उप-चुनाव में भाजपा को सत्ता में रहते सबसे ज्यादा नुकसान:अखिलेश का सक्सेस रेट 19%, यूपी में 7 साल में 80 सीटों का रिकॉर्ड….

उप-चुनाव में भाजपा को सत्ता में रहते सबसे ज्यादा नुकसान:अखिलेश का सक्सेस रेट 19%, यूपी में 7 साल में 80 सीटों का रिकॉर्ड….

यूपी में उप चुनाव की तारीखों का ऐलान आज हो गया। प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों में सपा ने 6 और बसपा ने 5 सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए हैं। उप चुनाव को 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। बाजी मारने वाली पार्टी का निश्चित रूप से मनोबल बढ़ेगा। इसलिए भाजपा, बसपा और कांग्रेस-सपा गठबंधन पूरा दमखम लगा रही हैं। राज्य में 2007 से अब तक लोकसभा और विधानसभा की 80 सीटों पर उप चुनाव हुए। सत्ताधारी दल को 80 में से 51 सीटों पर जीत मिली है। नतीजों पर नजर डालें तो मुकाबले में बसपा भारी पड़ी है। उसका सक्सेस रेट 64% है। सपा का सक्सेस रेट 19% है, जबकि भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। राज्य में शासन की बात की जाए तो 2007 से 2012 तक मायावती काबिज रहीं, 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव की सरकार रही। 2017 से योगी आदित्यनाथ की सरकार है। सबसे पहले बात मायावती के शासनकाल की
2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को रिकॉर्ड 206 सीट हासिल हुई थीं। मायावती सरकार में प्रदेश में विधानसभा की 22 सीटों पर उप चुनाव हुए। वजह- कुछ सदस्यों का निधन हो गया, जबकि कुछ ने इस्तीफा दे दिया। इन चुनावों में बसपा का दबदबा रहा। बसपा को 22 में से 17 सीट मिलीं। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 2 और एक-एक सीट रालोद, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार को मिली। भाजपा एक भी उप चुनाव नहीं जीत सकी। जिन 22 सीटों पर उप चुनाव हुए, वहां विधानसभा चुनाव का नतीजा कुछ और ही था। 2007 के चुनाव में इन 22 सीटों में से 8 सीट सपा को, तीन सीट कांग्रेस और तीन सीट बसपा को मिली थीं। बीजेपी के हिस्से में चार सीट आई थीं। बसपा की सीटें बढ़ीं, सपा-भाजपा को नुकसान
मायावती के शासन में हुए उप चुनाव में आंकड़े पूरी तरह से बसपा के पक्ष में रहे। सत्ताधारी दल बसपा 3 से बढ़कर 17 तक पहुंच गई। सपा 8 से दो पर आ गई। भाजपा ने चारों सीट गंवा दीं। लखनऊ पश्चिमी सीट, जो भाजपा के कद्दावर नेता लालजी टंडन के इस्तीफे से खाली हुई थी, उस पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया। आरएलडी सिर्फ मोरना की सीट बचा पाने में कामयाब हुई थी। यानी उप चुनाव में बसपा की जीत का प्रतिशत 75 प्रतिशत से अधिक रहा था। हालांकि 2012 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बसपा 79 सीटों पर सिमट गई और समाजवादी पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। अब बात सपा शासनकाल की: सपा ने जीती थीं 26 में 16 सीट
2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इस दौरान प्रदेश में विधानसभा की 26 सीटों पर उप चुनाव हुए। इन उप चुनावों में सपा ने 16 सीटें जीतीं। सपा की जीत का प्रतिशत लगभग 60 रहा। 6 सीटें भाजपा के खाते में गईं और दो कांग्रेस के खाते में। जबकि एक-एक सीट पर तृणमूल कांग्रेस और अपना दल ने कब्जा किया था। बहुजन समाज पार्टी ने 2012 में हुई करारी हार के बाद उपचुनाव से किनारा कर लिया था। 2012 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ था, उस समय उपचुनाव वाली सीटों में से भाजपा के पास 12 और सपा के पास 11 सीटें थीं। एक-एक सीट अपना दल, कांग्रेस और आरएलडी के पास थी। चरखारी में 5 साल में 4 बार हुए चुनाव
बुंंदेलखंड की चरखारी सीट पर 2012 से लेकर 2017 के बीच कुल चार चुनाव हुए। इसमें दो चुनाव और दो उप चुनाव। यहां से 2012 में उमा भारती भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। 2014 में वह लोकसभा सदस्य निर्वाचित हो गईं। सीट खाली हुई, उप चुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी के कप्तान सिंह ने जीत हासिल की। लेकिन, अपराध के एक मामले में उन्हें सजा हो गई, जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई। 11 अप्रैल 2015 को यहां दोबारा उप चुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी की उर्मिला देवी राजपूत ने जीत हासिल की। 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो यहां से भाजपा को जीत मिली। इन उप चुनाव के नतीजों की रही चर्चा
2014 के लोकसभा चुनाव में केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार आई। यह लहर 2017 तक कायम रही। भाजपा को इसका फायदा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी मिला। राज्य में भाजपा ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की। उसे 300 से ज्यादा सीट हासिल हुईं। 2014 में गोरखपुर से जीत दर्ज कर सांसद बनने वाले योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। फूलपुर से सांसद बने केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बनाए गए। योगी सरकार की पहली परीक्षा 2017 के अंत में हुए लोकसभा उप चुनाव में हुई। इस उप चुनाव में सपा ने भाजपा से गोरखपुर और फूलपुर दोनों सीट छीन ली। 2018 में कैराना के सांसद बने हुकुम सिंह के निधन से सीट खाली हुई। उप चुनाव हुआ तो सपा-आरएलडी प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने यहां से भाजपा को मात दे दी। यानी भाजपा के शासनकाल में शुरुआती तीन लोकसभा की जिन तीन सीटों पर चुनाव हुए, वह तीनों सीटें भाजपा हार गई। योगी के पहले कार्यकाल में भाजपा ने जीतीं 23 में 17 सीटें, लेकिन 2 सीटों का नुकसान
योगी सरकार के पहले कार्यकाल यानी 2017 से 2022 तक कुल 37 सीटें खाली हुईं। लेकिन चुनाव 23 पर ही हुए। वजह, बाकी सीटें उस वक्त खाली हुईं, जब सदन का कार्यकाल 6 महीने से कम बचा था। जिन 23 सीटों पर उप चुनाव हुए, उसमें भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल ने 18 सीटों पर जीत हासिल की। 17 सीट भाजपा और एक सीट अपना दल ने जीती। सपा के हिस्से 5 सीट आईं। जबकि विधानसभा चुनाव में इन 23 में से भाजपा के पास 19 सीटें थीं। भाजपा की सहयोगी अपना दल के पास एक सीट थी। इसके अलावा दो सीट सपा के पास और एक सीट बसपा के पास थी। सपा ने इस दौरान न सिर्फ अपनी दोनों रामपुर और मल्हानी को बचाया, बल्कि भाजपा से दो और बसपा से एक सीट छीन ली थी। योगी 2.0 में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव
योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अब तक 10 सीटों पर उप चुनाव हुए। इन 10 सीटों में से चार सीट पर भाजपा और दो सीट पर अपना दल ने जीत दर्ज की है। इसके अलावा 3 सीट सपा ने और एक सीट आरएलडी ने जीती है। एक सीट सपा की सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ी आरएलडी के हाथ आई थी। आरएलडी अब भाजपा के साथ है। अब इन 10 सीटों पर सरकार की परीक्षा
प्रदेश में मौजूदा समय में 10 सीटें करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, फूलपुर, मझवां, सीसामऊ, कुंदरकी, गाजियाबाद, मीरापुर और खैर खाली हैं। सीसामऊ से विधायक रहे इरफान सोलंकी को अपराध के एक मामले में दो साल से अधिक की सजा हुई है, जिसके कारण उनकी सदस्यता रद्द हो गई है। बाकी 9 सीटों पर मौजूदा विधायक अब सांसद बन गए हैं। प्रतिष्ठित सीटें जिनपर सत्तापक्ष को मिली हार
कई ऐसी सीटें भी रहीं जिन्हें सत्ताधारियों ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया, उसके बाद भी हार का सामना करना पड़ा। भदोही सीट: बसपा के शासन काल में फरवरी 2009 में भदोही सीट पर ऐसा ही हुआ। यहां बसपा की अर्चना सरोज के निधन से खाली हुई सीट पर बसपा ने अपना पूरा जोर लगा दिया। इसके बाद भी उसे हार मिली। सपा ने ये सीट जीत ली। मांट सीट: 2012 में सपा की सरकार बनी, अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। मांट से जयंत चौधरी के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उप चुनाव हुआ। इस चुनाव में अखिलेश यादव ने पूरी ताकत लगाई, लेकिन वह संजय लाठर को जीत तक नहीं पहुंचा सके। इस चुनाव में सपा तीसरे नंबर पर रही। गोरखपुर और फूलपुर सीट: 2017 में भाजपा की सरकार बनी। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बने। यह दोनों सांसद थे, इसलिए लोकसभा सीट पर उप चुनाव हुआ। यह उप चुनाव भाजपा बुरी तरह से हार गई। घोसी सीट: योगी आदित्यनाथ 2022 में दोबारा मुख्यमंत्री बने तो मऊ की घोसी सीट से विधायक चुने गए दारा सिंह चौहान सपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने विधानसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया। लेकिन जब उप चुनाव हुआ तो दारा सिंह चुनाव हार गए। राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि उप चुनाव में कई ऐसे मुद्दे होते हैं, जो उस समय के हिसाब से काम करते हैं। जरूरी नहीं कि चुनाव में सत्ताधारी दल जीते। हर सीट के समीकरण होते हैं और अलग-अलग मुद्दे होते हैं। मायावती के शासनकाल में उप चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी अजय राय ने वाराणसी के कोलासला सीट से जीत दर्ज की थी। इसी तरह सपा के शासनकाल में तमाम कोशिशों के बावजूद संजय लाठर चुनाव हार गए थे। मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी खुद की सीट गोरखपुर संसदीय सीट उप चुनाव में हार गए थे। ऐसे में यह कहना गलत है कि सत्ताधारी दल की ही जीत होती है। हां, उसके जीतने की संभावना इसलिए ज्यादा होती है, क्योंकि वहां की जनता सरकार के साथ मिलकर चलना चाहती है, ताकि वहां का विकास हो सके। ये भी पढ़ें: अखिलेश को करारा जवाब देना चाहते हैं योगी विधानसभा चुनाव 2027 से पहले 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए सेमीफाइनल हैं। ‌‌सीएम योगी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। खुद कटेहरी और मिल्कीपुर सीट का जिम्मा संभाल रहे हैं। उपचुनाव में भी भाजपा के ‘केंद्र’ में राष्ट्रवाद और अयोध्या मुद्दा है। पढ़े पूरी खबर यूपी में उप चुनाव की तारीखों का ऐलान आज हो गया। प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों में सपा ने 6 और बसपा ने 5 सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए हैं। उप चुनाव को 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। बाजी मारने वाली पार्टी का निश्चित रूप से मनोबल बढ़ेगा। इसलिए भाजपा, बसपा और कांग्रेस-सपा गठबंधन पूरा दमखम लगा रही हैं। राज्य में 2007 से अब तक लोकसभा और विधानसभा की 80 सीटों पर उप चुनाव हुए। सत्ताधारी दल को 80 में से 51 सीटों पर जीत मिली है। नतीजों पर नजर डालें तो मुकाबले में बसपा भारी पड़ी है। उसका सक्सेस रेट 64% है। सपा का सक्सेस रेट 19% है, जबकि भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। राज्य में शासन की बात की जाए तो 2007 से 2012 तक मायावती काबिज रहीं, 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव की सरकार रही। 2017 से योगी आदित्यनाथ की सरकार है। सबसे पहले बात मायावती के शासनकाल की
2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को रिकॉर्ड 206 सीट हासिल हुई थीं। मायावती सरकार में प्रदेश में विधानसभा की 22 सीटों पर उप चुनाव हुए। वजह- कुछ सदस्यों का निधन हो गया, जबकि कुछ ने इस्तीफा दे दिया। इन चुनावों में बसपा का दबदबा रहा। बसपा को 22 में से 17 सीट मिलीं। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 2 और एक-एक सीट रालोद, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार को मिली। भाजपा एक भी उप चुनाव नहीं जीत सकी। जिन 22 सीटों पर उप चुनाव हुए, वहां विधानसभा चुनाव का नतीजा कुछ और ही था। 2007 के चुनाव में इन 22 सीटों में से 8 सीट सपा को, तीन सीट कांग्रेस और तीन सीट बसपा को मिली थीं। बीजेपी के हिस्से में चार सीट आई थीं। बसपा की सीटें बढ़ीं, सपा-भाजपा को नुकसान
मायावती के शासन में हुए उप चुनाव में आंकड़े पूरी तरह से बसपा के पक्ष में रहे। सत्ताधारी दल बसपा 3 से बढ़कर 17 तक पहुंच गई। सपा 8 से दो पर आ गई। भाजपा ने चारों सीट गंवा दीं। लखनऊ पश्चिमी सीट, जो भाजपा के कद्दावर नेता लालजी टंडन के इस्तीफे से खाली हुई थी, उस पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया। आरएलडी सिर्फ मोरना की सीट बचा पाने में कामयाब हुई थी। यानी उप चुनाव में बसपा की जीत का प्रतिशत 75 प्रतिशत से अधिक रहा था। हालांकि 2012 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बसपा 79 सीटों पर सिमट गई और समाजवादी पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। अब बात सपा शासनकाल की: सपा ने जीती थीं 26 में 16 सीट
2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इस दौरान प्रदेश में विधानसभा की 26 सीटों पर उप चुनाव हुए। इन उप चुनावों में सपा ने 16 सीटें जीतीं। सपा की जीत का प्रतिशत लगभग 60 रहा। 6 सीटें भाजपा के खाते में गईं और दो कांग्रेस के खाते में। जबकि एक-एक सीट पर तृणमूल कांग्रेस और अपना दल ने कब्जा किया था। बहुजन समाज पार्टी ने 2012 में हुई करारी हार के बाद उपचुनाव से किनारा कर लिया था। 2012 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ था, उस समय उपचुनाव वाली सीटों में से भाजपा के पास 12 और सपा के पास 11 सीटें थीं। एक-एक सीट अपना दल, कांग्रेस और आरएलडी के पास थी। चरखारी में 5 साल में 4 बार हुए चुनाव
बुंंदेलखंड की चरखारी सीट पर 2012 से लेकर 2017 के बीच कुल चार चुनाव हुए। इसमें दो चुनाव और दो उप चुनाव। यहां से 2012 में उमा भारती भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। 2014 में वह लोकसभा सदस्य निर्वाचित हो गईं। सीट खाली हुई, उप चुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी के कप्तान सिंह ने जीत हासिल की। लेकिन, अपराध के एक मामले में उन्हें सजा हो गई, जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई। 11 अप्रैल 2015 को यहां दोबारा उप चुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी की उर्मिला देवी राजपूत ने जीत हासिल की। 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो यहां से भाजपा को जीत मिली। इन उप चुनाव के नतीजों की रही चर्चा
2014 के लोकसभा चुनाव में केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार आई। यह लहर 2017 तक कायम रही। भाजपा को इसका फायदा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी मिला। राज्य में भाजपा ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की। उसे 300 से ज्यादा सीट हासिल हुईं। 2014 में गोरखपुर से जीत दर्ज कर सांसद बनने वाले योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। फूलपुर से सांसद बने केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बनाए गए। योगी सरकार की पहली परीक्षा 2017 के अंत में हुए लोकसभा उप चुनाव में हुई। इस उप चुनाव में सपा ने भाजपा से गोरखपुर और फूलपुर दोनों सीट छीन ली। 2018 में कैराना के सांसद बने हुकुम सिंह के निधन से सीट खाली हुई। उप चुनाव हुआ तो सपा-आरएलडी प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने यहां से भाजपा को मात दे दी। यानी भाजपा के शासनकाल में शुरुआती तीन लोकसभा की जिन तीन सीटों पर चुनाव हुए, वह तीनों सीटें भाजपा हार गई। योगी के पहले कार्यकाल में भाजपा ने जीतीं 23 में 17 सीटें, लेकिन 2 सीटों का नुकसान
योगी सरकार के पहले कार्यकाल यानी 2017 से 2022 तक कुल 37 सीटें खाली हुईं। लेकिन चुनाव 23 पर ही हुए। वजह, बाकी सीटें उस वक्त खाली हुईं, जब सदन का कार्यकाल 6 महीने से कम बचा था। जिन 23 सीटों पर उप चुनाव हुए, उसमें भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल ने 18 सीटों पर जीत हासिल की। 17 सीट भाजपा और एक सीट अपना दल ने जीती। सपा के हिस्से 5 सीट आईं। जबकि विधानसभा चुनाव में इन 23 में से भाजपा के पास 19 सीटें थीं। भाजपा की सहयोगी अपना दल के पास एक सीट थी। इसके अलावा दो सीट सपा के पास और एक सीट बसपा के पास थी। सपा ने इस दौरान न सिर्फ अपनी दोनों रामपुर और मल्हानी को बचाया, बल्कि भाजपा से दो और बसपा से एक सीट छीन ली थी। योगी 2.0 में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव
योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अब तक 10 सीटों पर उप चुनाव हुए। इन 10 सीटों में से चार सीट पर भाजपा और दो सीट पर अपना दल ने जीत दर्ज की है। इसके अलावा 3 सीट सपा ने और एक सीट आरएलडी ने जीती है। एक सीट सपा की सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ी आरएलडी के हाथ आई थी। आरएलडी अब भाजपा के साथ है। अब इन 10 सीटों पर सरकार की परीक्षा
प्रदेश में मौजूदा समय में 10 सीटें करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, फूलपुर, मझवां, सीसामऊ, कुंदरकी, गाजियाबाद, मीरापुर और खैर खाली हैं। सीसामऊ से विधायक रहे इरफान सोलंकी को अपराध के एक मामले में दो साल से अधिक की सजा हुई है, जिसके कारण उनकी सदस्यता रद्द हो गई है। बाकी 9 सीटों पर मौजूदा विधायक अब सांसद बन गए हैं। प्रतिष्ठित सीटें जिनपर सत्तापक्ष को मिली हार
कई ऐसी सीटें भी रहीं जिन्हें सत्ताधारियों ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया, उसके बाद भी हार का सामना करना पड़ा। भदोही सीट: बसपा के शासन काल में फरवरी 2009 में भदोही सीट पर ऐसा ही हुआ। यहां बसपा की अर्चना सरोज के निधन से खाली हुई सीट पर बसपा ने अपना पूरा जोर लगा दिया। इसके बाद भी उसे हार मिली। सपा ने ये सीट जीत ली। मांट सीट: 2012 में सपा की सरकार बनी, अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। मांट से जयंत चौधरी के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उप चुनाव हुआ। इस चुनाव में अखिलेश यादव ने पूरी ताकत लगाई, लेकिन वह संजय लाठर को जीत तक नहीं पहुंचा सके। इस चुनाव में सपा तीसरे नंबर पर रही। गोरखपुर और फूलपुर सीट: 2017 में भाजपा की सरकार बनी। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बने। यह दोनों सांसद थे, इसलिए लोकसभा सीट पर उप चुनाव हुआ। यह उप चुनाव भाजपा बुरी तरह से हार गई। घोसी सीट: योगी आदित्यनाथ 2022 में दोबारा मुख्यमंत्री बने तो मऊ की घोसी सीट से विधायक चुने गए दारा सिंह चौहान सपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने विधानसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया। लेकिन जब उप चुनाव हुआ तो दारा सिंह चुनाव हार गए। राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि उप चुनाव में कई ऐसे मुद्दे होते हैं, जो उस समय के हिसाब से काम करते हैं। जरूरी नहीं कि चुनाव में सत्ताधारी दल जीते। हर सीट के समीकरण होते हैं और अलग-अलग मुद्दे होते हैं। मायावती के शासनकाल में उप चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी अजय राय ने वाराणसी के कोलासला सीट से जीत दर्ज की थी। इसी तरह सपा के शासनकाल में तमाम कोशिशों के बावजूद संजय लाठर चुनाव हार गए थे। मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी खुद की सीट गोरखपुर संसदीय सीट उप चुनाव में हार गए थे। ऐसे में यह कहना गलत है कि सत्ताधारी दल की ही जीत होती है। हां, उसके जीतने की संभावना इसलिए ज्यादा होती है, क्योंकि वहां की जनता सरकार के साथ मिलकर चलना चाहती है, ताकि वहां का विकास हो सके। ये भी पढ़ें: अखिलेश को करारा जवाब देना चाहते हैं योगी विधानसभा चुनाव 2027 से पहले 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए सेमीफाइनल हैं। ‌‌सीएम योगी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। खुद कटेहरी और मिल्कीपुर सीट का जिम्मा संभाल रहे हैं। उपचुनाव में भी भाजपा के ‘केंद्र’ में राष्ट्रवाद और अयोध्या मुद्दा है। पढ़े पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर