Uttarakhand: उत्तराखंड के इन जिलों में हिमस्खलन की आशंका, DGRE ने जारी किया ऑरेंज अलर्ट

Uttarakhand: उत्तराखंड के इन जिलों में हिमस्खलन की आशंका, DGRE ने जारी किया ऑरेंज अलर्ट

<p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand News Today:</strong> उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में हिमस्खलन (एवलॉन्च) एक सामान्य घटना है, लेकिन कभी-कभी यह घटनाएं गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं. हाल ही में चमोली जिले में हिमस्खलन की आशंका को देखते हुए रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान (DGRE) ने ऑरेंज अलर्ट जारी किया है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>इसके अलावा उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में येलो अलर्ट भी जारी किया गया है. हिमस्खलन ग्लेशियर या ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में बर्फ के अचानक खिसकने की प्रक्रिया है. यह तब होता है जब बर्फ की परतें ढलान पर अपना संतुलन खो देती हैं और तेजी से नीचे गिरने लगती हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्यों होते हैं हिमस्खलन?</strong><br />वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमस्खलन मुख्य रूप से तब होता है जब क्षेत्र में भारी बर्फबारी के बाद अचानक चटक धूप निकलती है. इससे ताजा गिरी बर्फ पिघलने लगती है और ग्लेशियर की स्थिरता प्रभावित होती है. बर्फ का भार बढ़ने से ढलान क्षेत्र पर दबाव बढ़ता है और बर्फ खिसकने लगती है. हिमस्खलन की गति 30 से 300 मीटर प्रति सेकंड तक हो सकती है, जो इसे खतरनाक बनाती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र हजारों ग्लेशियरों से भरे हैं, जहां समय-समय पर हिमस्खलन होता रहता है. यह घटनाएं सामान्य मानी जाती हैं, लेकिन क्लाइमेट चेंज के कारण इनकी आवृत्ति बढ़ गई है. हाल ही में 27 और 28 दिसंबर को भारी बर्फबारी के बाद चमोली जिले में हिमस्खलन की चेतावनी दी गई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन के अनुसार, हिमस्खलन आमतौर पर उन क्षेत्रों में होता है जहां इंसानी आबादी नहीं होती. लेकिन यदि यह खतरा आबादी वाले क्षेत्रों में हो, तो लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया जाता है. प्रशासन ने चमोली समेत अन्य हिमालयी जिलों में स्थिति को लेकर सतर्कता बढ़ा दी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>हिमस्खलन से श्रद्धालुओं में दहशत</strong><br />उत्तराखंड में पहले भी हिमस्खलन की कई घटनाएं हो चुकी हैं. केदारनाथ (मई 2023) में चार दिनों में तीन बार हिमस्खलन हुआ, जिससे श्रद्धालुओं में दहशत फैल गई. इसी तरह उत्तरकाशी (सितंबर-अक्टूबर 2022) में द्रौपदी पर्वत पर हुए हिमस्खलन में ट्रेकिंग दल के कई सदस्य हताहत हुए.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>नुकसान कम करने के उपाय&nbsp;</strong><br />वैज्ञानिक डीपी डोभाल का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमस्खलन की घटनाओं में वृद्धि हो रही है. भारी बर्फबारी के बाद तेज धूप से बर्फ का तेजी से पिघलना इसका प्रमुख कारण है. इसके अलावा ढलानों पर बर्फ का भार बढ़ने से भी घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>हालांकि हिमस्खलन को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता, लेकिन इससे होने वाले जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकता है. इसके तहत कुछ बुनियादी बातों का पालन करना होगा. आइये समझते हैं कैसे हिमस्खलन से जनहानि को कम कर सकते हैं</p>
<p style=”text-align: justify;”>1. अलर्ट सिस्टम: आधुनिक तकनीकों जैसे डॉप्लर रडार, सेंसर और सेटेलाइट डाटा का उपयोग कर समय पर अलर्ट जारी किया जा सकता है.<br />2. आपदा प्रबंधन: संवेदनशील क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन टीमों की तैनाती और स्थानीय लोगों को सतर्क करना.<br />3. स्थानीय निकासी: संभावित खतरे वाले इलाकों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>DGRE और प्रशासन की तैयारी</strong><br />रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान ने चमोली जिले में हिमस्खलन की चेतावनी जारी कर प्रशासन को सतर्क किया है. प्रशासन ने ट्रैकिंग और पर्वतारोहण गतिविधियों पर रोक लगाई है और संवेदनशील इलाकों में अलर्ट बढ़ा दिया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>आपदा सचिव ने बताया कि मौसम विभाग की ओर से मिले आंकड़ों के आधार पर कदम उठाए जा रहे हैं. डॉप्लर रडार और अन्य उपकरणों से हिमस्खलन संभावित क्षेत्रों की निगरानी की जा रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कहां होता है हिमस्खलन</strong><br />वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमस्खलन आमतौर पर 2000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर होता है. ग्लेशियर क्षेत्र 3800 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित होते हैं, जहां बर्फबारी के बाद यह घटनाएं अधिक होती हैं. उत्तराखंड में हिमस्खलन एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन समय पर चेतावनी और उचित तैयारी से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है. प्रशासन और वैज्ञानिक संस्थानों का प्रयास है कि हिमस्खलन के कारण किसी भी प्रकार के जानमाल का नुकसान न हो.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें: <a title=”संभल में पुलिस चौकी पर सियासत के बीच बड़ा खुलासा! ASI की मंजूरी के बिना हो रहा निर्माण?” href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/sambhal-news-politics-over-police-chowki-in-sambhal-construction-going-on-without-the-approval-of-asi-ann-2853719″ target=”_blank” rel=”noopener”>संभल में पुलिस चौकी पर सियासत के बीच बड़ा खुलासा! ASI की मंजूरी के बिना हो रहा निर्माण?</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand News Today:</strong> उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में हिमस्खलन (एवलॉन्च) एक सामान्य घटना है, लेकिन कभी-कभी यह घटनाएं गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं. हाल ही में चमोली जिले में हिमस्खलन की आशंका को देखते हुए रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान (DGRE) ने ऑरेंज अलर्ट जारी किया है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>इसके अलावा उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में येलो अलर्ट भी जारी किया गया है. हिमस्खलन ग्लेशियर या ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में बर्फ के अचानक खिसकने की प्रक्रिया है. यह तब होता है जब बर्फ की परतें ढलान पर अपना संतुलन खो देती हैं और तेजी से नीचे गिरने लगती हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्यों होते हैं हिमस्खलन?</strong><br />वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमस्खलन मुख्य रूप से तब होता है जब क्षेत्र में भारी बर्फबारी के बाद अचानक चटक धूप निकलती है. इससे ताजा गिरी बर्फ पिघलने लगती है और ग्लेशियर की स्थिरता प्रभावित होती है. बर्फ का भार बढ़ने से ढलान क्षेत्र पर दबाव बढ़ता है और बर्फ खिसकने लगती है. हिमस्खलन की गति 30 से 300 मीटर प्रति सेकंड तक हो सकती है, जो इसे खतरनाक बनाती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र हजारों ग्लेशियरों से भरे हैं, जहां समय-समय पर हिमस्खलन होता रहता है. यह घटनाएं सामान्य मानी जाती हैं, लेकिन क्लाइमेट चेंज के कारण इनकी आवृत्ति बढ़ गई है. हाल ही में 27 और 28 दिसंबर को भारी बर्फबारी के बाद चमोली जिले में हिमस्खलन की चेतावनी दी गई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन के अनुसार, हिमस्खलन आमतौर पर उन क्षेत्रों में होता है जहां इंसानी आबादी नहीं होती. लेकिन यदि यह खतरा आबादी वाले क्षेत्रों में हो, तो लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया जाता है. प्रशासन ने चमोली समेत अन्य हिमालयी जिलों में स्थिति को लेकर सतर्कता बढ़ा दी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>हिमस्खलन से श्रद्धालुओं में दहशत</strong><br />उत्तराखंड में पहले भी हिमस्खलन की कई घटनाएं हो चुकी हैं. केदारनाथ (मई 2023) में चार दिनों में तीन बार हिमस्खलन हुआ, जिससे श्रद्धालुओं में दहशत फैल गई. इसी तरह उत्तरकाशी (सितंबर-अक्टूबर 2022) में द्रौपदी पर्वत पर हुए हिमस्खलन में ट्रेकिंग दल के कई सदस्य हताहत हुए.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>नुकसान कम करने के उपाय&nbsp;</strong><br />वैज्ञानिक डीपी डोभाल का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमस्खलन की घटनाओं में वृद्धि हो रही है. भारी बर्फबारी के बाद तेज धूप से बर्फ का तेजी से पिघलना इसका प्रमुख कारण है. इसके अलावा ढलानों पर बर्फ का भार बढ़ने से भी घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>हालांकि हिमस्खलन को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता, लेकिन इससे होने वाले जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकता है. इसके तहत कुछ बुनियादी बातों का पालन करना होगा. आइये समझते हैं कैसे हिमस्खलन से जनहानि को कम कर सकते हैं</p>
<p style=”text-align: justify;”>1. अलर्ट सिस्टम: आधुनिक तकनीकों जैसे डॉप्लर रडार, सेंसर और सेटेलाइट डाटा का उपयोग कर समय पर अलर्ट जारी किया जा सकता है.<br />2. आपदा प्रबंधन: संवेदनशील क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन टीमों की तैनाती और स्थानीय लोगों को सतर्क करना.<br />3. स्थानीय निकासी: संभावित खतरे वाले इलाकों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>DGRE और प्रशासन की तैयारी</strong><br />रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान ने चमोली जिले में हिमस्खलन की चेतावनी जारी कर प्रशासन को सतर्क किया है. प्रशासन ने ट्रैकिंग और पर्वतारोहण गतिविधियों पर रोक लगाई है और संवेदनशील इलाकों में अलर्ट बढ़ा दिया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>आपदा सचिव ने बताया कि मौसम विभाग की ओर से मिले आंकड़ों के आधार पर कदम उठाए जा रहे हैं. डॉप्लर रडार और अन्य उपकरणों से हिमस्खलन संभावित क्षेत्रों की निगरानी की जा रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कहां होता है हिमस्खलन</strong><br />वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमस्खलन आमतौर पर 2000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर होता है. ग्लेशियर क्षेत्र 3800 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित होते हैं, जहां बर्फबारी के बाद यह घटनाएं अधिक होती हैं. उत्तराखंड में हिमस्खलन एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन समय पर चेतावनी और उचित तैयारी से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है. प्रशासन और वैज्ञानिक संस्थानों का प्रयास है कि हिमस्खलन के कारण किसी भी प्रकार के जानमाल का नुकसान न हो.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें: <a title=”संभल में पुलिस चौकी पर सियासत के बीच बड़ा खुलासा! ASI की मंजूरी के बिना हो रहा निर्माण?” href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/sambhal-news-politics-over-police-chowki-in-sambhal-construction-going-on-without-the-approval-of-asi-ann-2853719″ target=”_blank” rel=”noopener”>संभल में पुलिस चौकी पर सियासत के बीच बड़ा खुलासा! ASI की मंजूरी के बिना हो रहा निर्माण?</a></strong></p>  उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड Ghazipur: नगर पंचायत अध्यक्ष रियाज अंसारी धोखधड़ी के आरोप में गिरफ्तार, जेल में बिगड़ी तबीयत