जो पीड़ित, वो पीडीए! पीड़ा ही तो वो एक धागा, जिसने सबको संग बांधा!- अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में सफल होने के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बराबर PDA फॉर्मूले के नए-नए फुल फॉर्म बताकर हर वर्ग के लोगों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। वह पत्रकारों और पंडितों को भी अपने साथ रखने की बात कर रहे। अखिलेश ने ‘P’ के अलग-अलग मतलब गिनाए हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने भी अपना PDA का जवाबी फॉर्मूला पेश किया है। इस बीच, टिकट वितरण और जातिगत समीकरणों को लेकर भी माथापच्ची शुरू हो गई है। PDA फॉर्मूले के नए-नए फुल फॉर्म लाने के पीछे अखिलेश यादव का मकसद क्या है? यादव-मुस्लिम की राजनीति करने वाली पार्टी अब PDA में हर वर्ग को क्यों जोड़ रही? इस सियासी रणनीति के हर पहलू को विस्तार से समझते हैं… M-Y फैक्टर फेल हुआ तो PDA पर भरोसा, मकसद एक
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की पहचान मुस्लिम और यादवों (M-Y) से होती रही है। सपा संस्थापक रहे मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम तक की उपाधि दी गई। प्रदेश में सपा की जब भी सरकार बनी, तो इन दोनों वर्गों का खूब बोलबाला रहा। लेकिन, नए दौर की राजनीति में मात्र दो बड़े वोट बैंक (मुस्लिम-यादव) से सत्ता मिलती नहीं दिख रही थी। ऐसे में अखिलेश यादव 2022 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद PDA फॉर्मूला लेकर आए। अखिलेश ने 2023 में पहली बार PDA का जिक्र किया, जिसका मूल अर्थ पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक बताया गया। यह फॉर्मूला सामाजिक न्याय और समावेशी राजनीति का प्रतीक बनकर उभरा। इसके जरिए सपा ने पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को एकजुट करने की कोशिश की। लेकिन, समय के साथ अखिलेश ने PDA के नए-नए अर्थ भी बताने शुरू कर दिए। ‘PDA यानी पीड़ित, दुखी, अपमानित’
2024 के लोकसभा चुनाव में मिली कामयाबी के बाद अखिलेश ने इसे और विस्तार देना शुरू किया। इसके लिए पार्टी के लोग PDAमें ‘ए’ का मतलब अल्पसंख्यक के साथ अगड़ा भी बताने लगे। बाद में अखिलेश ने इसे सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तबकों के लिए इस्तेमाल किया। इसमें हर वर्ग को शामिल करने की कोशिश दिख रही है। अखिलेश यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि उनके PDA का मतलब पीड़ित, दुखी और अपमानित भी है। यानी जाे भी पीड़ित है, उसके साथ सपा है। उदाहरण-1: पंडितों को सपा से जोड़ रहे
बीते दिनों ED ने हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी को गिरफ्तार किया। तब अखिलेश यादव खुलकर विनय तिवारी के समर्थन में आए। इसके बाद समाजवादी पार्टी ब्राह्मण सभा की बैठक में चुन-चुन कर उन परिवारों को सामने लाया गया, जो पीड़ित थे। अयोध्या के पवन पांडेय लगातार ब्राह्मण समाज के लोगों को लाकर सपा कार्यालय में कार्यक्रम करा रहे हैं। सपा में ब्राह्मण चेहरे के नाम पर पवन पांडेय के अलावा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय, सुल्तानपुर के पूर्व विधायक संतोष पांडेय जैसे लोग मौजूद हैं। अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव कह चुके हैं कि ‘पी’ से पंडित होता है, जो PDA का हिस्सा हैं। उदाहरण-2: ठाकुरों को पीड़ित बताया
ब्राह्मण सभा के बाद सपा कार्यालय पर महाराणा प्रताप जयंती मनाई गई। आमतौर पर मुख्यमंत्री की जाति को लेकर अखिलेश यादव लगातार हमला बोलते रहे हैं। लेकिन, यहां इकट्ठा हुए ठाकुरों को पीड़ित बताया। कहा कि हम सब मिलकर 2027 में सरकार बनाएंगे। अखिलेश यादव ठाकुरों के सबसे बड़े नेताओं में से एक राजा भइया पर भी लगातार हमलावर रहते हैं। लेकिन, जब पार्टी कार्यालय में पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप के नेतृत्व में जुटे ठाकुरों ने 2027 में सपा की सरकार बनवाने का संकल्प लिया तो अखिलेश ने इन ठाकुरों को पीड़ित बताया था। उदाहरण-3: ‘पी’ का मतलब पत्रकार
इसी तरह प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक पत्रकार ने जब अपना दुखड़ा रोया तो अखिलेश यादव ने कहा कि PDA में ‘पी’ का मतलब पत्रकार भी होता है। उनकी सरकार बनी तो पत्रकारों को सम्मानित किया जाएगा। एक्सपर्ट की नजर में अखिलेश की रणनीति
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं- अखिलेश यादव PDA का विस्तार करना चाहते हैं। वह बार-बार जातिगत जनगणना की वकालत करते हैं, ताकि OBC और दलितों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी मिले। 2025 में केंद्र सरकार के जाति जनगणना के फैसले को उन्होंने ‘इंडी गठबंधन की जीत’ करार दिया। ऐसा करके वो इन दो बड़े वर्गों का वोट बैंक हासिल करना चाहते हैं। गैर-यादव OBC पर फोकस: सपा ने कुर्मी, मौर्य और अन्य गैर-यादव ओबीसी समुदाय के लोगों को लोकसभा में टिकट देकर अपनी पहुंच बढ़ाई। 2024 में सपा ने 10 कुर्मी उम्मीदवारों को टिकट दिया, जो एक रणनीतिक कदम था। दलित वोटरों को लुभाने की कोशिश: बसपा के कमजोर होने का फायदा उठाने के लिए सपा ने दलितों को आकर्षित करने की रणनीति अपनाई। अखिलेश ने कांशीराम और अंबेडकर के विचारों को अपनी सभाओं में जोड़ा। दोनों नेताओं की जन्मतिथि, पुण्यतिथि भी मनानी शुरू की। यहां तक कि सपा ने अंबेडकर वाहिनी का गठन भी कर दिया। मुस्लिम वोट भी जरूरी: यूपी में मुस्लिमों की आबादी 17 से 19 फीसदी बताई जाती है। यह सपा का पारंपरिक वोट बैंक रहा है। अखिलेश ने इसे बनाए रखने के लिए अल्पसंख्यक मुद्दों को उठाया। हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं हैं। सपा की छवि अभी भी यादव-मुस्लिम केंद्रित मानी जाती है। ऐसे में गैर-यादव OBC और दलितों को पूरी तरह साथ लाना उनके लिए आसान नहीं। विधानसभा चुनाव 2027 में क्या यादव-मुस्लिम टिकट कटेंगे?
PDA के विस्तार के साथ यह सवाल उठ रहा है कि क्या सपा यादव और मुस्लिम उम्मीदवारों के टिकट कम करेगी? इसके जवाब में राजेंद्र कुमार कहते हैं- 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने इस दिशा में कदम उठाया था। आंकड़ों पर गौर करें तो 2024 लोकसभा चुनाव में सपा ने 62 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें केवल 4 मुस्लिम और 5 यादव उम्मीदवार थे। बाकी 32 OBC, 16 दलित, और 10 सवर्ण उम्मीदवार थे। 2022 विधानसभा चुनाव: सपा ने 347 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इसमें 15 फीसदी यादव और 10 फीसदी मुस्लिम उम्मीदवार थे। बाकी में गैर-यादव, OBC और दलितों को प्राथमिकता दी गई थी। यह बदलाव सपा की रणनीति का हिस्सा था, ताकि ‘एम-वाई’ (मुस्लिम-यादव) की छवि से बचा जा सके। अब किस जाति को ज्यादा टिकट?
2024 के बाद सपा की नजर कुर्मी, मौर्य और गैर-जाटव दलित समुदायों पर है। कुर्मी समाज की यूपी में 9 फीसदी आबादी है। यही वजह है कि कुर्मी समाज सपा की रणनीति का केंद्र बन गया है। 2024 में सपा ने 10 कुर्मी उम्मीदवार उतारे थे। भविष्य में यह संख्या बढ़ सकती है। इसके पीछे कई वजह हैं। यूपी में बसपा कमजोर हुई है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अमीक जामेई कहते हैं- अखिलेश यादव डॉ. राम मनोहर लोहिया के उस सिद्धांत पर काम कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ।’ लोहिया ने जब यह नारा दिया था, उसमें पिछड़े का मतलब हर वो कमजोर वर्ग था जो दमन का शिकार था। अखिलेश यादव भी ऐसे ही लोगों के साथ खड़े हैं। लोहिया के इसी फॉर्मूले को उन्होंने PDA का नाम दिया है। भाजपा PDA को बता रही परिवार डेवलपमेंट अथॉरिटी
सपा के PDA को भाजपा परिवार डेवलपमेंट अथॉरिटी बताती रही है। विधान परिषद में कई बार नेता सदन केशव मौर्य PDA का यही फुल फॉर्म बता चुके हैं। भाजपा के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर जो पहले सपा के सहयोगी थे, वे भी इसे परिवारवाद से जोड़कर ही बताते हैं। देखना दिलचस्प होगा कि क्या सपा का PDA फॉर्मूला 2027 में जनता स्वीकार करेगी या जाति जनगणना के बहाने भाजपा का मंडल-कमंडल का मिश्रण भारी पड़ेगा? ———————— ये खबर भी पढ़ें… रामगोपाल यादव बोले– व्योमिका सिंह जाटव हैं, एयर मार्शल यादव, दोनों की जाति बताकर कहा- पाकिस्तान से युद्ध PDA ने लड़ा, भाजपा श्रेय ले रही ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ीं कर्नल सोफिया के बाद अब विंग कमांडर व्योमिका सिंह के बारे में विवादित टिप्पणी की गई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा रामगोपाल यादव ने उनके लिए जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया। इनमें कुछ ऐसे शब्द हैं, जो हम लिख नहीं सकते हैं। गुरुवार को यूपी के मुरादाबाद में रामगोपाल ने कहा- ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग में कर्नल सोफिया कुरैशी के साथ शामिल विंग कमांडर व्योमिका सिंह हरियाणा की जाटव है…, *** हैं। पढ़ें पूरी खबर जो पीड़ित, वो पीडीए! पीड़ा ही तो वो एक धागा, जिसने सबको संग बांधा!- अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में सफल होने के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बराबर PDA फॉर्मूले के नए-नए फुल फॉर्म बताकर हर वर्ग के लोगों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। वह पत्रकारों और पंडितों को भी अपने साथ रखने की बात कर रहे। अखिलेश ने ‘P’ के अलग-अलग मतलब गिनाए हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने भी अपना PDA का जवाबी फॉर्मूला पेश किया है। इस बीच, टिकट वितरण और जातिगत समीकरणों को लेकर भी माथापच्ची शुरू हो गई है। PDA फॉर्मूले के नए-नए फुल फॉर्म लाने के पीछे अखिलेश यादव का मकसद क्या है? यादव-मुस्लिम की राजनीति करने वाली पार्टी अब PDA में हर वर्ग को क्यों जोड़ रही? इस सियासी रणनीति के हर पहलू को विस्तार से समझते हैं… M-Y फैक्टर फेल हुआ तो PDA पर भरोसा, मकसद एक
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की पहचान मुस्लिम और यादवों (M-Y) से होती रही है। सपा संस्थापक रहे मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम तक की उपाधि दी गई। प्रदेश में सपा की जब भी सरकार बनी, तो इन दोनों वर्गों का खूब बोलबाला रहा। लेकिन, नए दौर की राजनीति में मात्र दो बड़े वोट बैंक (मुस्लिम-यादव) से सत्ता मिलती नहीं दिख रही थी। ऐसे में अखिलेश यादव 2022 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद PDA फॉर्मूला लेकर आए। अखिलेश ने 2023 में पहली बार PDA का जिक्र किया, जिसका मूल अर्थ पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक बताया गया। यह फॉर्मूला सामाजिक न्याय और समावेशी राजनीति का प्रतीक बनकर उभरा। इसके जरिए सपा ने पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को एकजुट करने की कोशिश की। लेकिन, समय के साथ अखिलेश ने PDA के नए-नए अर्थ भी बताने शुरू कर दिए। ‘PDA यानी पीड़ित, दुखी, अपमानित’
2024 के लोकसभा चुनाव में मिली कामयाबी के बाद अखिलेश ने इसे और विस्तार देना शुरू किया। इसके लिए पार्टी के लोग PDAमें ‘ए’ का मतलब अल्पसंख्यक के साथ अगड़ा भी बताने लगे। बाद में अखिलेश ने इसे सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तबकों के लिए इस्तेमाल किया। इसमें हर वर्ग को शामिल करने की कोशिश दिख रही है। अखिलेश यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि उनके PDA का मतलब पीड़ित, दुखी और अपमानित भी है। यानी जाे भी पीड़ित है, उसके साथ सपा है। उदाहरण-1: पंडितों को सपा से जोड़ रहे
बीते दिनों ED ने हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी को गिरफ्तार किया। तब अखिलेश यादव खुलकर विनय तिवारी के समर्थन में आए। इसके बाद समाजवादी पार्टी ब्राह्मण सभा की बैठक में चुन-चुन कर उन परिवारों को सामने लाया गया, जो पीड़ित थे। अयोध्या के पवन पांडेय लगातार ब्राह्मण समाज के लोगों को लाकर सपा कार्यालय में कार्यक्रम करा रहे हैं। सपा में ब्राह्मण चेहरे के नाम पर पवन पांडेय के अलावा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय, सुल्तानपुर के पूर्व विधायक संतोष पांडेय जैसे लोग मौजूद हैं। अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव कह चुके हैं कि ‘पी’ से पंडित होता है, जो PDA का हिस्सा हैं। उदाहरण-2: ठाकुरों को पीड़ित बताया
ब्राह्मण सभा के बाद सपा कार्यालय पर महाराणा प्रताप जयंती मनाई गई। आमतौर पर मुख्यमंत्री की जाति को लेकर अखिलेश यादव लगातार हमला बोलते रहे हैं। लेकिन, यहां इकट्ठा हुए ठाकुरों को पीड़ित बताया। कहा कि हम सब मिलकर 2027 में सरकार बनाएंगे। अखिलेश यादव ठाकुरों के सबसे बड़े नेताओं में से एक राजा भइया पर भी लगातार हमलावर रहते हैं। लेकिन, जब पार्टी कार्यालय में पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप के नेतृत्व में जुटे ठाकुरों ने 2027 में सपा की सरकार बनवाने का संकल्प लिया तो अखिलेश ने इन ठाकुरों को पीड़ित बताया था। उदाहरण-3: ‘पी’ का मतलब पत्रकार
इसी तरह प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक पत्रकार ने जब अपना दुखड़ा रोया तो अखिलेश यादव ने कहा कि PDA में ‘पी’ का मतलब पत्रकार भी होता है। उनकी सरकार बनी तो पत्रकारों को सम्मानित किया जाएगा। एक्सपर्ट की नजर में अखिलेश की रणनीति
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं- अखिलेश यादव PDA का विस्तार करना चाहते हैं। वह बार-बार जातिगत जनगणना की वकालत करते हैं, ताकि OBC और दलितों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी मिले। 2025 में केंद्र सरकार के जाति जनगणना के फैसले को उन्होंने ‘इंडी गठबंधन की जीत’ करार दिया। ऐसा करके वो इन दो बड़े वर्गों का वोट बैंक हासिल करना चाहते हैं। गैर-यादव OBC पर फोकस: सपा ने कुर्मी, मौर्य और अन्य गैर-यादव ओबीसी समुदाय के लोगों को लोकसभा में टिकट देकर अपनी पहुंच बढ़ाई। 2024 में सपा ने 10 कुर्मी उम्मीदवारों को टिकट दिया, जो एक रणनीतिक कदम था। दलित वोटरों को लुभाने की कोशिश: बसपा के कमजोर होने का फायदा उठाने के लिए सपा ने दलितों को आकर्षित करने की रणनीति अपनाई। अखिलेश ने कांशीराम और अंबेडकर के विचारों को अपनी सभाओं में जोड़ा। दोनों नेताओं की जन्मतिथि, पुण्यतिथि भी मनानी शुरू की। यहां तक कि सपा ने अंबेडकर वाहिनी का गठन भी कर दिया। मुस्लिम वोट भी जरूरी: यूपी में मुस्लिमों की आबादी 17 से 19 फीसदी बताई जाती है। यह सपा का पारंपरिक वोट बैंक रहा है। अखिलेश ने इसे बनाए रखने के लिए अल्पसंख्यक मुद्दों को उठाया। हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं हैं। सपा की छवि अभी भी यादव-मुस्लिम केंद्रित मानी जाती है। ऐसे में गैर-यादव OBC और दलितों को पूरी तरह साथ लाना उनके लिए आसान नहीं। विधानसभा चुनाव 2027 में क्या यादव-मुस्लिम टिकट कटेंगे?
PDA के विस्तार के साथ यह सवाल उठ रहा है कि क्या सपा यादव और मुस्लिम उम्मीदवारों के टिकट कम करेगी? इसके जवाब में राजेंद्र कुमार कहते हैं- 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने इस दिशा में कदम उठाया था। आंकड़ों पर गौर करें तो 2024 लोकसभा चुनाव में सपा ने 62 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें केवल 4 मुस्लिम और 5 यादव उम्मीदवार थे। बाकी 32 OBC, 16 दलित, और 10 सवर्ण उम्मीदवार थे। 2022 विधानसभा चुनाव: सपा ने 347 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इसमें 15 फीसदी यादव और 10 फीसदी मुस्लिम उम्मीदवार थे। बाकी में गैर-यादव, OBC और दलितों को प्राथमिकता दी गई थी। यह बदलाव सपा की रणनीति का हिस्सा था, ताकि ‘एम-वाई’ (मुस्लिम-यादव) की छवि से बचा जा सके। अब किस जाति को ज्यादा टिकट?
2024 के बाद सपा की नजर कुर्मी, मौर्य और गैर-जाटव दलित समुदायों पर है। कुर्मी समाज की यूपी में 9 फीसदी आबादी है। यही वजह है कि कुर्मी समाज सपा की रणनीति का केंद्र बन गया है। 2024 में सपा ने 10 कुर्मी उम्मीदवार उतारे थे। भविष्य में यह संख्या बढ़ सकती है। इसके पीछे कई वजह हैं। यूपी में बसपा कमजोर हुई है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अमीक जामेई कहते हैं- अखिलेश यादव डॉ. राम मनोहर लोहिया के उस सिद्धांत पर काम कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ।’ लोहिया ने जब यह नारा दिया था, उसमें पिछड़े का मतलब हर वो कमजोर वर्ग था जो दमन का शिकार था। अखिलेश यादव भी ऐसे ही लोगों के साथ खड़े हैं। लोहिया के इसी फॉर्मूले को उन्होंने PDA का नाम दिया है। भाजपा PDA को बता रही परिवार डेवलपमेंट अथॉरिटी
सपा के PDA को भाजपा परिवार डेवलपमेंट अथॉरिटी बताती रही है। विधान परिषद में कई बार नेता सदन केशव मौर्य PDA का यही फुल फॉर्म बता चुके हैं। भाजपा के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर जो पहले सपा के सहयोगी थे, वे भी इसे परिवारवाद से जोड़कर ही बताते हैं। देखना दिलचस्प होगा कि क्या सपा का PDA फॉर्मूला 2027 में जनता स्वीकार करेगी या जाति जनगणना के बहाने भाजपा का मंडल-कमंडल का मिश्रण भारी पड़ेगा? ———————— ये खबर भी पढ़ें… रामगोपाल यादव बोले– व्योमिका सिंह जाटव हैं, एयर मार्शल यादव, दोनों की जाति बताकर कहा- पाकिस्तान से युद्ध PDA ने लड़ा, भाजपा श्रेय ले रही ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ीं कर्नल सोफिया के बाद अब विंग कमांडर व्योमिका सिंह के बारे में विवादित टिप्पणी की गई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा रामगोपाल यादव ने उनके लिए जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया। इनमें कुछ ऐसे शब्द हैं, जो हम लिख नहीं सकते हैं। गुरुवार को यूपी के मुरादाबाद में रामगोपाल ने कहा- ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग में कर्नल सोफिया कुरैशी के साथ शामिल विंग कमांडर व्योमिका सिंह हरियाणा की जाटव है…, *** हैं। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
अखिलेश PDA के नए-नए अर्थ बता रहे:ब्राह्मण, क्षत्रिय भी मंच पर; 2027 चुनाव में यादव-मुस्लिम से आगे जाकर बंटेंगे टिकट
