NEET पेपर लीक का MP कनेक्शन:यूपी में विधायक बनने से पहले बेदीराम ने एमपी में PSC-2012 का पर्चा कराया था लीक

NEET पेपर लीक का MP कनेक्शन:यूपी में विधायक बनने से पहले बेदीराम ने एमपी में PSC-2012 का पर्चा कराया था लीक

NEET-UG एग्जाम का पेपर लीक मामले का पॉलिटिकल कनेक्शन सामने आया है। 26 जून को यूपी की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से विधायक बेदीराम का एक वीडियो वायरल हुआ। जिसमें वह एक युवक से पेपर और लेन-देन की बात करते दिख रहे थे। बेदीराम यूपी की जखनियां सीट से विधायक है। पेपर लीक माफिया बिजेंद्र गुप्ता ने भी बेदी राम का नाम लिया है। बिजेंद्र पहले बेदी राम के साथ जेल भी जा चुका है। हालांकि अब तक बेदीराम को NEET पेपर लीक में आरोपी नहीं बनाया गया है। बेदीराम का नाम 12 साल पहले मप्र लोकसेवा आयोग के पेपर लीक से भी जुड़ा था। उस वक्त मामले की जांच करने वाली एसटीएफ ने बेदीराम, बृजेंद्र समेत 55 लोगों को आरोपी बनाया था और उनकी गिरफ्तारी भी की थी। खास बात ये है कि जिस तरह से नीट एग्जाम का पेपर प्रिंटिंग प्रेस से लीक होने की बात सामने आ रही है। ऐसे ही एमपीपीएससी का पेपर भी लीक करवाया गया था और छात्रों को रिसॉर्ट और होटल में बुलाकर उन्हें रटवाया गया था। यानी नीट का पेपर लीक होने का जैसा पैटर्न सामने आ रहा है वैसा एमपी में 12 साल पहले हो चुका है। पिछले 12 सालों से ये मामला कोर्ट में चल रहा है और इसी महीने की 16 तारीख को इसकी सुनवाई है। दैनिक भास्कर ने 12 साल पुराने इस मामले की पड़ताल की, एसटीएफ के अधिकारियों से बात कर समझा कि आखिर कैसे किया गया था पेपर लीक। अब जानिए कैसे पता चला था कि एमपी में पेपर लीक हुआ एसटीएफ के एसपी राजेश सिंह भदौरिया के अनुसार मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ी का यह बड़ा मामला था। 2014 में बेदीराम के गिरोह का नाम रेलवे भर्ती परीक्षा पेपर लीक में आया था। लखनऊ के आशियाना थाने में बेदीराम के खिलाफ मामला दर्ज हुआ तो बेदीराम फरार हो गया। बाद में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने उसे पकड़ा। यूपी और दिल्ली पुलिस की पूछताछ के दौरान सामने आया कि इन लोगों ने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की आयुर्वेद अधिकारी भर्ती परीक्षा का पेपर लीक किया था। दिल्ली पुलिस ने यह जानकारी मध्य प्रदेश पुलिस को दी। प्रदेश सरकार ने इस मामले की जांच एसटीएफ को सौंपी। एसटीएफ ने जब बेदीराम और उसके साथियों से पूछताछ की तो पता चला कि यह गिरोह मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की राज्य सिविल सेवा परीक्षा-2012 का प्री और मेन्स का पेपर भी लीक करा चुका है। तब तक एमपीपीएसी प्री और मेन्स की परीक्षा हो चुकी थी। इंटरव्यू होना बाकी था। पेपर लीक की जानकारी मिलने के बाद एमपीपीएससी ने इंटरव्यू स्थगित कर दिया था। आगरा के प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुआ था MPPSC का पेपर एसटीएफ ने दोनों परीक्षाओं के लिए दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की। देश के अलग-अलग हिस्सों से पेपर लीक गिरोह के लोगों और पेपर खरीदने वालों की गिरफ्तारी हुई। एसटीएफ के तत्कालीन जांच अधिकारी राकेश जैन बताते हैं कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग सिविल सेवा परीक्षा का पेपर आगरा के प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुआ था। बेदीराम के गिरोह ने पीएससी में अपने सूत्रों के जरिए यह पता लगा लिया कि पेपर कहां छप रहा है। इस सूचना के बाद गिरोह के लोगों ने उस प्रिटिंग प्रेस के कर्मचारियों से सांठगांठ की। उन कर्मचारियों ने लोक सेवा आयोग के पेपर छपाई के दौरान खराब बताकर कुछ पेपर कचरे में फेंक दिया था। यहीं से पेपर गिरोह तक पहुंचे। हर पेपर के लिए 8 से 25 लाख तक की डील पेपर लीक का प्लान तय हो जाने के बाद गिरोह का एक बड़ा हिस्सा पेपर के लिए ग्राहक तलाशता और उनसे रुपए की डील करता था। बताया गया कि बिहार के बिजेन्द्र गुप्ता और अखिलेश पांडेय ने लोक सेवा आयोग परीक्षा का पेपर कैंडिडेट्स तक पहुंचाने में भूमिका निभाई। एसटीएफ ने दोनों को 2014 में गिरफ्तार किया था। मथुरा का हेमंत चौहान, पटना का अनिल कुमार भी दलाल बनकर ग्राहक जुटाने में शामिल पाए गए। मंदसौर का दलाल इलियास मोहम्मद तो आयुर्वेद परीक्षा में भी इस गिरोह के साथ शामिल था। पूरा गिरोह कभी पकड़ा ही नहीं गया एसटीएफ भोपाल के अधिकारियों ने पेपर लीक गिरोह की जांच में अनुभव किया कि उनका सामना कितने हॉर्डकोर अपराधियों से पड़ा है। जांच टीम का हिस्सा रहे एक जूनियर अधिकारी ने बताया कि बेदीराम, बृजेंद्र गुप्ता, दीपक कुमार गौतम, अखिलेश कुमार पाण्डेय इस गिरोह के प्रमुख लोग थे। रिमांड पर इनसे सख्ती से पूछताछ हुई थी, लेकिन इन लोगों ने कभी पूरा नेटवर्क नहीं खोला। वे आरोप एक-दूसरे पर डालकर खुद की भूमिका सीमित बताते थे। इससे जांच इन तक और उनसे मिले दस्तावेजों के आसपास ही केंद्रित रह गई। हमें भी संदेह था कि इनका पूरा गिरोह कभी पकड़ा ही नहीं गया। छह महीने की जांच कर एसटीएफ ने चार्जशीट पेश की भोपाल एसटीएफ ने दोनों परीक्षाओं के पेपर लीक में लगभग समानांतर जांच की। आयुर्वेद अधिकारी मामले में 22 जुलाई 2014 को और सिविल सेवा परीक्षा मामले में 10 सितम्बर 2014 को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की। इस चार्जशीट में पुलिस ने अधिकतर आरोपियों के बयानों के आधार पर अपराध का ब्योरा पेश किया था। आयुर्वेद अधिकारी भर्ती परीक्षा का पेपर 300 से अधिक लोगों तक पहुंचा था। इसमें 55 लोगों को आरोपी बनाया गया, जिसमें से अधिकतर डॉक्टर थे। सिविल सेवा परीक्षा में हिंदी और सामान्य अध्ययन का वह पर्चा भी लगाया गया था जिसकी कॉपी इंदौर के एक होटल में आरोपियों से मिली थी। यह वही पर्चा था जो हूबहू परीक्षा में आया था। इस परीक्षा में लोक प्रशासन और समाज शास्त्र का पर्चा भी लीक कराने की बात आई थी, लेकिन उसका कोई सबूत एसटीएफ को नहीं मिला। सिविल सेवा परीक्षा मामले में 23 लोगों को आरोपी बनाया गया था। इस केस में अब तक 40 से अधिक लोगों की गवाही हो चुकी है। अब बेदीराम के बारे में जानिए… रेलवे में नौकरी की, वहीं का पेपर लीक कराया बेदीराम के बारे में पुलिस रिकॉर्ड में जो जानकारी है उसके मुताबिक बेदीराम रेलवे में टिकट निरीक्षक हुआ करता था। नौकरी करते हुए बेदीराम ने अधिकारियों से साठगांठ कर भर्ती परीक्षाओं में धांधली का रैकेट खड़ा किया। 2006 में रेलवे की ग्रुप डी भर्ती परीक्षा पेपर लीक में बेदीराम का नाम आया। लखनऊ के कृष्णानगर थाने में बेदीराम के खिलाफ पहली एफआईआर दर्ज हुई। इसके बाद रेलवे ने बेदीराम को नौकरी से हटा दिया। इसके बाद बेदीराम पूरी तरह नकल माफिया बन गया। उसने 2008 में फिर रेलवे परीक्षा का पर्चा लीक कराया। पुलिस ने कार्रवाई की, लेकिन गिरोह अपना काम करता रहा। 2009 में जयपुर एसओजी ने बेदीराम के खिलाफ रेलवे पर्चा लीक का मामला दर्ज किया। इस बीच इस गिरोह ने उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती परीक्षा में सेंध लगा दी। जौनपुर के मडियाहूं थाने में बेदीराम और उसके गिरोह के खिलाफ मामला दर्ज हुआ। एजेंसियों की निगरानी में था, बचने के लिए राजनीति में उतरा विधायक बेदीराम उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में कुसिया गांव का निवासी है। जौनपुर के एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि 2010 के बाद से ही बेदीराम पुलिस और परीक्षा कराने वाली एजेंसियों के लिए मुख्य संदिग्ध बन चुका था। जौनपुर के जलालपुर थाने में उसकी हिस्ट्री शीट बनाई गई, जिसमें उसको नकल माफिया लिखा गया था। उत्तर प्रदेश में कोई भी भर्ती अथवा पात्रता परीक्षा होती थी तो स्थानीय खुफिया एजेंसियां बेदीराम की निगरानी बढ़ा देती थीं। उसके आने-जाने पर निगाह रखी जाती। पुलिस जब-तब उसके ठिकाने पर पहुंचकर जांच करती। इससे बचने के लिए वह स्थानीय राजनीति में सक्रिय हुआ। इसकी शुरुआत उसने पंचायत चुनाव से की। उसने पत्नी को जौनपुर के जलालपुर क्षेत्र पंचायत (मध्य प्रदेश में जनपद पंचायत) के सदस्य का चुनाव जितवाया। उसी चुनाव में उसने भाजपा को मात देकर ब्लॉक प्रमुख बनवा दिया। 2022 में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा से जखनियां की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट से चुनाव लड़ा और जीता। पिछली सरकारों में गठबंधन की वजह से सुभासपा का कद बढ़ा हुआ था, जिसका फायदा बेदीराम को भी मिला और उसकी निगरानी लगभग हटा ली गई। NEET-UG एग्जाम का पेपर लीक मामले का पॉलिटिकल कनेक्शन सामने आया है। 26 जून को यूपी की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से विधायक बेदीराम का एक वीडियो वायरल हुआ। जिसमें वह एक युवक से पेपर और लेन-देन की बात करते दिख रहे थे। बेदीराम यूपी की जखनियां सीट से विधायक है। पेपर लीक माफिया बिजेंद्र गुप्ता ने भी बेदी राम का नाम लिया है। बिजेंद्र पहले बेदी राम के साथ जेल भी जा चुका है। हालांकि अब तक बेदीराम को NEET पेपर लीक में आरोपी नहीं बनाया गया है। बेदीराम का नाम 12 साल पहले मप्र लोकसेवा आयोग के पेपर लीक से भी जुड़ा था। उस वक्त मामले की जांच करने वाली एसटीएफ ने बेदीराम, बृजेंद्र समेत 55 लोगों को आरोपी बनाया था और उनकी गिरफ्तारी भी की थी। खास बात ये है कि जिस तरह से नीट एग्जाम का पेपर प्रिंटिंग प्रेस से लीक होने की बात सामने आ रही है। ऐसे ही एमपीपीएससी का पेपर भी लीक करवाया गया था और छात्रों को रिसॉर्ट और होटल में बुलाकर उन्हें रटवाया गया था। यानी नीट का पेपर लीक होने का जैसा पैटर्न सामने आ रहा है वैसा एमपी में 12 साल पहले हो चुका है। पिछले 12 सालों से ये मामला कोर्ट में चल रहा है और इसी महीने की 16 तारीख को इसकी सुनवाई है। दैनिक भास्कर ने 12 साल पुराने इस मामले की पड़ताल की, एसटीएफ के अधिकारियों से बात कर समझा कि आखिर कैसे किया गया था पेपर लीक। अब जानिए कैसे पता चला था कि एमपी में पेपर लीक हुआ एसटीएफ के एसपी राजेश सिंह भदौरिया के अनुसार मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ी का यह बड़ा मामला था। 2014 में बेदीराम के गिरोह का नाम रेलवे भर्ती परीक्षा पेपर लीक में आया था। लखनऊ के आशियाना थाने में बेदीराम के खिलाफ मामला दर्ज हुआ तो बेदीराम फरार हो गया। बाद में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने उसे पकड़ा। यूपी और दिल्ली पुलिस की पूछताछ के दौरान सामने आया कि इन लोगों ने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की आयुर्वेद अधिकारी भर्ती परीक्षा का पेपर लीक किया था। दिल्ली पुलिस ने यह जानकारी मध्य प्रदेश पुलिस को दी। प्रदेश सरकार ने इस मामले की जांच एसटीएफ को सौंपी। एसटीएफ ने जब बेदीराम और उसके साथियों से पूछताछ की तो पता चला कि यह गिरोह मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की राज्य सिविल सेवा परीक्षा-2012 का प्री और मेन्स का पेपर भी लीक करा चुका है। तब तक एमपीपीएसी प्री और मेन्स की परीक्षा हो चुकी थी। इंटरव्यू होना बाकी था। पेपर लीक की जानकारी मिलने के बाद एमपीपीएससी ने इंटरव्यू स्थगित कर दिया था। आगरा के प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुआ था MPPSC का पेपर एसटीएफ ने दोनों परीक्षाओं के लिए दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की। देश के अलग-अलग हिस्सों से पेपर लीक गिरोह के लोगों और पेपर खरीदने वालों की गिरफ्तारी हुई। एसटीएफ के तत्कालीन जांच अधिकारी राकेश जैन बताते हैं कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग सिविल सेवा परीक्षा का पेपर आगरा के प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुआ था। बेदीराम के गिरोह ने पीएससी में अपने सूत्रों के जरिए यह पता लगा लिया कि पेपर कहां छप रहा है। इस सूचना के बाद गिरोह के लोगों ने उस प्रिटिंग प्रेस के कर्मचारियों से सांठगांठ की। उन कर्मचारियों ने लोक सेवा आयोग के पेपर छपाई के दौरान खराब बताकर कुछ पेपर कचरे में फेंक दिया था। यहीं से पेपर गिरोह तक पहुंचे। हर पेपर के लिए 8 से 25 लाख तक की डील पेपर लीक का प्लान तय हो जाने के बाद गिरोह का एक बड़ा हिस्सा पेपर के लिए ग्राहक तलाशता और उनसे रुपए की डील करता था। बताया गया कि बिहार के बिजेन्द्र गुप्ता और अखिलेश पांडेय ने लोक सेवा आयोग परीक्षा का पेपर कैंडिडेट्स तक पहुंचाने में भूमिका निभाई। एसटीएफ ने दोनों को 2014 में गिरफ्तार किया था। मथुरा का हेमंत चौहान, पटना का अनिल कुमार भी दलाल बनकर ग्राहक जुटाने में शामिल पाए गए। मंदसौर का दलाल इलियास मोहम्मद तो आयुर्वेद परीक्षा में भी इस गिरोह के साथ शामिल था। पूरा गिरोह कभी पकड़ा ही नहीं गया एसटीएफ भोपाल के अधिकारियों ने पेपर लीक गिरोह की जांच में अनुभव किया कि उनका सामना कितने हॉर्डकोर अपराधियों से पड़ा है। जांच टीम का हिस्सा रहे एक जूनियर अधिकारी ने बताया कि बेदीराम, बृजेंद्र गुप्ता, दीपक कुमार गौतम, अखिलेश कुमार पाण्डेय इस गिरोह के प्रमुख लोग थे। रिमांड पर इनसे सख्ती से पूछताछ हुई थी, लेकिन इन लोगों ने कभी पूरा नेटवर्क नहीं खोला। वे आरोप एक-दूसरे पर डालकर खुद की भूमिका सीमित बताते थे। इससे जांच इन तक और उनसे मिले दस्तावेजों के आसपास ही केंद्रित रह गई। हमें भी संदेह था कि इनका पूरा गिरोह कभी पकड़ा ही नहीं गया। छह महीने की जांच कर एसटीएफ ने चार्जशीट पेश की भोपाल एसटीएफ ने दोनों परीक्षाओं के पेपर लीक में लगभग समानांतर जांच की। आयुर्वेद अधिकारी मामले में 22 जुलाई 2014 को और सिविल सेवा परीक्षा मामले में 10 सितम्बर 2014 को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की। इस चार्जशीट में पुलिस ने अधिकतर आरोपियों के बयानों के आधार पर अपराध का ब्योरा पेश किया था। आयुर्वेद अधिकारी भर्ती परीक्षा का पेपर 300 से अधिक लोगों तक पहुंचा था। इसमें 55 लोगों को आरोपी बनाया गया, जिसमें से अधिकतर डॉक्टर थे। सिविल सेवा परीक्षा में हिंदी और सामान्य अध्ययन का वह पर्चा भी लगाया गया था जिसकी कॉपी इंदौर के एक होटल में आरोपियों से मिली थी। यह वही पर्चा था जो हूबहू परीक्षा में आया था। इस परीक्षा में लोक प्रशासन और समाज शास्त्र का पर्चा भी लीक कराने की बात आई थी, लेकिन उसका कोई सबूत एसटीएफ को नहीं मिला। सिविल सेवा परीक्षा मामले में 23 लोगों को आरोपी बनाया गया था। इस केस में अब तक 40 से अधिक लोगों की गवाही हो चुकी है। अब बेदीराम के बारे में जानिए… रेलवे में नौकरी की, वहीं का पेपर लीक कराया बेदीराम के बारे में पुलिस रिकॉर्ड में जो जानकारी है उसके मुताबिक बेदीराम रेलवे में टिकट निरीक्षक हुआ करता था। नौकरी करते हुए बेदीराम ने अधिकारियों से साठगांठ कर भर्ती परीक्षाओं में धांधली का रैकेट खड़ा किया। 2006 में रेलवे की ग्रुप डी भर्ती परीक्षा पेपर लीक में बेदीराम का नाम आया। लखनऊ के कृष्णानगर थाने में बेदीराम के खिलाफ पहली एफआईआर दर्ज हुई। इसके बाद रेलवे ने बेदीराम को नौकरी से हटा दिया। इसके बाद बेदीराम पूरी तरह नकल माफिया बन गया। उसने 2008 में फिर रेलवे परीक्षा का पर्चा लीक कराया। पुलिस ने कार्रवाई की, लेकिन गिरोह अपना काम करता रहा। 2009 में जयपुर एसओजी ने बेदीराम के खिलाफ रेलवे पर्चा लीक का मामला दर्ज किया। इस बीच इस गिरोह ने उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती परीक्षा में सेंध लगा दी। जौनपुर के मडियाहूं थाने में बेदीराम और उसके गिरोह के खिलाफ मामला दर्ज हुआ। एजेंसियों की निगरानी में था, बचने के लिए राजनीति में उतरा विधायक बेदीराम उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में कुसिया गांव का निवासी है। जौनपुर के एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि 2010 के बाद से ही बेदीराम पुलिस और परीक्षा कराने वाली एजेंसियों के लिए मुख्य संदिग्ध बन चुका था। जौनपुर के जलालपुर थाने में उसकी हिस्ट्री शीट बनाई गई, जिसमें उसको नकल माफिया लिखा गया था। उत्तर प्रदेश में कोई भी भर्ती अथवा पात्रता परीक्षा होती थी तो स्थानीय खुफिया एजेंसियां बेदीराम की निगरानी बढ़ा देती थीं। उसके आने-जाने पर निगाह रखी जाती। पुलिस जब-तब उसके ठिकाने पर पहुंचकर जांच करती। इससे बचने के लिए वह स्थानीय राजनीति में सक्रिय हुआ। इसकी शुरुआत उसने पंचायत चुनाव से की। उसने पत्नी को जौनपुर के जलालपुर क्षेत्र पंचायत (मध्य प्रदेश में जनपद पंचायत) के सदस्य का चुनाव जितवाया। उसी चुनाव में उसने भाजपा को मात देकर ब्लॉक प्रमुख बनवा दिया। 2022 में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा से जखनियां की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट से चुनाव लड़ा और जीता। पिछली सरकारों में गठबंधन की वजह से सुभासपा का कद बढ़ा हुआ था, जिसका फायदा बेदीराम को भी मिला और उसकी निगरानी लगभग हटा ली गई।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर