Road Accident: अल्मोड़ा में हुए हादसे ने ताजा की धूमाकोट की दर्दनाक यादें, 33 ने गंवाई जिंदगी और 22 हुए थे घायल

Road Accident: अल्मोड़ा में हुए हादसे ने ताजा की धूमाकोट की दर्दनाक यादें, 33 ने गंवाई जिंदगी और 22 हुए थे घायल

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<p style=”text-align: justify;”><strong>Almora Road Accident:</strong> अल्मोड़ा जिले के मरचूला में हुए भीषण बस हादसे में 36 लोगों की मौत ने उत्तराखंड में ढाई साल पहले पौड़ी के धूमाकोट में हुए दर्दनाक बस हादसे की यादें ताजा कर दीं. छह जून 2022 को हरिद्वार के लालढांग से जीएमओयू की एक बस बरातियों को लेकर पौड़ी के बीरखाल जा रही थी,जब वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. शाम करीब साढ़े आठ बजे यह बस धूमाकोट के जंगल में सड़क किनारे पैराफिट से टकराई और 500 मीटर गहरी खाई में जा गिरी, जिसमें 33 लोगों की जान चली गई थी और 20 लोग घायल हो गए थे. इस हादसे ने पूरे राज्य को शोक में डाल दिया था और प्रशासन की लापरवाही पर सवाल खड़े किए थे.<br /><br />धूमाकोट के जंगल में बस गिरने के तुरंत बाद दुर्घटना की सूचना वहां से गुजर रहे एक अन्य वाहन चालक ने पुलिस को दी. इसके बाद पुलिस, फायर ब्रिगेड,एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें मौके पर पहुंची और 25 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया. खाई की गहराई और कठिन भौगोलिक स्थितियों के कारण रेस्क्यू अभियान बेहद चुनौतीपूर्ण था. कई घायलों को खाई से निकालकर नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया, जबकि हादसे में जान गंवाने वालों के शवों को बाहर निकालने में भी काफी समय लगा. <br /><br /><strong>ओवरलोडिंग और ओवरस्पीडिंग बनी हादसे की वजह</strong><br />इस दर्दनाक घटना की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया था, जिसने अक्तूबर 2022 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की. रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दुर्घटना का मुख्य कारण बस में सवारियों की संख्या का अधिक होना और तेज गति से बस का चलाया जाना था. बस निर्धारित क्षमता से कहीं अधिक यात्रियों को लेकर चल रही थी, जो कि उत्तराखंड की पहाड़ी सड़कों पर जोखिम भरा होता है. इसके साथ ही, चालक ने बस को निर्धारित गति से तेज चलाया, जिसके चलते वह नियंत्रण खो बैठा और बस खाई में जा गिरी. रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि लालढांग से धूमाकोट तक के रास्ते में लगभग 11 बैरियर और चेक प्वाइंट थे,लेकिन कहीं भी बस की चेकिंग नहीं की गई, जो प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है.<br /><br /><strong>प्रशासनिक लापरवाही पर उठे सवाल</strong><br />धूमाकोट बस हादसे के बाद उत्तराखंड में ओवरलोडिंग और ओवरस्पीडिंग की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार और प्रशासन पर दबाव बढ़ा.राज्य में चलने वाली बसों की नियमित जांच और चेक प्वाइंट्स पर कड़ी निगरानी का वादा किया गया, ताकि यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. इसके बावजूद हाल के मरचूला हादसे से यह साफ हो गया कि प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है.ओवरलोडिंग और तेज रफ्तार की समस्या अभी भी बरकरार है और यह यात्रियों की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बनी हुई है.<br /><br /><strong>यात्री सुरक्षा की अनदेखी</strong><br />धूमाकोट और मरचूला दोनों हादसे यह दर्शाते हैं कि यात्रियों की सुरक्षा के प्रति राज्य में पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैं. पहाड़ी सड़कों पर बसों की क्षमता और गति को लेकर नियमों का पालन जरूरी है.यात्रियों की सुरक्षा के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता है और प्रशासन को चाहिए कि वे नियमित निरीक्षण और निगरानी करें. <br /><br /><strong>सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी</strong><br />धूमाकोट के हादसे के बाद जिस तरह की लापरवाही सामने आई, उससे यह स्पष्ट है कि यात्री सुरक्षा के लिए प्रशासन को अधिक सतर्क होना पड़ेगा. पिछले हादसे से सबक न लेने का परिणाम यह है कि अल्मोड़ा जैसे अन्य क्षेत्रों में भी यात्री परिवहन की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है. यात्रियों की सुरक्षा के लिए बसों की नियमित जांच और सड़कों की मरम्मत पर ध्यान देना आवश्यक है.&nbsp;</p>
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<p style=”text-align: justify;”><strong>Almora Road Accident:</strong> अल्मोड़ा जिले के मरचूला में हुए भीषण बस हादसे में 36 लोगों की मौत ने उत्तराखंड में ढाई साल पहले पौड़ी के धूमाकोट में हुए दर्दनाक बस हादसे की यादें ताजा कर दीं. छह जून 2022 को हरिद्वार के लालढांग से जीएमओयू की एक बस बरातियों को लेकर पौड़ी के बीरखाल जा रही थी,जब वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. शाम करीब साढ़े आठ बजे यह बस धूमाकोट के जंगल में सड़क किनारे पैराफिट से टकराई और 500 मीटर गहरी खाई में जा गिरी, जिसमें 33 लोगों की जान चली गई थी और 20 लोग घायल हो गए थे. इस हादसे ने पूरे राज्य को शोक में डाल दिया था और प्रशासन की लापरवाही पर सवाल खड़े किए थे.<br /><br />धूमाकोट के जंगल में बस गिरने के तुरंत बाद दुर्घटना की सूचना वहां से गुजर रहे एक अन्य वाहन चालक ने पुलिस को दी. इसके बाद पुलिस, फायर ब्रिगेड,एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें मौके पर पहुंची और 25 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया. खाई की गहराई और कठिन भौगोलिक स्थितियों के कारण रेस्क्यू अभियान बेहद चुनौतीपूर्ण था. कई घायलों को खाई से निकालकर नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया, जबकि हादसे में जान गंवाने वालों के शवों को बाहर निकालने में भी काफी समय लगा. <br /><br /><strong>ओवरलोडिंग और ओवरस्पीडिंग बनी हादसे की वजह</strong><br />इस दर्दनाक घटना की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया था, जिसने अक्तूबर 2022 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की. रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दुर्घटना का मुख्य कारण बस में सवारियों की संख्या का अधिक होना और तेज गति से बस का चलाया जाना था. बस निर्धारित क्षमता से कहीं अधिक यात्रियों को लेकर चल रही थी, जो कि उत्तराखंड की पहाड़ी सड़कों पर जोखिम भरा होता है. इसके साथ ही, चालक ने बस को निर्धारित गति से तेज चलाया, जिसके चलते वह नियंत्रण खो बैठा और बस खाई में जा गिरी. रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि लालढांग से धूमाकोट तक के रास्ते में लगभग 11 बैरियर और चेक प्वाइंट थे,लेकिन कहीं भी बस की चेकिंग नहीं की गई, जो प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है.<br /><br /><strong>प्रशासनिक लापरवाही पर उठे सवाल</strong><br />धूमाकोट बस हादसे के बाद उत्तराखंड में ओवरलोडिंग और ओवरस्पीडिंग की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार और प्रशासन पर दबाव बढ़ा.राज्य में चलने वाली बसों की नियमित जांच और चेक प्वाइंट्स पर कड़ी निगरानी का वादा किया गया, ताकि यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. इसके बावजूद हाल के मरचूला हादसे से यह साफ हो गया कि प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है.ओवरलोडिंग और तेज रफ्तार की समस्या अभी भी बरकरार है और यह यात्रियों की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बनी हुई है.<br /><br /><strong>यात्री सुरक्षा की अनदेखी</strong><br />धूमाकोट और मरचूला दोनों हादसे यह दर्शाते हैं कि यात्रियों की सुरक्षा के प्रति राज्य में पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैं. पहाड़ी सड़कों पर बसों की क्षमता और गति को लेकर नियमों का पालन जरूरी है.यात्रियों की सुरक्षा के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता है और प्रशासन को चाहिए कि वे नियमित निरीक्षण और निगरानी करें. <br /><br /><strong>सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी</strong><br />धूमाकोट के हादसे के बाद जिस तरह की लापरवाही सामने आई, उससे यह स्पष्ट है कि यात्री सुरक्षा के लिए प्रशासन को अधिक सतर्क होना पड़ेगा. पिछले हादसे से सबक न लेने का परिणाम यह है कि अल्मोड़ा जैसे अन्य क्षेत्रों में भी यात्री परिवहन की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है. यात्रियों की सुरक्षा के लिए बसों की नियमित जांच और सड़कों की मरम्मत पर ध्यान देना आवश्यक है.&nbsp;</p>
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