यूपी की सियासत में बसपा के घटते ग्राफ और हाशिए पर जा रही पार्टी का वजूद बचाने के लिए क्या मायावती आकाश के बाद ईशान को भी मैदान में उतारने जा रही हैं? पहले जन्मदिन के मौके पर, उसके बाद पार्टी की बैठक में ईशान का परिचय कराकर मायावती ने इसके संकेत दिए हैं। हालांकि मायावती इसे ईशान की राजनीति का आगाज बताने से बचती रहीं। उन्होंने साफ कहा, ‘ये ईशान आनंद हैं। पढ़ाई पूरी कर लौटे हैं और फिलहाल पिता के कारोबार में हाथ बंटा रहे हैं।’ लेकिन ईशान के सामने आने के बाद से राजनीतिक हल्कों में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि आकाश के बाद अब ईशान सियासी मंच पर नजर आएंगे? पहले जानते हैं कौन है ईशान?
ईशान मायावती के छोटे भाई आनंद के छोटे बेटे हैं। वह हाल ही में लंदन से लॉ की पढ़ाई कर लौटे हैं। 26 साल के ईशान, आकाश से तीन साल छोटे हैं। ईशान दिल्ली में रहकर अपने पिता के कारोबार में हाथ बंटा रहे हैं। मायावती आनंद के बड़े बेटे आकाश को पहले ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुकी हैं। अब मायावती का यह नया प्रयोग पार्टी को कितना फायदा पहुंचाता है, यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन राजनीति के जानकारों का कहना है कि जल्द ही आकाश की तरह ईशान भी सार्वजनिक मंचों पर बसपा के लिए वोट मांगते नजर आएंगे। कैसे हुई थी आकाश की एंट्री
मायावती लगभग 7 साल पहले आकाश आनंद को भी पहली बार कुछ इसी अंदाज में लोगों के सामने लेकर आई थीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में मायावती की पार्टी की बड़ी हार हुई थी। इसके बाद शब्बीरपुर में दो वर्गों में संघर्ष हुआ तो मायावती मौके पर अपने भतीजे आकाश को लेकर पहुंचीं। बाद में 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने आकाश आनंद को स्टार प्रचारकों की सूची में दूसरे नंबर पर रखा था। 2023 में मायावती ने आकाश को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। 2024 के लोकसभा चुनाव में सीतापुर में एक बयान के बाद उन्हें सभी पदों से हटा दिया गया था। मायावती ने कहा था आकाश को अभी और परिपक्व होने की जरूरत है। हालांकि चुनाव में बसपा के खराब प्रदर्शन के बाद आकाश की कुछ ही दिन में वापसी हो गई। दूसरी बार जिम्मेदारी संभालने के बाद आकाश ने मीडिया से दूरी बना ली। चंद्रशेखर से मुकाबले के लिए दो भाइयों की जोड़ी?
बसपा की इस समय सबसे बड़ी जद्दोजहद अपना वोट बैंक बनाए रखने की है। इसमें सेंधमारी की कोशिश अलग-अलग पार्टी कर रही हैं। बसपा को सबसे ज्यादा किसी से नुकसान या खतरा समझ में आ रहा है तो वह है आजाद समाज पार्टी कांशीराम के संस्थापक चंद्रशेखर से। पश्चिमी यूपी में चंद्रशेखर ने मायावती के वोट बैंक में सेंधमारी की है। जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में चंद्रशेखर से मुकाबला करने के लिए दोनों भाई एक साथ नजर आएंगे। 2027 में यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव में दोनों भाइयों की जोड़ी एक साथ नजर आ सकती है। हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि मायावती ईशान को राजनीति का ककहरा सिखाने के लिए पब्लिक प्लेटफार्म पर ले कर आई हैं। उनकी कोशिश पानी में फेंके गए पत्थर की तरह है ताकि अंदाजा हो सके कि इसकी लहर या हलचल कहां तक है? … तो मायावती भी परिवारवाद के चक्रव्यूह में? दलित चिंतक और लखनऊ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि ईशान के राजनीति में आने से कोई खास फायदा नहीं होगा। बल्कि नुकसान होने के चांस ज्यादा हैं। क्योंकि इन पर सीधे तौर पर परिवारवाद का आरोप लगने लगेगा। हालांकि दूसरे दलों में भी कई नेता ऐसे हैं जिनकी विरासत उनकी दूसरी पीढ़ी संभाल रही है। लेकिन पार्टी में बड़े ओहदे पर सपा के बाद अब बसपा का नाम लिया जाएगा। वजह साफ है कि मायावती आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी पहले ही घोषित कर चुकी हैं। अब ईशान के आने से परिवारवाद का आरोप लगाने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी ही होगी। रविकांत कहते हैं कि तलाश करने पर और भी चेहरे ऐसे मिल जाएंगे जो पार्टी को आगे ले जा सकते हैं। बसपा को वजूद बचाने की चिंता
वरिष्ठ पत्रकार और बसपा को करीब से कवर करने वाले सैयद कासिम कहते हैं कि बसपा की इस समय की सबसे बड़ी चिंता अपना वजूद बचाने की है। मायावती चाहती हैं कि उनके पुराने दिन लौट आएं। ऐसे में अब नई पीढ़ी अगर संघर्ष करती है, तभी यह संभव हो सकता है। क्योंकि पार्टी को अपना वजूद बचाने के लिए अपने समाज के लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए उसे जमीन पर उतरना होगा। पुराने नेताओं पर भरोसा करना होगा और नए लोगों को अपनी पार्टी में जॉइन कराना होगा। हालांकि सैयद कासिम कहते हैं कि बसपा कार्यालय या मायावती के साथ ईशान इसलिए नजर आ रहे हैं क्योंकि मायावती इस बार अपने जन्मदिन पर दिल्ली नहीं गईं। उन्होंने परिवार के लोगों को यहीं बुला लिया। मायावती ने बसपा के पदाधिकारियों के साथ बैठक में इस बात को साफ भी किया है। मायावती ने बैठक में अपने कार्यकर्ताओं को बता दिया है कि वह हमारे परिवार के सदस्य होने के नाते कार्यक्रम में आए हैं। यह राजनीति में नहीं आ रहे हैं। ये अपने पिता का कारोबार संभाल रहे हैं। आकाश सफल या असफल?
आकाश आनंद को पहली बार शब्बीरपुर हिंसा के दौरान मायावती अपने साथ लेकर गई थीं। उसके बाद 2019 के चुनाव में आगरा की सभा से पहले जब मायावती पर चुनाव आयोग ने भाषण देने पर रोक लगाई तो आकाश आनंद वहां पहुंचे थे। भाषण दिया था। यह भी सच है कि आकाश का संगठन में फिलहाल कोई दखल नहीं है। अभी तक उनका इस्तेमाल पार्टी ने एक प्रचारक के तौर पर किया है। ऐसे में अभी आकाश के हाथ कोई खास सफलता नहीं लगी है। ——————— पढ़ें पूरी खबर… मायावती दूसरे दिन भी छोटे भतीजे को लेकर पहुंचीं:जिलाध्यक्षों से बोलीं- पार्टी के लिए पैसे जुटाएं, सत्ता की मास्टर चाबी हासिल करनी है बसपा सुप्रीमो मायावती लगातार दूसरे दिन गुरुवार को भी अपने छोटे भतीजे ईशान को साथ लेकर लखनऊ में पार्टी ऑफिस पहुंचीं। बड़े भतीजे आकाश आनंद भी साथ रहे। इससे पहले बुधवार को मायावती अपने बर्थडे पर पहली बार छोटे भतीजे ईशान को सामने लाई थीं। (पढ़ें पूरी खबर) यूपी की सियासत में बसपा के घटते ग्राफ और हाशिए पर जा रही पार्टी का वजूद बचाने के लिए क्या मायावती आकाश के बाद ईशान को भी मैदान में उतारने जा रही हैं? पहले जन्मदिन के मौके पर, उसके बाद पार्टी की बैठक में ईशान का परिचय कराकर मायावती ने इसके संकेत दिए हैं। हालांकि मायावती इसे ईशान की राजनीति का आगाज बताने से बचती रहीं। उन्होंने साफ कहा, ‘ये ईशान आनंद हैं। पढ़ाई पूरी कर लौटे हैं और फिलहाल पिता के कारोबार में हाथ बंटा रहे हैं।’ लेकिन ईशान के सामने आने के बाद से राजनीतिक हल्कों में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि आकाश के बाद अब ईशान सियासी मंच पर नजर आएंगे? पहले जानते हैं कौन है ईशान?
ईशान मायावती के छोटे भाई आनंद के छोटे बेटे हैं। वह हाल ही में लंदन से लॉ की पढ़ाई कर लौटे हैं। 26 साल के ईशान, आकाश से तीन साल छोटे हैं। ईशान दिल्ली में रहकर अपने पिता के कारोबार में हाथ बंटा रहे हैं। मायावती आनंद के बड़े बेटे आकाश को पहले ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुकी हैं। अब मायावती का यह नया प्रयोग पार्टी को कितना फायदा पहुंचाता है, यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन राजनीति के जानकारों का कहना है कि जल्द ही आकाश की तरह ईशान भी सार्वजनिक मंचों पर बसपा के लिए वोट मांगते नजर आएंगे। कैसे हुई थी आकाश की एंट्री
मायावती लगभग 7 साल पहले आकाश आनंद को भी पहली बार कुछ इसी अंदाज में लोगों के सामने लेकर आई थीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में मायावती की पार्टी की बड़ी हार हुई थी। इसके बाद शब्बीरपुर में दो वर्गों में संघर्ष हुआ तो मायावती मौके पर अपने भतीजे आकाश को लेकर पहुंचीं। बाद में 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने आकाश आनंद को स्टार प्रचारकों की सूची में दूसरे नंबर पर रखा था। 2023 में मायावती ने आकाश को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। 2024 के लोकसभा चुनाव में सीतापुर में एक बयान के बाद उन्हें सभी पदों से हटा दिया गया था। मायावती ने कहा था आकाश को अभी और परिपक्व होने की जरूरत है। हालांकि चुनाव में बसपा के खराब प्रदर्शन के बाद आकाश की कुछ ही दिन में वापसी हो गई। दूसरी बार जिम्मेदारी संभालने के बाद आकाश ने मीडिया से दूरी बना ली। चंद्रशेखर से मुकाबले के लिए दो भाइयों की जोड़ी?
बसपा की इस समय सबसे बड़ी जद्दोजहद अपना वोट बैंक बनाए रखने की है। इसमें सेंधमारी की कोशिश अलग-अलग पार्टी कर रही हैं। बसपा को सबसे ज्यादा किसी से नुकसान या खतरा समझ में आ रहा है तो वह है आजाद समाज पार्टी कांशीराम के संस्थापक चंद्रशेखर से। पश्चिमी यूपी में चंद्रशेखर ने मायावती के वोट बैंक में सेंधमारी की है। जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में चंद्रशेखर से मुकाबला करने के लिए दोनों भाई एक साथ नजर आएंगे। 2027 में यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव में दोनों भाइयों की जोड़ी एक साथ नजर आ सकती है। हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि मायावती ईशान को राजनीति का ककहरा सिखाने के लिए पब्लिक प्लेटफार्म पर ले कर आई हैं। उनकी कोशिश पानी में फेंके गए पत्थर की तरह है ताकि अंदाजा हो सके कि इसकी लहर या हलचल कहां तक है? … तो मायावती भी परिवारवाद के चक्रव्यूह में? दलित चिंतक और लखनऊ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि ईशान के राजनीति में आने से कोई खास फायदा नहीं होगा। बल्कि नुकसान होने के चांस ज्यादा हैं। क्योंकि इन पर सीधे तौर पर परिवारवाद का आरोप लगने लगेगा। हालांकि दूसरे दलों में भी कई नेता ऐसे हैं जिनकी विरासत उनकी दूसरी पीढ़ी संभाल रही है। लेकिन पार्टी में बड़े ओहदे पर सपा के बाद अब बसपा का नाम लिया जाएगा। वजह साफ है कि मायावती आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी पहले ही घोषित कर चुकी हैं। अब ईशान के आने से परिवारवाद का आरोप लगाने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी ही होगी। रविकांत कहते हैं कि तलाश करने पर और भी चेहरे ऐसे मिल जाएंगे जो पार्टी को आगे ले जा सकते हैं। बसपा को वजूद बचाने की चिंता
वरिष्ठ पत्रकार और बसपा को करीब से कवर करने वाले सैयद कासिम कहते हैं कि बसपा की इस समय की सबसे बड़ी चिंता अपना वजूद बचाने की है। मायावती चाहती हैं कि उनके पुराने दिन लौट आएं। ऐसे में अब नई पीढ़ी अगर संघर्ष करती है, तभी यह संभव हो सकता है। क्योंकि पार्टी को अपना वजूद बचाने के लिए अपने समाज के लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए उसे जमीन पर उतरना होगा। पुराने नेताओं पर भरोसा करना होगा और नए लोगों को अपनी पार्टी में जॉइन कराना होगा। हालांकि सैयद कासिम कहते हैं कि बसपा कार्यालय या मायावती के साथ ईशान इसलिए नजर आ रहे हैं क्योंकि मायावती इस बार अपने जन्मदिन पर दिल्ली नहीं गईं। उन्होंने परिवार के लोगों को यहीं बुला लिया। मायावती ने बसपा के पदाधिकारियों के साथ बैठक में इस बात को साफ भी किया है। मायावती ने बैठक में अपने कार्यकर्ताओं को बता दिया है कि वह हमारे परिवार के सदस्य होने के नाते कार्यक्रम में आए हैं। यह राजनीति में नहीं आ रहे हैं। ये अपने पिता का कारोबार संभाल रहे हैं। आकाश सफल या असफल?
आकाश आनंद को पहली बार शब्बीरपुर हिंसा के दौरान मायावती अपने साथ लेकर गई थीं। उसके बाद 2019 के चुनाव में आगरा की सभा से पहले जब मायावती पर चुनाव आयोग ने भाषण देने पर रोक लगाई तो आकाश आनंद वहां पहुंचे थे। भाषण दिया था। यह भी सच है कि आकाश का संगठन में फिलहाल कोई दखल नहीं है। अभी तक उनका इस्तेमाल पार्टी ने एक प्रचारक के तौर पर किया है। ऐसे में अभी आकाश के हाथ कोई खास सफलता नहीं लगी है। ——————— पढ़ें पूरी खबर… मायावती दूसरे दिन भी छोटे भतीजे को लेकर पहुंचीं:जिलाध्यक्षों से बोलीं- पार्टी के लिए पैसे जुटाएं, सत्ता की मास्टर चाबी हासिल करनी है बसपा सुप्रीमो मायावती लगातार दूसरे दिन गुरुवार को भी अपने छोटे भतीजे ईशान को साथ लेकर लखनऊ में पार्टी ऑफिस पहुंचीं। बड़े भतीजे आकाश आनंद भी साथ रहे। इससे पहले बुधवार को मायावती अपने बर्थडे पर पहली बार छोटे भतीजे ईशान को सामने लाई थीं। (पढ़ें पूरी खबर) उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर