Jammu Kashmir: उधमपुर की पहाड़ियों में छिपा है इंडिया का जलवायु स्टेशन, क्यों टिकी है दुनिया के वैज्ञानिकों की इस पर नजर?

Jammu Kashmir: उधमपुर की पहाड़ियों में छिपा है इंडिया का जलवायु स्टेशन, क्यों टिकी है दुनिया के वैज्ञानिकों की इस पर नजर?

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<p><strong>Jammu Kashmir Latest News:</strong> वायुमंडलीय वैज्ञानिकों के लिए बादल बनने और बारिश होने की घटना एक सामान्य बात है. इसके बावजूद भारत ने उधमपुर की चोटियों पर अलहदा वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन का उद्घाटन पिछले सप्ताह किया. इसका मकसद ‘बादलों में बर्फ के क्रिस्टल का बनने और वर्षा पर उनके प्रभाव’ का अध्ययन करना है. यहां पर अहम सवाल यह है कि जब वैज्ञानिकों के लिए यह मसला सामान्य बात है तो फिर किस बात की मगजमारी के लिए इस केंद्र पर दुनिया भर के वैज्ञानिकों की नजरें टिकी हुई हैं. <br /><br />दरअसल, बादल बनने और वर्षा की सामान्य प्रक्रियाओं में एक महत्वपूर्ण हिस्सा ‘बादलों में बर्फ के क्रिस्टल का बनना और वर्षा पर उनका प्रभाव’ है, जिसे अभी तक ठीक से समझा नहीं गया है. ऐसा इसलिए कि बादल बनने और वर्षा की सामान्य प्रक्रियाओं के बीच बादलों में बर्फ के क्रिस्टल बनने की घटना बहुत बारीक मसला है, जिस रहस्य से पर्दा उठ जाए तो जलवायु परिवर्तन से संबंधित कई रहस्यों का खुलासा हो सकता है. <br /><br /><strong>क्या है इसका मकसद?</strong> <br /><br />यही वजह है कि उधमपुर की चोटियों पर भारत सरकार ने वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन का निर्माण किया है. यह स्टेशन जम्मू कश्मीर के उधमपुर &nbsp;समुद्र तल से 2250 मीटर हाइट पर है. यह भारत का अपनी तरह का पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन &nbsp;(atmospheric monitoring station) है. इसका मकसद बादलों के बनने के एक अज्ञात पहलू का अध्ययन करना है. खास बात यह है कि यह केंद्र एक सफेद कंटेनरनुमा आकार में पहाड़ियों पर स्थित है. <br /><br />पिछले सप्ताह उद्घाटन किए गए जम्मू और कश्मीर के नए स्टेशन का उद्देश्य इस महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सूचना अंतर को पाटना है, जो वैज्ञानिकों की बादलों के व्यवहार को जानने और सटीक वर्षा की भविष्यवाणी करने की क्षमता को प्रभावित करता है.<br /><br />भारत का नया स्टेशन बर्फ के नाभिकीय कणों (आईएनपी) के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करेगा, जो हवा में तैरते दुर्लभ और मुश्किल से पहचाने जाने वाले छोटे कण हैं जो बादलों में बर्फ के क्रिस्टल के निर्माण के लिए शुरुआती चरण हैं. ये बर्फ के क्रिस्टल अंततः बारिश, हिमपात या ओलों के रूप में नीचे आते हैं, जब वे बादलों में अधिक पानी की बूंदों को जमा करके बड़े हो जाते हैं. हालांकि, बर्फ के नाभिकीय कणों (आईएनपी) का अध्ययन पर अब जोर दिया जाने लगा है, लेकिन यह अभी भी बहुत आम नहीं है. <br /><br />उधमपुर का हिमालयन हाई एल्टीट्यूड एटमॉस्फेरिक एंड क्लाइमेट रिसर्च सेंटर भविष्य में इन अध्ययनों को सक्षम करने वाली भारत की पहली सुविधा केंद्र &nbsp;साबित होगी. केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू द्वारा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सहयोग से इसे बनाया गया है. यह नया केंद्र अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित है, जो अनुसंधान के इस क्षेत्र को सुविधाजनक बनाएगा.<br /><br /><strong>यह अध्ययन भारत के लिए अहम क्यों?</strong><br /><br />केंद्र प्रभारी और जम्मू में केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों की एसोसिएट डीन श्वेता यादव कहती हैं, “जलवायु केंद्र का उद्देश्य मौसम और जलवायु से संबंधित कई तरह के अवलोकन करना है, लेकिन INP का अध्ययन निश्चित रूप से मील का पत्थर साबित होगा.”<br /><br />उधमपुर केंद्र में INP अध्ययन ETH ज्यूरिख स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों के सहयोग से किए जाएंगे. बता दें कि इस तरह के अध्ययनों के लिए अधिक ऊंचाई अधिक उपयुक्त होती है. “इन स्थानों पर, बादल सचमुच आपके पास आते हैं. इसलिए, अपने प्रयोग चलाना और अवलोकन करना बहुत आसान है. विकल्प यह होगा कि उपकरणों को विमान पर बादलों में भेजा जाए. यह महंगा है और इससे केवल अल्पकालिक माप प्राप्त होते हैं. <br /><br />भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में पर्यावरण निगरानी अनुसंधान केंद्र के प्रमुख विजय कुमार सोनी के मुताबिक बादलों गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए भारत की दूसरी सुविधा महाराष्ट्र के एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल महाबलेश्वर में स्थित है, लेकिन महाबलेश्वर बहुत ऊँचाई पर स्थित नहीं है. यह समुद्र तल से केवल लगभग 1,300 मीटर ऊपर है. यहां बादल बहुत कम स्तर पर आते हैं. खासकर मानसून के दौरान. <br /><br />पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा संचालित इस सुविधा में INP अध्ययन करने के लिए उपकरण नहीं हैं. जबकि INP बादल गतिशीलता और वर्षा प्रक्रियाओं का एक महत्वपूर्ण घटक है. वे दुनिया भर में होने वाली अधिकांश वर्षा और बर्फबारी में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं.</p>
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<p><strong>Jammu Kashmir Latest News:</strong> वायुमंडलीय वैज्ञानिकों के लिए बादल बनने और बारिश होने की घटना एक सामान्य बात है. इसके बावजूद भारत ने उधमपुर की चोटियों पर अलहदा वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन का उद्घाटन पिछले सप्ताह किया. इसका मकसद ‘बादलों में बर्फ के क्रिस्टल का बनने और वर्षा पर उनके प्रभाव’ का अध्ययन करना है. यहां पर अहम सवाल यह है कि जब वैज्ञानिकों के लिए यह मसला सामान्य बात है तो फिर किस बात की मगजमारी के लिए इस केंद्र पर दुनिया भर के वैज्ञानिकों की नजरें टिकी हुई हैं. <br /><br />दरअसल, बादल बनने और वर्षा की सामान्य प्रक्रियाओं में एक महत्वपूर्ण हिस्सा ‘बादलों में बर्फ के क्रिस्टल का बनना और वर्षा पर उनका प्रभाव’ है, जिसे अभी तक ठीक से समझा नहीं गया है. ऐसा इसलिए कि बादल बनने और वर्षा की सामान्य प्रक्रियाओं के बीच बादलों में बर्फ के क्रिस्टल बनने की घटना बहुत बारीक मसला है, जिस रहस्य से पर्दा उठ जाए तो जलवायु परिवर्तन से संबंधित कई रहस्यों का खुलासा हो सकता है. <br /><br /><strong>क्या है इसका मकसद?</strong> <br /><br />यही वजह है कि उधमपुर की चोटियों पर भारत सरकार ने वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन का निर्माण किया है. यह स्टेशन जम्मू कश्मीर के उधमपुर &nbsp;समुद्र तल से 2250 मीटर हाइट पर है. यह भारत का अपनी तरह का पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन &nbsp;(atmospheric monitoring station) है. इसका मकसद बादलों के बनने के एक अज्ञात पहलू का अध्ययन करना है. खास बात यह है कि यह केंद्र एक सफेद कंटेनरनुमा आकार में पहाड़ियों पर स्थित है. <br /><br />पिछले सप्ताह उद्घाटन किए गए जम्मू और कश्मीर के नए स्टेशन का उद्देश्य इस महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सूचना अंतर को पाटना है, जो वैज्ञानिकों की बादलों के व्यवहार को जानने और सटीक वर्षा की भविष्यवाणी करने की क्षमता को प्रभावित करता है.<br /><br />भारत का नया स्टेशन बर्फ के नाभिकीय कणों (आईएनपी) के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करेगा, जो हवा में तैरते दुर्लभ और मुश्किल से पहचाने जाने वाले छोटे कण हैं जो बादलों में बर्फ के क्रिस्टल के निर्माण के लिए शुरुआती चरण हैं. ये बर्फ के क्रिस्टल अंततः बारिश, हिमपात या ओलों के रूप में नीचे आते हैं, जब वे बादलों में अधिक पानी की बूंदों को जमा करके बड़े हो जाते हैं. हालांकि, बर्फ के नाभिकीय कणों (आईएनपी) का अध्ययन पर अब जोर दिया जाने लगा है, लेकिन यह अभी भी बहुत आम नहीं है. <br /><br />उधमपुर का हिमालयन हाई एल्टीट्यूड एटमॉस्फेरिक एंड क्लाइमेट रिसर्च सेंटर भविष्य में इन अध्ययनों को सक्षम करने वाली भारत की पहली सुविधा केंद्र &nbsp;साबित होगी. केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू द्वारा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सहयोग से इसे बनाया गया है. यह नया केंद्र अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित है, जो अनुसंधान के इस क्षेत्र को सुविधाजनक बनाएगा.<br /><br /><strong>यह अध्ययन भारत के लिए अहम क्यों?</strong><br /><br />केंद्र प्रभारी और जम्मू में केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों की एसोसिएट डीन श्वेता यादव कहती हैं, “जलवायु केंद्र का उद्देश्य मौसम और जलवायु से संबंधित कई तरह के अवलोकन करना है, लेकिन INP का अध्ययन निश्चित रूप से मील का पत्थर साबित होगा.”<br /><br />उधमपुर केंद्र में INP अध्ययन ETH ज्यूरिख स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों के सहयोग से किए जाएंगे. बता दें कि इस तरह के अध्ययनों के लिए अधिक ऊंचाई अधिक उपयुक्त होती है. “इन स्थानों पर, बादल सचमुच आपके पास आते हैं. इसलिए, अपने प्रयोग चलाना और अवलोकन करना बहुत आसान है. विकल्प यह होगा कि उपकरणों को विमान पर बादलों में भेजा जाए. यह महंगा है और इससे केवल अल्पकालिक माप प्राप्त होते हैं. <br /><br />भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में पर्यावरण निगरानी अनुसंधान केंद्र के प्रमुख विजय कुमार सोनी के मुताबिक बादलों गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए भारत की दूसरी सुविधा महाराष्ट्र के एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल महाबलेश्वर में स्थित है, लेकिन महाबलेश्वर बहुत ऊँचाई पर स्थित नहीं है. यह समुद्र तल से केवल लगभग 1,300 मीटर ऊपर है. यहां बादल बहुत कम स्तर पर आते हैं. खासकर मानसून के दौरान. <br /><br />पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा संचालित इस सुविधा में INP अध्ययन करने के लिए उपकरण नहीं हैं. जबकि INP बादल गतिशीलता और वर्षा प्रक्रियाओं का एक महत्वपूर्ण घटक है. वे दुनिया भर में होने वाली अधिकांश वर्षा और बर्फबारी में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं.</p>
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