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<p style=”text-align: justify;”><strong>UCC in Uttarakhand:</strong> उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा लागू यूनिफॉर्म सिविल कोड (यू.सी.सी.) 2025 को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार से छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिए छह सप्ताह बाद की तिथि निर्धारित की है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर यू.सी.सी. 2025 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी है. उनकी याचिका में मुख्य रूप से ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ के प्रावधानों पर आपत्ति जताई गई है. नेगी का तर्क है कि यह प्रावधान असंवैधानिक हैं और समाज की स्वीकृत परंपराओं के विरुद्ध हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कोड देश के विभिन्न धार्मिक पहचान को खत्म कर सकता है- याचिकाकर्ता<br /></strong>उनके अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता ने बताया कि याचिका में मुस्लिम, पारसी, ईसाई और अन्य समुदायों की वैवाहिक परंपराओं की अनदेखी किए जाने को भी चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता का कहना है कि यह कोड देश के विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों की विशिष्ट पहचान को खत्म कर सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>इसके अलावा, देहरादून निवासी एलमसुद्दीन सिद्दीकी ने भी उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की है, जिसमें यू.सी.सी. 2025 के कई प्रावधानों को चुनौती दी गई है. उन्होंने आरोप लगाया है कि यह कोड अल्पसंख्यकों के पारंपरिक रीति-रिवाजों और धार्मिक मान्यताओं की अनदेखी करता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>UCC स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है- याचिकाकर्ता<br /></strong>याचिकाकर्ता का कहना है कि नया नागरिक संहिता धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 25-28) का उल्लंघन करता है, जो संविधान द्वारा सभी नागरिकों को प्रदत्त है. उन्होंने यह भी मांग की है कि राज्य सरकार यू.सी.सी. लागू करने से पहले सभी समुदायों से परामर्श करे और उनकी धार्मिक परंपराओं को शामिल करने पर विचार करे.</p>
<p style=”text-align: justify;”>उच्च न्यायालय ने इन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड सरकार को छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि वह इस मामले में सभी पक्षों की दलीलों को ध्यानपूर्वक सुनेगी और उसके बाद कोई निर्णय लेगी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong> <iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/v7M9gZ8QkFU?si=eLkaN3GOepBcsPRJ” width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe> </strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>राज्य सरकार के अधिवक्ता ने क्या कहा? <br /></strong>राज्य सरकार का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यू.सी.सी. 2025 को संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत लागू किया गया है, जो समान नागरिक संहिता की परिकल्पना करता है. उन्होंने कहा कि इस कानून का उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए समान विवाह, तलाक, संपत्ति और उत्तराधिकार के नियम लागू करना है. अब इस मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी, जब राज्य सरकार अपना पक्ष प्रस्तुत करेगी. तब तक यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार यू.सी.सी. को लेकर क्या दलीलें पेश करती है और न्यायालय किस दिशा में आगे बढ़ता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>यह मामला उत्तराखंड के साथ-साथ पूरे देश में महत्वपूर्ण बनता जा रहा है, क्योंकि यू.सी.सी. को लेकर विभिन्न समुदायों और संगठनों के मत विभाजित हैं. जहां कुछ इसे समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानते हैं, वहीं अन्य इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरा बता रहे हैं. उच्च न्यायालय का निर्णय इस बहस में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>यह भी पढ़ें- <strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/uttarakhand-upcl-will-explain-the-benefits-of-smart-prepaid-meters-to-the-villagers-ann-2882749″>उत्तराखंड में स्मार्ट प्रीपेड मीटर पर बढ़ते बवाल के बीच, यूपीसीएल ने लिया बड़ा फैसला</a></strong></p>
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<p style=”text-align: justify;”><strong>UCC in Uttarakhand:</strong> उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा लागू यूनिफॉर्म सिविल कोड (यू.सी.सी.) 2025 को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार से छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिए छह सप्ताह बाद की तिथि निर्धारित की है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर यू.सी.सी. 2025 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी है. उनकी याचिका में मुख्य रूप से ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ के प्रावधानों पर आपत्ति जताई गई है. नेगी का तर्क है कि यह प्रावधान असंवैधानिक हैं और समाज की स्वीकृत परंपराओं के विरुद्ध हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कोड देश के विभिन्न धार्मिक पहचान को खत्म कर सकता है- याचिकाकर्ता<br /></strong>उनके अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता ने बताया कि याचिका में मुस्लिम, पारसी, ईसाई और अन्य समुदायों की वैवाहिक परंपराओं की अनदेखी किए जाने को भी चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता का कहना है कि यह कोड देश के विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों की विशिष्ट पहचान को खत्म कर सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>इसके अलावा, देहरादून निवासी एलमसुद्दीन सिद्दीकी ने भी उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की है, जिसमें यू.सी.सी. 2025 के कई प्रावधानों को चुनौती दी गई है. उन्होंने आरोप लगाया है कि यह कोड अल्पसंख्यकों के पारंपरिक रीति-रिवाजों और धार्मिक मान्यताओं की अनदेखी करता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>UCC स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है- याचिकाकर्ता<br /></strong>याचिकाकर्ता का कहना है कि नया नागरिक संहिता धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 25-28) का उल्लंघन करता है, जो संविधान द्वारा सभी नागरिकों को प्रदत्त है. उन्होंने यह भी मांग की है कि राज्य सरकार यू.सी.सी. लागू करने से पहले सभी समुदायों से परामर्श करे और उनकी धार्मिक परंपराओं को शामिल करने पर विचार करे.</p>
<p style=”text-align: justify;”>उच्च न्यायालय ने इन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड सरकार को छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि वह इस मामले में सभी पक्षों की दलीलों को ध्यानपूर्वक सुनेगी और उसके बाद कोई निर्णय लेगी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong> <iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/v7M9gZ8QkFU?si=eLkaN3GOepBcsPRJ” width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe> </strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>राज्य सरकार के अधिवक्ता ने क्या कहा? <br /></strong>राज्य सरकार का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यू.सी.सी. 2025 को संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत लागू किया गया है, जो समान नागरिक संहिता की परिकल्पना करता है. उन्होंने कहा कि इस कानून का उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए समान विवाह, तलाक, संपत्ति और उत्तराधिकार के नियम लागू करना है. अब इस मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी, जब राज्य सरकार अपना पक्ष प्रस्तुत करेगी. तब तक यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार यू.सी.सी. को लेकर क्या दलीलें पेश करती है और न्यायालय किस दिशा में आगे बढ़ता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>यह मामला उत्तराखंड के साथ-साथ पूरे देश में महत्वपूर्ण बनता जा रहा है, क्योंकि यू.सी.सी. को लेकर विभिन्न समुदायों और संगठनों के मत विभाजित हैं. जहां कुछ इसे समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानते हैं, वहीं अन्य इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरा बता रहे हैं. उच्च न्यायालय का निर्णय इस बहस में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>यह भी पढ़ें- <strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/uttarakhand-upcl-will-explain-the-benefits-of-smart-prepaid-meters-to-the-villagers-ann-2882749″>उत्तराखंड में स्मार्ट प्रीपेड मीटर पर बढ़ते बवाल के बीच, यूपीसीएल ने लिया बड़ा फैसला</a></strong></p>
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UCC पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय की सुनवाई, राज्य सरकार से 6 सप्ताह में जवाब मांगा
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