‘ये जमीन रेलवे की है, दो कमरे के लिए ढाई लाख रुपए देने पड़ेंगे। पक्की छत डलवाने के लिए पुलिस से समझना पड़ेगा। हम छोटे से थे, तब से सुन रहे हैं ये गिर जाएगा। लेकिन, अभी तक गिरा नहीं। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि ऐसे नहीं हटा सकते, जब तक कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो जाएगी।’ कानपुर में रेलवे लाइन के किनारे जमीन बेच रहे बेखौफ दलाल ने यह बात कही। वह दादा नगर के पास रेलवे लाइन से सटी कच्ची बस्ती में रहता है। पूरा मोहल्ला उसे मास्टर साहब के नाम से जानता है। वह जमीन बेचने से लेकर झोपड़ी किराए पर देने का काम करता है। रेलवे की जमीन बेचने का काम सिर्फ कानपुर में ही नहीं, यूपी के प्रयागराज, बरेली, मेरठ और गोरखपुर जैसे बड़े शहरों में भी चल रहा है। रेलवे ट्रैक के दोनों किनारों पर खड़ी कॉलोनियों में पूरा गैंग काम कर रहा है। कमरे बनाने से लेकर झोपड़ी खड़ी करने तक के रेट हैं। रेलवे की जमीन बेच रहे इस पूरे सिंडिकेट का पर्दाफाश करने के लिए हमने कानपुर शहर में करीब 10 दिन तक स्टिंग किया। सबसे पहले बात करते हैं रेलवे की जमीन बेचने वाले दलालों की…
कानपुर में रेलवे लाइन से सटी 6 बस्तियों- हरबंश मोहाल, रेलबाजार, राखी मंडी, अनवरगंज, गोविंद नगर लेबर कॉलोनी एरिया में 15 हजार मकान और झोपड़ियां बनी हैं। यह अतिक्रमण शहर से निकली रेलवे लाइनों के दोनों किनारे पर करीब 10 किमी में फैला है। हम सबसे पहले कानपुर के दादा नगर में रेलवे लाइन के किनारे बसी कच्ची बस्ती में पहुंचे। यहां रेलवे की जमीन पर करीब 1500 कच्चे-पक्के मकान बने हैं। इस एरिया में पहले से कब्जा करके रहने वाले लोग अब खुद ही रेलवे की जमीन बेच रहे हैं। इनकी सेटिंग पुलिस से लेकर बिजली विभाग के कर्मचारियों तक से है। यहां पर कोई भी जाकर जमीन खरीद सकता है। फिर स्थानीय पुलिस और GRP (राजकीय रेलवे पुलिस) की मिलीभगत से झोपड़ी ही नहीं, पक्के मकान भी खड़े कर सकता है। हम इसी एरिया के रहने वाले दलाल रोशनलाल और मास्टर साहब से मिले। मास्टर ने रेलवे लाइन से 5 मीटर की दूरी पर रेलवे की जमीन पर 20 कमरे बनाए हैं। वह इनको किराए पर देता है। अगर कोई खरीदना चाहता है, तो बेचता भी है। दूसरा दलाल रोशन मिला, उसका भी यही काम है। पूरे इलाके में 25 से ज्यादा दलाल हैं, जिनका काम रेलवे की जमीन बेचना है। समझिए, कैसे पुलिस की मिलीभगत से बनते हैं पक्के मकान
रोशन ने हमें वो कमरा दिखाया, जो बेच रहा है। उसकी दीवारें पक्की थीं, सिर्फ छत टीनशेड की बनी थी। कमरा 10 बाई 4 फीट का था। उसने इसके लिए 80 हजार रुपए मांगे। उसने बताया, GRP 10 हजार रुपए लेगी। लोकल पुलिस 2 से ढाई हजार में मान जाएगी। इससे बचने के उसने तरीके भी बताए। पढ़िए आगे की बातचीत… रिपोर्टर: 80 हजार ज्यादा हैं, इतने पैसे हमारे पास नहीं हैं।
दलाल (रोशन): कोई सब्जी थोड़े बेच रहे हैं, इतने ही लगेंगे। रिपोर्टर: इसमें तो बहुत काम करवाना पड़ेगा। रेलवे कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं उठाएगा।
दलाल (रोशन): देखो रेलवे की जमीन है, कोई दिक्कत नहीं है। जब हमने बनाया था, तो 10 हजार रुपए GRP को, दो-ढाई हजार रुपए लोकल पुलिस को दिए थे। तुम खरीद लो, ऐसे ही तुम्हारा भी बन जाएगा। अगर चाहो तो मेरे पड़ोस में मुखबिर रहता है, वही पुलिस बुलाता है। उसे दो हजार रुपए देकर सेट कर लो, कोई नहीं आएगा। रिपोर्टर: अगर कहीं रेलवे ने मकान गिरा दिया तो हम क्या करेंगे?
दलाल (रोशन): दो-तीन साल में इतना तो किराए में दे दोगे। इतने में तुम्हारा मकान फ्री हो जाएगा। अगर गिरेगा तो सभी का गिरेगा। उससे पहले तो ज्ञान-विज्ञान स्कूल (पास ही में बना स्कूल) गिरेगा। रिपोर्टर: बिजली पानी की क्या व्यवस्था रहेगी?
दलाल (रोशन): पानी के लिए हमारे यहां सबमर्सिबल पंप लगा है, उसके पैसे मुझे देते रहना। बिजली का सरकारी मीटर (कनेक्शन) हो जाएगा। रिपोर्टर: वो कैसे हो जाएगा, कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं उठाएगा?
दलाल (रोशन): बिजली वाले को 4 हजार रुपए देना, सब करवा देगा। रिपोर्टर: हमारे कागज तो यहां के नहीं हैं?
दलाल (रोशन): कोई परेशानी की बात नहीं, वह सब करवा देगा। रिपोर्टर: तो फिर जगह की लिखा-पढ़ी कैसे होगी?
दलाल (रोशन): यहां की जमीन की कोई लिखा-पढ़ी नहीं होती है। केवल जबान की बात है। हमारी जमीन है, हमने तुमको दे दी। जब हमें कोई ऐतराज नहीं होगा, तो कोई दिक्कत नहीं होगी। (हमें लगने लगा, ये जमीन मिल जाएगी। जिसके बाद हम पैसे लेकर आने की बात बोलकर वहां से निकल गए।) आइए अब आपको बताते हैं, जमीन बेचने वाले दूसरे दलाल मास्टर के बारे में.. कोर्ट के आदेश का हवाला देकर जमीन बेच रहे दलाल
अब हम गोविंद नगर की लेबर कच्ची काॅलोनी पहुंचे। यहां पास से निकली रेलवे लाइन के किनारे चारों तरफ झोपड़ियां हैं। हमने जैसे ही पूछा, रहने के लिए मकान चाहिए, तो लोगों ने बताया मास्टर साहब के अहाता में चले जाओ, उनके यहां मिल जाएगा। फिर हम मास्टर साहब के अहाता पहुंचे, जहां करीब 20 कमरे दिखे, जिनकी छत टीनशेड से बनी थी। वहा खड़े एक व्यक्ति से बातचीत शुरू हुई। हमने पूछा मास्टर साहब का अहाता? उसने कहा, हां, यही है। पढ़िए दलाल मास्टर साहब से बातचीत के अंश… रिपोर्टर: मड़इया (झोपड़ी) चाहिए रहने के लिए?
दलाल (मास्टर): मिल जाएगी, सामने बनी है, खोल कर देख लीजिए। रिपोर्टर: कितना किराया लगेगा?
दलाल (मास्टर): एक हजार रुपए प्रति महीने, केवल रात में बिजली मिलेगी और शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। रिपोर्टर: पैसे के अलावा तो कुछ नहीं चाहिए, बिजली के लिए क्या करेंगे?
दलाल (मास्टर): आधार कार्ड की कॉपी देनी पड़ेगी। बिजली रात में लगा देते हैं, दिन में तार हटा देते हैं। रिपोर्टर: कोई कमरा बिक रहा हो तो बताइए, परिवार भी साथ रहेगा।
दलाल (मास्टर): खरीदना है क्या? रिपोर्टर: हां, कोई बिक रहा हो तो दिखा दीजिए।
दलाल (मास्टर): मिल जाएंगे दो कमरे हैं, पीछे वाले। 2 लाख में देंगे। रिपोर्टर: लिखा-पढ़ी (रजिस्ट्री) कैसे होगी?
दलाल (मास्टर): रेलवे की जमीन है। यहां कोई लिखा-पढ़ी नहीं हो सकती। रिपोर्टर: फिर पक्का मकान कैसे बनाएंगे?
दलाल (मास्टर): पुलिस से बात करने के बाद बन जाएगा। रिपोर्टर: पैसे कम कर लीजिए, भविष्य में रेलवे ने गिरा दिया तो हम क्या करेंगे? दलाल (मास्टर): ऐसे कैसे गिर जाएगा। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रेलवे लाइन के किनारे झोपड़ियों को नहीं हटा सकते। सरकार को कोई न कोई व्यवस्था करनी पड़ेगी। रिपोर्टर: बिजली-पानी का कनेक्शन कैसे मिलेगा?
दलाल (मास्टर): पानी के लिए नल लगा है। बिजली के मीटर के लिए दादा नगर के केस्को दफ्तर में जाकर मिल लेना, हो जाएगा। अगर कमरे खरीदने हो तो बयाना दे जाना। (हम बाद में मिलने की बात कहकर वहां से निकल आए) दलाल और बिजली कर्मचारियों की मिलीभगत से हो जाता है कनेक्शन
अब हम दादा नगर इंडस्ट्रियल एरिया में केस्को (कानपुर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी) के विद्युत सब स्टेशन पहुंचे। वहां मौजूद कर्मचारियों को हमने गोविंद नगर लेबर कॉलोनी में मस्जिद के पास बिजली कनेक्शन करवाने की बात कही। कर्मचारियों ने कागजों के बारे में पूछा, मैंने अपने पास कोई भी कागज नहीं होने का हवाला दिया। रेलवे पटरी के पास नया घर खरीदने की बात बताई। दलाल, बिजली कर्मचारी और रिपोर्टर के बीच बातचीत के मुख्य अंश रिपोर्टर : रेल लाइन के किनारे किसी मकान की रजिस्ट्री नहीं होती है।
बिजली कर्मचारी: कोई तो कागज मिला होगा? रिपोर्टर: मेरे पास केवल आधार कार्ड है। वो भी यहां का नहीं, गांव का है।
बिजली कर्मचारी: तो कैसे होगा, तुम प्रभात जनसेवा केंद्र पर बात कर लो। वहीं पहले ऑनलाइन होगा और फाइल बनकर हमारे पास आएगी। फिर हम लोग काम करेंगे, जेई साहब तो यहीं बैठे हैं। हमने कर्मचारी से प्रभात का नंबर लिया और उससे मिलने पहुंच गए। अब पढ़िए दलाल और रिपोर्टर के बीच बातचीत… रिपोर्टर: बिजली का कनेक्शन करवाना है।
दलाल (प्रभात) : हो जाएगा, कहां पर होना है। रिपोर्टर: गोविंद नगर (दादा नगर) लेबर कॉलोनी, कच्ची बस्ती में रेलवे लाइन के किनारे होना है।
दलाल (प्रभात) : कागज दीजिए। रिपोर्टर: केवल आधार कार्ड है।
दलाल (प्रभात): मकान बना हुआ है। रिपोर्टर: हां, अभी नया खरीदा है लेकिन उसके कागज नहीं हैं।
दलाल (प्रभात) : तो पार्षद से लिखवा लेना। कोई कागज पर तो लिखा-पढ़ी हुई होगी। रिपोर्टर: नहीं हुई, रेलवे की जमीन में लाइन के किनारे है, आधार कार्ड भी बाहर का है।
दलाल (प्रभात): फिर अपने आधार कार्ड की फोटो-कॉपी और दो फोटो दे दो। रिपोर्टर: कितने पैसे लगेंगे?
दलाल (प्रभात): 600 एक बार, 1800 एक बार, कुल 4 हजार रुपए खर्च हो जाएंगे। कागज दे दीजिए। रिपोर्टर: हम शाम 6 बजे आकर मिलते हैं, तभी कागज लेकर आते हैं।
दलाल (प्रभात): ठीक है। (इसके बाद हम दलाल के पास से निकल लिए) रेलवे अधिकारी नहीं दे सके कोई जानकारी
अब हमारे मन में सवाल था, रेलवे के कर्मचारी कैसे कब्जा हटवाते हैं? अभी तक रेलवे की कितनी जमीन पर कब्जा है या भविष्य में कब्जा हटवाने की क्या योजना है? कब्जे की जमीन पर कितने मकान बने हैं? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए हम कानपुर सेंट्रल स्टेशन के डायरेक्टर आशुतोष सिंह से मिले। उन्होंने ऑन रिकॉर्ड बात करने से मना कर दिया। सभी सवालों के जवाब के लिए इंजीनियर एके गुप्ता के पास भेजा। हम एके गुप्ता के दफ्तर पहुंचे। वह नहीं मिले। दफ्तर में बैठे कर्मचारी ने बताया, वह छुट्टी पर हैं। आपको वही जानकारी दे पाएंगे। यह भी पढ़ें: योगी बोले- कांग्रेस-सपा में जिन्ना की आत्मा; अलीगढ़ में कहा- ये वापस आए तो अराजकता फैलाएंगे सीएम योगी ने कहा- गुंडागर्दी फैलाने वालों को छूट नहीं देंगे। अगर किसी ने बहन-बेटियों की इज्जत पर हाथ डालने का दुस्साहस किया तो इसका रास्ता उन्हें सीधे यमराज के घर पहुंचा देगा। सीएम ने कन्नौज रेप कांड का जिक्र किया। कहा- सपा का ब्रांड कन्नौज का नवाब ब्रांड है। कांग्रेस हो या सपा, इनके अंदर जिन्ना की आत्मा घुस गई है। ये वापस आएंगे तो अराजकता फैलाएंगे। यहां पढ़ें पूरी खबर ‘ये जमीन रेलवे की है, दो कमरे के लिए ढाई लाख रुपए देने पड़ेंगे। पक्की छत डलवाने के लिए पुलिस से समझना पड़ेगा। हम छोटे से थे, तब से सुन रहे हैं ये गिर जाएगा। लेकिन, अभी तक गिरा नहीं। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि ऐसे नहीं हटा सकते, जब तक कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो जाएगी।’ कानपुर में रेलवे लाइन के किनारे जमीन बेच रहे बेखौफ दलाल ने यह बात कही। वह दादा नगर के पास रेलवे लाइन से सटी कच्ची बस्ती में रहता है। पूरा मोहल्ला उसे मास्टर साहब के नाम से जानता है। वह जमीन बेचने से लेकर झोपड़ी किराए पर देने का काम करता है। रेलवे की जमीन बेचने का काम सिर्फ कानपुर में ही नहीं, यूपी के प्रयागराज, बरेली, मेरठ और गोरखपुर जैसे बड़े शहरों में भी चल रहा है। रेलवे ट्रैक के दोनों किनारों पर खड़ी कॉलोनियों में पूरा गैंग काम कर रहा है। कमरे बनाने से लेकर झोपड़ी खड़ी करने तक के रेट हैं। रेलवे की जमीन बेच रहे इस पूरे सिंडिकेट का पर्दाफाश करने के लिए हमने कानपुर शहर में करीब 10 दिन तक स्टिंग किया। सबसे पहले बात करते हैं रेलवे की जमीन बेचने वाले दलालों की…
कानपुर में रेलवे लाइन से सटी 6 बस्तियों- हरबंश मोहाल, रेलबाजार, राखी मंडी, अनवरगंज, गोविंद नगर लेबर कॉलोनी एरिया में 15 हजार मकान और झोपड़ियां बनी हैं। यह अतिक्रमण शहर से निकली रेलवे लाइनों के दोनों किनारे पर करीब 10 किमी में फैला है। हम सबसे पहले कानपुर के दादा नगर में रेलवे लाइन के किनारे बसी कच्ची बस्ती में पहुंचे। यहां रेलवे की जमीन पर करीब 1500 कच्चे-पक्के मकान बने हैं। इस एरिया में पहले से कब्जा करके रहने वाले लोग अब खुद ही रेलवे की जमीन बेच रहे हैं। इनकी सेटिंग पुलिस से लेकर बिजली विभाग के कर्मचारियों तक से है। यहां पर कोई भी जाकर जमीन खरीद सकता है। फिर स्थानीय पुलिस और GRP (राजकीय रेलवे पुलिस) की मिलीभगत से झोपड़ी ही नहीं, पक्के मकान भी खड़े कर सकता है। हम इसी एरिया के रहने वाले दलाल रोशनलाल और मास्टर साहब से मिले। मास्टर ने रेलवे लाइन से 5 मीटर की दूरी पर रेलवे की जमीन पर 20 कमरे बनाए हैं। वह इनको किराए पर देता है। अगर कोई खरीदना चाहता है, तो बेचता भी है। दूसरा दलाल रोशन मिला, उसका भी यही काम है। पूरे इलाके में 25 से ज्यादा दलाल हैं, जिनका काम रेलवे की जमीन बेचना है। समझिए, कैसे पुलिस की मिलीभगत से बनते हैं पक्के मकान
रोशन ने हमें वो कमरा दिखाया, जो बेच रहा है। उसकी दीवारें पक्की थीं, सिर्फ छत टीनशेड की बनी थी। कमरा 10 बाई 4 फीट का था। उसने इसके लिए 80 हजार रुपए मांगे। उसने बताया, GRP 10 हजार रुपए लेगी। लोकल पुलिस 2 से ढाई हजार में मान जाएगी। इससे बचने के उसने तरीके भी बताए। पढ़िए आगे की बातचीत… रिपोर्टर: 80 हजार ज्यादा हैं, इतने पैसे हमारे पास नहीं हैं।
दलाल (रोशन): कोई सब्जी थोड़े बेच रहे हैं, इतने ही लगेंगे। रिपोर्टर: इसमें तो बहुत काम करवाना पड़ेगा। रेलवे कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं उठाएगा।
दलाल (रोशन): देखो रेलवे की जमीन है, कोई दिक्कत नहीं है। जब हमने बनाया था, तो 10 हजार रुपए GRP को, दो-ढाई हजार रुपए लोकल पुलिस को दिए थे। तुम खरीद लो, ऐसे ही तुम्हारा भी बन जाएगा। अगर चाहो तो मेरे पड़ोस में मुखबिर रहता है, वही पुलिस बुलाता है। उसे दो हजार रुपए देकर सेट कर लो, कोई नहीं आएगा। रिपोर्टर: अगर कहीं रेलवे ने मकान गिरा दिया तो हम क्या करेंगे?
दलाल (रोशन): दो-तीन साल में इतना तो किराए में दे दोगे। इतने में तुम्हारा मकान फ्री हो जाएगा। अगर गिरेगा तो सभी का गिरेगा। उससे पहले तो ज्ञान-विज्ञान स्कूल (पास ही में बना स्कूल) गिरेगा। रिपोर्टर: बिजली पानी की क्या व्यवस्था रहेगी?
दलाल (रोशन): पानी के लिए हमारे यहां सबमर्सिबल पंप लगा है, उसके पैसे मुझे देते रहना। बिजली का सरकारी मीटर (कनेक्शन) हो जाएगा। रिपोर्टर: वो कैसे हो जाएगा, कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं उठाएगा?
दलाल (रोशन): बिजली वाले को 4 हजार रुपए देना, सब करवा देगा। रिपोर्टर: हमारे कागज तो यहां के नहीं हैं?
दलाल (रोशन): कोई परेशानी की बात नहीं, वह सब करवा देगा। रिपोर्टर: तो फिर जगह की लिखा-पढ़ी कैसे होगी?
दलाल (रोशन): यहां की जमीन की कोई लिखा-पढ़ी नहीं होती है। केवल जबान की बात है। हमारी जमीन है, हमने तुमको दे दी। जब हमें कोई ऐतराज नहीं होगा, तो कोई दिक्कत नहीं होगी। (हमें लगने लगा, ये जमीन मिल जाएगी। जिसके बाद हम पैसे लेकर आने की बात बोलकर वहां से निकल गए।) आइए अब आपको बताते हैं, जमीन बेचने वाले दूसरे दलाल मास्टर के बारे में.. कोर्ट के आदेश का हवाला देकर जमीन बेच रहे दलाल
अब हम गोविंद नगर की लेबर कच्ची काॅलोनी पहुंचे। यहां पास से निकली रेलवे लाइन के किनारे चारों तरफ झोपड़ियां हैं। हमने जैसे ही पूछा, रहने के लिए मकान चाहिए, तो लोगों ने बताया मास्टर साहब के अहाता में चले जाओ, उनके यहां मिल जाएगा। फिर हम मास्टर साहब के अहाता पहुंचे, जहां करीब 20 कमरे दिखे, जिनकी छत टीनशेड से बनी थी। वहा खड़े एक व्यक्ति से बातचीत शुरू हुई। हमने पूछा मास्टर साहब का अहाता? उसने कहा, हां, यही है। पढ़िए दलाल मास्टर साहब से बातचीत के अंश… रिपोर्टर: मड़इया (झोपड़ी) चाहिए रहने के लिए?
दलाल (मास्टर): मिल जाएगी, सामने बनी है, खोल कर देख लीजिए। रिपोर्टर: कितना किराया लगेगा?
दलाल (मास्टर): एक हजार रुपए प्रति महीने, केवल रात में बिजली मिलेगी और शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। रिपोर्टर: पैसे के अलावा तो कुछ नहीं चाहिए, बिजली के लिए क्या करेंगे?
दलाल (मास्टर): आधार कार्ड की कॉपी देनी पड़ेगी। बिजली रात में लगा देते हैं, दिन में तार हटा देते हैं। रिपोर्टर: कोई कमरा बिक रहा हो तो बताइए, परिवार भी साथ रहेगा।
दलाल (मास्टर): खरीदना है क्या? रिपोर्टर: हां, कोई बिक रहा हो तो दिखा दीजिए।
दलाल (मास्टर): मिल जाएंगे दो कमरे हैं, पीछे वाले। 2 लाख में देंगे। रिपोर्टर: लिखा-पढ़ी (रजिस्ट्री) कैसे होगी?
दलाल (मास्टर): रेलवे की जमीन है। यहां कोई लिखा-पढ़ी नहीं हो सकती। रिपोर्टर: फिर पक्का मकान कैसे बनाएंगे?
दलाल (मास्टर): पुलिस से बात करने के बाद बन जाएगा। रिपोर्टर: पैसे कम कर लीजिए, भविष्य में रेलवे ने गिरा दिया तो हम क्या करेंगे? दलाल (मास्टर): ऐसे कैसे गिर जाएगा। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रेलवे लाइन के किनारे झोपड़ियों को नहीं हटा सकते। सरकार को कोई न कोई व्यवस्था करनी पड़ेगी। रिपोर्टर: बिजली-पानी का कनेक्शन कैसे मिलेगा?
दलाल (मास्टर): पानी के लिए नल लगा है। बिजली के मीटर के लिए दादा नगर के केस्को दफ्तर में जाकर मिल लेना, हो जाएगा। अगर कमरे खरीदने हो तो बयाना दे जाना। (हम बाद में मिलने की बात कहकर वहां से निकल आए) दलाल और बिजली कर्मचारियों की मिलीभगत से हो जाता है कनेक्शन
अब हम दादा नगर इंडस्ट्रियल एरिया में केस्को (कानपुर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी) के विद्युत सब स्टेशन पहुंचे। वहां मौजूद कर्मचारियों को हमने गोविंद नगर लेबर कॉलोनी में मस्जिद के पास बिजली कनेक्शन करवाने की बात कही। कर्मचारियों ने कागजों के बारे में पूछा, मैंने अपने पास कोई भी कागज नहीं होने का हवाला दिया। रेलवे पटरी के पास नया घर खरीदने की बात बताई। दलाल, बिजली कर्मचारी और रिपोर्टर के बीच बातचीत के मुख्य अंश रिपोर्टर : रेल लाइन के किनारे किसी मकान की रजिस्ट्री नहीं होती है।
बिजली कर्मचारी: कोई तो कागज मिला होगा? रिपोर्टर: मेरे पास केवल आधार कार्ड है। वो भी यहां का नहीं, गांव का है।
बिजली कर्मचारी: तो कैसे होगा, तुम प्रभात जनसेवा केंद्र पर बात कर लो। वहीं पहले ऑनलाइन होगा और फाइल बनकर हमारे पास आएगी। फिर हम लोग काम करेंगे, जेई साहब तो यहीं बैठे हैं। हमने कर्मचारी से प्रभात का नंबर लिया और उससे मिलने पहुंच गए। अब पढ़िए दलाल और रिपोर्टर के बीच बातचीत… रिपोर्टर: बिजली का कनेक्शन करवाना है।
दलाल (प्रभात) : हो जाएगा, कहां पर होना है। रिपोर्टर: गोविंद नगर (दादा नगर) लेबर कॉलोनी, कच्ची बस्ती में रेलवे लाइन के किनारे होना है।
दलाल (प्रभात) : कागज दीजिए। रिपोर्टर: केवल आधार कार्ड है।
दलाल (प्रभात): मकान बना हुआ है। रिपोर्टर: हां, अभी नया खरीदा है लेकिन उसके कागज नहीं हैं।
दलाल (प्रभात) : तो पार्षद से लिखवा लेना। कोई कागज पर तो लिखा-पढ़ी हुई होगी। रिपोर्टर: नहीं हुई, रेलवे की जमीन में लाइन के किनारे है, आधार कार्ड भी बाहर का है।
दलाल (प्रभात): फिर अपने आधार कार्ड की फोटो-कॉपी और दो फोटो दे दो। रिपोर्टर: कितने पैसे लगेंगे?
दलाल (प्रभात): 600 एक बार, 1800 एक बार, कुल 4 हजार रुपए खर्च हो जाएंगे। कागज दे दीजिए। रिपोर्टर: हम शाम 6 बजे आकर मिलते हैं, तभी कागज लेकर आते हैं।
दलाल (प्रभात): ठीक है। (इसके बाद हम दलाल के पास से निकल लिए) रेलवे अधिकारी नहीं दे सके कोई जानकारी
अब हमारे मन में सवाल था, रेलवे के कर्मचारी कैसे कब्जा हटवाते हैं? अभी तक रेलवे की कितनी जमीन पर कब्जा है या भविष्य में कब्जा हटवाने की क्या योजना है? कब्जे की जमीन पर कितने मकान बने हैं? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए हम कानपुर सेंट्रल स्टेशन के डायरेक्टर आशुतोष सिंह से मिले। उन्होंने ऑन रिकॉर्ड बात करने से मना कर दिया। सभी सवालों के जवाब के लिए इंजीनियर एके गुप्ता के पास भेजा। हम एके गुप्ता के दफ्तर पहुंचे। वह नहीं मिले। दफ्तर में बैठे कर्मचारी ने बताया, वह छुट्टी पर हैं। आपको वही जानकारी दे पाएंगे। यह भी पढ़ें: योगी बोले- कांग्रेस-सपा में जिन्ना की आत्मा; अलीगढ़ में कहा- ये वापस आए तो अराजकता फैलाएंगे सीएम योगी ने कहा- गुंडागर्दी फैलाने वालों को छूट नहीं देंगे। अगर किसी ने बहन-बेटियों की इज्जत पर हाथ डालने का दुस्साहस किया तो इसका रास्ता उन्हें सीधे यमराज के घर पहुंचा देगा। सीएम ने कन्नौज रेप कांड का जिक्र किया। कहा- सपा का ब्रांड कन्नौज का नवाब ब्रांड है। कांग्रेस हो या सपा, इनके अंदर जिन्ना की आत्मा घुस गई है। ये वापस आएंगे तो अराजकता फैलाएंगे। यहां पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर