आकाश को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाना मायावती का मास्टर-स्ट्रोक:एक तीर से 4 निशाने, चंद्रशेखर समेत सपा-भाजपा के दलित एजेंडे को देना है जवाब

आकाश को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाना मायावती का मास्टर-स्ट्रोक:एक तीर से 4 निशाने, चंद्रशेखर समेत सपा-भाजपा के दलित एजेंडे को देना है जवाब

बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर सबको चौंकाते हुए आकाश आनंद को पार्टी का चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बना दिया है। यह पद अब तक बसपा में अस्तित्व में नहीं था। यानी मायावती ने उनके लिए विशेष रूप से यह पद बनाया। साथ ही साफ संकेत भी दे दिया कि ‘अब बसपा में भविष्य की कमान धीरे-धीरे युवा हाथों में सौंपने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।’ एक तीर से 4 निशाने आकाश आनंद की वापसी को यूं ही नहीं देखा जा सकता। मायावती इसके जरिए चार बड़े राजनीतिक मोर्चों पर सेंधमारी करना चाहती हैं। कोर दलित वोटबैंक ही रहा है बसपा की ताकत
राजनीतिक जानकार मानते हैं- बसपा की स्थापना भले ही कांशीराम ने की थी, लेकिन पार्टी को बुलंदी पर मायावती ही लेकर गईं। 3 बार भाजपा के साथ गठबंधन और एक बार खुद के बलबूते यूपी में सरकार बनाने वाली मायावती की उम्र जैसे-जैसे ढल रही, पार्टी का ग्राफ भी गिरता जा रहा। मायावती ने जब यूपी की राजनीति में झंडा गाड़ा था, तब सपा से मुलायम सिंह यादव, भाजपा के कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह जैसे नेता थे। सपा में अब युवा अखिलेश यादव पार्टी का चेहरा बन चुके हैं। वहीं, भाजपा में यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य जैसे नए चेहरे स्थापित हो चुके हैं। कांग्रेस में भी पीढ़ीगत बदलाव दिख रहा है। बसपा के कोर वोटर दलित हैं। लेकिन, दलित खासकर युवाओं को आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर की आक्रामकता अधिक लुभा रही है। चंद्रशेखर और आकाश आनंद, दोनों जाटव हैं। दोनों युवा हैं, आक्रामक हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि चंद्रशेखर सड़कों पर दिखते हैं और आकाश संगठन के मंचों पर। मायावती आकाश के जरिए चंद्रशेखर की बढ़ती लोकप्रियता को संतुलित करना चाहती हैं। लेकिन, चंद्रशेखर की भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी का प्रभाव यूपी के पश्चिमी जिलों में तेजी से बढ़ा है। ऐसे में आकाश के लिए सबसे बड़ी चुनौती चंद्रशेखर की साख और अपील को चुनौती देना होगा। क्या आकाश के अलावा कोई विकल्प नहीं था
बसपा से जुड़े एक बड़े पदाधिकारी कहते हैं- आकाश कई मापदंडों पर परखे जा चुके हैं। मायावती ने 2 बार पद छीना। पिछली बार तो पार्टी से ही निकाल दिया था। पार्टी से बाहर होने के बाद आकाश न तो सार्वजनिक रूप से मायावती के खिलाफ बोले, न ही नई पार्टी बनाई। उनका यह ‘संयम’ ही अब ‘सत्ता’ में बदला है। बसपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक, ‘दो बार पद जाने के बावजूद आकाश ने न बगावत की, न शिकायत। यही मायावती को सबसे ज्यादा पसंद आया।’ दलित वोटबैंक के लिए सियासी दलों में जंग
2012 के बाद से बसपा का ग्राफ लगातार गिरा है। दलित राजनीति जो कभी जाटवों के सहारे मजबूत हुई थी, अब गैर-जाटवों की उपेक्षा का मुद्दा बन गई है। गैर-जाटव दलितों को लगने लगा है कि मायावती की पार्टी सिर्फ एक जाति विशेष की पार्टी बनकर रह गई है। इस सियासी खालीपन को भरने के लिए अन्य दलों ने तेजी से प्रयास शुरू किए। सपा ने पासी और सोनकर जातियों को तरजीह दी। भाजपा ने वाल्मीकि, खटीक और अन्य समुदायों को संगठन में जगह दी। कांग्रेस ने निजी क्षेत्र में आरक्षण का वादा कर नया दांव चला है। वहीं, चंद्रशेखर ने युवाओं में आक्रामक दलित नेतृत्व की छवि पेश की है। BSP में क्यों खास है चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर पद, क्या है संकेत
पहली बार ‘चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर’ का पद सृजित किया गया है। पहले से मौजूद तीन नेशनल को-ऑर्डिनेटर रामजी गौतम, रणधीर बेनीवाल और राजाराम, अब आकाश आनंद को रिपोर्ट करेंगे। बसपा ने पूरे देश को 3 हिस्सों में बांटा है। 8 राज्य रामजी गौतम और 7-7 राज्य राजाराम और रणधीर बेनीवाल के हिस्से में रखा गया है। आकाश हर महीने तीनों को-ऑर्डिनेटरों के हिस्से वाले राज्यों में 3-3 जाएंगे। जहां मिड पॉइंट होगा, वहां समीक्षा करेंगे। फिर उसको बसपा प्रमुख मायावती को बताएंगे। आकाश जिस भी राज्य में जाएंगे, वहां की स्टेट कमेटी उनका पूरा खर्च उठाएगी। इसके अलावा चुनाव वाले राज्यों में पब्लिक मीटिंग के लिए आकाश अलग से समय देंगे। पहली बार आकाश को पावर के साथ पद सौंपा गया है। तीसरी पब्लिक मीटिंग होंगे। वहां अलग से समय देंगे। जहां चुनाव अधिकारों के साथ। मैं नहीं जा पाती हूं। मेरी जगह आकाश जाएंगे। आकाश आनंद के पास कोई पावर नहीं था। 18 मई को दिल्ली में हुई BSP की बैठक में मायावती ने खुद आकाश को यह जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि जहां मैं नहीं जा पाती हूं, वहां मेरी जगह आकाश जाएंगे। राजनीतिक संदेश साफ है कि मायावती के बाद आकाश अब नंबर दो की हैसियत में होंगे। क्या मायावती उत्तराधिकारी तय कर रही हैं?
इसका जवाब है, फिलहाल नहीं। 13 अप्रैल को मायावती ने साफ किया था- ‘जब तक स्वस्थ हूं, पार्टी का नेतृत्व करूंगी।’ प्रोफेसर विवेक कुमार कहते हैं- जैसे कांशीराम ने अंतिम वक्त में मायावती को उत्तराधिकारी बनाया था, मायावती भी तब तक किसी को उत्तराधिकारी नहीं बनाएंगी, जब तक वह खुद सक्रिय हैं। लेकिन संकेत हैं कि वह आकाश को भविष्य के लिए तैयार कर रही हैं। मायावती ने अचानक फैसला क्यों लिया
राजनीतिक जानकार जेएनयू के प्रोफेसर विवेक कुमार के मुताबिक, मायावती ने अचानक फैसला नहीं लिया है। पिछली बार भी जब आकाश से दायित्व लिया था, तो थोड़े अंतराल के बाद ही फिर से जिम्मेदारी सौंप दी थी। उस बार तो मायावती ने आकाश को अपना उत्तराधिकारी तक बना दिया था। इस बार भी वापसी के साथ ही तय हो गया था कि देर-सवेर आकाश को कोई अहम जिम्मेदारी दी जाएगी। मायावती ने पहले से तीन नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाए थे। ऐसे में आकाश के रूप में चौथा नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाना उचित नहीं होता। आकाश उसी आनंद कुमार के बेटे हैं, जिन्हें मायावती अपने सभी भाइयों में सबसे अधिक स्नेह और विश्वास करती हैं। आनंद कुमार ने पार्टी और मायावती के लिए अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी थी। भाई आनंद को जब उनके बेटे आकाश की बजाय नेशनल को-ऑर्डिनेटर का दायित्व सौंपा था, तो उन्होंने मना कर दिया था। यही कारण है कि उनके सामने आकाश ही एक मात्र विकल्प बचते हैं। क्या मायावती संन्यास ले सकती हैं?
इसका जवाब नहीं है। खुद मायावती ने ही 13 अप्रैल को आकाश को पार्टी में वापस लेते हुए कहा था कि जब तक पूरी तरह से स्वस्थ्य रहूंगी, काम करती रहूंगी। उत्तराधिकारी बनाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। मायावती परिवार के बेहद करीबी विवेक कुमार के मुताबिक, कांशीराम ने भी अपने अंतिम समय में जब उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था, तभी मायावती को उत्तराधिकारी घोषित किया था। इसी तरह मायावती की भी जब तक सेहत ठीक रहेगी, किसी को भी उत्तराधिकारी घोषित नहीं करेंगी। लेकिन धीरे-धीरे वह आकाश या उस व्यक्ति को आगे बढ़ाएंगी, जो पार्टी को आगे ले जा सके। फिलहाल जिस तरीके से आकाश का कद बार-बार बढ़ाया जा रहा है, इससे साफ है कि उन्हें मायावती बड़ी भूमिका के लिए तैयार कर रही हैं। यूपी में दलित वोटबैंक 22%, जिसके साथ, उसकी सरकार
उत्तर प्रदेश की सियासत अर्से से दलित एजेंडे के इर्द-गिर्द घूमती रही है। वजह 22 फीसदी दलित आबादी है। इस बड़े वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिए बसपा से लेकर भाजपा, सपा, कांग्रेस और भीम आर्मी के चंद्रशेखर तक सभी दल रणनीति बुन रहे हैं। इसी वोटबैंक को साधने के लिए मायावती ने आकाश आनंद को बसपा का मुख्य राष्ट्रीय समन्वयक बनाकर पहला बड़ा दांव चला है। असली लड़ाई जाटव बनाम गैर जाटव दलितों के बीच
नगीना सीट से सांसद आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के चंद्रशेखर भी दलितों खासकर युवाओं के बीच पकड़ मजबूत कर चुके हैं। जाटव समुदाय लंबे समय से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का मुख्य आधार रहा है। मायावती और चंद्रशेखर दोनों इसी समाज से आते हैं। 22 फीसदी दलितों में अकेले 12 फीसदी जाटव उपवर्ग की संख्या है। यही कारण है कि मौजूदा समय में असली लड़ाई जाटव बनाम गैर-जाटव दलितों की हो चुकी है। बसपा के कमजोर होने से दलित समाज अब जातीय उप-वर्गों में बंट चुका है। जाटव के अलावा दलितों की 65 उपजातियों की हिस्सेदारी सिर्फ 10 फीसदी है। गैर-जाटव कुल 10 फीसदी दलितों में भी पासी (16%), धोबी, कोरी और वाल्मीकि (15%) और गोंड, खटीक, धानुक (5%) जैसे समुदाय हैं। अब इन जातियों में भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग बढ़ रही है, जो सीधे बसपा के पारंपरिक वोट बैंक को चुनौती देता है। क्या आकाश आनंद बदल पाएंगे समीकरण?
मायावती ने जिस आक्रामकता के साथ आकाश आनंद को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया है, उसके पीछे दलित वोटबैंक को फिर से साधने की मंशा है। लेकिन, सवाल यही है कि क्या आकाश गैर-जाटव जातियों को भी जोड़ पाएंगे? क्योंकि यही वो जातियां हैं जिन्हें सपा, भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने पाले में लाने की रणनीति बना ली है। राजनीतिक विश्लेषक सैयद कासिम कहते हैं- बसपा का कोर वोटर जाटव ही रहा है। जहां तक चंद्रशेखर की बात है, तो उनकी जीत में जाटव की बजाय मुस्लिम वोटरों की भूमिका थी। किसी भी जाति का युवा वर्ग आक्रामकता पसंद करता है। आकाश में वो आक्रामकता है। इसका फायदा बसपा को मिलेगा। बिहार में होगी आकाश की पहली परीक्षा
बिहार में इसी साल के आखिरी में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य के प्रभारी रामजी लाल गौतम की अगुआई में बसपा सभी 240 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारियों में जुटी है। बिहार में मुख्य मुकाबला नीतीश कुमार की अगुआई वाले एनडीए और राजद वाली इंडी गठबंधन में होना माना जा रहा है। जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं। वहीं, बसपा के मजबूती से लड़ने पर कई सीटों पर लड़ाई चतुष्कोणीय हो जाएगी। ऐसी हालत में अगर बसपा कुछ कमाल दिखा पाती है, तो उसके कमबैक का रास्ता खुल जाएगा। ———————– ये खबर भी पढ़ें… मायावती ने भतीजे को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया, नंबर-2 की पोजिशन; 16 महीने में दो बार हटाया…फिर वापसी की बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर भतीजे आकाश आनंद को बड़ी जिम्मेदारी दी है। आकाश को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया है। यह नंबर-2 की पोजिशन है। यानी, मायावती के बाद अब पार्टी में आकाश होंगे। आकाश को अब तक का सबसे बड़ा पद दिया गया है। पार्टी ने पहली बार चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर का पद बनाया है। इससे पहले आकाश नेशनल को-ऑडिनेटर थे। पढ़ें पूरी खबर बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर सबको चौंकाते हुए आकाश आनंद को पार्टी का चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बना दिया है। यह पद अब तक बसपा में अस्तित्व में नहीं था। यानी मायावती ने उनके लिए विशेष रूप से यह पद बनाया। साथ ही साफ संकेत भी दे दिया कि ‘अब बसपा में भविष्य की कमान धीरे-धीरे युवा हाथों में सौंपने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।’ एक तीर से 4 निशाने आकाश आनंद की वापसी को यूं ही नहीं देखा जा सकता। मायावती इसके जरिए चार बड़े राजनीतिक मोर्चों पर सेंधमारी करना चाहती हैं। कोर दलित वोटबैंक ही रहा है बसपा की ताकत
राजनीतिक जानकार मानते हैं- बसपा की स्थापना भले ही कांशीराम ने की थी, लेकिन पार्टी को बुलंदी पर मायावती ही लेकर गईं। 3 बार भाजपा के साथ गठबंधन और एक बार खुद के बलबूते यूपी में सरकार बनाने वाली मायावती की उम्र जैसे-जैसे ढल रही, पार्टी का ग्राफ भी गिरता जा रहा। मायावती ने जब यूपी की राजनीति में झंडा गाड़ा था, तब सपा से मुलायम सिंह यादव, भाजपा के कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह जैसे नेता थे। सपा में अब युवा अखिलेश यादव पार्टी का चेहरा बन चुके हैं। वहीं, भाजपा में यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य जैसे नए चेहरे स्थापित हो चुके हैं। कांग्रेस में भी पीढ़ीगत बदलाव दिख रहा है। बसपा के कोर वोटर दलित हैं। लेकिन, दलित खासकर युवाओं को आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर की आक्रामकता अधिक लुभा रही है। चंद्रशेखर और आकाश आनंद, दोनों जाटव हैं। दोनों युवा हैं, आक्रामक हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि चंद्रशेखर सड़कों पर दिखते हैं और आकाश संगठन के मंचों पर। मायावती आकाश के जरिए चंद्रशेखर की बढ़ती लोकप्रियता को संतुलित करना चाहती हैं। लेकिन, चंद्रशेखर की भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी का प्रभाव यूपी के पश्चिमी जिलों में तेजी से बढ़ा है। ऐसे में आकाश के लिए सबसे बड़ी चुनौती चंद्रशेखर की साख और अपील को चुनौती देना होगा। क्या आकाश के अलावा कोई विकल्प नहीं था
बसपा से जुड़े एक बड़े पदाधिकारी कहते हैं- आकाश कई मापदंडों पर परखे जा चुके हैं। मायावती ने 2 बार पद छीना। पिछली बार तो पार्टी से ही निकाल दिया था। पार्टी से बाहर होने के बाद आकाश न तो सार्वजनिक रूप से मायावती के खिलाफ बोले, न ही नई पार्टी बनाई। उनका यह ‘संयम’ ही अब ‘सत्ता’ में बदला है। बसपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक, ‘दो बार पद जाने के बावजूद आकाश ने न बगावत की, न शिकायत। यही मायावती को सबसे ज्यादा पसंद आया।’ दलित वोटबैंक के लिए सियासी दलों में जंग
2012 के बाद से बसपा का ग्राफ लगातार गिरा है। दलित राजनीति जो कभी जाटवों के सहारे मजबूत हुई थी, अब गैर-जाटवों की उपेक्षा का मुद्दा बन गई है। गैर-जाटव दलितों को लगने लगा है कि मायावती की पार्टी सिर्फ एक जाति विशेष की पार्टी बनकर रह गई है। इस सियासी खालीपन को भरने के लिए अन्य दलों ने तेजी से प्रयास शुरू किए। सपा ने पासी और सोनकर जातियों को तरजीह दी। भाजपा ने वाल्मीकि, खटीक और अन्य समुदायों को संगठन में जगह दी। कांग्रेस ने निजी क्षेत्र में आरक्षण का वादा कर नया दांव चला है। वहीं, चंद्रशेखर ने युवाओं में आक्रामक दलित नेतृत्व की छवि पेश की है। BSP में क्यों खास है चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर पद, क्या है संकेत
पहली बार ‘चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर’ का पद सृजित किया गया है। पहले से मौजूद तीन नेशनल को-ऑर्डिनेटर रामजी गौतम, रणधीर बेनीवाल और राजाराम, अब आकाश आनंद को रिपोर्ट करेंगे। बसपा ने पूरे देश को 3 हिस्सों में बांटा है। 8 राज्य रामजी गौतम और 7-7 राज्य राजाराम और रणधीर बेनीवाल के हिस्से में रखा गया है। आकाश हर महीने तीनों को-ऑर्डिनेटरों के हिस्से वाले राज्यों में 3-3 जाएंगे। जहां मिड पॉइंट होगा, वहां समीक्षा करेंगे। फिर उसको बसपा प्रमुख मायावती को बताएंगे। आकाश जिस भी राज्य में जाएंगे, वहां की स्टेट कमेटी उनका पूरा खर्च उठाएगी। इसके अलावा चुनाव वाले राज्यों में पब्लिक मीटिंग के लिए आकाश अलग से समय देंगे। पहली बार आकाश को पावर के साथ पद सौंपा गया है। तीसरी पब्लिक मीटिंग होंगे। वहां अलग से समय देंगे। जहां चुनाव अधिकारों के साथ। मैं नहीं जा पाती हूं। मेरी जगह आकाश जाएंगे। आकाश आनंद के पास कोई पावर नहीं था। 18 मई को दिल्ली में हुई BSP की बैठक में मायावती ने खुद आकाश को यह जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि जहां मैं नहीं जा पाती हूं, वहां मेरी जगह आकाश जाएंगे। राजनीतिक संदेश साफ है कि मायावती के बाद आकाश अब नंबर दो की हैसियत में होंगे। क्या मायावती उत्तराधिकारी तय कर रही हैं?
इसका जवाब है, फिलहाल नहीं। 13 अप्रैल को मायावती ने साफ किया था- ‘जब तक स्वस्थ हूं, पार्टी का नेतृत्व करूंगी।’ प्रोफेसर विवेक कुमार कहते हैं- जैसे कांशीराम ने अंतिम वक्त में मायावती को उत्तराधिकारी बनाया था, मायावती भी तब तक किसी को उत्तराधिकारी नहीं बनाएंगी, जब तक वह खुद सक्रिय हैं। लेकिन संकेत हैं कि वह आकाश को भविष्य के लिए तैयार कर रही हैं। मायावती ने अचानक फैसला क्यों लिया
राजनीतिक जानकार जेएनयू के प्रोफेसर विवेक कुमार के मुताबिक, मायावती ने अचानक फैसला नहीं लिया है। पिछली बार भी जब आकाश से दायित्व लिया था, तो थोड़े अंतराल के बाद ही फिर से जिम्मेदारी सौंप दी थी। उस बार तो मायावती ने आकाश को अपना उत्तराधिकारी तक बना दिया था। इस बार भी वापसी के साथ ही तय हो गया था कि देर-सवेर आकाश को कोई अहम जिम्मेदारी दी जाएगी। मायावती ने पहले से तीन नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाए थे। ऐसे में आकाश के रूप में चौथा नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाना उचित नहीं होता। आकाश उसी आनंद कुमार के बेटे हैं, जिन्हें मायावती अपने सभी भाइयों में सबसे अधिक स्नेह और विश्वास करती हैं। आनंद कुमार ने पार्टी और मायावती के लिए अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी थी। भाई आनंद को जब उनके बेटे आकाश की बजाय नेशनल को-ऑर्डिनेटर का दायित्व सौंपा था, तो उन्होंने मना कर दिया था। यही कारण है कि उनके सामने आकाश ही एक मात्र विकल्प बचते हैं। क्या मायावती संन्यास ले सकती हैं?
इसका जवाब नहीं है। खुद मायावती ने ही 13 अप्रैल को आकाश को पार्टी में वापस लेते हुए कहा था कि जब तक पूरी तरह से स्वस्थ्य रहूंगी, काम करती रहूंगी। उत्तराधिकारी बनाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। मायावती परिवार के बेहद करीबी विवेक कुमार के मुताबिक, कांशीराम ने भी अपने अंतिम समय में जब उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था, तभी मायावती को उत्तराधिकारी घोषित किया था। इसी तरह मायावती की भी जब तक सेहत ठीक रहेगी, किसी को भी उत्तराधिकारी घोषित नहीं करेंगी। लेकिन धीरे-धीरे वह आकाश या उस व्यक्ति को आगे बढ़ाएंगी, जो पार्टी को आगे ले जा सके। फिलहाल जिस तरीके से आकाश का कद बार-बार बढ़ाया जा रहा है, इससे साफ है कि उन्हें मायावती बड़ी भूमिका के लिए तैयार कर रही हैं। यूपी में दलित वोटबैंक 22%, जिसके साथ, उसकी सरकार
उत्तर प्रदेश की सियासत अर्से से दलित एजेंडे के इर्द-गिर्द घूमती रही है। वजह 22 फीसदी दलित आबादी है। इस बड़े वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिए बसपा से लेकर भाजपा, सपा, कांग्रेस और भीम आर्मी के चंद्रशेखर तक सभी दल रणनीति बुन रहे हैं। इसी वोटबैंक को साधने के लिए मायावती ने आकाश आनंद को बसपा का मुख्य राष्ट्रीय समन्वयक बनाकर पहला बड़ा दांव चला है। असली लड़ाई जाटव बनाम गैर जाटव दलितों के बीच
नगीना सीट से सांसद आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के चंद्रशेखर भी दलितों खासकर युवाओं के बीच पकड़ मजबूत कर चुके हैं। जाटव समुदाय लंबे समय से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का मुख्य आधार रहा है। मायावती और चंद्रशेखर दोनों इसी समाज से आते हैं। 22 फीसदी दलितों में अकेले 12 फीसदी जाटव उपवर्ग की संख्या है। यही कारण है कि मौजूदा समय में असली लड़ाई जाटव बनाम गैर-जाटव दलितों की हो चुकी है। बसपा के कमजोर होने से दलित समाज अब जातीय उप-वर्गों में बंट चुका है। जाटव के अलावा दलितों की 65 उपजातियों की हिस्सेदारी सिर्फ 10 फीसदी है। गैर-जाटव कुल 10 फीसदी दलितों में भी पासी (16%), धोबी, कोरी और वाल्मीकि (15%) और गोंड, खटीक, धानुक (5%) जैसे समुदाय हैं। अब इन जातियों में भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग बढ़ रही है, जो सीधे बसपा के पारंपरिक वोट बैंक को चुनौती देता है। क्या आकाश आनंद बदल पाएंगे समीकरण?
मायावती ने जिस आक्रामकता के साथ आकाश आनंद को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया है, उसके पीछे दलित वोटबैंक को फिर से साधने की मंशा है। लेकिन, सवाल यही है कि क्या आकाश गैर-जाटव जातियों को भी जोड़ पाएंगे? क्योंकि यही वो जातियां हैं जिन्हें सपा, भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने पाले में लाने की रणनीति बना ली है। राजनीतिक विश्लेषक सैयद कासिम कहते हैं- बसपा का कोर वोटर जाटव ही रहा है। जहां तक चंद्रशेखर की बात है, तो उनकी जीत में जाटव की बजाय मुस्लिम वोटरों की भूमिका थी। किसी भी जाति का युवा वर्ग आक्रामकता पसंद करता है। आकाश में वो आक्रामकता है। इसका फायदा बसपा को मिलेगा। बिहार में होगी आकाश की पहली परीक्षा
बिहार में इसी साल के आखिरी में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य के प्रभारी रामजी लाल गौतम की अगुआई में बसपा सभी 240 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारियों में जुटी है। बिहार में मुख्य मुकाबला नीतीश कुमार की अगुआई वाले एनडीए और राजद वाली इंडी गठबंधन में होना माना जा रहा है। जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं। वहीं, बसपा के मजबूती से लड़ने पर कई सीटों पर लड़ाई चतुष्कोणीय हो जाएगी। ऐसी हालत में अगर बसपा कुछ कमाल दिखा पाती है, तो उसके कमबैक का रास्ता खुल जाएगा। ———————– ये खबर भी पढ़ें… मायावती ने भतीजे को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया, नंबर-2 की पोजिशन; 16 महीने में दो बार हटाया…फिर वापसी की बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर भतीजे आकाश आनंद को बड़ी जिम्मेदारी दी है। आकाश को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया है। यह नंबर-2 की पोजिशन है। यानी, मायावती के बाद अब पार्टी में आकाश होंगे। आकाश को अब तक का सबसे बड़ा पद दिया गया है। पार्टी ने पहली बार चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर का पद बनाया है। इससे पहले आकाश नेशनल को-ऑडिनेटर थे। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर