2024 में बंपर हार के करीब 1 साल बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सोमवार को अमेठी लौटीं। 355 दिन बाद की यह वापसी दीदी का कमबैक माना जा रहा है। गौरीगंज की जनसभा में 2029 के रण का बिगुल फूंकते हुए स्मृति ने कहा कि अमेठी के लोगों से मेरा दीदी का रिश्ता अब मेरी अर्थी उठने के बाद ही टूटेगा। स्मृति के आने से पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं में उत्साह साफ झलक रहा था। प्रधान संघ के जिलाध्यक्ष अरविंद शुक्ला कहते हैं- 2024 की कमी, हम 2029 में मूल-ब्याज के साथ लौटाएंगे। स्मृति ईरानी ने जिस तरीके से एक-एक कार्यकर्ताओं के नाम मंच से पुकारे, उनकी पीड़ा सुनी, उससे साफ हो गया कि वह अमेठी छोड़कर जाने वाली नहीं। अमेठी से स्मृति ईरानी की हार की वजह क्या थी? करीब एक साल तक क्यों वह अमेठी से दूर रहीं? अमेठी का गढ़ फिर से जीतने के लिए क्या है उनकी रणनीति? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पहले जानिए स्मृति ईरानी की हार की वजह क्या थी वरिष्ठ पत्रकार पंकज सिंह कहते हैं- 2024 में अमेठी में बीजेपी सिर्फ स्मृति ईरानी की वजह से नहीं हारी। अगर सिर्फ ईरानी की हार होती, तो यूपी का परिणाम दूसरा होता। ये मानना होगा कि 2024 में यूपी बीजेपी के प्रति पूरे प्रदेश में एंटी इनकंबेंसी थी। जो पार्टी महसूस नहीं कर पा रही थी। अमेठी भी उससे प्रभावित हुआ। नहीं तो जो कांग्रेस विधानसभा में 2 सीट बड़ी मुश्किल से जीत पाई थी, वो लोकसभा में 6 सीटें कैसे जीत गई। इसके दो कारण हैं। पहला- प्रदेशव्यापी जो एंटी बीजेपी माहौल बना था, उसमें सरकार और संगठन स्तर पर तालमेल नहीं था। दूसरा- स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ता उदासीन हो गया। संगठन ये मानकर बैठ गया कि मोदी-योगी और राम मंदिर बनने की लहर से नैया पार हो जाएगी। उसका बड़ा नुकसान हुआ। प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली के अलावा स्थानीय स्तर पर जनप्रतिनिधि के व्यवहार को लेकर भी लोगों में नाराजगी थी। कई बार वोटर विकल्प तलाशता रहता है। राष्ट्रीय परिदृश्य में देखें तो दिल्ली में AAP इसी तरह का विकल्प बनकर सत्ता में आई थी। वैसे ही मेरा मानना है कि किशोरी लाल शर्मा कोई प्रादेशिक स्तर के नेता नहीं थे। लेकिन प्रदेश स्तर पर जो माहौल एंटी बीजेपी और एंटी स्मृति का बना, उसमें किशोरी लाल एक विकल्प के रूप में चुन लिए गए। अगर किशोरी लाल शर्मा की जगह कोई दूसरा होता, तो वो भी जीत जाता। एक साल अमेठी से दूरी की वजह क्या रही? स्मृति ईरानी जब 2014 के लोकसभा में प्रत्याशी बनी थीं, तो चुनाव प्रचार के लिए सिर्फ 22 दिन मिले थे। उस चुनाव में उन्होंने राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी थी। बड़ी मुश्किल से वो चुनाव जीते थे। इसके बाद भी स्मृति ईरानी केंद्र में मंत्री बनीं। लेकिन, पूरे 5 साल तक अमेठी में लोगों के बीच सक्रिय रहीं। दूसरी ओर, राहुल गांधी कभी आए ही नहीं। स्मृति ईरानी ने बिना अमेठी का जनप्रतिनिधि बने ही क्षेत्र में सड़क, पुल, फैक्ट्री आदि के कई काम कराए। लोगों के सुख-दुख में शामिल हुईं। 2019 के चुनाव में जनता ने उन्हें अमेठी से चुन लिया। खुद मंच से स्मृति ईरानी के कार्यों की सूची सलोन के विधायक अशोक कोरी, प्रभारी मंत्री सतीश शर्मा, पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह ने गिनाई। बताया कि उनके कार्यकाल में अमेठी में 25 हजार करोड़ के काम हुए। यहां तक कि स्मृति ईरानी ने गौरीगंज में अपना घर तक बनवा लिया है। फिर भी स्मृति ईरानी अमेठी में पिछला लोकसभा चुनाव हार गईं। यही कारण है कि जब वे करीब 1 साल बाद अमेठी के गौरीगंज में एक जनसभा में पहुंची तो उनका ये दर्द छलक पड़ा। उन्होंने बड़े करीने और इशारे से अपनी हार की टीस को बयां किया। बोली- मैं अमेठी में दीदी बनकर घर गढ़ने आई थी। भाइयों की जिम्मेदारी होती है घर की सुरक्षा की। उनका इशारा संगठन की ओर ही था। राजनीतिक जानकारों की मानें, तो शायद यही टीस अमेठी में उनकी वापसी में रोड़ा थी। लेकिन, वक्त के साथ सारे घाव भरने लगते हैं। यही कारण है कि जब एक साल बाद स्मृति ईरानी से लौटने की वजह पूछी गई, तो वे बोलीं कि मैं अमेठी से दूर कभी रही ही नहीं। अमेठी और मेरा रिश्ता दीदी का है, जो मेरी अर्थी उठने के बाद ही टूटेगा। रिश्ते की गर्मजोशी को ताजा कर स्मृति ने दिया संदेश स्मृति ईरानी ने गौरीगंज की सभा से एक बार फिर ये सियासी संदेश देने की कोशिश की है कि अमेठी उनके लिए सिर्फ एक चुनावी क्षेत्र भर नहीं है। उनके भाषण- मुझे यहां से मेहमान की तरह बुलाया गया, लेकिन मेरा रिश्ता खून से नहीं, संघर्ष से है। यह रिश्ता तब तक चलेगा, जब तक मेरी अर्थी नहीं उठती। इसके जरिए उन्होंने बता दिया कि वे मैदान से हटी नहीं हैं। अब भी वे डटी हैं। उनका लक्ष्य 2029 का लोकसभा चुनाव है। खुद पार्टी के कई पदाधिकारियों ने भी मंच से माना कि 2024 की चुनावी हार का बदला वे ब्याज समेत अगली बार चुकता कर देंगे। इस कार्यक्रम में एक खास बात ये रही कि किसी भी वक्ता ने मौजूदा कांग्रेस सांसद किशोरी लाल शर्मा या गांधी परिवार के किसी सदस्य का नाम नहीं लिया। स्मृति ईरानी ने अपने कार्यकाल में कराए गए कार्यों की सूची गिनाई। ये भी कहा कि अमेठी में मैं भले 11 महीने बाद आई हूं, लेकिन अमेठी से कभी दूर नहीं हुई। यह मेरी जन्मभूमि भले न हो, लेकिन यह मेरी कर्मभूमि है। आपने 11 सालों में मुझे दीदी बनाकर जो सम्मान दिया, मैं उसे जीवन भर नहीं भूलूंगी। सियासी पंडित मानते हैं कि स्मृति ईरानी ने गौरीगंज की सभा से इमोशनल रिश्ता अमेठी के लोगों से जोड़ा है। यह न केवल उनकी सियासी जमीन को मजबूत करेगा, बल्कि पिछली बार जो बाहरी बनाम स्थानीय का मुद्दा उछला था, उसकी धार भी कुंद कर देगा। जानकार बताते हैं, पिछली बार संगठन ने मान लिया था कि स्मृति ईरानी चुनाव जीत रही हैं। इसलिए जमीनी स्तर पर उतना प्रयास नहीं किया गया। यही वजह है कि 2029 के लिए स्मृति ईरानी ने अभी से यहां के लोगों के बीच जाकर मिलना शुरू कर दिया है। वही पुराना अंदाज, वैसा ही तेवर
स्मृति ईरानी भले ही गौरीगंज के कार्यक्रम में शामिल होने आई थीं। लेकिन जैसे ही उन्होंने सुना कि जगदीशपुर में एक परिवार के तीन लोगों की गंगा में डूबने से मौत हो गई है, वो झट से उस परिवार से मिलने पहुंच गईं। उन्होंने परिवार को ढांढस बंधाया और हरसंभव मदद दिलाने का भरोसा भी दिया। वहीं, जब इस हादसे में पिता को खो चुकी एक बेटी फफक कर रोने लगी, तो उसे गले लगा कर बड़ी बहन की तरह सांत्वना भी दी। गौरीगंज स्थिति पार्टी कार्यालय में शुक्ल बाजार मंडल अध्यक्ष शंकर बख्श सिंह अपने भाई के साथ मिलने पहुंचे तो उनके आंसू छलक पड़े। बोले, दीदी आपके बिना हम कार्यकर्ता अनाथ महसूस कर रहे थे। फिर पुलिस की ज्यादती के बारे में बताया। प्रशासन की मौजूदगी में उनकी जमीन का पैमाइश हुई। कब्जा दिलाया गया। लेकिन, बाद में एससी परिवार की महिलाओं के मारपीट करने पर पुलिस ने दोनों ओर से जानलेवा हमले का प्रकरण दर्ज कर लिया। स्मृति ईरानी ने पार्टी पदाधिकारियों को मदद करने के निर्देश दिए। कहा, ऐसा करने वाले पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने पार्टी कार्यालय में जिलाध्यक्ष सुधांशु शुक्ला पर पुष्प वर्षा करते हुए उनको सम्मानित भी किया। फिर मंच से बताया कि जब वे पहली बार अमेठी आई थीं, तो सुधांशु युवा साथियों के साथ मेरे कार्यक्रम की व्यवस्था संभाल रहे थे। तब मैंने बुलाकर कहा था कि बेटा इसी तरह लगन से पार्टी की सेवा करते रहो, बहुत आगे जाओगे। आज वही युवक पार्टी का जिलाध्यक्ष बनकर मेरे साथ खड़ा है। पार्टी कार्यालय में उन्होंने एक-एक कार्यकर्ता से बात की। सेल्फी लेने वाले कार्यकर्ताओं को भी निराश नहीं किया। ————————– ये खबर भी पढ़ें… स्मृति से सवाल- अमेठी ने साढ़े 11 महीने इंतजार किया?, अब कब आएंगी, मुस्कुराकर दिया जवाब- मेरा नाता टूटा ही कब था लोकसभा चुनाव हारने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सोमवार को पहली बार अमेठी पहुंचीं। वह 355 दिन बाद अमेठी आईं। स्मृति ने यहां अहिल्या बाई होल्कर जयंती पर आयोजित एक जनसभा को संबोधित किया। स्मृति ईरानी ने कहा- मैं मजदूर हूं, मुझे अमीरों की बस्ती से क्या? उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर की कविता भी पढ़ी। पढ़ें पूरी खबर 2024 में बंपर हार के करीब 1 साल बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सोमवार को अमेठी लौटीं। 355 दिन बाद की यह वापसी दीदी का कमबैक माना जा रहा है। गौरीगंज की जनसभा में 2029 के रण का बिगुल फूंकते हुए स्मृति ने कहा कि अमेठी के लोगों से मेरा दीदी का रिश्ता अब मेरी अर्थी उठने के बाद ही टूटेगा। स्मृति के आने से पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं में उत्साह साफ झलक रहा था। प्रधान संघ के जिलाध्यक्ष अरविंद शुक्ला कहते हैं- 2024 की कमी, हम 2029 में मूल-ब्याज के साथ लौटाएंगे। स्मृति ईरानी ने जिस तरीके से एक-एक कार्यकर्ताओं के नाम मंच से पुकारे, उनकी पीड़ा सुनी, उससे साफ हो गया कि वह अमेठी छोड़कर जाने वाली नहीं। अमेठी से स्मृति ईरानी की हार की वजह क्या थी? करीब एक साल तक क्यों वह अमेठी से दूर रहीं? अमेठी का गढ़ फिर से जीतने के लिए क्या है उनकी रणनीति? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पहले जानिए स्मृति ईरानी की हार की वजह क्या थी वरिष्ठ पत्रकार पंकज सिंह कहते हैं- 2024 में अमेठी में बीजेपी सिर्फ स्मृति ईरानी की वजह से नहीं हारी। अगर सिर्फ ईरानी की हार होती, तो यूपी का परिणाम दूसरा होता। ये मानना होगा कि 2024 में यूपी बीजेपी के प्रति पूरे प्रदेश में एंटी इनकंबेंसी थी। जो पार्टी महसूस नहीं कर पा रही थी। अमेठी भी उससे प्रभावित हुआ। नहीं तो जो कांग्रेस विधानसभा में 2 सीट बड़ी मुश्किल से जीत पाई थी, वो लोकसभा में 6 सीटें कैसे जीत गई। इसके दो कारण हैं। पहला- प्रदेशव्यापी जो एंटी बीजेपी माहौल बना था, उसमें सरकार और संगठन स्तर पर तालमेल नहीं था। दूसरा- स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ता उदासीन हो गया। संगठन ये मानकर बैठ गया कि मोदी-योगी और राम मंदिर बनने की लहर से नैया पार हो जाएगी। उसका बड़ा नुकसान हुआ। प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली के अलावा स्थानीय स्तर पर जनप्रतिनिधि के व्यवहार को लेकर भी लोगों में नाराजगी थी। कई बार वोटर विकल्प तलाशता रहता है। राष्ट्रीय परिदृश्य में देखें तो दिल्ली में AAP इसी तरह का विकल्प बनकर सत्ता में आई थी। वैसे ही मेरा मानना है कि किशोरी लाल शर्मा कोई प्रादेशिक स्तर के नेता नहीं थे। लेकिन प्रदेश स्तर पर जो माहौल एंटी बीजेपी और एंटी स्मृति का बना, उसमें किशोरी लाल एक विकल्प के रूप में चुन लिए गए। अगर किशोरी लाल शर्मा की जगह कोई दूसरा होता, तो वो भी जीत जाता। एक साल अमेठी से दूरी की वजह क्या रही? स्मृति ईरानी जब 2014 के लोकसभा में प्रत्याशी बनी थीं, तो चुनाव प्रचार के लिए सिर्फ 22 दिन मिले थे। उस चुनाव में उन्होंने राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी थी। बड़ी मुश्किल से वो चुनाव जीते थे। इसके बाद भी स्मृति ईरानी केंद्र में मंत्री बनीं। लेकिन, पूरे 5 साल तक अमेठी में लोगों के बीच सक्रिय रहीं। दूसरी ओर, राहुल गांधी कभी आए ही नहीं। स्मृति ईरानी ने बिना अमेठी का जनप्रतिनिधि बने ही क्षेत्र में सड़क, पुल, फैक्ट्री आदि के कई काम कराए। लोगों के सुख-दुख में शामिल हुईं। 2019 के चुनाव में जनता ने उन्हें अमेठी से चुन लिया। खुद मंच से स्मृति ईरानी के कार्यों की सूची सलोन के विधायक अशोक कोरी, प्रभारी मंत्री सतीश शर्मा, पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह ने गिनाई। बताया कि उनके कार्यकाल में अमेठी में 25 हजार करोड़ के काम हुए। यहां तक कि स्मृति ईरानी ने गौरीगंज में अपना घर तक बनवा लिया है। फिर भी स्मृति ईरानी अमेठी में पिछला लोकसभा चुनाव हार गईं। यही कारण है कि जब वे करीब 1 साल बाद अमेठी के गौरीगंज में एक जनसभा में पहुंची तो उनका ये दर्द छलक पड़ा। उन्होंने बड़े करीने और इशारे से अपनी हार की टीस को बयां किया। बोली- मैं अमेठी में दीदी बनकर घर गढ़ने आई थी। भाइयों की जिम्मेदारी होती है घर की सुरक्षा की। उनका इशारा संगठन की ओर ही था। राजनीतिक जानकारों की मानें, तो शायद यही टीस अमेठी में उनकी वापसी में रोड़ा थी। लेकिन, वक्त के साथ सारे घाव भरने लगते हैं। यही कारण है कि जब एक साल बाद स्मृति ईरानी से लौटने की वजह पूछी गई, तो वे बोलीं कि मैं अमेठी से दूर कभी रही ही नहीं। अमेठी और मेरा रिश्ता दीदी का है, जो मेरी अर्थी उठने के बाद ही टूटेगा। रिश्ते की गर्मजोशी को ताजा कर स्मृति ने दिया संदेश स्मृति ईरानी ने गौरीगंज की सभा से एक बार फिर ये सियासी संदेश देने की कोशिश की है कि अमेठी उनके लिए सिर्फ एक चुनावी क्षेत्र भर नहीं है। उनके भाषण- मुझे यहां से मेहमान की तरह बुलाया गया, लेकिन मेरा रिश्ता खून से नहीं, संघर्ष से है। यह रिश्ता तब तक चलेगा, जब तक मेरी अर्थी नहीं उठती। इसके जरिए उन्होंने बता दिया कि वे मैदान से हटी नहीं हैं। अब भी वे डटी हैं। उनका लक्ष्य 2029 का लोकसभा चुनाव है। खुद पार्टी के कई पदाधिकारियों ने भी मंच से माना कि 2024 की चुनावी हार का बदला वे ब्याज समेत अगली बार चुकता कर देंगे। इस कार्यक्रम में एक खास बात ये रही कि किसी भी वक्ता ने मौजूदा कांग्रेस सांसद किशोरी लाल शर्मा या गांधी परिवार के किसी सदस्य का नाम नहीं लिया। स्मृति ईरानी ने अपने कार्यकाल में कराए गए कार्यों की सूची गिनाई। ये भी कहा कि अमेठी में मैं भले 11 महीने बाद आई हूं, लेकिन अमेठी से कभी दूर नहीं हुई। यह मेरी जन्मभूमि भले न हो, लेकिन यह मेरी कर्मभूमि है। आपने 11 सालों में मुझे दीदी बनाकर जो सम्मान दिया, मैं उसे जीवन भर नहीं भूलूंगी। सियासी पंडित मानते हैं कि स्मृति ईरानी ने गौरीगंज की सभा से इमोशनल रिश्ता अमेठी के लोगों से जोड़ा है। यह न केवल उनकी सियासी जमीन को मजबूत करेगा, बल्कि पिछली बार जो बाहरी बनाम स्थानीय का मुद्दा उछला था, उसकी धार भी कुंद कर देगा। जानकार बताते हैं, पिछली बार संगठन ने मान लिया था कि स्मृति ईरानी चुनाव जीत रही हैं। इसलिए जमीनी स्तर पर उतना प्रयास नहीं किया गया। यही वजह है कि 2029 के लिए स्मृति ईरानी ने अभी से यहां के लोगों के बीच जाकर मिलना शुरू कर दिया है। वही पुराना अंदाज, वैसा ही तेवर
स्मृति ईरानी भले ही गौरीगंज के कार्यक्रम में शामिल होने आई थीं। लेकिन जैसे ही उन्होंने सुना कि जगदीशपुर में एक परिवार के तीन लोगों की गंगा में डूबने से मौत हो गई है, वो झट से उस परिवार से मिलने पहुंच गईं। उन्होंने परिवार को ढांढस बंधाया और हरसंभव मदद दिलाने का भरोसा भी दिया। वहीं, जब इस हादसे में पिता को खो चुकी एक बेटी फफक कर रोने लगी, तो उसे गले लगा कर बड़ी बहन की तरह सांत्वना भी दी। गौरीगंज स्थिति पार्टी कार्यालय में शुक्ल बाजार मंडल अध्यक्ष शंकर बख्श सिंह अपने भाई के साथ मिलने पहुंचे तो उनके आंसू छलक पड़े। बोले, दीदी आपके बिना हम कार्यकर्ता अनाथ महसूस कर रहे थे। फिर पुलिस की ज्यादती के बारे में बताया। प्रशासन की मौजूदगी में उनकी जमीन का पैमाइश हुई। कब्जा दिलाया गया। लेकिन, बाद में एससी परिवार की महिलाओं के मारपीट करने पर पुलिस ने दोनों ओर से जानलेवा हमले का प्रकरण दर्ज कर लिया। स्मृति ईरानी ने पार्टी पदाधिकारियों को मदद करने के निर्देश दिए। कहा, ऐसा करने वाले पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने पार्टी कार्यालय में जिलाध्यक्ष सुधांशु शुक्ला पर पुष्प वर्षा करते हुए उनको सम्मानित भी किया। फिर मंच से बताया कि जब वे पहली बार अमेठी आई थीं, तो सुधांशु युवा साथियों के साथ मेरे कार्यक्रम की व्यवस्था संभाल रहे थे। तब मैंने बुलाकर कहा था कि बेटा इसी तरह लगन से पार्टी की सेवा करते रहो, बहुत आगे जाओगे। आज वही युवक पार्टी का जिलाध्यक्ष बनकर मेरे साथ खड़ा है। पार्टी कार्यालय में उन्होंने एक-एक कार्यकर्ता से बात की। सेल्फी लेने वाले कार्यकर्ताओं को भी निराश नहीं किया। ————————– ये खबर भी पढ़ें… स्मृति से सवाल- अमेठी ने साढ़े 11 महीने इंतजार किया?, अब कब आएंगी, मुस्कुराकर दिया जवाब- मेरा नाता टूटा ही कब था लोकसभा चुनाव हारने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सोमवार को पहली बार अमेठी पहुंचीं। वह 355 दिन बाद अमेठी आईं। स्मृति ने यहां अहिल्या बाई होल्कर जयंती पर आयोजित एक जनसभा को संबोधित किया। स्मृति ईरानी ने कहा- मैं मजदूर हूं, मुझे अमीरों की बस्ती से क्या? उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर की कविता भी पढ़ी। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
अमेठी में स्मृति ने किया कमबैक का ऐलान:बोलीं- अर्थी उठेगी, तब यहां से रिश्ता टूटेगा; 2029 की लड़ाई का बिगुल फूंका
