यूपी में नहीं चलता गठबंधन…7 बार सरकार गिरी:अखिलेश से 2019 में मायावती ने किया गठजोड़; अब फोन नहीं उठाने की तोहमत लगा रहे तारीख- 2 जून 1995, मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव लखनऊ के ताज होटल में एक समारोह में शामिल होने आए। उसी समय उनके प्रमुख सचिव ने एक पर्ची दी। पर्ची पढ़ते ही मुलायम सिंह के चेहरे का रंग उड़ गया। वो कुर्सी से उठे और सीधे मुख्यमंत्री आवास की तरफ बढ़े। पर्ची में लिखा था- बसपा सुप्रीमो कांशीराम और मायावती राजभवन में हैं। सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। मुलायम सिंह ने सपा नेताओं और मंत्रियों की बैठक बुलाई। उन्होंने इसे विश्वासघात करार दिया। कहा- विधानसभा में अपना बहुमत साबित करेंगे। इधर, गुस्साए सपा नेता और कार्यकर्ता लखनऊ के मीराबाई रोड स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए। यहां कमरा नंबर- 1 में मायावती रुकी थीं। मायावती के साथ अभद्रता की गई। ये कहानी है 29 साल पहले सपा-बसपा के बीच पहला गठबंधन के टूटने की। तब भी बहुत बड़ी वजह सामने नहीं आई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में ये बातें भूलकर भी दोनों दल एक साथ आए। अखिलेश यादव और मायावती का गठबंधन कुछ खास नहीं कर सका। चुनाव बाद गठबंधन टूट गया। 4 साल पहले टूटे इसी गठबंधन के कारणों पर सियासी घमासान मचा है। मायावती और अखिलेश एक-दूसरे पर फोन न उठाने का आरोप लगा रहे हैं। यह पहली बार नहीं है, जब गठबंधन टूटने को लेकर आरोप-प्रत्यारोप लग रहे हैं। अब तक यूपी में गठबंधन से बनी 7 सरकारें खींचतान की वजह से गिर चुकी हैं। इनमें से 4 गठबंधन की सरकार में बसपा शामिल रही। 3 में खुद मायावती सीएम रही हैं। पढ़िए गठबंधन क्यों टूटे और वजह क्या बताई गई… सरकार बनाने के लिए 7 बार बड़े गठबंधन बने, कोई सरकार 5 साल नहीं चली 1- 1967 में चौधरी चरण सिंह सरकार यूपी में गठबंधन की राजनीति की शुरुआत चौधरी चरण सिंह ने की। पहली बार 1967 में अलग-अलग विचारधारा वाले दलों को साथ लाने का प्रयोग हुआ। चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय क्रांति दल (लोकदल) बनाया और संयुक्त विधायक दल की सरकार बनाई। सरकार में कम्युनिस्ट पार्टी और जनसंघ भी शामिल हुआ। 1 साल के अंदर ही सरकार गिर गई। क्यों टूटा गठबंधन: संयुक्त विधायक दल की सरकार भारतीय राजनीति का एक अनूठा प्रयोग थी, जिसमें धुर वामपंथियों से लेकर धुर दक्षिणपंथी लोग शामिल थे। जनसंघ के सबसे ज्यादा 98 विधायक थे। इसलिए चरण सिंह ने उसे शिक्षा, स्थानीय प्रशासन और सहकारिता के 3 महत्वपूर्ण विभाग दिए। बाद में चरण सिंह ने उनसे ये विभाग लेकर सार्वजनिक कार्य और पशुपालन विभाग दे दिए। इससे जनसंघ नाराज हो गया। वहीं, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सरकारी कर्मचारियों की छंटनी के मुद्दे पर सबसे पहले सरकार से किनारा किया। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने अंग्रेजी हटाओ आंदोलन शुरू किया, तो चरण सिंह से उनके गंभीर मतभेद शुरू हो गए। विवाद बढ़ा और सरकार गिर गई। 2- राम नरेश यादव की सरकार बात 25 जून, 1975 की है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी। इससे नाराज राजनीतिक दलों ने 1977 में कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी के नाम से फिर एक गठबंधन तैयार किया। इसमें जनसंघ भी शामिल हुआ। गठबंधन की जीत हुई और रामनरेश यादव के सीएम बने। 1 साल 10 महीने में ही सरकार गिर गई। क्यों टूटा गठबंधन: 14 फरवरी, 1979 को रामनरेश यादव की सरकार ने एक आदेश जारी किया था कि बिना अनुमति के सार्वजनिक स्थानों पर संघ की शाखाएं नहीं लगाई जा सकतीं। जनसंघ से जुड़े विधायक और मंत्री इस आदेश के विरोध में उतर आए और सरकार गिर गई। 3- 1989 में मुलायम सिंह की सरकार उस समय बोफोर्स को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का विरोध हो रहा था। केंद्रीय मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बगावत कर दी। कांग्रेस के खिलाफ सभी दल एकजुट हो गए। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में 5 दिसंबर, 1989 को जनता दल की सरकार बनी। भाजपा ने भी बाहर से समर्थन दिया। लेकिन यह सरकार भी 5 साल नहीं चली। राम मंदिर आंदोलन के चलते भाजपा और सपा में टकराव बढ़ गया। भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया, लेकिन कांग्रेस की वजह से सरकार नहीं गिरी। कांग्रेस मुलायम सिंह के साथ आ गई। क्यों टूटा गठबंधन: कार सेवकों के विवादित ढांचे के करीब पहुंचने के बाद मुलायम ने सुरक्षाबलों को गोली चलाने का निर्देश दे दिया। सुरक्षाबलों की इस कार्रवाई में 16 कार सेवकों की मौत हो गई, सैकड़ों लोग घायल हुए। कार सेवकों पर गोली चलवाने के बाद कांग्रेस ने सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया। उसे डर था कि कहीं हिंदू वोटर्स उससे अलग न हो जाएं। हालांकि, कांग्रेस के ऐलान से पहले ही मुलायम सिंह यादव ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी। इसके बाद विधानसभा के चुनाव हुए और मुलायम सिंह की पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। 4- मुलायम की फिर सरकार गिरी, गेस्ट हाउस कांड हुआ भाजपा राम मंदिर आंदोलन पर सवार होकर यूपी में तेजी से बढ़ रही थी। उसी समय मंडल आयोग की सिफारिश लागू करने को लेकर बवाल मचा था। भाजपा को रोकने के लिए कांशीराम और मुलायम सिंह ने गठबंधन बनाकर 1993 के विधानसभा चुनाव में उतरे। दोनों को 176 सीटें मिलीं। छोटे दलों के साथ मिलकर सरकार बनी। मुलायम सिंह यादव दूसरी बार सीएम बने, लेकिन सरकार 2 साल से ज्यादा नहीं चल पाई। क्यों टूटा गठबंधन: हर महीने मायावती और कांशीराम लखनऊ आते, मुलायम सिंह ने सवाल-जवाब करते। उस समय बसपा बढ़ती हुई पार्टी थी। कांशीराम किसी भी हालत में दलितों के मुद्दों पर पीछे हटने को तैयार नहीं थे। सपा पिछड़ों और मुसलमानों की हिमायती थी। इसी दौरान जिला पंचायत अध्यक्षों का चुनाव हुआ। दबंग जिला पंचायत अध्यक्ष बन गए। इसे लेकर कांशीराम और मायावती सपा से अलग होने का मूड बना लिया। फिर गेस्ट हाउस कांड हुआ। 5- गेस्ट हाउस कांड के बाद मायावती सरकार मुलायम की सरकार गिरने के बाद भाजपा ने बसपा को समर्थन दिया। मायावती पहली बार सीएम बनीं। उन्होंने 3 जून, 1995 को आधी रात को शपथ ली। लेकिन, यह गठबंधन सिर्फ 4 महीने चला। क्यों टूटा गठबंधन: भाजपा सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन उसने बसपा का समर्थन बाहर से किया। मायावती भाजपा पर मुखर रहीं। वह दिखाना चाहती थीं कि किसी के दबाव में बसपा नहीं है। वह भाजपा के खिलाफ बयान देने लगीं। भाजपा के नेता अपने नेतृत्व पर समर्थन वापस लेने का दबाव डालने लगे। कल्याण सिंह भी मायावती के खिलाफ मुखर हो गए और सरकार गिर गई। 6- दूसरी बार मायावती और भाजपा साथ आए साल 1996 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला। बसपा कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। चुनाव बाद भाजपा और बसपा में समझौता हुआ। 6-6 महीने के मुख्यमंत्री पर सहमति बनी। मायावती 21 मार्च, 1997 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। सरकार में भाजपा भी शामिल हुई, लेकिन 6 महीने बाद मायावती ने कल्याण सिंह को सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया। क्यों टूटा गठबंधन: मायावती ने सत्ता छोड़ने से इनकार कर दिया। काफी दबाव के बाद उन्होंने कल्याण सिंह के अलावा किसी दूसरे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कहा। हालांकि कल्याण सिंह सीएम बने। कुछ दिन बाद मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया। भाजपा ने बसपा के विधायकों सहित उसके कुछ समर्थक दलों को तोड़कर कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। यह सरकार 2002 तक चली। 7- मायावती का तीसरी बार भाजपा से गठबंधन साल 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में फिर त्रिशंकु विधानसभा बनी। भाजपा और बसपा ने पुरानी कटुता भूल कर तीसरी बार गठबंधन किया। मायावती सीएम बनीं, लेकिन फिर पुरानी कहानी सामने आई। यह गठबंधन थोड़ा ज्यादा डेढ़ साल तक चला। क्यों टूटा गठबंधन: भाजपा और बसपा के बीच मतभेद इतने बढ़ गए कि 29 अगस्त, 2003 को यह सरकार भी चली गई। नाटकीय घटनाक्रम में मायावती ने तत्कालीन राज्यपाल से सरकार बरखास्तगी की सिफारिश कर दी। भाजपा ने दावा किया कि उसने तो बरखास्तगी की सिफारिश से पहले ही अपना समर्थन वापसी का पत्र राज्यपाल को सौंप दिया है। विधानसभा तो नहीं भंग हुई, लेकिन भाजपा और बसपा सरकार से बाहर हो गए। भाजपा के समर्थकों और बसपा के लोगों को तोड़कर मुलायम सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी। अब जानिए चुनाव से पहले पार्टियों के गठबंधन बने और सरकार नहीं बनी तो टूटे 1- बसपा और कांग्रेस का गठबंधन: पहली बार 1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ। क्यों टूटा गठबंधन: दोनों की सीटें कम आईं और सरकार नहीं बन पाई। इसलिए बसपा ने कांग्रेस से दूरी बना ली। भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। 2- सपा-कांग्रेस का पहला गठबंधन: लोकसभा चुनाव 2014 में सपा और कांग्रेस की बड़ी हार हुई। उस समय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए सपा और कांग्रेस में गठबंधन हुआ। पूरे प्रदेश में ‘दो लड़कों की जोड़ी’ के कमाल की चर्चा खूब हुई। लेकिन, भाजपा की आंधी में दोनों दल कुछ खास नहीं कर पाए। क्यों टूटा गठबंधन : इस गठबंधन से दोनों दलों को काई फायदा नहीं हुआ और अलग राहें हो गईं। 3- मायावती और अखिलेश का गठबंधन: सपा कांग्रेस की अलग राह होते ही 2 साल बाद 2019 में लोकसभा चुनाव होने थे। अब बुआ (मायावती) – भतीजे (अखिलेश) की जोड़ी आ गई। इसमें रालोद भी शामिल थी। क्यों टूटा गठबंधन: लोकसभा चुनाव में बसपा को 10 और सपा को 5 सीटें मिलीं। उस समय बिना कुछ कहे मायावती ने गठबंधन तोड़ने का ऐलान किया। 4 साल बाद मायावती ने कहा कि अखिलेश उनका और उनके नेताओं का फोन नहीं उठाते, इसलिए उन्होंने गठबंधन तोड़ा। अब जानिए देश में पाला बदलने की सबसे ज्यादा चर्चा किसकी… यूपी ही नहीं, देश के दूसरे राज्यों में भी गठबंधन बनते और टूटते रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा बिहार के सीएम नीतीश कुमार की होती है। वह अपने राजनीति करियर में 9 बार पाला बदल चुके हैं। सीनियर जर्नलिस्ट लव कुमार मिश्रा बताते हैं- नीतीश कुमार की मदद से लालू प्रसाद यादव पहली बार 1990 में सीएम बने थे। हालांकि, बाद में दोनों के रिश्तों में खटास पैदा हो गई। नीतीश ने लालू पर उपेक्षा का आरोप लगा दिया और 1994 में बड़ी कुर्मी रैली आयोजित कर जनता दल से अलग हो गए थे। फिर समता पार्टी बनाई। नीतीश कुमार ने 1995 में वामदलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पाए। इसके बाद नीतीश कुमार सीपीआई से गठबंधन तोड़ एनडीए में शामिल हो गए। 2013 में नीतीश कुमार का एनडीए से मोह भंग हो गया। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया। फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू की पार्टी से गठबंधन किया। सरकार बनाई। लालू यादव के बेटे और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा। नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार पर बयान दिया और फिर अचानक से इस्तीफा दे दिया। फिर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। नीतीश कुमार ने 2020 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा और सफलता भी पाई। लेकिन, 2022 में फिर नीतीश कुमार का एनडीए से मोह भंग हो गया। दो साल बाद 2022 में नीतीश कुमार ने एक बार फिर अपनी स्टाइल में गठबंधन तोड़ा और कहा कि उन्हें भाजपा से दिक्कत होने लगी है। नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दिया और बीजेपी का साथ छोड़ एक घंटे के अंदर राजद के साथ हो गए। नीतीश कुमार ने RJD, कांग्रेस और लेफ्ट के साथ मिलाकर सरकार बना ली और तेजस्वी को फिर से डिप्टी सीएम बना दिया। डेढ़ साल बाद एक बार फिर नीतीश कुमार का आरजेडी से मोह भंग हुआ। इस्तीफा दिया और भाजपा से गठबंधन करके सरकार बना ली। यह खबर भी पढ़ें यूपी में मरीजों का सौदा; प्राइवेट अस्पताल मरीज लाने पर 30% तक दे रहे कमीशन मरीज लेकर आइए, जितना बिल बनेगा उसका 30% तक कर देंगे। मरीज जितना एडवांस जमा करेगा, आपका 50% कमीशन आपको तुरंत दे देंगे। जैसे 10 हजार मरीज ने जमा किए, तो 5 हजार आपको तुरंत मिल जाएंगे। ये ऑफर राजधानी लखनऊ के एक हॉस्पिटल में दिया जा रहा। यूपी के कई प्राइवेट अस्पताल मरीज लाने के लिए एंबुलेंस सेवा देने वालों से खुलेआम सौदा करते हैं। यहां पढ़ें पूरी 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