान विष्णु से इसे अपना आवास बनाने के लिए मांग लिया। कहा जाता है कि तब से भी काशी भगवान शिव का स्थाई पता बन गई। एक दूसरी कहानी के मुताबिक इस शहर का निर्माण स्वयं भगवान शिव ने किया था और इस पृथ्वी पर अपना घर चुना था। एक अन्य मान्यता के मुताबिक भगवान शिव पहले तपस्वी थे। वो हिमालय पर रहते थे, लेकिन उन्होंने एक राजकुमारी यानी देवी पार्वती से शादी की तो सुखी पारिवारिक जीवन बिताने के लिए मैदानी इलाके यानी काशी में आ गए। बाद में किसी कारणवश भगवान शिव और पार्वती को काशी छोड़ कर मंदार पर्वत पर जाना पड़ा। आज भी माना जाता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है और इस शहर पर भगवान शिव की विशेष कृपा है। स्कंद पुराण और हरिवंश पुराण में काशी का तीर्थ के रूप में व्यापक रूप से उल्लेख मिलता है। इन पुराणों में बताया गया है कि कैसे काशी में पग-पग पर एक तीर्थ स्थल मौजूद है। इनके मुताबिक इस शहर में एक तिल के बराबर भी ऐसी जगह नहीं है जहां भगवान शिव का लिङ्ग ना हो। स्कंद पुराण के सिर्फ काशी खंड के दशवें अध्याय में चौसठ शिवलिङ्गो का उल्लेख है। मत्स्यपुराण के मुताबिक काशी में पांच प्रमुख तीर्थ हैं- पहला दशाखमेध, दूसरा लोलार्क कुंड, तीसरा केशव, चौथा बिंदुमाधव और पांचवा मणिकर्णिका। पुराणों में काशी जैसे पवित्र तीर्थ स्थल पर दान की महिमा का भी जिक्र मिलता है। इसी तरह काशी का विद्या के साथ भी पुराना नाता है, जो आज तक चला आ रहा है। प्राचीन समय से यहां के मठ और मंदिर विद्या के केंद्र के रूप में स्थापित हुए। अमेरिकी लेखक ने यहां हिंदू धर्म और संस्कृत की शिक्षा पद्धति को देखकर इसे ‘ऑक्सफोर्ड ऑफ इंडिया’ कह डाला। यह क्रम आज भी जारी है। आज यह काशी हिंदू विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालयों का केंद्र है। जैन और बौद्ध धर्म की भी पावन धरा है काशी काशी जैन धर्म के चार तीर्थंकरों की जन्मस्थली है। तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ, चंद्रप्रभु, श्रेयांशनाथ और पार्श्वनाथ का जन्म काशी की धरती पर हुआ। ये काशी ही है जहां महात्मा बुद्ध छठी शताब्दी ईसापूर्व में आए और सारनाथ में पांच शिष्यों के सामने अपना पहला उपदेश दिया। यही बाद में बौद्ध धर्म की स्थापना का आधार बना। जिस जगह पर महात्मा बुद्ध ने उपदेश दिया आज भी वह सारनाथ में सुरक्षित है। जिस पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या की और ज्ञान प्राप्त किया वो बोधि वृक्ष भी उस प्रांगण में है। फिर आठवीं सदी में काशी में ही आदि शंकराचार्य आए और ऐसा माना जाता है कि उन्हें भगवान शिव ने यहीं आध्यात्मिक विनम्रता का ज्ञान दिया था। मध्य और आधुनिक काल में भी काशी विद्वानों का कौशल स्थल रही मध्यकाल यानी 10वीं सदी के बाद भी काशी विद्वानों की धरा बनी रही। यहीं लमही में 15वीं सदी में संत कबीर का जन्म हुआ। वह काशी के घाटों पर पले बढ़े। यहीं उन्होंने अपनी पवित्र वाणी से लोगों को सही मार्ग दिखाया। उनके जीवनकाल में उन्होंने जो कुछ कहा वो आज बीजक नाम के ग्रंथ में असर है। वो आज भी उतना ही प्रासंगिक और मारक है। वो काशी ही है जहां 16वीं सदी में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस जैसा ग्रंथ लिखा। हनुमान चालीसा सहित कई कालजयी ग्रंथों की रचना उन्होंने काशी में रहकर की। कर्नाटक के महान संगीज्ञ हुए मुत्तुस्वामी दीक्षितार यहां संगीत सीखने आए और हिंदुस्तानी राग को शिखर पर पहुंचाया। सिख गुरु, गुरुनानक देव 1506 में काशी आए और मंत्रमुग्ध हो गए। आधुनिक काल में यह हिंदी के महान लेखकों और कवियों का गढ़ बनी। इसमें प्रेमचंद से लेकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल और जयशंकर प्रसाद जैसे लेखक और कवि शामिल हैं। इंसानी शरीर से मुक्त होकर किसने मोक्ष पाया?, इसकी गवाही इस संसार में कोई नहीं दे सकता। लेकिन काशी वो शहर है जो इस मोक्ष को पाने का रास्ता के रूप में वैदिक काल से स्थापित है। आज भी इस शहर में हजारों लोग उम्र के अंतिम पड़ाव पर रहने आ जाते हैं। 1908 में बकायदा यहां एक भवन बनाया गया। नाम दिया गया- मुक्ति भवन। इसमें मोक्ष की इच्छा लेकर आने वाले लोगों के लिए सुख-सुविधा से रहने की व्यवस्था की गई। काशी मोक्ष की राजधानी के रूप में कब से स्थापित हुआ इसके लिए करीब 4 हजार साल पहले वैदिक काल की तरफ ही रुख किया जाता है। भारत सदियों से तमाम विदेशी यात्रियों का पनाहगार रहा है। इस धरा के आकर्षण से वो यहां खींचे चले आते रहे हैं। यह सिलसिला भी काफी पुराना है। विदेशी यात्रियों में सबसे पहले जिक्र चीनी यात्री फाहियान का आता है, क्योंकि इनकी भारत में यात्रा और उनके लिखे दस्तावेज बाद में मिल पाए। चौथी सदी में गुप्त शासनकाल के समय भारत आए फाहियान के यात्रा विवरणों में काशी का जिक्र मिलता है। इसमें काशी में विशाल पन्ने का शिवलिंग होने और उसके पूजा के बारे में बताते हैं। वो खुद वाराणसी संस्कृत सीखने आए थे। फाहियान ने बताया कि वह हिंदू धर्म से काफी प्रभावित हुए। 7वीं सदी में दूसरे चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आए। अपनी यात्रा के दौरान वह भी काशी से होकर गुजरे। काशी से सटे प्रयाग के तट पर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संगीत सम्मेलन का आयोजन भी कराया था। 17वीं सदी में भारत आए फ्रांसीसी यात्री जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर ने काशी को देखकर इसे ‘भारत का एथेंस’ कहा। 18वीं सदी में मिर्जा गालिब ने काशी को लेकर लिखा- लोग कहते हैं वो जा पहुंचा बनारस जिंदा। हमको उस घास के तिनके से यह उम्मीद न थी। ————————- ये भी पढ़ें… काशी में देव दीपावली, 40 देशों के मेहमान आएंगे:एक रात स्टे का 25 से 80 हजार तक खर्च: 39 साल पहले हुई थी शुरुआत देव दिवाली… मतलब देवताओं के धरती पर उतरकर दीपावली मनाने का उत्सव। काशी में 15 नवंबर को देव दीपावली मनाई जाएगी। इसे देखने के लिए 40 देशों के मेहमान काशी आ रहे हैं। करीब 15 लाख भी टूरिस्ट भी आएंगे, जो आयोजन का गवाह बनेंगे। इस आयोजन की शुरुआत 80 दीयों से हुई, जब काशी के सभी घाट पर 1-1 दीया जलता था। अब यह आयोजन 20 लाख दीयों तक पहुंच गया है। इस बार प्रशासन ने 17 लाख दीये जलाने का टारगेट रखा है। संत रविदास घाट से लेकर आदिकेशव घाट तक और वरुणा नदी के तट से लेकर मठों-मंदिरों तक कुल 25 लाख दीपक जगमगाएंगे। पढ़ें पूरी खबर…
करनाल के बागी उम्मीदवार की संपत्ति में बड़ा इजाफा:कांग्रेस व भाजपा के प्रत्याशी भी करोड़ो के मालिक, सुमिता सिंह की घटी आय
करनाल के बागी उम्मीदवार की संपत्ति में बड़ा इजाफा:कांग्रेस व भाजपा के प्रत्याशी भी करोड़ो के मालिक, सुमिता सिंह की घटी आय हरियाणा के करनाल में असंध विधानसभा से बीजेपी से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरे जिले राम शर्मा की संपति में पिछले 5 सालों में भारी इजाफा हुआ है। पत्नियों की संपत्ति ने भी ध्यान खींचा है। कांग्रेस के प्रत्याशी वीरेंद्र राठौर और योगेंद्र राणा जैसे उम्मीदवार भी करोड़ो की संपति के मालिक है। वहीं अगर हम करनाल विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व विधायक सुमिता सिंह की बात करें तो उनकी आय में गिरावट आई है, लेकिन वे अब भी करोड़पति हैं। जिले राम शर्मा की संपत्ति में बड़ा उछाल, पत्नी की आय में मामूली गिरावट बीजेपी से बगावत कर आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने वाले जिले राम शर्मा की संपति पिछले 5 सालों में 6.92 लाख से बढ़कर 9.31 लाख हो गई है। जबकि उनकी पत्नी माया देवी की आय 4.99 लाख से घटकर 4.79 लाख हो गई है। शर्मा के पास 90 हजार रुपए नकद हैं और उनकी पत्नी माया देवी के पास 45 हजार रुपए नकद हैं। तीन बचत खातों में शर्मा के पास 70 हजार रुपए और माया देवी के बैंक खाते में 40 हजार रुपए जमा हैं। शर्मा के पास 13.60 लाख का सोना और माया देवी के पास 20.40 लाख का सोना है। चल संपत्ति में शर्मा के पास 40.20 लाख और माया देवी के पास 21.25 लाख की संपत्ति है। अचल संपत्ति के मामले में शर्मा के पास 57 लाख रुपए की संपति है, और उन पर 11 लाख रुपए का कर्ज है। वीरेंद्र राठौर की पत्नी की संपत्ति दोगुनी से अधिक हुई वीरेंद्र राठौर की संपत्ति 2020-21 में 14.72 लाख थी, जो 2024-25 में मामूली बढ़कर 17 लाख हो गई। उनकी पत्नी नीतू की संपत्ति 5.85 लाख से बढ़कर 9.69 लाख हो गई है। वीरेंद्र राठौर पर आपराधिक मामले भी दर्ज हैं। वीरेंद्र के पास 17.5 लाख का सोना और नीतू के पास 36.57 लाख का सोना है। चल संपत्ति के रूप में वीरेंद्र के पास 25.31 लाख और नीतू के पास 51 लाख रुपए हैं। अचल संपत्ति में वीरेंद्र के पास 55.86 लाख और नीतू के पास 2.50 करोड़ की संपत्ति है। दोनों पर कोई देनदारी नहीं है। योगेंद्र राणा और उनका परिवार करोड़ों की संपत्ति का मालिक योगेंद्र राणा की सालाना आय पिछले 5 सालों में 2.97 लाख से बढ़कर 5.88 लाख हो गई है, जबकि उनकी पत्नी अंजू की सालाना आय 2.43 लाख से बढ़कर 4.76 लाख हो गई है। उनके बेटे दक्षेंद्र की आय 2.90 लाख से 4.74 लाख और दूसरे बेटे युवराज की आय 12,560 से बढ़कर 2.90 लाख हो गई है। योगेंद्र जेपीएस राइस मिल के मालिक हैं और उनके बेटे युवराज के भी मिल में शेयर है। योगेंद्र के पास 100 ग्राम सोना और अंजू के पास 500 ग्राम सोने के गहने हैं। चल संपत्ति के रूप में योगेंद्र के पास 1.76 करोड़, अंजू के पास 45.66 लाख, दक्षेंद्र के पास 21.95 लाख और युवराज के पास 48.53 लाख की संपत्ति है। अचल संपत्ति में योगेंद्र के पास 11.04 करोड़, अंजू के पास 16.04 करोड़, दक्षेंद्र और युवराज के पास 4.04 करोड़ की संपत्ति है। सुमिता सिंह की आय घटी, फिर भी करोड़पति बनीं पूर्व विधायक सुमिता सिंह की आय 4 साल पहले 2.48 लाख थी, जो 2022-23 में घटकर 1.95 लाख हो गई है। जबकि उनके पति जगदीप की आय 30.76 लाख से बढ़कर 78.23 लाख हो गई है। चल संपत्ति के रूप में सुमिता सिंह के पास 5.47 करोड़ और 19.38 करोड़ रुपये की एचयूएफ संपत्ति है। अचल संपत्ति में सुमिता के पास 5.68 करोड़ और 61.46 करोड़ रुपये की एचयूएफ संपत्ति है। उनके ऊपर किसी प्रकार का कर्ज नहीं है।
छिंदवाड़ा में डबल मर्डर से सनसनी, बेटे ने बुजुर्ग मां- बाप को पत्थर से उतारा मौत के घाट
छिंदवाड़ा में डबल मर्डर से सनसनी, बेटे ने बुजुर्ग मां- बाप को पत्थर से उतारा मौत के घाट <p style=”text-align: justify;”><strong>MP Crime News:</strong> छिंदवाड़ा के हर्रई में दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है. कलियुगी बेटे ने माता-पिता की बेरहमी से हत्या कर दी. वारदात का कारण पारिवारिक रंजिश बताया जा रहा है. मौके पर पहुंची पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>जानकारी के मुताबिक पिता ने 3 साल पहले जमीन 9 लाख रुपये में बेची थी. बेटा पिता से पैसे की मांग करता था. नहीं देने पर दोनों अक्सर एक दूसरे के खिलाफ हो जाते थे. बीती रात भी दोनों में विवाद हुआ. मां बाप बेटे का झगड़ा सुलझाने आयी.</p>
<p style=”text-align: justify;”>तैश में आकर बेटे ने रात को बुजुर्ग माता पिता की पत्थरों से मारकर हत्या कर दी. दोनों शवों की पहचान हो गयी है. पुलिस ने बताया कि 82 वर्षीय डोरीलाल लिलिधर राय वार्ड नंबर 1 में 69 वर्षीय पत्नी विद्या डोरीलाल राय और बेटे के साथ रहते थे. बेटा राधेश्याम राय जमीन बिक्री के पैसे नहीं मिलने से नाराज रहता था. पैसे के लिए बाप बेटे में अक्सर लड़ाई होती थी. रात को एक बार फिर दोनों के बीच विवाद हुआ. बीच बचाव करने मां आयी. तैश में बेटे ने माता पिता को मौत के घाट उतार दिया. घटना की सूचना पाकर अमरवाड़ा एसडीओपी, हर्रई थाना प्रभारी ओमेश मार्को दल बल के साथ मौके पर पहुंचे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बेटे ने बुजुर्ग माता पिता को मौत के घाट </strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>पुलिस अधीक्षक मनीष खत्री ने बताया कि आज सुबह सूचना मिली थी कि वार्ड नंबर एक में बाइपास के पास दो शव पड़े हैं. पुलिस की टीम ने तत्काल मौके पर पहुंचकर मामले की तहकीकात शुरू की. पंचनामा बनाकर दोनों शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है. एसपी के मुताबिक राधेश्याम राय ने बुजुर्ग माता पिता को मौत के घाट उतारा है. पुलिस मामला दर्ज कर आगे की तहकीकात कर रही है. दोहरे हत्याकांड से इलाके में सनसनी फैली हुई है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>(सचिन पांडेय की रिपोर्ट)</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें-</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a title=”तीसरी पत्नी के उकसावे पर बेटे की गला घोंटकर हत्या, सौतेली मां और पिता को कोर्ट ने दी उम्र कैद की सजा” href=”https://www.abplive.com/city/indore/indore-court-awarded-life-imprisonment-to-father-and-step-mother-for-murder-of-son-2813905″ target=”_self”>तीसरी पत्नी के उकसावे पर बेटे की गला घोंटकर हत्या, सौतेली मां और पिता को कोर्ट ने दी उम्र कैद की सजा</a></strong></p>
<p style=”text-align: justify;”> </p>