‘केशव प्रसाद मौर्य, दिल्ली का मोहरा बन गए हैं। दिल्ली के वाईफाई के पासवर्ड बन गए हैं। क्या सरकार ऐसे चलेगी? दिल्ली वाले किसी से मिलते, तो अब लखनऊ वाले भी लोगों से मिलने लगे हैं।’ (अखिलेश यादव ने X पर लिखा) ‘अखिलेश यादव खुद कांग्रेस का मोहरा हैं। वह अपनी पार्टी को संभालने पर ध्यान दें। बीजेपी 2017 की तरह 2027 भी जीतेगी।’ (केशव मौर्य ने X पर जवाब दिया) सपा प्रमुख अखिलेश यादव और यूपी सरकार के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य दोनों ओबीसी के बड़े चेहरे हैं। लेकिन, दोनों के बीच छोटे-बड़े मुद्दों को लेकर जुबानी जंग चलती रहती है। अखिलेश केशव को भाजपा और योगी सरकार में कमजोर दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। केशव उन्हें सिर्फ यादव और मुस्लिमों का नेता साबित करने में पूरी ताकत लगाते हैं। केशव को कमजोर करने से सपा को क्या फायदा होगा? क्या PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की राह में भाजपा से चुनौती केशव ही हैं? हमने पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स और दोनों नेताओं के नजदीकियों से इस पर बात की। पढ़िए इसके पीछे की कहानी… सबसे पहले जानिए दोनों के बीच विवाद की शुरुआत कहां से हुई
भाजपा ने यूपी में पिछड़े वर्ग को साधने के लिए 2016 में केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। तब अखिलेश यादव सीएम थे। 2017 में विधानसभा चुनाव केशव मौर्य की अगुवाई में ही लड़ा गया। केशव के चेहरे के दम पर भाजपा को गैर यादव छोड़कर सभी पिछड़ी जातियों का समर्थन भी मिला। भाजपा ने सपा को विधानसभा चुनाव में हरा दिया। उस दौरान केशव मौर्य मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। हालांकि वह सीएम नहीं बन पाए और डिप्टी सीएम बनकर संतोष करना पड़ा। आरएसएस और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दीर्घकालिक राष्ट्रवाद की राजनीति के लिए योगी आदित्यनाथ को सरकार की कमान सौंपी। इस हार के बाद से ही अखिलेश के निशाने पर केशव आ गए। तब से अखिलेश लगातार केशव के जरिए यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा में पिछड़े वर्ग के नेताओं का कोई वजूद नहीं। अखिलेश और केशव के बीच राजनीतिक जंग 2017 में विधान परिषद के सदन से और तेज हो गई। सदन में अखिलेश ने केशव पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए पर्सनल अटैक करना शुरू कर दिया। अखिलेश ने कहा, पिछड़े वर्ग के नेता केशव सरकार में भी पिछड़े हैं। एनेक्सी में चेंबर से उनकी नेम प्लेट हटवा दी गई। उन्होंने यहां तक कहा कि केशव सरकार में रहते हुए भी विपक्ष में हैं। उसके बाद केशव ने भी अखिलेश पर जमकर हमला बोला। केशव को निशाने पर लेने की 3 मुख्य वजह… 1- सपा के PDA का मजबूत तोड़ हैं केशव: राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, बीते 10 साल में केशव प्रसाद मौर्य पिछड़े वर्ग के बड़े नेता बने हैं। भाजपा उन्हें न केवल प्रदेश, देश में भी पिछड़े वर्ग का चेहरा बना रही है। गैर यादव पिछड़े वर्ग की ज्यादातर जातियों में केशव की स्वीकार्यता है। भाजपा ही नहीं, सपा, बसपा, कांग्रेस सहित अन्य दलों के पिछड़े वर्ग के नेताओं से भी केशव के करीबी रिश्ते हैं। ऐसे में सपा के PDA के पिछड़े वर्ग में सेंध लगाने की क्षमता केशव मौर्य में ही है। 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती के मुद्दे पर केशव ही विपक्ष का सामना कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्ट कहते हैं- अखिलेश यादव को पिछड़े वर्ग की राजनीति में सबसे ज्यादा खतरा केशव प्रसाद मौर्य से ही महसूस होता है। अखिलेश 2017 से लगातार केशव पर हमलावर हैं। केशव ने 2017 में एनेक्सी में पंचम तल पर अपनी नेम प्लेट लगवाई थी। उसे सचिवालय के प्रशासन विभाग ने हटवा दिया था। तब से आज तक अखिलेश पिछड़े वर्ग को संदेश देने की कोशिश करते हैं कि भाजपा में पिछड़े वर्ग के नेता केशव का ही कोई सम्मान नहीं। 2- क्योंकि.. अपमान नहीं भूलते अखिलेश: अखिलेश यादव को करीब से जानने वाले बताते हैं कि वह सब कुछ सहन कर सकते हैं, लेकिन अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते। केशव मौर्य ने 2023 में विधानसभा में बजट सत्र में चर्चा के दौरान अखिलेश को लेकर कहा था कि ऐसा लगता है ‘सैफई की जमीन बेचकर सब कुछ बनवा दिया’। इस पर अखिलेश ने तुरंत पलटवार करते हुए कहा था, ‘तुम अपने पिताजी से पैसा लाते हो क्या?’ उसके बाद से ही न केवल अखिलेश, पूरी सपा केशव पर निशाना साधती रहती है। 3- 13 करोड़ ओबीसी वोट-बैंक: यह तीसरी सबसे बड़ी वजह है। प्रदेश में 13 करोड़ से अधिक पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं का वोट बैंक है। यादवों के बाद कुर्मी वोटर सबसे ज्यादा ओबीसी में हैं। यही वजह है, केशव हमेशा सपा के निशाने पर रहते हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि भाजपा में स्वतंत्रदेव जैसे भी नेता हैं, जो ओबीसी से आते हैं। लेकिन अखिलेश उन पर हमलावर नहीं होते, जितने केशव प्रसाद मौर्य पर। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं- डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भाजपा में ओबीसी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। अखिलेश को पता है, केशव ही उनके सामने मोर्चा संभाल सकते हैं। PDA के खिलाफ केशव ही भाजपा की मजबूत काट हैं। इसलिए अखिलेश कभी स्टूल पर बैठाने, तो कभी नेम प्लेट हटाने का मुद्दा उठाते हैं। केशव की अहमियत भी बनी रहती है
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, अखिलेश जब केशव पर हमला करते हैं तो इससे भाजपा की राजनीति में केशव का कद बढ़ता ही है। उनके समर्थक भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह बताने का मौका नहीं छोड़ते कि केशव ही अखिलेश से मोर्चा ले सकते। इसके जरिए ही केशव की राजनीति भी आगे बढ़ रही है। लोकसभा चुनाव के बाद तेज हुए हमले
जानकारों का मानना है, लोकसभा चुनाव में अखिलेश का PDA का फॉर्मूला सफल रहा है। सपा के 37 सांसदों में से 23 पिछड़े वर्ग से हैं। इनमें 7 कुर्मी, 6 यादव, 2 मौर्य-कुशवाहा, 2 निषाद, लोधी, शाक्य और राजभर समाज से एक-एक सांसद है। भाजपा के 33 में से मात्र 9 सांसद पिछड़े वर्ग के हैं। उसके बाद से अखिलेश ने केशव पर हमले तेज कर दिए हैं। अखिलेश कभी उन्हें ‘दिल्ली का मोहरा’ बताते हैं, तो कभी ‘सौ लाओ सरकार बनाओ’ का ऑफर देते हैं। अब अखिलेश बताने की कोशिश कर रहे हैं कि पिछड़े वर्ग में केशव की कोई लोकप्रियता नहीं। सपा के राजनीतिक गुलदस्ते में पिछड़े वर्ग की सभी प्रमुख जातियों के सांसद और विधायक हैं। इसके पहले सपा सिराथू से मैसेज दे चुकी है। सपा प्रत्याशी पल्लवी पटेल ने विधानसभा चुनाव- 2022 में सिराथू से भाजपा प्रत्याशी और तत्कालीन डिप्टी सीएम केशव मौर्य को हराया था। उसके बाद से सपा लगातार संदेश देने की कोशिश कर रही है कि केशव पिछड़े वर्ग के नेता नहीं हैं। पिछड़ा वर्ग बहुल सीट सिराथू में सपा ने उन्हें चुनाव हराया। मोदी-योगी पर नहीं करते पर्सनल अटैक
जानकार मानते हैं, अखिलेश यादव कभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी पर सीधा अटैक नहीं करते। जब कभी केंद्र या प्रदेश सरकार के नीतिगत निर्णय का विरोध भी करना होता है, तो घुमा-फिराकर हमला बोलते हैं। केशव मौर्य और अखिलेश यादव की ओर से ही एक-दूसरे पर पर्सनल अटैक किया जाता है। यह खबर भी पढ़ें योगी बोले- कांग्रेस-सपा में जिन्ना की आत्मा; अलीगढ़ में कहा- ये वापस आए तो अराजकता फैलाएंगे सीएम योगी ने कहा- गुंडागर्दी फैलाने वालों को छूट नहीं देंगे। अगर किसी ने बहन-बेटियों की इज्जत पर हाथ डालने का दुस्साहस किया तो इसका रास्ता उन्हें सीधे यमराज के घर पहुंचा देगा। सीएम ने कन्नौज रेप कांड का जिक्र किया। उन्होंने कहा- सपा का ब्रांड कन्नौज का नवाब ब्रांड है। कांग्रेस हो या सपा, इनके अंदर जिन्ना की आत्मा घुस गई है। अगर ये लोग वापस आएंगे तो अराजकता फैलाएंगे। सीएम ने अलीगढ़ के खैर में बुधवार को ये बातें कहीं। यहां पढ़ें पूरी खबर ‘केशव प्रसाद मौर्य, दिल्ली का मोहरा बन गए हैं। दिल्ली के वाईफाई के पासवर्ड बन गए हैं। क्या सरकार ऐसे चलेगी? दिल्ली वाले किसी से मिलते, तो अब लखनऊ वाले भी लोगों से मिलने लगे हैं।’ (अखिलेश यादव ने X पर लिखा) ‘अखिलेश यादव खुद कांग्रेस का मोहरा हैं। वह अपनी पार्टी को संभालने पर ध्यान दें। बीजेपी 2017 की तरह 2027 भी जीतेगी।’ (केशव मौर्य ने X पर जवाब दिया) सपा प्रमुख अखिलेश यादव और यूपी सरकार के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य दोनों ओबीसी के बड़े चेहरे हैं। लेकिन, दोनों के बीच छोटे-बड़े मुद्दों को लेकर जुबानी जंग चलती रहती है। अखिलेश केशव को भाजपा और योगी सरकार में कमजोर दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। केशव उन्हें सिर्फ यादव और मुस्लिमों का नेता साबित करने में पूरी ताकत लगाते हैं। केशव को कमजोर करने से सपा को क्या फायदा होगा? क्या PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की राह में भाजपा से चुनौती केशव ही हैं? हमने पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स और दोनों नेताओं के नजदीकियों से इस पर बात की। पढ़िए इसके पीछे की कहानी… सबसे पहले जानिए दोनों के बीच विवाद की शुरुआत कहां से हुई
भाजपा ने यूपी में पिछड़े वर्ग को साधने के लिए 2016 में केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। तब अखिलेश यादव सीएम थे। 2017 में विधानसभा चुनाव केशव मौर्य की अगुवाई में ही लड़ा गया। केशव के चेहरे के दम पर भाजपा को गैर यादव छोड़कर सभी पिछड़ी जातियों का समर्थन भी मिला। भाजपा ने सपा को विधानसभा चुनाव में हरा दिया। उस दौरान केशव मौर्य मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। हालांकि वह सीएम नहीं बन पाए और डिप्टी सीएम बनकर संतोष करना पड़ा। आरएसएस और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दीर्घकालिक राष्ट्रवाद की राजनीति के लिए योगी आदित्यनाथ को सरकार की कमान सौंपी। इस हार के बाद से ही अखिलेश के निशाने पर केशव आ गए। तब से अखिलेश लगातार केशव के जरिए यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा में पिछड़े वर्ग के नेताओं का कोई वजूद नहीं। अखिलेश और केशव के बीच राजनीतिक जंग 2017 में विधान परिषद के सदन से और तेज हो गई। सदन में अखिलेश ने केशव पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए पर्सनल अटैक करना शुरू कर दिया। अखिलेश ने कहा, पिछड़े वर्ग के नेता केशव सरकार में भी पिछड़े हैं। एनेक्सी में चेंबर से उनकी नेम प्लेट हटवा दी गई। उन्होंने यहां तक कहा कि केशव सरकार में रहते हुए भी विपक्ष में हैं। उसके बाद केशव ने भी अखिलेश पर जमकर हमला बोला। केशव को निशाने पर लेने की 3 मुख्य वजह… 1- सपा के PDA का मजबूत तोड़ हैं केशव: राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, बीते 10 साल में केशव प्रसाद मौर्य पिछड़े वर्ग के बड़े नेता बने हैं। भाजपा उन्हें न केवल प्रदेश, देश में भी पिछड़े वर्ग का चेहरा बना रही है। गैर यादव पिछड़े वर्ग की ज्यादातर जातियों में केशव की स्वीकार्यता है। भाजपा ही नहीं, सपा, बसपा, कांग्रेस सहित अन्य दलों के पिछड़े वर्ग के नेताओं से भी केशव के करीबी रिश्ते हैं। ऐसे में सपा के PDA के पिछड़े वर्ग में सेंध लगाने की क्षमता केशव मौर्य में ही है। 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती के मुद्दे पर केशव ही विपक्ष का सामना कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्ट कहते हैं- अखिलेश यादव को पिछड़े वर्ग की राजनीति में सबसे ज्यादा खतरा केशव प्रसाद मौर्य से ही महसूस होता है। अखिलेश 2017 से लगातार केशव पर हमलावर हैं। केशव ने 2017 में एनेक्सी में पंचम तल पर अपनी नेम प्लेट लगवाई थी। उसे सचिवालय के प्रशासन विभाग ने हटवा दिया था। तब से आज तक अखिलेश पिछड़े वर्ग को संदेश देने की कोशिश करते हैं कि भाजपा में पिछड़े वर्ग के नेता केशव का ही कोई सम्मान नहीं। 2- क्योंकि.. अपमान नहीं भूलते अखिलेश: अखिलेश यादव को करीब से जानने वाले बताते हैं कि वह सब कुछ सहन कर सकते हैं, लेकिन अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते। केशव मौर्य ने 2023 में विधानसभा में बजट सत्र में चर्चा के दौरान अखिलेश को लेकर कहा था कि ऐसा लगता है ‘सैफई की जमीन बेचकर सब कुछ बनवा दिया’। इस पर अखिलेश ने तुरंत पलटवार करते हुए कहा था, ‘तुम अपने पिताजी से पैसा लाते हो क्या?’ उसके बाद से ही न केवल अखिलेश, पूरी सपा केशव पर निशाना साधती रहती है। 3- 13 करोड़ ओबीसी वोट-बैंक: यह तीसरी सबसे बड़ी वजह है। प्रदेश में 13 करोड़ से अधिक पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं का वोट बैंक है। यादवों के बाद कुर्मी वोटर सबसे ज्यादा ओबीसी में हैं। यही वजह है, केशव हमेशा सपा के निशाने पर रहते हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि भाजपा में स्वतंत्रदेव जैसे भी नेता हैं, जो ओबीसी से आते हैं। लेकिन अखिलेश उन पर हमलावर नहीं होते, जितने केशव प्रसाद मौर्य पर। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं- डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भाजपा में ओबीसी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। अखिलेश को पता है, केशव ही उनके सामने मोर्चा संभाल सकते हैं। PDA के खिलाफ केशव ही भाजपा की मजबूत काट हैं। इसलिए अखिलेश कभी स्टूल पर बैठाने, तो कभी नेम प्लेट हटाने का मुद्दा उठाते हैं। केशव की अहमियत भी बनी रहती है
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, अखिलेश जब केशव पर हमला करते हैं तो इससे भाजपा की राजनीति में केशव का कद बढ़ता ही है। उनके समर्थक भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह बताने का मौका नहीं छोड़ते कि केशव ही अखिलेश से मोर्चा ले सकते। इसके जरिए ही केशव की राजनीति भी आगे बढ़ रही है। लोकसभा चुनाव के बाद तेज हुए हमले
जानकारों का मानना है, लोकसभा चुनाव में अखिलेश का PDA का फॉर्मूला सफल रहा है। सपा के 37 सांसदों में से 23 पिछड़े वर्ग से हैं। इनमें 7 कुर्मी, 6 यादव, 2 मौर्य-कुशवाहा, 2 निषाद, लोधी, शाक्य और राजभर समाज से एक-एक सांसद है। भाजपा के 33 में से मात्र 9 सांसद पिछड़े वर्ग के हैं। उसके बाद से अखिलेश ने केशव पर हमले तेज कर दिए हैं। अखिलेश कभी उन्हें ‘दिल्ली का मोहरा’ बताते हैं, तो कभी ‘सौ लाओ सरकार बनाओ’ का ऑफर देते हैं। अब अखिलेश बताने की कोशिश कर रहे हैं कि पिछड़े वर्ग में केशव की कोई लोकप्रियता नहीं। सपा के राजनीतिक गुलदस्ते में पिछड़े वर्ग की सभी प्रमुख जातियों के सांसद और विधायक हैं। इसके पहले सपा सिराथू से मैसेज दे चुकी है। सपा प्रत्याशी पल्लवी पटेल ने विधानसभा चुनाव- 2022 में सिराथू से भाजपा प्रत्याशी और तत्कालीन डिप्टी सीएम केशव मौर्य को हराया था। उसके बाद से सपा लगातार संदेश देने की कोशिश कर रही है कि केशव पिछड़े वर्ग के नेता नहीं हैं। पिछड़ा वर्ग बहुल सीट सिराथू में सपा ने उन्हें चुनाव हराया। मोदी-योगी पर नहीं करते पर्सनल अटैक
जानकार मानते हैं, अखिलेश यादव कभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी पर सीधा अटैक नहीं करते। जब कभी केंद्र या प्रदेश सरकार के नीतिगत निर्णय का विरोध भी करना होता है, तो घुमा-फिराकर हमला बोलते हैं। केशव मौर्य और अखिलेश यादव की ओर से ही एक-दूसरे पर पर्सनल अटैक किया जाता है। यह खबर भी पढ़ें योगी बोले- कांग्रेस-सपा में जिन्ना की आत्मा; अलीगढ़ में कहा- ये वापस आए तो अराजकता फैलाएंगे सीएम योगी ने कहा- गुंडागर्दी फैलाने वालों को छूट नहीं देंगे। अगर किसी ने बहन-बेटियों की इज्जत पर हाथ डालने का दुस्साहस किया तो इसका रास्ता उन्हें सीधे यमराज के घर पहुंचा देगा। सीएम ने कन्नौज रेप कांड का जिक्र किया। उन्होंने कहा- सपा का ब्रांड कन्नौज का नवाब ब्रांड है। कांग्रेस हो या सपा, इनके अंदर जिन्ना की आत्मा घुस गई है। अगर ये लोग वापस आएंगे तो अराजकता फैलाएंगे। सीएम ने अलीगढ़ के खैर में बुधवार को ये बातें कहीं। यहां पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर