पंजाब के अमृतसर में किसी भी पार्टी को बहुमत न मिलने से मेयर पद के लिए मुकाबला कड़ा होता जा रहा है। कांग्रेस निर्दलीय उम्मीदवारों को साधने की कोशिश में जुटी है। वहीं, सत्ताधारी पार्टी बहुमत हासिल करने के लिए निर्दलीय उम्मीदवारों को साधने की कोशिश कर रही है। चर्चा यह भी है कि एक तरफ पार्टियां अपने पार्षदों को जुटा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ निर्दलीयों की कीमत बढ़ती जा रही है। दरअसल, अमृतसर में कांग्रेस 40 का आंकड़ा पाकर भी बहुमत से दूर है। अमृतसर नगर निगम में कुल 85 पार्षद हैं। अगर निगम सीमा में आने वाले 7 विधायकों के वोट मिल जाएं तो बहुमत के लिए 47 का आंकड़ा पहुंचना जरूरी है। अमृतसर में 8 निर्दलीय पार्षद हैं, लेकिन एक-दो को छोड़कर कोई भी कांग्रेस के पक्ष में आने को तैयार नहीं है। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी अपना गणित बैठाने में जुटी है। 24 पार्षदों के साथ वह अकाली दल और निर्दलीय उम्मीदवारों को साधने की कोशिश में जुटी है। अगर आप इसमें सफल हो जाती है तो 7 विधायकों को मिलाकर उसके पक्ष में 43 वोट हो जाएंगे। जो कांग्रेस के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। बहुमत नहीं बना तो होगी वोटिंग, जिसके पास ज्यादा वोट होंगे वही मेयर बनेगा साल 2000 में बीजेपी के मेयर सुभाष शर्मा को एक विवादित मामले में फंसने के बाद पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद कांग्रेस और बीजेपी के बीच अपना-अपना मेयर चुनने की कोशिशें शुरू हो गईं। दोनों ही पार्टियों के पास बहुमत नहीं था, इसलिए आखिरकार बैलेट पेपर से वोटिंग हुई और सुनील दत्ती मेयर बने। उस समय भी पार्षदों को अपने पक्ष में करने के लिए काफी प्रयास किए गए थे। अब भी यही स्थिति बन रही है। न तो कांग्रेस और न ही आम आदमी पार्टी के पास पर्याप्त पार्षद हैं। ऐसे में मेयर का बैलेट पेपर से चुना जाना तय माना जा रहा है। ऐसे में जिस पार्टी के पक्ष में ज्यादा वोट आएंगे, उसका मेयर बनेगा। पार्षदों के बढ़ते दाम इस पूरे खेल में पार्षदों के दाम बढ़ते जा रहे हैं। एक पार्षद ने बताया कि निर्दलीय पार्षदों को मोटी रकम ऑफर की जा रही है। हालांकि दैनिक भास्कर इसकी पुष्टि नहीं करता। लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि दोनों ही पार्टियां पार्षदों को अपनी ओर झुकाने की पूरी कोशिश कर रही हैं। इसके साथ ही सभी पार्टियां अपने पार्षदों को लेकर भी चिंतित हैं। पार्षदों को शपथ दिलाई जा रही है कि वे दूसरे के खेमे में नहीं जाएंगे। कुछ पार्टियों ने इस संबंध में बैठकें भी की हैं। फिलहाल पार्षद शपथ दिलाए जाने का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे अपने वार्डों में काम शुरू कर सकें। पंजाब के अमृतसर में किसी भी पार्टी को बहुमत न मिलने से मेयर पद के लिए मुकाबला कड़ा होता जा रहा है। कांग्रेस निर्दलीय उम्मीदवारों को साधने की कोशिश में जुटी है। वहीं, सत्ताधारी पार्टी बहुमत हासिल करने के लिए निर्दलीय उम्मीदवारों को साधने की कोशिश कर रही है। चर्चा यह भी है कि एक तरफ पार्टियां अपने पार्षदों को जुटा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ निर्दलीयों की कीमत बढ़ती जा रही है। दरअसल, अमृतसर में कांग्रेस 40 का आंकड़ा पाकर भी बहुमत से दूर है। अमृतसर नगर निगम में कुल 85 पार्षद हैं। अगर निगम सीमा में आने वाले 7 विधायकों के वोट मिल जाएं तो बहुमत के लिए 47 का आंकड़ा पहुंचना जरूरी है। अमृतसर में 8 निर्दलीय पार्षद हैं, लेकिन एक-दो को छोड़कर कोई भी कांग्रेस के पक्ष में आने को तैयार नहीं है। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी अपना गणित बैठाने में जुटी है। 24 पार्षदों के साथ वह अकाली दल और निर्दलीय उम्मीदवारों को साधने की कोशिश में जुटी है। अगर आप इसमें सफल हो जाती है तो 7 विधायकों को मिलाकर उसके पक्ष में 43 वोट हो जाएंगे। जो कांग्रेस के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। बहुमत नहीं बना तो होगी वोटिंग, जिसके पास ज्यादा वोट होंगे वही मेयर बनेगा साल 2000 में बीजेपी के मेयर सुभाष शर्मा को एक विवादित मामले में फंसने के बाद पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद कांग्रेस और बीजेपी के बीच अपना-अपना मेयर चुनने की कोशिशें शुरू हो गईं। दोनों ही पार्टियों के पास बहुमत नहीं था, इसलिए आखिरकार बैलेट पेपर से वोटिंग हुई और सुनील दत्ती मेयर बने। उस समय भी पार्षदों को अपने पक्ष में करने के लिए काफी प्रयास किए गए थे। अब भी यही स्थिति बन रही है। न तो कांग्रेस और न ही आम आदमी पार्टी के पास पर्याप्त पार्षद हैं। ऐसे में मेयर का बैलेट पेपर से चुना जाना तय माना जा रहा है। ऐसे में जिस पार्टी के पक्ष में ज्यादा वोट आएंगे, उसका मेयर बनेगा। पार्षदों के बढ़ते दाम इस पूरे खेल में पार्षदों के दाम बढ़ते जा रहे हैं। एक पार्षद ने बताया कि निर्दलीय पार्षदों को मोटी रकम ऑफर की जा रही है। हालांकि दैनिक भास्कर इसकी पुष्टि नहीं करता। लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि दोनों ही पार्टियां पार्षदों को अपनी ओर झुकाने की पूरी कोशिश कर रही हैं। इसके साथ ही सभी पार्टियां अपने पार्षदों को लेकर भी चिंतित हैं। पार्षदों को शपथ दिलाई जा रही है कि वे दूसरे के खेमे में नहीं जाएंगे। कुछ पार्टियों ने इस संबंध में बैठकें भी की हैं। फिलहाल पार्षद शपथ दिलाए जाने का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे अपने वार्डों में काम शुरू कर सकें। पंजाब | दैनिक भास्कर
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